Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

अंतरिक्ष की यात्रा: अतीत... गहरे और गहरे अतीत में जाने की कोशिश

जेम्स वेब टेलीस्कोप हमें 13.7 अरब साल पुरानी रोशनी दिखा रहा है।
Space
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप द्वारा खींची गई 7,600 प्रकाश वर्ष दूर स्थित कैरिना नेब्यूला की तस्वीर। फोटोः नासा

इंसानी जेहन में एक बहुत बड़ी इच्छा होती है कि वह अतीत में जाकर बीती हुई घटनाओं को देख सके। अतीत में ले जाने वाली टाइम मशीन हमारी फंतासियों में खास जगह रखती है। लेकिन हमारा अंतरिक्ष विज्ञान हकीकत में वही टाइम मशीन ही है। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के रूप में हमें एक और टाइम मशीन मिल गई है- सबसे ताकतवर और भरोसेमंद। इस टेलीस्कोप के द्वारा धरती पर भेजी गई पांच शुरुआती और कई मायनों में हैरतअंगेज तस्वीरें मंगलवार को नासा ने जारी कीं। टेलीस्कोप के तस्वीरें भेजने का सिलसिला शुरू हो गया है और अब यह चलता रहेगा। विज्ञानियों को कई गुत्थियां सुलझाने में मदद मिलेंगी।

शुरुआती तस्वीरें अंतरिक्ष की उन चीजों की ही हैं जिनके बारे में हमें पहले से पता था लेकिन इस टेलीस्कोप ने उन चीजों को देखने व समझने का भी अंदाज बदल दिया है। उसकी क्षमता, धरती से उसकी दूरी और इंफ्रारेड लाइट स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल अंतरिक्ष के बारे में हमारी समझ को नई दिशा देगा। उसकी हर तस्वीर एक नई खोज है जो हमें जीवन का नया रहस्य बतलाएगी। पहली तस्वीरों के बाद ही तमाम वैज्ञानिकों को इस बात का भरोसा हो चला है कि निश्चित रूप से सुदूर तारों व आकाशगंगाओं में जीवन के कई स्वरूप छिपे हुए हैं।

जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप द्वारा खींचा गया पांच गैलेक्सियों के एक समूह का चित्र जो आकाश में एक साथ नजर आती हैं। फोटोः नासा

हम अभी पिछले कुछ सौ सालों के इतिहास और कुछ हजार साल पहले के मिथकों को लेकर ही एक-दूसरे से लड़ने में लगे हैं, वहीं अंतरिक्ष विज्ञानी उम्मीद कर रहे हैं कि जेम्स वेब अंतरिक्ष टेलीस्कोप हमें 13.7 अरब साल पहले बने तारों व गैलेक्सियों की रोशनी दिखाएगा। अंतरिक्ष को मौजूदा स्वरूप देने वाली बिग बैंग परिघटना को हमारे विज्ञानी 13.8 अरब साल पहले घटित हुआ मानते हैं। यानी उसके 10 करोड़ साल बाद से बने तारों व गैलेक्सियों से निकली रोशनी हम देख पाएंगे।

हम इसे अतीत में जाने की बात इसीलिए मानते हैं क्योंकि हम इस समय टेलीस्कोप से जो रोशनी देख रहे हैं वह किसी ग्रह या तारे या गैलेक्सी से अरबों साल पहले निकली होगी जो इतना लंबा वक्त तय करने के बाद हमारे टेलीस्कोप की पकड़ में आ रही है। इस दौरान उस ग्रह या तारे या गैलेक्सी के साथ बहुत कुछ घटित हुआ होगा, हो सकता है वह नष्ट भी हो गया होगा। क्या हुआ, कैसे हुआ यह हमें बाद की रोशनियों की पड़ताल से पता चलेगा। इस तरह गैलेक्सियों, तारों व ग्रहों की उत्पत्ति के कई रहस्य सुलझ सकेंगे, अथाह अंतरिक्ष के बारे में कई नई जानकारियां मिल सकेंगी।

दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे ताकतवर यह टेलीस्कोप पिछले दिसंबर में दक्षिण अमेरिका में फ्रेंच गुयाना से अंतरिक्ष में भेजा गया था। अंतरिक्ष में उसकी तय जगह पर वह जनवरी 2022 में पहुंचा, यानी तकरीबन एक महीने में। इसके बाद उसके मिरर यानी आईनों का मिलान करने की प्रक्रिया शुरू हुई। उसके इंफ्रारेड डिटेक्टर्स को ठंडा किया गया ताकि वे काम कर सकें (उन्हें काम करने के लिए शून्य से 223 डिग्री सेल्शियस नीचे का तापमान चाहिए), फिर उस पर लगे वैज्ञानिक उपकरणों का कैलिब्रेशन किया गया। इन सबको धूप से बचाने के लिए उन पर एक टेनिस कोर्ट के आकार के सनशेड लगे हुए हैं। 

यह टेलीस्कोप धरती से छोड़े जाने वाले बाकी उपग्रहों यानी सैटेलाइट की तरह पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करता, क्योंकि यह पृथ्वी की कक्षा में नहीं है। बल्कि यह सूरज की परिक्रमा करता है। लेकिन सौरमंडल में वह उस जगह है जिसे एल2 लेगरेंज प्वाइंट कहा जाता है। सूरज के चक्कर काटता हुआ भी यह टेलीस्कोप इस जगह पर सूरज, पृथ्वी व चंद्रमा- तीनों के सापेक्ष हमेशा एक जैसी स्थिति में बना रहेगा, यानी उसके सौर पैनल हमेशा सूरज की तरफ रहेंगे और उन पर न कभी पृथ्वी की छाया पड़ेगी और न ही चंद्रमा की। इससे पैनल हमेशा ऊर्जा देते रहेंगे। वहीं दूसरी तरफ जहां उसके तमाम उपकरण लगे हैं, हमेशा अंधेरा रहेगा और इंफ्रारेड परिचालन के लिए जरूरी ठंडा तापमान (-223 डिग्री से.) बना रहेगा। 

अब जरा अंतरिक्ष की दूरियों पर तुलनात्मक नजर डालें तो हमें अंदाजा होगा कि हम किस विराटता की बात कर रहे है। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप अंतरिक्ष में जिस जगह पर है, वह हमारी पृथ्वी से 16 लाख किलोमीटर दूर है। वहीं धरती की परिक्रमा कर रहा हमारा अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन यानी आईएसएस पृथ्वी से महज करीब 408 किलोमीटर की दूरी पर है। अंदाजा लगा लीजिए कि टेलीस्कोप आईएसएस से भी कितना दूर जा पहुंचा है। जेम्स वेब टेलीस्कोप से पहले जो हब्बल टेलीस्कोप हमें सुदूर अंतरिक्ष की खोज-खबर दे रहा था, वह अप्रैल 1990 में पृथ्वी से छोड़ा गया था और वह पृथ्वी की कक्षा में 540 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा कर रहा है।

लेकिन आपको जेम्स वेब टेलीस्कोप की दूरी बहुत ज्यादा न लगती हो तो जान लीजिए कि चंद्रमा धरती से तकरीबन 4 लाख किलोमीटर की दूरी पर है। यानी टेलीस्कोप चंद्रमा से भी परे है। 

कुछ सालों पहले तक हम जिसे अपने सौरमंडल का नौंवा और सबसे दूर स्थित ग्रह मानते थे और अब जो ड्वार्फ (बौना) उपग्रह माना जाता है- यानी कि प्लूटो, वह सूरज से औसतन 5.9 अरब किलोमीटर और हमारी पृथ्वी से 4 से 7 अरब किलोमीटर बीच की दूरी पर रहता है। 

नासा ने पृथ्वी पर जो अब तक का सबसे तेज अंतरिक्षयान बनाया है- न्यू होरिजंस, उसे प्लूटो तक पहुंचने में साढ़े नौ साल लगे। लेकिन इससे आप यह नहीं मान लीजिएगा कि वह हमारी धरती से अंतरिक्ष में अब तक बन पाई पहुंच का आखिरी सिरा है। पृथ्वी से छोड़े गए अंतरिक्षयान इससे भी कहीं आगे पहुंच चुके हैं और वह भी बहुत पहले। 

नासा ने 1977 में महज कुछ दिनों के अंतर पर दो अंतरिक्ष यान छोड़े थे- वोयेजर 1 और वोयेजर 2, बस दोनों की यात्रा दिशाओं में अंतर था। ये दोनों यान पिछले 44 साल 10 महीनों से अभी तक अंतरिक्ष में हैं और, आगे बढ़े जा रहे हैं। जब तक इनकी उम्र है और बैटरी चल रही है (बस, कुछ दो-तीन साल और) तब तक ये आगे जाते जाएंगे और नासा को ब्रह्मांड की जानकारी देते रहेंगे। 

वोयजर 2 इस समय पृथ्वी से 19.4 अरब किलोमीटर की दूरी पर है और वोयेजर 1 उससे थोड़ा और आगे पृथ्वी से 23.3 अरब किलोमीटर की दूरी पर है। ये दोनों ही सूरज के प्रभाव से बाहर ब्रह्मांड के उस इलाके में जा चुके हैं जिसे विज्ञान की भाषा में इंटरस्टेलर स्पेस कहा जाता है। अब तक पृथ्वी से ये दो ही अंतरिक्षयान इंटरस्टेलर स्पेस में पहुंच पाए हैं- वोयेजर 1 अगस्त 2012 में और वोयेजर 2 नवंबर 2018 में।

हमारे सौरमंडल का जो प्रभावक्षेत्र है उसे हेलियोस्फेयर कहा जाता है, और हेलियोपॉज वह सैद्धांतिक सीमा है जहां हेलियोस्फेयर का असर खत्म हो जाता है और इंटरस्टेलर स्पेस शुरू हो जाता है। यह हेलियोपॉज सूरज से 18.2 अरब किलोमीटर की दूरी पर है। बता दें कि इस तुलना में सूरज पृथ्वी से महज 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर है। लेकिन हेलियोपॉज पर हमारा सौरमंडल खत्म नहीं हो जाता। हमारा सौरमंडल खत्म होता है हेलियोस्फेयर को चारों तरफ से घेरे ऊर्ट क्लाउड की बाहरी सीमा पर जो 3.2 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। यानी हेलियोस्फेयर से कई-कई गुना बड़ा तो ऊर्ट क्लाउड ही है।

एक प्रकाश वर्ष (लाइट ईयर) यानी वह दूरी जो प्रकाश अपनी गति से एक साल में तय करता है वह 93.3 खरब किलोमीटर होता है। अभी वोयेजर 1 इस समय जिस जगह पर है, वह हमसे करीब 22 प्रकाश घंटे की दूरी पर है। यानी वह एक प्रकाश दिन भी नहीं हुआ, जहां पहुंचने में उसे हमारे 44 साल लग गए। अंदाजा लगा लीजिए कि अगर हमें न्यू होरिजंस जैसा तेज अंतरिक्षयान भी मिल जाए तो एक प्रकाश वर्ष की दूरी तय करने में भी हमें कम से कम 15-16 हजार साल लग जाएंगे। तब भी हम अपने सौरमंडल तक से बाहर नहीं निकल पाएंगे। सौरमंडल के आगे दूसरे तारे, हमारी आकाशगंगा, बाकी गैलेक्सियां... इन सबका कई छोर नहीं।

हब्बल टेलीस्कोप ने धरती पर कुछ जो हैरतअंगेज तस्वीरें भेजी हैं उनमें एक 7,600 प्रकाश वर्ष दूर स्थित कैरिना नेब्यूला की थी। जेम्स वेब की शुरुआती तस्वीरों के लिए भी इसी नेब्यूला को चुना गया। इसी तरह नए टेलीस्कोप ने 2,500 प्रकाश वर्ष दूर स्थित सदर्न रिंग नेब्यूला में एक मरते तारे की तस्वीर भेजी। एक अन्य तस्वीर हमारे शनि ग्रह के आकार के एक ग्रह की है जो 1,150 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। 

जाहिर है कि ईंधन, गति आदि को लेकर हो चुकी और आगे होने वाली तमाम तरक्की के बावजूद अंतरिक्षयानों के सफर की और इंसानों के अंतरिक्ष में जाने की एक सीमा है। ऐसी स्थिति में जेम्स वेब जैसा अंतरिक्ष टेलीस्कोप और इस तरह के टेलीस्कोपों की आगे की पीढ़ी ही इस दुनिया के बनने के रहस्य की हमारी तलाश को कुछ हद तक पूरा कर सकते हैं। 

(लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इसे भी पढ़े : अंतरिक्ष: हमारी पृथ्वी जितने बड़े टेलीस्कोप से खींची गई आकाशगंगा के ब्लैक होल की पहली तस्वीर

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest