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सुप्रीम कोर्ट ने कहा-बिहार में कानून का नहीं बल्कि पुलिस का राज है, विपक्षी हुआ हमलावर

बिहार में विपक्षी वाम दल माले ने कहा पुलिस राज संबंधित सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने बिहार सरकार की पोल खोल दी है। जबकि राजद ने कहा बिहार पुलिस वह हर काम करती है जो किसी सभ्य समाज की पुलिस के लिए अपराध है, अमानवीय है!
सुप्रीम कोर्ट

बिहार सरकार और वहाँ की पुलिस अपने नकरात्मक कृत्य के लिए सुर्ख़ियो में है। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में पुलिस की भूमिका को लेकर सरकार पर गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने बिहार सरकार की ओर से दायर एक याचिका खारिज कर दी, जिसमें पटना हाई कोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी गई थी। नौ जुलाई को न्यायमूर्ति डीवाई चंद्राचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह ने बिहार सरकार की ओर से दाखिल अपील पर सुनवाई के बाद कहा कि पटना हाई कोर्ट का फैसला लागू रखा जाना चाहिए। इसको लेकर अब विपक्षी दल भी सरकार पर हमलावर हो गए है।

भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी ने भाजपा-जदयू शासन में पुलिस राज में बिहार के लगातार बदलते जाने की हमारी समझदारी को पुष्ट किया है। विगत विधानसभा सत्र के दौरान विपक्ष के विधायकों को अपमानित व बुरी तरह से पिटाई करवाके जिस तरह से ड्रैकोनियन पुलिस ऐक्ट सरकार ने पास किया था, उसके बाद पुलिस का मनोबल सातवें आसमान पर है।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मिल्क टैंकर ड्राइवर को अवैध रूप से 35 दिनों तक हिरासत में रखने संबंधी याचिका पर बिहार सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी और कहा था कि लगता है बिहार में कानून का नहीं बल्कि पुलिस का राज है। विदित हो कि टैंकर ड्राइवर को बिना कानूनी प्रक्रिया के 35 दिनों तक अवैध रूप से हिरासत में रखने की सुनवाई करते हुए पटना उच्च न्यायालय ने सरकार को 5 लाख का मुआवजा देने का फैसला सुनाया था। इस 5 लाख के मुआवजे के आदेश के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी, जहां सुप्रीम कोर्ट ने भी उसे फटकार लगाई।

माले राज्य सचिव ने कहा कि सरकार अवलिंब सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करे और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करे जिसने अवैध रूप से टैंकर ड्राइवर को 35 दिनों तक हिरासत में रखा। यह भी कहा कि सरकार इस बात की गारंटी करे कि प्रशासन व पुलिस अपने पद का नाजायज फायदा उठाते हुए किसी भी व्यक्ति को परेशान न करे। यदि ऐसा होता है, तो सरकार कड़ी कार्रवाई करे और लोगों के मानव अधिकारों की रक्षा के प्रति चिंता करे।

माले राज्य सचिव ने आगे बिहार के कानून व्यवस्था को लेकर भी सरकार पर हमला बोला और कहा कि आज बिहार में अपराध की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, जो बेहद चिंताजनक है।

मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल ने भी सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार पर निशान साधा और फेसबुक पर लिखा कि सर्वोच्च न्यायालय या पटना उच्च न्यायालय की बार बार तल्ख़ टिप्पणियों का निर्लज्ज नीतीश सरकार को रत्ती भर भी फ़र्क़ नहीं पड़ता है! अफसरशाही आसमान पर पहुँचाने वाली निकम्मी बिहार सरकार ने बिहार में पुलिस राज स्थापित किया हुआ है, इसका हर बिहारवासी भुक्तभोगी है! अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी यह बात कही है!

आगे उन्होंने लिखा "बिहार पुलिस सुपारी किलिंग, लॉकअप किलिंग, फेक एनकाउंटर, अपहरण, फिरौती, अवैध हिरासत, अवैध वसूली, सत्ता के इशारे पर विवेकहीन अत्याचार आदि वह हर काम करती है जो किसी सभ्य समाज की पुलिस के लिए अपराध है, अमानवीय है!"

क्या पूरा मामला ?

सुप्रीम कोर्ट ने जिस मामले को लेकर सरकार को फ़टकार लगाई वो पूरा मामला सारण जिले के परसा पुलिस स्‍टेशन से जुड़ा है। यह मामला ट्रक ड्राइवर जितेंद्र को अवैध ढंग से काफी दिनों तक पुलिस हिरासत में रखे जाने का था। कोर्ट ने पुलिस के सभी तर्कों को इस मामले में खारिज कर दिया था। इसी मामले में राहत के लिए राज्‍य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी। सुप्रीम कोर्ट में राज्‍य सरकार के वकील ने कहा कि जितेंद्र कुमार एक ट्रक ड्राइवर है और उसके लिए पांच लाख मुआवजा अधिक है। इस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जताई और व्‍यक्ति की हैसियत देख कर मुआवजा तय करने को गलत बताया।

इससे पहले हाई कोर्ट ने भी बिहार सरकार को लताड़ा था। 22 दिसंबर 2020 केअपने फैसले में पटना हाई कोर्ट ने भी बिहार पुलिस पर सवाल उठाए थे और डीजीपी को कहा था कि वे अपनी पूरी पुलिस फोर्स को आम लोगों के साथ सही तरीके से पेश आने के लिए ट्रेनिंग दिलाएं। ट्रक ड्राइवरों और अशिक्षित लोगों के साथ पुलिस का व्यवहार बदले जाने और उनकी शिकायतों के लिए एक मैकेनिज्‍म विकसित करने का निर्देश भी कोर्ट ने दिया था।

इसके साथ ही हाई कोर्ट ने दोषी पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई करने को कहा था। दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की रिपोर्ट 30 अप्रैल 2021 तक देने को कहा था। हाई कोर्ट ने डीजीपी को दोषी अधिकारियों पर आपराधिक मामला चलाने और व्यक्तिगत तौर पर एफिडेविट के जरिये इसकी जानकारी देने को कहा था।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

बिहार सरकार ने हाई कोर्ट के इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था। उसे वहां भी मुंह की खानी पड़ी। लाइव लॉ के मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस शाह की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य सरकार को इस मामले में अपील में नहीं आना चाहिए था। किसी इंसान को हुए नुकसान को इस नजरिए से नहीं देखा जा सकता कि अगर जिसके साथ घटना हुई वह एक अमीर आदमी है तो अधिक मुआवजा मिलना चाहिये।

पीठ ने कहा कि “क्या बिहार सरकार ने अपने ही डीआईजी की रिपोर्ट को देखा है? डीआईजी ने हाईकोर्ट में दिये बयान में साफ-साफ कहा कि इस मामले में समय पर एफआईआर नहीं की गई, संबंधित व्यक्तियों का बयान नहीं लिया गया, वाहन का निरीक्षण नहीं किया गया और बिना किसी कारण के गाड़ी और ड्राइवर को थाने में डिटेन करके रखा गया।”

बिहार सरकार के वकील सुप्रीम कोर्ट में ये दलील बड़ी मज़बूती से रख रहे थे कि एक ड्राइवर के लिए पांच लाख मुआवजा तय करना ज्यादा है।

हालाँकि सरकार यह कहना अपने आप में बेहद निंदनीय है।

सरकार के तर्क पर कोर्ट ने कहा- राज्य सरकार की दलील है कि पुलिस ने उसे छोड़ दिया था लेकिन वह अपनी मर्जी से थाने में एंजॉय कर रहा था? आप सोच रहे हैं कि आपकी इस दलील पर कोर्ट विश्वास कर ले।

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