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बिहार में ‘स्मार्ट सिटी’: परियोजना शुरू होने के वर्षों बाद, धोखा खातीं शहर के लोगों की उम्मीदें 

बिहार की प्रस्तावित स्मार्ट सिटीज कूड़े-कचरों की ढेर, खुले में शौच व गंदी नालियों, जलजमाव,  खराब रख-रखाव वाले सार्वजनिक परिवहन और बीमार सार्वजनिक स्थानों से अंटी हुई दिखाई देती हैं। 
पटना में ठोस अपशिष्ट (कचरे) को उठाते हुए
पटना में ठोस अपशिष्ट (कचरे) को उठाते हुए

बिहार विधान सभा सत्र के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षियों को आड़े हाथों लेते हुए प्रायः राज्य की कहानी बदल देने का दावा करते सुने जाते हैं। लेकिन ‘दोहरे इंजन वाली’ सरकार यानी एक ही पार्टी जिसकी राज्य और केंद्र दोनों में सत्ता हो, की नाक के नीचे  स्मार्ट सिटी मिशन तिरस्कार और भ्रष्टाचार के विषय हो गए हैं। बिहार सरकार द्वारा चरणबद्ध तरीके से चार नगरों-पटना, भागलपुर, मुजफ्फरपुर और बिहार शरीफ को स्मार्ट सिटी मिशन में नामांकित किया गया था। इनके चयन के बाद से इन चारों शहर में परस्पर काफी समानताएं देखने को मिली हैं, लेकिन ये समानताएं कोई सकारात्मक अर्थ में नहीं बल्कि बहुधा नकारात्मक वजहों से बनी हैं। 

प्रस्तावित स्मार्ट सिटीज कूड़े-कचरों की ढेर, खुले में शौच व गंदी नालियों, जल-जमाव, आए दिन फ्लाईओवर पर ट्रैफिक जाम रहने, खराब रख-रखाव वाली सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था और  बीमार सार्वजनिक स्थान में लीन है। पटना को छोड़कर बाकी तीनों नगरें प्रदेश के महत्वपूर्ण आर्थिक केंद्र होने के बावजूद हवाई अड्डों की सुविधाएं के लिए दशकों से इंतजार ही कर रहे हैं। स्मार्ट सिटी के नाम पर जो सपने बेचे जा रहे हैं, वे केवल धोखा खाने के लिए अभिशप्त उम्मीदें हैं।

पटना 

राज्य में स्मार्ट सिटी को विकसित करने की रफ्तार, काम की गुणवत्ता और उसके परिमाण घनघोर रूप से निम्न स्तर के और वह भी अव्यवस्थित हैं। पटना राज्य की राजधानी है। यहां की दो मिलियन से अधिक की आबादी (20 लाख से ज्यादा) कचरा प्रबंधन के लिहाज से बुरी तरह से हांफ रही है। बिहार के मुख्य स्मार्ट सिटी के बीच में कचरा रखने या जमा करने की छवि से धक्का नहीं लगेगा।  

पटना के बुद्ध मार्ग पर कचरा रखने और उठाने की जगह

इस शहर के लिए ठोस कचरा प्रबंधन सबसे संवेदनहीन तरीके से किया जाने वाला मसला है। हिंदुस्तान टाइम्स कार्यालय की बगल में शहर का सबसे बड़ा कूड़ा-कचरा रखने की जगह है। यह सैकड़ों कूड़ा बीनने वालों, चाहे वे किसी भी अवस्था और जेंडर के क्यों न हों, के काम करने की भी जगह है। उन्हें वहां नियमित रूप से कचरों की ढेर में से ठोस कचरे को बीनते-चुनते देखा जा सकता है।

प्रदेश के पूर्व शहरी विकास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा ने  प्रस्तावित चारों स्मार्ट सिटी के लिए धन के आवंटन किये जाने की घोषणा की थी जबकि इन नगरों में विकास के काम की गति नहीं पकड़ी।  राज्य को स्मार्ट सिटी मिशन के लिए केंद्र से 980 करोड रुपये मिले थे। इनमें पटना के लिए 380 करोड रुपये, भागलपुर के लिए 382 करोड़ रु.  मुजफ्फरपुर के लिए 312 करोड़ रु. और बिहारशरीफ के लिए 110 करोड़ रुपये मिले थे। यद्यपि इस मिशन में धन का कोई अभाव नहीं है,ये नगर अपने बाशिंदों के लिए बेहतर सेवाएं प्रदान करने के चलते कोष से वंचित रह सकते हैं। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से लेकर  यातायात नियंत्रण, और पार्को के सौंदर्यीकरण से लेकर सार्वजनिक जगहों के रख-रखाव तक-सभी कुछ अछूता और अपरिवर्तित है।  

आधा अधूरा पड़ा पटना के अदालतगंज का तालाब

पटना शहर के मध्य में स्थित मोहल्ला अदालतगंज का  तालाब आज भी अपने पूर्ण स्तर पर कामकाज किये जाने की बाट जोह रहा है। इसके सौंदर्यीकरण के काम में लगे कर्मचारी दावा करते हैं कि जब योजना पर काम करने का समय आता है, सरकार के अधिकारी अपना मन बदल लेते हैं। कहते हैं कि इस तालाब के पुनरुद्धार के लिए 9.86 करोड़ रुपये आवंटित किये गए हैं,इसके तहत तालाब के ढांचे,  संगीत में फव्वारा, खेलकूद के क्षेत्र, फूड कोर्ट, सजावट वाली रेलिंग, हरित आवरण और एक बड़ा फव्वारा तालाब के बीचो-बीच बनाने के लिए दिए गए हैं। लेकिन इनमें से धरातल पर कुछ भी देखने को नहीं मिलता है। इस परियोजना को अंतिम रूप से मार्च 2020 को पूरा किया जाना था, जिसे कोविड-19 के लॉकडाउन के चलते उस अवधि को बढ़ाकर 25 दिसम्बर 2020 कर दिया गया था। 

पटना नगर निगम (पीएमसी) की स्थायी समिति के एक सदस्य ने अपना नाम जाहिर करने के अनुरोध के साथ बताया कि पीएससी और शहरी विकास मंत्रालय (यूडीडी) की साख तेजी से गिरी है और स्मार्ट सिटी के निर्माण के नाम पर किये जाने वाले भ्रष्टाचार की काली करतूतों को सही ठहराने के प्रयास चारों तरफ दिखाई दे रहे हैं।

सार्वजनिक स्थान के नाम पर स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत निर्माण तथा सौंदर्यीकरण, पटना के कंकड़बाग के लोहियानगर में एमआइजी (मिड्ल इन्कम ग्रुप) पार्क का काम यो हीं खंडित पड़ा हुआ है, जबकि इसमें 31.55 लाख तक की राशि खर्च की जा चुकी है। पार्क-निर्माण अभी तक अधूरा है, जबकि इसके पूरा किये जाने की अंतिम तिथि जुलाई 2017 में ही समाप्त हो चुकी है। स्मार्ट सिटी मिशन की विफलता के बीच ही, जिला शहरी विकास एजेंसी (डीयूडीए) ने इसका ठीकरा बिहार शहरी विकास एजेंसी (बीयूडीए) पर फोड़ा, जो अब नया सामान्य चलन हो गया है। इस एमआइजी में रहने वाले एक वरिष्ठ मीडियाकर्मी ने अपना नाम गोपनीय रखने की शर्त पर पार्क निर्माण की पूरी कवायद को जिला प्रशासन तथा संरचना से संबद्ध एजेंसियों की नाक के नीचे “दिन दहाड़े लूट” करार दिया।  

पटना के कंकड़बाग का अधूरा पड़ा एमआइजी पार्क

पार्क की संरचना में विहित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है और बिल्डर ने इसके एक मेहराब (आर्क) का निर्माण अपने अतिरिक्त कार्य के बतौर किया है। इसकी जिला प्रशासन तथा उपायुक्त के यहां एक लिखित शिकायत किये जाने के बाद हुई जांच में किसी को दोषी ही नहीं पाया जा सका, जबकि भारी राशि खर्च किये जाने के साथ सार्वजनिक स्थान अधूरी सुविधाओं के साथ निष्क्रिय पड़ा हुआ है। अभी 2019 तक, एमआइजी पार्क एक खुला मैदान हुआ करता था और वहां एक छोटा-सा पीला बोर्ड टंगा रहता था, जो उसके नाम की सार्वजनिक मुनादी करता था। इसके पश्चात, वहां इस योजना के पूरे विवरणों के साथ लगा बोर्ड भी कहीं बिला गया। मोहल्ले के वरिष्ठ नागरिक प्रो. हरिकिशोर ने इस योजना में अवैध अतिक्रमण और सार्वजनिक स्थान के कुप्रबंधन की बाबत शहरी विकास सचिव, जिलाधिकारी और मेयर से शिकायत की थी, लेकिन आज तक उसका कोई नतीजा नहीं निकला। 

भागलपुर में लीटरों पानी की बर्बादी और भैरव तालाब

भागलपुर 

बिहार के रेश्मी शहर ‘भागलपुर’ को भी स्मार्ट सिटी बनाना तय किया गया है,लेकिन दुर्भाग्य ने इसे रोक दिया है। ‘भागलपुर स्मार्ट सिटी’ का मुहावरा सार्वजनिक रूप से प्राय: तब उभर आता है, जब यहां के लोगों को प्रदेश की सरकार, इसके नौकरशाहों और इसमें लगी एजेंसियों पर ताना मारना होता है। 

नगर की सड़कें एक संकरी लेन से ज्यादा चौड़ी नहीं हैं जिस पर भी इसके आधे हिस्से पर कचरा या अपशिष्ट पदार्थ छितराया-बिखरा रहता है। राज्य में बेहद खास रेशमी गलियारा (कॉरिडोर) होने के बावजूद, संवर्धित विकास के पैमानों पर भागलपुर के प्रति सरकार का ध्यान भटका हुआ मालूम होता है। पिछले महीने ही, राज्य के पूर्व उद्योग मंत्री श्याम रजक ने चिंता जतायी थी कि बिहार का रेशमी गलियारा होने के बावजूद भागलपुर शहर में हवाई अड्डे का निर्माण नहीं किया जा रहा है। 

भागलपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड (बीएससीएल) ने शहर के समूचे जल निकाय-उदाहरण के लिए, तिलक मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) के निकट भैरव तालाब-के साथ कई बार बैठकें की हैं। इस तालाब में नौका विहार, जॉगर्स फुटपाथ, खूब ऊंचा मस्तूल लगाने, प्रकाश और पानी के फव्वारे स्थापित करने की बात तय हुई थी, लेकिन इनमें से कोई सुविधाएं सरजमीं पर नहीं हैं। मटमैली ईंट की चारदीवारी टूटी पड़ी है और तालाब का पानी निकट रखे ठोस अपशिष्ट पदार्थों तक रिस रहा है। स्थानीय पार्षदों के अनुसार, स्मार्ट सिटी का विकास भागलपुर नगर निगम के मेयर और नगर निगम आयुक्त के बीच तकरार में फंसा हुआ है। 

न्यूजक्लिक से बातचीत में अभय कुमार ने दावा किया कि शहर के अंदर विशाल जल संकाय होने के बावजूद, यह सौंदर्यीकरण के काम से अछूता है। अभय बुनकर सेवा केंद्र (डब्ल्यूएससी) में एक तकनीशियन हैं। इसी तरह, सैंडिस कम्पाउंड के पुनरुद्धार के दौरान हुए भ्रष्टाचार का खुलासा पिछले साल हुआ था, जब पेवमेंट के जीर्णोद्धार के काम में लगाई नई ईंटें कुछ हफ्तों के भीतर ही टूट-फूट गई थीं। सैंडिस कम्पाउंड में एक टीवी सेंटर, वॉलीबॉल कोर्ट और छोटा खुला स्टेडियम है। 

मुजफ्फरपुर 

पूर्व शहरी विकास मंत्री और विधायक सुरेश शर्मा के गृह शहर होने के बावजूद मुजफ्फरपुर स्मार्ट सिटी की कोशिश सुलझ नहीं पाई है। शर्मा भाजपा के धाकड़ नेता  हैं, वे इसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपने गृह शहर के विकास के लिए अपेक्षा के मुताबिक कुछ नहीं किया है। हालांकि उनके जिम्मे यूडीडी विभाग था, ऐसे में शहर के सर्वांगीण विकास के लिए बहुत कुछ किया जा सकता था। इसके बजाय,यह विवादित हो गया और मुसीबतों के बोझ तले दब गया। यहां की मुख्य मौजूदा जन समस्याएं हैं-सड़कों पर ठोस अपशिष्ट पदार्थों का पसरा रहना,बिना सिग्नल का ट्रैफिक और तिस पर लगातार जाम, बस स्टैंड  का अधूरा पुनरुद्धार और अतिक्रमित जल निकाय तथा बारहो महीने बना जलजमाव। 

मुजफ्फरपुर शहर बूढ़ी नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है और उसकी भूआकृति असमान है। सरजमीनी सतह नदी की सतह से नीचे होने के कारण शहर में मॉनसून में जल जमाव होता रहता है और सैलाब आ जाता है। नगर की जलनिकासी प्रणाली 1895 की बनी हुई है और वह बाढ़ के खतरे को कम करने में सक्षम नहीें है। नालियां एक तो अतिक्रमण तथा दूसरे, कचरा फेंके जाने की वजह से अक्सर जाम रहती हैं। 

हाल के वर्षो में, शहर के लिए बड़ा खतरा इसके सबसे बड़े जल निकाय पर किया गया अतिक्रमण है। सिकन्दरपुर मन और ब्रह्मपुरा झील इसके दो प्रमुख जल-निकाय हैं। इनमें सिकन्दरपुर मन कड़ी चुनौतियां झेल रहा है। इसके इर्द-गिर्द पिछले कुछ सालों में कई रिहायशी कॉलोनियां विकसित हो गई हैं। इसी तरह, ब्रह्मपुरा झील की हालत बदतर है। शहरी अपशिष्टों का कुप्रबंधन और नालियों का खराब तरीके से रख-रखाव ने मजफ्फरपुर को मच्छरों का घर बना दिया है। यही कारण है कि यहां खिझे हुए नागरिक इस शहर को ‘मच्छरपुर’ कहते हैं। 

सिकन्दरपुर झील के हाशिये पर खुले में कचरों को जलाना 

सिकन्दरपुर झील से जुड़ी सड़क पर खुले में अपशिष्टों को जलाना रोजमर्रे की बात हो गई है। इस हो कर जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक की गाड़ियां अक्सर गुजरती हैं। वे इस तरह वायु को प्रदूषित होते देखते रहते हैं। विगत में मुजफ्फरपुर अपनी वायु गुणवत्ता में खासी गिरावट के लिए देश की मीडिया की सुर्खियां बना था। 

मुजफ्फरपुर के विधायक बिजेन्द्र चौधरी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) जिन्होंने भाजपा के प्रत्याशी सुरेश शर्मा को चुनाव में हराया था, ने दावा किया कि शर्मा के शहरी विकास मंत्री रहते यहां विकास का कोई काम नहीं हुआ। न्यूज़क्लिक से बातचीत में, विधायक चौधरी ने कहा कि नगर निगम के अधिकारियों और यूडीडी परस्पर लड़ते-भिड़ते रहते थे। इसका खामियाजा यह होता था कि विकास का ढ़ांचा विकसित करने के काम में कोई तालमेल ही नहीं बन पाता था। उन्होंने कहा कि सरकार ने शहर की विभिन्न योजनाओं के मद में 1580 करोड़ की राशि स्वीकृत की है, जिससे बस पड़ावों, सरकारी इमारतों के पुनर्विन्यास, सड़कें और जल निकासी नालियों की मरम्मत, निर्माण और विकास किया जाना था, लेकिन ये सभी धोखा साबित हुआ है। शहर की बुनियादी आवश्यक सुविधाओं के अभाव को लेकर न्यूज़क्लिक की पुरानी रपटें भी विधायक के दावे की पुष्टि करती हैं।

बिहारशरीफ 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला है-बिहारशरीफ। स्मार्ट सिटी के मामले में भी यह भी भ्रष्टाचार में अंटा पड़ा है। इस शहर का पर्यटन स्थल हिरण्य पर्वत है, जो राज्य के मेहनतकश करदाताओं की गाढ़ी कमाई विभिन्न जरिये से दोहन का केंद्र बन गया है। स्थानीय निकायों की 2016 की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक 1.27 करोड़ मूल्य के कामों को स्टैण्डर्ड बाइडिंग डॉक्यूमेंट (एसबीडी) में नहीं दर्शाया गया था, जिन्हें इस करार के तहत किये जाने वाले सभी कामों के वित्तीय मूल्य की परिकल्पना की गई थी। बिहारशरीफ नगर निगम ने स्वीकार किया था कि उसने स्लैब बनाने में 4.08 लाख की राशि का अतिरिक्त भुगतान किया था।

अनियमितताओं की बात दरकिनार कर भी दें तो पूरे बिहारशरीफ में 595 सीसीटीवी कैमरे लगाने का काम तय था, जो अब दूर का स्वप्न लगता है। प्रदूषण नियंत्रण और मौसम संवेदकों (सेंसर्स) स्मार्ट सिटी मिशन के हिस्सा हैं। लेकिन उनके क्रियान्वयन का अभी तक इंतजार है। सामाजिक विश्लेषकों के अनुसार, नालंदा जिला हमेशा से मुख्यमंत्री के ध्यान का केंद्र रहा है लेकिन जहां तक विकास के संदर्भ की बात है उससे यह पर्याप्त लाभान्वित नहीं हुआ है। 

बिहार में ‘स्मार्ट सिटी’ की शब्दावली शहरवासियों के गहरे मोहभंग को व्यक्त करने का जरिया हो गई है क्योंकि इसके तहत प्रस्तावित सुविधाएं उजालों का मुंह तक नहीं देख सकी हैं।  

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

‘Smart Cities’ in Bihar: Years after Start of Projects, Hopes of City Folks Wantonly Betrayed

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