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अध्ययन: दो दशक से संगठित विनिर्माण क्षेत्र में महिला रोज़गार महज़ 19 प्रतिशत पर

मज़दूरी में लिंग-आधारित अंतर भी पाया गया है। अध्ययन के हिसाब से 2019-20 में एक पुरुष औद्योगिक मज़दूर यदि 100 रुपये कमाता था तो उसकी महिला समकक्ष ने मात्र 87.06 रुपये कमाए थे।
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सेंटर फॉर इकॉनोमिक डेटा एंड एनालिसिस (CEDA) अशोका यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया है कि संगठित विनिर्माण क्षेत्र (organized manufacturing sector) में रोज़गार शुदा महिलाओं की संख्या पिछले दो दश में ज्यों कि त्यों बनी हुई है और वह कुल रोजगार का मात्र 19 प्रतिशत है। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि भारत में इन कारखानों में काम कर रही महिलाओं को बहुमत यानि करीब 72 प्रतिशत हिस्सा दक्षित के चार राज्यों; तमिलनाडू, कर्नाटक, आंध्रा प्रदेश और केरल से आता है। यह भी पाया गया है कि महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में कुछ ही किस्म के कारखानों में काम करती हैं जबकि पुरुष अधिक विविध किस्म के कामों में शामिल हैं। इसके आलवा, मजदूरी में लिंग-आधारित अंतर भी पाया गया है। अध्ययन के हिसाब से 2019-20 में एक पुरुष औद्योगिक मजदूर यदि 100 रुपये कमाता था तो उसकी महिला समकक्ष ने मात्र 87.06 रुपये कमाए थे।

उद्योग के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) के आंकड़ों के अनुसार, 2019-20 में भारत के औपचारिक विनिर्माण उद्योगों में काम करने वाले 80 लाख मज़दूरों में से 16 लाख (19.7 प्रतिशत) महिलाएं थीं। अध्ययन के मुताबिक, महिला मज़दूरों की उक्त संख्या में पिछले दो दशकों में कोई बदलाव नहीं आया है। इस अध्ययन में उद्योग के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) का 2019-20 का डेटा का सीतेमाल किया गया है।

यहां यह ध्यान देने की जरूरत है कि एएसआई डेटा केवल संगठित विनिर्माण इकाइयों से संबंधित है, अर्थात 10 या अधिक श्रमिकों वाले कारखाने जो बिजली का इस्तेमाल करते हैं या 20 या अधिक श्रमिकों वाले प्लांट जो बिजली का इस्तेमाल करते हैं। ये वे श्रमिक हैं जो सीधे निर्माण प्रक्रिया में शामिल हैं, लेकिन अनुबंध पर काम पर वाले श्रमिकों और अन्य काम करने वालों का डेटा इसमें शामिल नहीं है।

औद्योगिक कार्यबल की लिंग संरचना में व्यापक क्षेत्रीय विविधताएँ

देश भर के कारखानों में काम करने वाली महिलाओं के इस छोटे से हिस्से में भी व्यापक क्षेत्रीय और उद्योग-व्यापी विविधताएँ मौजूद हैं। उदाहरण के लिए पूरे भारत में 16 लाख महिला श्रमिकों में से, 6 लाख अकेले तमिलनाडु के कारखानों में काम कर रही थीं। वास्तव में, उद्योगों में काम करने वाली सभी महिलाओं में से लगभग तीन-चौथाई (यानि 72 प्रतिशत) चार दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल से आती हैं।

इसके अलावा काम के क्षेत्रीय विवरण में पाई जाने वाली विषमता के अलावा, विनिर्माण रोजगार में लैंगिक अंतर राज्यों में व्यापक रूप से भिन्न है। जैसा कि रिपोर्ट में राज्यों में कुल औद्योगिक कार्यबल में महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी की जानकारी दी गई है। इसके मुताबिक, मणिपुर एकमात्र ऐसा राज्य है जहां इसके विनिर्माण क्षेत्र में काम करने वालों के बीच लिंग-संतुलन बरकरार है। आंकड़ों के मुताबिक, 2019-20 में राज्य में महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी 50.8 प्रतिशत थी। मणिपुर के बाद केरल (45.5 प्रतिशत), कर्नाटक (41.8 प्रतिशत) और तमिलनाडु (40.4 प्रतिशत) के स्थान पर रहा है। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक लैंगिक अंतर पाया गया जहां विनिर्माण इकाइयों में काम करने वालों में महिलाओं की संख्या केवल 2.9 प्रतिशत थी। इसके बाद दिल्ली ऐसा राज्य है जहां यह संख्या मात्र 4.7 प्रतिशत थी, और इसके बाद जम्मू और कश्मीर और पश्चिम बंगाल आते हैं, जहां महिलाएं कुल विनिर्माण कार्यबल का सिर्फ 5.5 प्रतिशत थीं।


पांच सबसे अधिक औद्योगीकृत राज्यों में भी तस्वीर मिली-जुली है – महिला श्रमिकों की संख्या महाराष्ट्र (12 फीसदी), उत्तरप्रदेश (5.7 फीसदी) और गुजरात (6.8 फीसदी) है जो बड़े लिंग-भेद को दर्शाती है। जबकि तमिलनाडु (40.4 फीसदी) और आंध्र प्रदेश (30.2 फीसदी) के साथ ज्यादा बेहतर स्थिति में है। अन्य 16 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में औद्योगिक कर्मचारियों के बीच महिलाओं की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से कम थी।

महिला श्रमिक मुट्ठी भर उद्योगों में काम करती हैं

एएसआई 2019-20 से मिले आंकड़ों में महिला रोजगार का एक उद्योग-व्यापी विश्लेषण विषम लिंग कार्यबल दिखाता है, और यह सुझाव देता है कि महिलाओं के मुट्ठी भर उद्योगों में ही काम करने की संभावना अधिक है।

प्रमुख उद्योग में पुरुषों और महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी को भी अध्ययन में दर्शाया गया है। प्रमुख उद्योग (जिनमें 50,000 या अधिक श्रमिक कार्यरत थे), केवल एक ऐसा उद्योग था 'जिसमें काम करते वक़्त लबादा पहना जाता है' और उसमें पुरुषों और महिलाओं की समान हिस्सेदारी थी। वह तंबाकू उद्योग एकमात्र ऐसा उद्योग है जो महिलाओं के बड़े हिस्से को रोजगार देता है। अन्य सभी प्रमुख उद्योगों में, पुरुषों की संख्या महिलाओं से काफी अधिक पाई गई थी।

स्टडी आगे बटताई है कि, 22 प्रमुख उद्योग समूहों में से 5 में, महिलाओं के रोजगार में 2009-2019 के दशक में पूर्ण गिरावट दर्ज की है। 2009 की तुलना में 2019 में इसमें 16 प्रतिशत की गिरावट आई थी और खाद्य उत्पादों में महिला रोजगार में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई थी। अन्य उद्योग जिनमें महिला श्रमिकों की संख्या में गिरावट देखी गई, वे रसायन, कंप्यूटर और ऑप्टिकल, छपाई और मीडिया और मोटर वाहनों के पुनरुत्पादन वाले उद्योग हैं। इसके विपरीत गढ़े हुए धातु, चमड़े के उत्पाद, मशीनरी और अन्य परिवहन जैसे उद्योगों में इस अवधि में महिला श्रमिकों की संख्या दोगुनी हो गई है।

अध्ययन में, 22 प्रमुख उद्योगों में से एक को छोड़कर सभी में 2009 की तुलना में 2019 में रोजगारशुदा लोगों की संख्या में पुरुषो मज़दूरों में वृद्धि हुई है। मोटर वाहनों की मरम्मत, अन्य विनिर्माण और फार्मास्यूटिकल्स जैसे उद्योगों में पुरुष श्रमिकों की संख्या लगभग दोगुनी हुई है और पुरुष श्रमिकों की भर्ती के मामले में वे सबसे तेजी से बढ़ते उद्योग हैं। इस दशक में तंबाकू उद्योग ने पुरुष रोजगार में पूर्ण गिरावट आई है।

यह भी पाया गया है कि, पुरुष श्रमिकों की तुलना में महिला श्रमिक कम उद्योगों में केंद्रित हैं। महिलाओं के लिए प्रमुख उद्योगों में औद्योगिक कार्यबल के वितरण से पता चलता है कि 2019-20 में विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत सभी महिला श्रमिकों में से आधी परिधान, कपड़ा और चमड़ा उद्योगों में कार्यरत थीं। अन्य 22 प्रतिशत खाद्य और तंबाकू उद्योग में कार्यरत थे। इसके विपरीत, इन उद्योगों में सभी विनिर्माण रोजगार का 36 प्रतिशत हिस्सा पुरुषों का था।

यह भी नोट किया गया कि, महिलाओं की तुलना में, पुरुष विनिर्माण रोजगार उद्योगों के मामले में अधिक विविध था। पुरुष श्रमिकों के रोजगार के मामले में अन्य बड़े नियोक्ता बुनियादी और गढ़े हुए धातु उद्योग में (12 प्रतिशत), मशीनरी (6 प्रतिशत), मोटर वाहन (5.8 प्रतिशत), रबर और प्लास्टिक (5.6 प्रतिशत), अन्य गैर-धात्विक खनिज (5 प्रतिशत) और रसायन (4.9 प्रतिशत) थे। उद्योगों के इस समूह में केवल 12.5 प्रतिशत महिला श्रमिकों को रोजगार मिला है।

एक कड़ुवा सच- महिला श्रमिक पुरुष श्रमिक से कम कमाती हैं

एक अन्य चौंकाने वाला तथ्य यह पाया गया कि, 2019-20 में यदि किसी पुरुष कर्मचारी ने 100 रुपये कमाए तो उसी वक़्त एक महिला कर्मचारी ने केवल 87.06 रुपये कमाए थे। एएसआई 2019-20 के अनुसार, औसतन एक महिला औद्योगिक कर्मचारी ने जब प्रति दिन 382 रुपये कमाए, तो उसके पुरुष समकक्ष ने प्रति दिन 439 रुपये कमाए थे।

पुडुचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु जैसे राज्यों में देश में सबसे बड़ा लैंगिक वेतन अंतर पाया गया, जहां महिलाएं प्रति पुरुष की 100 रुपये की कमाई के मुक़ाबले क्रमशः 74.1, 75.5 और 78.4 रुपये कमाती थीं। हालाँकि, कुछ राज्यों में, महिला श्रमिकों ने पुरुष श्रमिकों की तुलना में बेहतर कमाई की थी, जिसमें जम्मू और कश्मीर सबसे आगे था और उसके बाद त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश थे।

स्टडी में एक डिस्क्लेमर दिया गया है कि एएसआई डेटा में लिंग आधार पर भुगतान की गई मजदूरी के बारे में जानकारी होती है, जबकि इसमें कौशल या नौकरी के प्रकार के श्रमिकों की जानकारी नहीं होती है। इसलिए, यह स्थापित करना संभव नहीं है कि क्या वेतन लिंग-भेद के कारण है या पुरुषों और महिलाओं को विभिन्न कौशल की जरूरत वाले रोजगारों की जरूरत की वजह से है। हालांकि, हार्वर्ड केनेडी स्कूल (2016) द्वारा किए गए एक पिछले विश्लेषण में पाया गया था कि विनिर्माण में देश के सभी क्षेत्रों में वेतन में सबसे अधिक लिंग-भेद था। विश्लेषण में बताया गया है कि शिक्षा, व्यवसाय, या आयु/वैवाहिक प्रोफाइल में लिंग-विशिष्ट अंतरों से इस वेतन अंतर का अधिकांश अस्पष्ट है, जो संभावित भेदभाव की ओर इशारा करता है। .

असंगठित क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी अधिक है

एएसआई रोजगार डेटा, केवल संगठित विनिर्माण क्षेत्र की इकाइयों में नियमित श्रमिकों से संबंधित है। असंगठित या ठेका/अनुबंध आधारित रोजगार की तुलना में यह एक बेहतर रोजगार व्यवस्था है क्योंकि बाद वाला श्रम कानून के दायरे से बाहर है और सामाजिक सुरक्षा की कमी इसकी बड़ी खासियत है। हालांकि, भारत में विनिर्माण का एक बड़ा हिस्सा असंगठित प्रकार का है और शोध से भी पता चलता है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के असंगठित क्षेत्र में शामिल होने की अधिक संभावना है।

बोस (2022) ने पाया था कि 2015-16 में असंगठित विनिर्माण में महिलाओं के नेतृत्व वाली फर्मों का 45 प्रतिशत उद्यम था, जिनमें से 95 प्रतिशत महिलाएं घर से काम कर रही थीं।

2019-20 में ही हथकरघा जनगणना में पता चला था कि देश भर में 3 करोड़ 50 लाख असंगठित हथकरघा श्रमिकों में से ढाई करोड़ (72.3 प्रतिशत) महिला मजदूर थीं।

विकासशील देशों में कृषि से बाहर निकलने वाले बड़े कार्यबल के लिए विनिर्माण नौकरियों को रोजगार का एक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है। यह देखते हुए कि महिलाएं अभी भी भारत में कृषि कार्यबल का बड़ा हिस्सा हैं - रोजगार का यह चैनल उनके लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो सकता है।

उदाहरण के लिए, पूर्वी एशियाई देशों ने औपचारिक विनिर्माण (रोड्रिक, 2014) में बढ़ते रोजगार के कारण उच्च आर्थिक विकास दर्ज़ किया था। महिलाओं को पूर्वी एशिया में इस विनिर्माण-आधारित विकास में एक बड़ा हिस्सा मिला। इस अवधि के दौरान पूर्वी एशिया और प्रशांत देशों में विनिर्माण रोजगार में महिलाओं की औसत हिस्सेदारी 42 प्रतिशत थी (तेजानी और मिलबर्ग, 2016)। हालाँकि, भारत में (स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया रिपोर्ट, 2021) इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे उत्पादक श्रम-गहन विनिर्माण नौकरियों की कमी के कार्न महिलाओं को श्रम शक्ति से पूरी तरह से बाहर कर दिया है।

इसके अलावा स्टडी में यह पाया गया ही कि, महामारी के बाद विनिर्माण क्षेत्र में महिलाओं के रोजगार की स्थिति बहुत खराब होने की संभावना है। जैसा कि सीईडीए-सीएमआईई बुलेटिनों ने रेखांकित किया है, 2020-21 तक कुल विनिर्माण रोजगार आधा हो गया था, और पुरुषों की तुलना में महिलाओं के समग्र रोजगार में बहुत अधिक गिरावट आई थी।

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