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स्पेशल रिपोर्ट: बनारस की गंगा में 'रेत की नहर' और 'बालू का टीला'

काशी में उत्तरवाहिनी गंगा की सेहत स्वयंभू पुत्र ने ही बिगाड़ दी है। नदी का अर्धचंद्राकार स्वरूप तहस-नहस हो गया है। ललिता घाट पर हुए निर्माण से गंगा का प्राचीन स्वरूप बिगड़ गया है और इसके गंभीर नतीजे सामने आ सकते हैं। कुदरती नदी के साथ इंसानी छेड़छाड़ को लेकर नदी और पर्यावरण विज्ञानी खासे चिंतित हैं। इन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ को खत भेजा है और कहा है कि गंगा के अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम में इसका भयंकर दुष्प्रभाव होगा।
स्पेशल रिपोर्ट: बनारस की गंगा में 'रेत की नहर' और 'बालू का टीला'

कोरोनाकाल में गंगा में शवों को फेंके जाने के मामले ने तूल पकड़ा ही था, तभी बनारस में इस नदी का पानी हरा हो गया। ये मुद्दे अभी थमे भी नहीं थे कि गंगा में 'रेत की नहर' और 'बालू का टीला' खड़ा किए जाने से हंगामा बरपने लगा। देश के जाने-माने नदी विशेषज्ञ प्रो. यूके चौधरी और जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने यह कहकर मामले को गरमा दिया है कि बनारस में गंगा के समानांतर बालू में खोदी गई नहर और रेत पर खड़ा किए गए बालू के टीले तबाही के सबब बन सकते हैं। इंसानी छेड़छाड़ से बनारस का 'इको सिस्टम' खराब हो जाएगा और गंगा घाटों से दूर चली जाएगी। तब बनारसियों को पीने पानी के लिए भी तरसना पड़ सकता है।

गंगा की 2525 किलोमीटर लंबी जीवनधारा में बनारस में पड़ने वाला पांच किलोमीटर लंबा हिस्सा धर्म, अध्यात्म, संस्कृति और नदी की सेहत से लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। वाराणसी में गंगा पार विशाल रेत के मैदान के बीचो-बीच करीब साढ़े पांच किमी लंबी रेत की नगर बनाई गई है। इस नहर का निर्माण प्रोजेक्ट कारपोरेशन की देख-रेख में कराया जा रहा है। इस परियोजना के प्रबंधक पंकज वर्मा के मुताबिक 1195 लाख रुपये की लागत से करीब 5.3 किमी लंबी और 45 मीटर चौड़ी नहर बनाई गई है। बताया जा रहा है कि नहर और गंगा के बीच बालू पर आईलैंड बनाया जाएगा, जिसका लुत्फ पर्यटक उठा सकेंगे।

नहर के औचित्य पर सवाल

बालू की नहर के पूर्वी छोर पर रेत का किला सरीखे ढूहे खड़े किए गए हैं। रामनगर स्थित पुल के पास से बालू में निकाली गई नहर का आखिरी सिरा रामनगर राजघाट पुल से करीब गंगा में मिलाया गया है। बारिश के चलते इन दिनों नहर में तेजी से बालू का कटान हो रहा है, जिससे इसके औचित्य पर बड़ा सवाल खड़ा किया जा रहा है। नहर खोदने और बालू निकलाने के लिए राजघाट पुल के पास एक बड़ी मशीन लगाई गई है। दर्जन भर जेसीबी नहर की खुदाई और रेत का किला बनाने में लगी हैं।

गंगा की तलहटी में जो नहर खोदी गई है, मानसूनी बारिश में वो तेजी से धसकने लगी है। जगह-जगह कटान हो रहा है। गंगा का जलस्तर जब बढ़ेगा, तब रेत की नहर की दशा क्या होगी? क्या बालू का बांध पानी की धारा के रोक लेगा अथवा बालू बहकर नहर में समा जाएगा? यह सवाल अभी अनुत्तरित है। ऐसे कई और भी सवाल भी खड़े हुए हैं जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। मसलन-बालू की नगर क्यों बनाई जा रही है? नहर पक्की बनेगा अथवा यूं ही धसकती रहेगी? रेत की नहर क्यों और किसलिए बनाई जा रही है? नहर से बनारस को क्या फायदा होगा? इन सवालों का जवाब देने के लिए न प्रशासन तैयार है और न ही सत्तारूढ़ दल के मंत्री-नेता।

बनारस में यह हाल उस नदी का है, जिसके बारे में उन्नीसवीं सदी के सबसे बड़े शायर गालिब ने गंगा और बनारस की पवित्रता से अभिभूत होकर ही इसे 'चिराग़-ए-दैर' अर्थात 'मंदिर का दीया' जैसी विलक्षण कृति की रचना की थी। अकबर और औरंगजेब ने गंगा के जल की सफ़ाई के लिए वैज्ञानिक नियुक्त किए थे। इसके औषधीय गुणों को पहचानकर ही इसे 'नहर-ए-बिहिश्त' यानी 'स्वर्ग की नदी' माना था।

नदी विशेषज्ञ ने दर्ज कराई शिकायत

गंगा पर कई सालों तक काम करने वाले नदी विशेषज्ञ प्रो. यूके चौधरी ने नहर परियोजना पर सवाल खड़ा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को खत भेजा है। प्रो. चौधरी ने सवाल किया है, 'रेत पर नहर में डिस्चार्ज की गणना कैसे की गई? क्रॉस सेक्शन और ढलान कैसे तय हुआ? रेत में रिसाव के दर की गणना कैसे की गई? '

'न्यूज़क्लिक' के लिए बातचीत में प्रो. यूके चौधरी दावा करते हैं, 'जिस तरह अस्सी घाट से गंगा दूर हो गई है,  वैसे ही दूसरे घाटों से भी दूर हो जाएगी। नहर और गंगा के अंदर 200 मीटर लंबे और 150 मीटर चौड़ा स्पर के पक्के निर्माण के चलते धीरे-धीरे नदी घाटों से दूर हो जाएगी। घाटों के आसपास पानी की गहराई कम होने के साथ नदी के पानी का वेग कम हो जाएगा। गंगा धीरे-धीरे घाटों को छोड़ने लगेगी। तब नदी का न तो अर्धचंद्राकार स्वरूप बच पाएगा और न बनारसियों को पीने के लिए गंगा जल नसीब होगा। बनारस शहर की दो तिहाई आबादी गंगाजल पर ही निर्भर है। भदैनी से पानी खींचकर शहर में आपूर्ति की जाती है।'  

कम हो जाएगा गंगा का वेग

प्रो. चौधरी कहते हैं कि बनारस में विपरीत दिशा में गंगा की रेत-तल पर बन रही नहर बाढ़ के पानी की गति को कतई नहीं झेल पाएगी, क्योंकि यह बगैर वैज्ञानिक सिद्धांतों के बनाई गई है। नहर बनने के बाद गंगा में पानी की गहराई कम होने लगेगी। इसके चलते वेग में कमी आएगी। तब गंगा घाटों के किनारे बड़े पैमाने पर गाद जमा होगी। तब गंगा घाटों को छोड़ देगी।

प्रो. चौधरी कहते हैं, 'ललिता घाट पर निर्माणाधीन स्पर (दीवार) अभी से घाटों से प्रवाह को कम करने लगा है। बंध निर्माण के बाद गंगा के प्रवाह में परिवर्तन का दुष्प्रभाव पचास किमी तक अप और डाउन स्ट्रीम में नजर आएगा। रामनगर किले के पास हैवी सिल्ट जमा होगी। गंगा में जल परिवहन की संभावनाओं पर भी संकट के बादल मंडराएंगे। फिलहाल जो काम किया गया है उसको वहीं रोक दिया जाए। विशेषज्ञों की सलाह से इसका निर्माण किया जाए तभी यह समस्या कुछ हद तक दूर हो सकेगी।'

प्रो. चौधरी बताते हैं, 'गंगा पार रेती पर बनने वाली नहर की डिजाइन भी मानक के मुताबिक नहीं है। बालू क्षेत्र में नहर का डिस्चार्ज और स्लोप कितना है इसकी जानकारी किसी को नहीं है। गंगा के सात किलोमीटर के दायरे में तीन तरह का बालू मिलता है। बिना किसी वैज्ञानिक अध्ययन के नहर का निर्माण शुरू हो गया है। यदि गंगा पार रेत में नहर को आकार दिया गया तो यह काशी में अनादि काल से अर्द्धचंद्राकार स्वरूप में प्रवाहित हो रही गंगा के लिए काल बन जाएगी। कछुआ सैंक्चुरी हटाए जाने के बाद रेत उत्खनन की आड़ में गंगा के समानांतर नहर का आकार देना विशुद्ध रूप से अवैज्ञानिक है।'

बालू से भर जाएगी नहर

काशी में गंगा के उस पार बालू क्षेत्र गंगा का विज्ञान की भाषा में उन्नतोदर किनारा है। यह किनारा बालू जमाव का स्थाई क्षेत्र है। इस क्षेत्र में केन्द्रापसारी बल के कारण उत्पन्न होने वाली घुमाव शक्ति के प्रभाव से इस क्षेत्र में बालू जमा होता है। गंगा की स्वाभाविक प्रवाह प्रक्रिया के तहत उस क्षेत्र में बालू का जमाव हर हाल में होगा। ऐसे में करोड़ों रुपये व्यय करके जो नहर बनाई जा रही है, उसका बालू से भर जाना तय है।

नदी विशेषज्ञों की मानें तो भविष्य में बालू की नहर बहुत सी अन्य समस्याओं को जन्म देगी। इस नहर के साथ ही गंगा की धारा के मध्य बांध बन जाएगा, जिसके कारण मिट्टी का भयावह जमाव होगा। मिट्टी का यह जमाव अस्सी से दशाश्वमेध घाट तक के इलाके को विशेष रूप से प्रभावित करेगा। ऐसे में गंगा घाटों को छोड़ेगी। घाट के नीचे जो कटाव क्षेत्र उत्पन्न हुआ है, वह भूजल के तीव्रता से रिसाव के कारण हुआ है। समय-समय पर उस कटाव को भरने की आवश्यकता होगी।

ख़ूबसूरत घाटों को पाट सकती है गंगा

पर्यावरणविद और आईआईटी बीएचयू के प्रोफेसर रहे मिश्र विश्वंभर नाथ मिश्र कहते हैं, 'गंगा में स्पर (दीवार) और नहर के चलते बनारस में गंगा के खूबसूरत अर्धचंद्राकार आकार का बंटाधार हो सकता है। जो हाल अस्सी का है, वो राजघाट तक सभी घाटों का हो जाएगा। गंगा की बदहाली के लिए काशी विश्वनाथ परिसर के विकास कार्य भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। निर्माण कार्य के दौरान गंगा तट के ललिता घाट पर गंगा के अंदर एक लंबे प्लेटफार्म का निर्माण किया गया है जिसके कारण गंगा जी का सामान्य प्रवाह बाधित हो रहा हैI डर इस बात का है कि गंगा के अंदर बने इस प्लेटफार्म की वजह से घाटों की तरफ सिल्ट का जमाव बढ़ेगा। तब गंगा का वेग कुदरती नहीं रह पाएगा। गंगा से निकलने वाली गाद सूबसूरत घाटों को पाट सकती है।'

'गंगा पर रेत पर नहर से बहुत सारी समस्याएं पैदा होंगी। यह नहर रेत पर बालू का किला बनाने के समान है। जब गंगा में बाढ़ आएगी तो यह नहर खुद ब खुद समाप्त हो जाएगी। इससे भूजल का स्तर और गंगा का इको सिस्टम प्रभावित होगा। भविष्य में यह नहर ढेरों समस्याओं को जन्म देगी। इस नहर के साथ ही गंगा की धारा के मध्य बांध बन जाएगा, जिसके कारण मिट्टी का भयावह जमाव होगा। मिट्टी का यह जमाव अस्सी से लगायत राजघाट तक के इलाके को विशेष रूप से प्रभावित करेगा। ऐसे में गंगा घाटों को छोड़ना शुरू कर देगी। घाट के नीचे जो कटाव क्षेत्र उत्पन्न हुआ है, वह भूजल के तीव्रता से रिसाव के कारण हुआ है। समय समय पर उस कटाव को भरने की आवश्यकता होगी।'

प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र इस बात से आहत हैं कि बनारस में गंगा में कुदरती तरीके से जो अर्धचंद्राकार स्वरूप सदियों पहले बना था वो इस पुरातन शहर के महत्व और परंपराओं का गवाह था। इसे बचाने के नाम पर खिलवाड़ वो लोग कर रहे हैं जो खुद को गंगा का स्वयंभू बेटा कहकर बनारस से सियासत चमकाने आए थे। गंगा को बचाने के नाम पर सब कुछ तहस-नहस करने का काम हो रहा है, जो प्रौद्योगिकी के विरुद्ध हैं। इसके बुरे नतीजे सामने आएंगे।'

बालू में नदी के निर्माण पर सरकार का दावा अजीबो-गरीब है। कहा जा रहा है कि नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत गंगा को पुनर्जीवन देने के लिए नहर बनाई जा रही है और बालू की निकासी कराई जा रही है। गंगा की तलहटी की सफाई कर जलीय जीवों के अलावा परिवहन के नजरिए से इसे उपयोगी बनाया जा रहा है। लेकिन नदी विशेषज्ञ गंगा के साथ किए जा रहे छेड़छाड़ के चलते खासे नाराज हैं। हाल ही में मैग्सेसे अवार्डी राजेंद्र सिंह (जल पुरुष) बनारस आए और उन्होंने बनारस के पराड़कर भवन में शहर के प्रबुद्ध नागरिकों के बीच काशी में मंडरा रहे खतरे से अगाह किया। राजेंद्र ने ऐलानिया तौर पर कहा, 'बनारस के लोगों को निडर होकर गंगा के साथ हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ खड़ा होना होगा। बनारस सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों की ही नहीं, हमारी अंतर्राष्ट्रीयता की भी राजधानी है।'

जल पुरुष ने गरमा दिया मुद्दा

राजेन्द्र सिंह ने कहा कि मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने जनांदोलन के दौरान हमसे बातचीत की और उत्तराखंड में बन रहे चार बांधों का निर्माण कार्य हमेशा के लिए रोक दिया था। मौजूदा सरकार किसी की कुछ न कुछ सुन रही है और न अपना मंतव्य बता रही है। बनारस के लोग आहत हैं और खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। इंदिरा गांधी ने साल 72 के पहले विश्व पृथ्वी सम्मेलन में स्वीडेन की संसद और राष्ट्रपति भवन के बीच बहती स्टॉकहोम नदी की सफाई से प्रेरित होकर गंगा से ही नदियों की स्वच्छता के एक अभियान का सूत्रपात किया था, जिसे 1986 में 'गंगा कार्य योजना' का रूप देकर राजीव गांधी ने अमली जामा पहनाया।'

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गंगा के अद्भुत महत्व को समझकर ही 'गंगा कार्य योजना'  की शुरुआत साल 1986 में बनारस से ही की थी, लेकिन बाद की सरकारों ने योजनाओं का नाम बदलने और अवैज्ञानिक रास्तों पर चलने में दिलचस्पी ली। साल 2014 के बाद दीनापुर और सथवां में बने दो बड़े सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से बनारस शहर के मल-जल को दूर करने में कोई महत्त्वपूर्ण काम नहीं कराए जा सके।

गंगा पहली बार में पैदा हुई काई से यह साफ हो चुका है कि केंद्र सरकार के कई प्रोजेक्ट गंगा के प्राकृतिक बहाव में बाधा पैदा कर रहे हैं। साथ ही गंगा के अर्धचंद्राकार स्वरूप में बदलाव आ रहा है। इसके कारण गंगा के इकोसिस्टम में स्थायी रूप से बदलाव आने का खतरा है। भविष्य में गंगा का नैसर्गिक अर्धचंद्राकार स्वरूप हमेशा के लिए प्रभावित हो सकता है। साथ ही जलीय जंतुओं के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।

क़ुदरत के साथ खिलवाड़

लोकसभा चुनाव में दो बार पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस के कद्दावर नेता अजय राय इस मुद्दे पर मीडिया से रूबरू हुए और कहा,  'काशी में गंगाजल के रंग में आया बदलाव और गंगा में काई की ज्वलंत समस्या ललिता घाट के सामने उभारा गया अप्राकृतिक चबूतरा है। सुस्थापित सत्य है कि पानी के मुक्त प्रवाह में अवरोध आने पर ही ऐसा होता है। काशी को भरमाया जा रहा है कि मीरजापुर एसटीपी के कारण काई आई है। मल-जल साफ करने वाला संयंत्र भला काई उत्पादक कैसे हो जायेगा? काई केवल बनारस में ही क्यों छा जाएगी? उसका उपचार केमिकल ट्रीटमेंट नहीं, चबूतरे से बने जल ठहराव का खात्मा है। कुदरत के साथ खिलवाड़ इस पुरातन शहर की सुंदरता को बदसूरत बना रहा है। वह दिन दूर नहीं जब घाटों के सामने बालू के ढेर ही नजर आएंगे। काशी में गंगा का स्वरूप प्रयाग और कानपुर की तरह रेगिस्तान सरीखा नजर आएगा। गंगा में बनाए जा रहे स्पर का काम तत्काल रोककर नवनिर्मित चबूतरे को ध्वस्त किया जाना चाहिए।'

गंगा को कर लिया गया है हाईजैक

सपा के कद्दावर नेता एमएलसी शतरुद्र प्रकाश सरकार की मनमाने रवैये से बेहद आहत हैं। वे कहते हैं, 'खुद को गंगा का बेटा कहने वाला ही अपनी मां को तबाह करने में जुटा है। इसका खामियाजा हमारी पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा। हाल वही होगा, 'लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई'। पीएम मोदी ने गंगा के मूल स्वरूप को संरक्षित करने का संकल्प दोहराया था, जो थोथा साबित हो गया है। गंगा के पानी को रोके जाने से नदी में पहली बार काई दिखी, जिससे पानी का रंग हरा हो गया। इसका असर बनारस से लेकर मिर्जापुर तक है। काई के चलते नदी में घुलित आक्सीजन की मात्रा घटती जा रही है। बालू की नहर बनने से नदी के तट पर बसे गांवों के लोग खासे परेशान हैं। इनकी मुसीबत यह है कि अब इन्हें कई किमी का सफर तय करके बनारस आना पड़ रहा है। डोमरी, कटेसर समेत कई गांवों के लोग ऐसी व्यवस्था चाहते हैं कि वो नदी सरीखी बालू की नहर को पार कर सकें। दुर्भाग्य की बात यह है कि ग्रामीणों की गुहार सुनने वाला कोई नहीं है।'

शतरुद्र कहते हैं कि बनारस में अंग्रेजों ने भी शासन किया, लेकिन उन्होंने फूंक-फूंककर कदम उठाया। ब्रितानी हुकूमत ने न तो गंगा में आतंक मचाया और न ही नदी के बहाव को रोकने की कोशिश की। घाटों का हाल देखिए, मलबे में तब्दील किया जा रहा है। अभी यह हाल है तो गर्मी के दिनों में हाल कैसा होगा। गंगा में जो एजेंसियां काम कर रही हैं उन्हें इस तरह का काम करने का कोई तजुर्बा नहीं है। यह सवाल कोई पूछने वाला नहीं है। चौतरफा खामोशी और सन्नाटा है। बनारस में हर शख्स आपातकाल की तरह सख्त कार्रवाई से भयभीत है। सबसे ज्यादा मुश्किल मीडियाकर्मियों की है, जो चाहकर भी गंगा में छेड़छाड़ और नदी के नाथने के खेल की सही पड़ताल नहीं कर पा रहे हैं।

माझी समाज की अगुआई करने वाले मुरारी लाल कश्यप कहते हैं, 'मीरघाट, ललिता घाट, जलासेन और मणिकर्णिका श्मशान के सामने बालू और मलबा डालकर प्लेटफार्म बनाया जा रहा है। इस प्लेटफार्म के चलते गंगा का बहाव प्रभावित हुआ है। बालू की नहर भी बन गई है और कई घाटों के सामने गंगा की धारा भी पाट दी गई। अब इसका परिणाम क्या होगा, इसका पता भी मानसून बाद चल जाएगा।'

कश्यप बताते हैं, 'बनारस में गंगा की दो सहायक नदियां-असि और वरुणा-गंगा की धारा को अवाध गति देने और घाटों से गंगा की सिल्ट को हटाने का काम प्राकृतिक ढंग से करती रही हैं। अब इनके बीच नहर निकालकर गंगा के इकोसिस्टम के साथ खिलवाड़ हो रहा है जो मनुष्य को बहुत महंगा पड़ेगा। हर नदी का अपना चरित्र होता है, जिसे कृत्रिम शक्ल नहीं दिया जा सकता है। गंगा जब वेग पर आएगी तो रेत की नदी और बालू का टीला धराशायी हो जाएगा। गंगा को पैसे से नहीं, सिर्फ जनभागीदारी से बचाया जा सकता है।'

बनारस के जाने-माने पत्रकार प्रदीप कुमार सवाल खड़ा करते हैं कि रेत की दीवार, बालू का किला और गंगा के समानांतर एक और गंगा बनारकर पीएम नरेंद्र मोदी क्या संदेश देना चाहते हैं? ऐसा मनमाना और मूर्खतापूर्ण व्यवहार गंगा के साथ पहली बार किया जा रहा है। बनारस में एक तरह से गंगा को 'हाईजैक' कर लिया गया है। इस मुद्दे पर न तो किसी की सुनी जा रही है और न किसी को कुछ बताया जा रहा है। पूरी बात पब्लिक डोमेन में आनी चाहिए। हैरानी की बात है कि सरकार की मनमानी पर बनारस के लोग खामोश हैं। उस बनारस के लोग चुप्पी साधे हुए हैं जिन्होंने गुलामी के दौर में मनमानी पर उतारू अंग्रेजी हुकूमत के छक्के छुड़ा दिए थे।'

सरकारी दावा- नहीं बिगड़ेगा नदी का स्वरूप

मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो बनारस के कलेक्टर कौशल राज शर्मा दावा करते हैं कि नहर के बनने से गंगा नदी का मूल स्वरूप नहीं बिगड़ेगा। करीब छह लाख घन मीटर बालू में से अब तक करीब 2.5 लाख घन मीटर बालू की नीलामी हो चुकी है। जल्द ही बालू की निकासी का कार्य पूरा हो जाएगा। शर्मा कहते हैं कि बाढ़ के दिनों में गंगा के पक्के घाटों के नीचे कटान की स्थित बन जाती है। जांच-पड़ताल से पता चला है कि घाट के पत्थरों के नीचे का हिस्सा पोपला हो गया है। इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए सिंचाई विभाग और विशेषज्ञों की सलाह पर गंगा पार रेती में नहर बनाने की योजना बनी। सामनेघाट के पार रेती में नहर बनाई जा रही है, जिसे राजघाट पुल के पास गंगा में मिलाया गया है। एक तरह से यह गंगा का कृत्रिम सोता है। कार्यदायी कंपनी के सहायक परियोजना अधिकारी दिलीप कुमार दावा करते हैं कि नहर का ज्यादातर काम पूरा हो चुका है।

(बनारस स्थित विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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