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स्थायी नौकरी और वेतन की मांग को लेकर देशभर में स्कीम वर्कर्स की हड़ताल और प्रदर्शन

ये प्रदर्शन अखिल भारतीय संयुक्त समिति के आह्वान पर किए गए। एक दिवसीय हड़ताल के तहत पूरे देश में जिला मुख्यालयों, ब्लॉक मुख्यालयों व कार्यस्थलों पर आंगनवाड़ी, मिड डे मील और आशा कर्मचारियों द्वारा जोरदार प्रदर्शन किए गए।
scheme workers

“मेरे पति को कैंसर है और मेरी सास को भी लकवा है, इसके साथ ही मेरे परिवार में दो बच्चे हैं और साथ में ससुर भी है। कुल मिलकर पूरे परिवार में छह लोग हैं। इन सबकी ज़िम्मेदारी मेरे कंधों पर है। मैं एक आशा वर्कर हूँ। जहाँ मुझे मात्र 3000 मानदेय मिलता है। उसकी भी गारंटी नहीं होती कि मिलेगा ही। आप ही बताइए मैं इसमें अपना घर कैसे चलाऊं, परिवार का गुज़ारा कैसे करूं? आशा के काम में हमे 24 घंटे ऑन ड्यूटी रहना होता है, इसलिए मैं कोई दूसरा काम भी नहीं कर सकती हूँ”।

अपनी ये व्यथा सुनाई दिल्ली में अपने उचित वेतन और स्थायी नौकरी की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रही सबिता ने।

आंगनवाड़ी, आशा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और मिड डे मील समेत अन्य स्कीम वर्कर्स ने आज शुक्रवार को काम का बहिष्कार करते हुए हज़ारों की संख्या में सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया।

ये प्रदर्शन अखिल भारतीय संयुक्त समिति के आह्वान पर किया गया। एक दिवसीय हड़ताल के तहत पूरे देश में जिला मुख्यालयों, ब्लॉक मुख्यालयों व कार्यस्थलों पर आंगनवाड़ी, मिड डे मील और आशा कर्मचारियों द्वारा जोरदार प्रदर्शन किए गए। इस दौरान कर्मियों ने केंद्र व प्रदेश सरकारों को चेताया कि अगर आईसीडीएस, मिड डे मील व नेशनल हेल्थ मिशन जैसी परियोजनाओं का निजीकरण किया गया व आंगनबाड़ी, मिड डे मील व आशा वर्कर को नियमित कर्मचारी घोषित न किया गया तो देशव्यापी आंदोलन और तेज होगा।

न्यूज़क्लिक ने दिल्ली में इस प्रदर्शन में शामिल आशा कर्मियों से बात की। उन्होंने बताया कि कैसे सरकारी तंत्र ही उनका शोषण करता है। जैसे हमने सबिता के बारे में पहले ही बताया था कि वो कैसे दिल्ली जैसे महंगे शहर में तीन हज़ार मानदेय में गुज़ारा करने में मज़बूर है। हालांकि उन्होंने ये भी बताया कि ये तीन हज़ार भी उन्हें तब मिलेगा जब छह पॉइंट होंगे। हमने उनसे यह पॉइंट क्या हैं और ये कैसे काम करते हैं, ये समझने का प्रयास किया तो उन्होंने बताया कि दो हज़ार की आबादी में एक महीने में पांच डिलीवरी वो कराएंगे तब उन्हें एक पॉइंट मिलेगा, इसी तरह टीकारण और बुर्जुगों के चेकअप के भी पॉइंट मिलते हैं।

सबिता

सबिता ने कहा कितने पॉइंट हुए ये तय इलाके की एएनएम करती है। कई बार वो जानबूझकर पॉइंट काट देती है। जब हमारे ये पॉइंट पूरे नहीं होते तब हमें मात्र 500 रुपये मिलते हैं।

सबिता की बात से एक बात समझ में आती है कि दिल्ली शहर में आशा को जो तय मानदेय जो पक्का मिलेगा वो केवल 500 रुपये ही है। बाक़ी उनके काम पर निर्भर करेगा। जो उन सभी दावों की खोलता है जहाँ केंद्र की सरकार इन्हें कोरोना योद्धा बताकर इनपर पुष्प वर्षा कर रही थी।

सरोजनी पुष्पा का ग्रुप

इस प्रदर्शन में शामिल होने अपने साथियों कृष्णा, पुष्पा राजवाल के साथ आई सरोजनी जिनकी उम्र लगभग 50 वर्ष होगी। वो दक्षिणी दिल्ली के भाटी माईनस संजय कालोनी से आई थी। उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं। वो आशा के तौर पर काम करने से मिलने वाले मानदेय से अपना जीवन यापन कर रही हैं। उन्होंने पूछा, जब हम सरकारी काम कर रहें हैं तो सरकारी कर्मचारी क्यों नहीं हैं? हमने कोरोना में अपना जीवन दांव पर लगाकर काम किया लेकिन हमें क्या मिल रहा है?

पुष्पा ने भी गुस्से में कहा एक तो हमें हमारे काम का वेतन नहीं मिलता और जब मांग उठाने यहाँ आते हैं तो पुलिस वाले पहले ही डंडा लेकर यहाँ खड़े हो जाते हैं। उन्होंने कहा सरकार कहती है कि हम काम नहीं करते, लेकिन सच यह है कि हमें 24 घंटे काम करना पड़ता है, पता नहीं कब हमें अस्पताल या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाना पड़ जाए।

सुनीता

इसी तरह दिल्ली के जहांगीरपुरी से आईं सुनीता जिनकी उम्र 55 वर्ष हैं, ने बताया कि वे 2008 से आशा के पद पर काम कर रही हैं लेकिन आजतक उनके काम की कोई गारंटी नहीं है। उन्होंने कहा कि आप किसी भी विभाग में काम करते हैं तब रिटायर होने पर आपको पेंशन मिलती है लेकिन हमें तो अभी वेतन तक नहीं मिलता तो पेंशन की क्या ही उम्मीद करें।आज़ादपुर से आई आशा वर्कर की एक समूह ने बताया कि एक तो वेतन नहीं मिलता है, ऊपर से हमारी बेइज्जती भी की जाती है। एक युवा आशा कर्मी रमा ने हमें बताया कि कोरोनाकाल में जब हम अपनी और अपने परिवार की जान की परवाह किए बिना दिन रात काम कर रहे थे। तब वरिष्ठ अधिकारी और डॉक्टर हमारे साथ अछूत जैसा व्यवहार करते थे। हमे डिस्पेंसरी में घुसने तक नहीं दिया जाता था। हालाँकि सामान्य समय में भी हमारे बैठने तक की व्यवस्था नहीं होती है, हमें धूप में ही खड़े खड़े काम करना पड़ता है।

रमा

दिल्ली की एक आशा वर्कर यूनियन, दिल्ली आशा कामगार यूनियन है, जिसका संबंध सेंट्रल ट्रेड यूनियन ऐक्टू से है। आज राष्ट्रीय आह्वान पर उसके बैनर तले दिल्ली के मंडी हाउस में दिल्ली के अलग इलाको से आशा कर्मी आईं और केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ ज़ोरार नारेबाज़ी की। वो उन्हें दिए जाने वाले 3000 हज़ार मानदेय को कम बताते हुए नारा लगा रही थी 3000 में दम नहीं और 21000 से कम नहीं। इसके साथ ही वो आशा कर्मियों की इस हालत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल पूछ रही थीं और कह रही थी मोदी सरकार चुप्पी तोड़ो।

दिल्ली आशा कामगार यूनियन की नेता श्वेता राज ने कहा कि इस खराब मौसम के बाद भी बड़ी तादाद में आशा वर्कर यहां पहुंची है, यह दिखाता है कि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ना जानती हैं और उन्हें पता है सरकार कैसे उनका शोषण कर रही है।

श्वेता

श्वेता ने कहा आज पूरे देश में स्कीम वर्कर अपनी मांगों को लेकर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरी हैं। हम भी उसी के तहत यहां अपना विरोध जताने आए हैं और हमारा एक प्रतिनिधि मंडल केंद्रीय श्रम मंत्री से मिलेगा और अपना ज्ञापन सौंपेगा और उनसे इन आशा कर्मियों को स्थायी कर्मचारी का दर्जा देने और उनका वेतन काम से कम 21,000 करने की मांग उठाएगा।

देशव्यापी प्रदर्शन के दौरान पहले दिन असम, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, यूपी, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में स्कीम वर्कर सड़कों पर उतरे। आशा कार्यकर्ताओं ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) के सामने प्रदर्शन किया, जबकि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों ने परियोजना मुख्यालय में प्रदर्शन किया।

स्कीम वर्कर के इस प्रदर्शन को दस सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने भी समर्थन दिया है।

देशव्यापी हड़ताल के तहत हिमाचल प्रदेश में सीटू से सम्बंधित हि.प्र. आंगनबाड़ी वर्करज़ एवं हेल्परज़ यूनियन व हि.प्र. मिड डे मील वर्करज़ यूनियन द्वारा जोरदार प्रदर्शन किए गए। इस दौरान सीटू से सम्बंधित आंगनबाड़ी वर्करज़ एवं हेल्परज़ यूनियन की प्रदेशाध्यक्षा नीलम जसवाल व महासचिव राजकुमारी तथा हि.प्र. मिड डे मील वर्करज़ यूनियन की प्रदेशाध्यक्षा कांता महंत व महासचिव हिमी कुमारी ने संयुक्त बयान जारी करके कहा है कि अखिल भारतीय हड़ताल के आह्वान के तहत हिमाचल प्रदेश में दर्जनों जगह धरने-प्रदर्शन किए गये जिसमें प्रदेशभर में हज़ारों योजनाकर्मियों ने भाग लिया।

नीलम जसवाल ने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर आईसीडीएस का निजीकरण किया गया व आंगनबाड़ी वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित न किया गया तो आंदोलन और तेज़ होगा। उन्होंने नई शिक्षा नीति को वापस लेने की मांग की है क्योंकि यह आइसीडीएस विरोधी है। नई शिक्षा नीति में वास्तव में आइसीडीएस के निजीकरण का छिपा हुआ एजेंडा है। आईसीडीएस को वेदांता कम्पनी के हवाले करने के लिए नंद घर की आड़ में निजीकरण को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इससे भविष्य में कर्मियों को रोज़गार से हाथ धोना पड़ेगा। उन्होंने केंद्र सरकार से वर्ष 2013 में हुए 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार आंगनबाड़ी कर्मियों को नियमित करने की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि आंगनबाड़ी कर्मियों को हरियाणा की तर्ज़ पर वेतन और अन्य सुविधाएं दी जाएं। उन्होंने आंगनबाड़ी कर्मियों के लिए पेंशन,ग्रेच्युटी,मेडिकल व छुट्टियों की सुविधा लागू करने की मांग की है।

आगे उन्होंने आंगनबाड़ी कर्मियों को वर्ष 2013 के नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के तहत बकाया राशि का भुगतान तुरन्त करने की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि प्री प्राइमरी कक्षाओं व नई शिक्षा नीति के तहत छोटे बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा आंगनबाड़ी वर्करज़ को दिया जाए क्योंकि वे काफी प्रशिक्षित कर्मी हैं। इसकी एवज़ में उनका वेतन बढाया जाए व उन्हें नियमित किया जाए। उन्होंने चेताया है कि अगर आंगनबाड़ी कर्मियों की प्री प्राइमरी में सौ प्रतिशत नियुक्ति न हुई तो यूनियन अनिश्चितकालीन आंदोलन का रास्ता अपनाएगी।

इसी तरह कांता महंत व हिमी देवी ने इस दौरान कर्मियों को सम्बोधित करते हुए केंद्र सरकार की मिड डे मील विरोधी नीतियों पर जमकर आलोचना की। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार मिड डे मील योजना के निजीकरण की साज़िश रच रही है। इसलिए ही साल दर साल इस योजना के बजट में निरन्तर कटौती कर रही है। इस वर्ष भी मध्याह्न भोजन योजना के बजट में चौदह सौ करोड़ रुपये की कटौती कर दी गयी है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2009 के बादमिड डे मील कर्मियों के वेतन में एक भी रुपये की बढ़ोतरी नहीं की है। उन्हें वर्तमान में केवल 2600 रुपये वेतन मिल रहा है जिसमें केंद्र सरकार की हिस्सेदारी मात्र एक हज़ार रुपये है। यह मात्र 85 रुपये दिहाड़ी है जिसमें भारी महंगाई के इस दौर में गुजारा करना असम्भव है। उन्हें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद बारह महीने के बजाए केवल दस महीने का वेतन दिया जा रहा है। उन्हें छुट्टियां, ईपीएफ, मेडिकल आदि कोई सुविधा नहीं दी जा रही है। उन्हें वेतन तीन से छः महीने के अंतराल में मिलता है। इस तरह उनका भारी शोषण किया जा रहा है।

उन्होंने सरकार से मांग की है कि मिड डे मील कर्मियों को न्यूनतम वेतन नौ हज़ार रुपये दिया जाएं। उन्होंने महिला कर्मियों के लिए वेतन सहित छह महीने का प्रसूति अवकाश देने की मांग की है। उन्होंने 45वें व 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार कर्मियों को नियमित करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि मिड डे मील वर्करज़ स्कूल में सभी तरह का कार्य करते हैं अतः उन्हें ही मल्टी टास्क वर्कर के रूप में नियुक्त किया जाए। उन्होंने डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर योजना पर रोक लगाने की मांग की है। उन्होंने कर्मियों को साल में दो ड्रेस, बीमा योजना लागू करने, रिटायरमेंट पर चार लाख रुपये ग्रेच्युटी देने, दुर्घटना में पचास हज़ार रुपये,मेडिकल सुविधा लागू करने व सभी प्रकार की छुट्टियां देने की मांग की।

स्कीम वर्कर यूनियनों के संयुक्त मंच की तरफ से एआर सिंधु ने एक बयान में कहा कि आंगनबाडी, आशा और मिड डे मील वर्कर सहित लगभग एक करोड़ 'स्कीम वर्कर' अधिकांश लोगों को पोषण और स्वास्थ्य की बुनियादी सेवाएं दे रहे हैं, ये सभी एक दिन की हड़ताल पर गई हैं।

आपको बात दे देशभर में तकरीबन एक करोड़ स्कीम वर्कर हैं। मुख्यतया तीन तरह के स्कीम वर्कर आज यूनियन के द्वारा संगठित हैं। आशा, आंगनवाड़ी और मिड-डे मील वर्कर। इनकी संख्या तकरीबन 65 से 70 लाख होगी। इन्हीं पर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था का आधार टिका हुआ है और इस कोरोना काल में इनकी भूमिका और अहम हो गई है। इसलिए प्रधानमंत्री ने अभी अपने भाषणों में इन्हें कोरोना योद्धा बताया है लेकिन कर्मचारियों का कहना है वो सिर्फ भाषणों तक ही रहा है। क्योंकि आज भी इन्हें बिना किसी सुरक्षा के काम करने पर मजबूर किया जाता है। सबसे दुखद तो यह है कि इन्हें अपने काम का वेतन भी नहीं दिया जाता है। कई राज्यों में स्कीम वर्कर्स को 1500 से 3000 रुपये दिए जाते हैं।

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