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गुजरात : सरदार पटेल की प्रतिमा के पास बने कार्यवाहक सेतु के धँसने से गाँव वालों का मुख्य मार्ग से टूटा नाता

तीन गांव, जो बेहद अविकसित हैं और न ही वहाँ कोई आधारभूत स्वास्थ्य सुविधा हैं, ये गाँव 3000 करोड़ रुपये की लागत से बनी “स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी” से लगभग 6 से 8 किलोमीटर की दूरी पर है। मानसून आने से पहले हर साल, ज़िला प्रशासन ग्रामीणों से कहता था कि पुल के डूबने से पहले गर्भवती महिलाओं को तालुका अस्पताल में दाख़िल करा दें।
गुजरात

गुजरात के नर्मदा के डेडियापारा तालुका में मथासर गाँव की एक गर्भवती महिला को 19 अगस्त को डेडियापाड़ा तालुका के मुख्यालय में चिकित्सा सुविधा हासिल करने के लिए 70 फीट चौड़ी नदी को पार करने के लिए चार पुरुषों द्वारा कपड़े और लकड़ी से बने ढांचे या एक पालने में ले जाना पड़ा। संभवतः मथासर कांजी और वंदारी गांवों में अन्य 22 गर्भवती महिलाओं के साथ भी  कुछ ऐसा ही हुआ जब बारिश के कारण देव नदी पर बना एक कार्यवाहक पुल डूब गया और  तालुका किसी की भी पहुँच से पूरी तरह कट गया।

करोड़ों रुपए से बने प्रोजेक्ट “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” और पर्यटन स्थल से केवडिया गांव लगभग छह से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यह गाँव मॉनसून के दौरान हर साल इस आपदा का सामना करता हैं।

समस्या के समाधान के लिए कामचलाऊ कार्य-मार्ग या पुल के स्थान पर एक पक्का पुल होना चाहिए। वंदारी, मथासर और कांजी गाँव पहाड़ी छाया क्षेत्र में हैं और यहाँ के ग्रामीणों को नीचे स्तर के कामचलाऊ पुल की वजह से वर्षों से इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है, ”नर्मदा जिला परिषद की कार्यकारी समिति के अध्यक्ष बहादुर वसावा ने उक्त बात कही।

उल्लेखनीय रूप से, वंदारी उन तीन गांवों में से एक है जो मुख्य इलाकों से कट गए है, यह वह गाँव है जिसे 2014 में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अहमद पटेल ने संसद आदर्श ग्राम योजना के तहत अपनाया था।

मथासर, तीन गाँवों में से सबसे बड़ा गाँव है, यह केवडिया गाँव में बने सरदार पटेल की प्रतिमा से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर है। तीनों गाँव “स्टैचू ऑफ यूनिटी” के पास होने के बावजूद बेहद अविकसित हैं जबकि वहां के पर्यटन स्थल को विकसित करने के लिए करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं। हमने अतीत में भी स्थानीय प्रशासन को इन मुद्दों पर कई पत्र/ज्ञापन भेजे हैं। अंतत, इस साल के इलाके के विधायक महेश वसावा ने एक ऊंचे कार्यवाहक पुल के लिए बजट को मंजूरी दी थी, लेकिन महामारी के कारण अभी तक काम शुरू नहीं हो सका है "स्थानीय कार्यकर्ता ने न्यूज़क्लिक को बताया।

उन्होंने कहा, ''यह मार्ग लगभग दस साल पुराना है और हर साल मानसून के दौरान यह पानी में डूब जाता है और तीन गांव लगभग दो से तीन महीने तक इससे पीड़ित रहते हैं। युवाओं को दूसरी तरफ मौजूद वाहनों का लाभ उठाने के लिए देव नदी में तैर कर किनारे जाना पड़ता है यदि उन्हें रोजार पर जाना है। महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों के लिए ऐसा करना मुश्किल है। आजीविका, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा सब कुछ पर इसका भारी असर पड़ता है, उनके अनुसार  जब तक पानी में कमी नहीं होती हर गतिविधि रुक सी जाती है, जैसे जीवन अचानक रुक सा गया हो। 

तीनों गांवों की आबादी लगभग 5000 से 6000 है। जिला पंचायत के रिकॉर्ड के अनुसार, वर्तमान में इन तीन गांवों में 22 गर्भवती महिलाएं हैं जो प्रसव का इंतजार कर राई हैं। उल्लेखनीय रूप से, तीन गाँवों में सबसे बड़े गाँव मथासर से पीएचसी सबसे निकटतम है जो लगभग 28 किलोमीटर दूर मोसदा गाँव में स्थित है। मथासर के ग्रामीणों को देव नदी और फिर तरावली नदी पर एक पुल को मोसदा तक जाने के लिए पार करना पड़ता है। निकटतम अस्पताल जिला मुख्यालय राजपीपला में है, जो गांव से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है।

हर साल मानसून के आने से पहले, नर्मदा जिला प्रशासन अक्सर तीन गांवों के ग्रामीणों से अपेक्षा करता है कि वे कार्यवाहक पुल के डूबने से पहले गर्भवती महिलाओं को तालुका अस्पताल में दाखिल करा दें। हालांकि, इन गांवों में वर्षों से बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल केंद्र बनाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है।

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