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तमिलनाडु चुनाव: एमएनएम, एनटीके, एएमएमके के बड़े लक्ष्य,लेकिन जीत की संभावना कम

कमल हासन या सीमन की पार्टियां कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में खेल बिगाड़ सकती हैं,लेकिन द्रविड़ क़िले के ख़िलाफ़ भारी जीत अब भी एक दूर का सपना है।
तमिलनाडु चुनाव
प्रतीकात्मक फ़ोटो:साभार: द हिंदू

तमिलनाडु में फ़िल्मी हस्तियों को राजनीतिक नेताओं के तौर पर स्वीकार्यता कोई नयी बात नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री ,सी.एन.अन्नादुरई, एम.करुणानिधि, एम.जी.रामचंद्रन और जे.जयललिता ने 1967 से 2016 तक मामूली बाधाओं के साथ इस राज्य की अगुवाई की है।

उनके नक्शेकदम पर चलते हुए अभिनेता,कमल हासन,मक्कल निधि माइम (MNM) की अगुवाई कर रहे हैं, और एक अन्य अभिनेता और निर्देशक सीमन,नाम तमिलर काची (NTK) की अगुवाई कर रहे हैं। एमएनएम का जहां एक मध्यमार्गी पार्टी होने का दावा है,वहीं एनटीके ने वोट मांगने के लिए तमिल राष्ट्रवादी कार्ड को अपनाया है।

एमएनएम ने जहां शहरी क्षेत्रों में स्वीकृति हासिल की है,वहीं एनटीके ग्रामीण भागों में अपनी जड़ें जमाने में कामयाब रही है। दोनों पार्टियां द्रविड़ पार्टियों का एक विकल्प होने का दावा करती हैं,लेकिन 2019 के आम चुनावों में उनका वोट शेयर 4% से नीचे रहा।

वी.के.शशिकला की बहुचर्चित वापसी के बाद राजनीति से हटने के उनके हालिया फ़ैसले से अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम (AMMK) बुरी तरह फंस गयी है।

ये पार्टियां कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में खेल तो बिगाड़ ही सकती हैं, लेकिन इस दुर्जेय द्रवीड़ क़िले को भेद पाना उनके लिए अब भी एक दूर की कौड़ी बनी हुई है।

एमएनएम: माकूल शुरुआत ?

2018 में स्थापित एमएनएम ने 2019 के आम चुनाव से अपनी चुनावी शुरुआत की थी। इस पार्टी ने 36 निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था,जिनमें यह 3.7% वोट पाने में कामयाब रही। पार्टी को आम और विधानसभा उपचुनावों,दोनों ही चुनावों में ज़्यादातर वोट शहरी और अर्ध-शहरी निर्वाचन क्षेत्रों में मिले थे और पार्टी का ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदर्शन खराब रहा था।

मशहूर अभिनेता,कमल हासन काफ़ी हद तक कुलीन वर्ग के बीच अपना असर रखते हैं, यह बात उनके पहले चुनाव की भागीदारी में भी दिखायी दी थी। चुनाव का सामना करने को लेकर उनके अनुभव की कमी के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों से उनका नहीं जुड़ पाना पार्टी के लिए एक झटका साबित हो सकता है।

कमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते हुए पार्टी विधानसभा चुनावों को लेकर बड़ा लक्ष्य बना तो रही है,लेकिन पार्टी की आगे की राह उतनी आसान नहीं दिखती है।

विचारधारा की विसंगति, बेहतर मैनिफ़ेस्टो

एनएनएम का नीति दस्तावेज बताता है कि यह 'न तो वामपंथी है और न ही दक्षिणपंथी है।' अस्पष्ट विचारधारा और कुछ चेहरों को छोड़कर पार्टी में विश्वसनीय चेहरों की कमी पार्टी के लिए नुकसानदेह है।

पार्टी ख़ुद को आम आदमी पार्टी (AAP) की तरह एक ताक़त के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रही है, लेकिन जिन समस्याओं से आम लोग दो-चार हैं,उनसे जुड़े मुद्दों के ख़िलाफ़ यह पार्टी विरोध या आंदोलनों में बड़े पैमाने पर शामिल नहीं हुई है।  

पार्टी चुनाव अकेले लड़ना चाहती थी,लेकिन अपने दरवाज़े उन दलों के लिए खुले रखे हैं,जो उसके नेतृत्व को स्वीकार करेंगे। दो दल, राज्यसभा में डीएमके का प्रतिनिधित्व कर चुके और बाद में विधानसभा में एआईएडीएमके के प्रतिनिधि के तौर पर चुने गये एक और अभिनेता-सरथ कुमार की अगुवाई वाली समथुवा मक्कल काची और डीएमके का प्रतिनिधित्व कर चुके सांसद,परिन्द्र की अगुवाई वाली भारतीय जननायगा काची-दोनों ही पार्टियां इस गठबंधन में शामिल हो गयी हैं।

एमएनएम के घोषणापत्र में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण,महिलाओं से  सम्बन्धित उत्पादों के सार्वभौमिक वितरण और घरेलू कामों के लिए पैसे के निर्धारण सहित कई क़दमों को शामिल किया गया है।

एनटीके: तमिल भावनाओं को जगाती पार्टी

एनटीके पहली बार 1958 में वजूद में आयी थी,जिसकी स्थापना श्रीलंका के तमिल भाषी क्षेत्रों को मिलाकर एक संप्रभु तमिल राज्य की मांग करते हुए तमिलनाडु विधानसभा के पूर्व स्पीकर और दैनिक थांथी अख़बार के संस्थापक-एस.पी.अदितनार ने की थी। बाद में इस पार्टी का 1967 में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) में विलय हो गया था।

निर्देशक से राजनेता बने सीमन ने 2009 में एनटीके को पुनर्जीवित किया था और श्रीलंकाई युद्ध की पहली वर्षगांठ के मौक़े पर 2010 में यह संगठन एक राजनीतिक पार्टी में तब्दील हो गया था। यह पार्टी राज्य में तमिलों के 'शासन' की अपनी मांग को लेकर विवादास्पद बनी हुई है।

पार्टी की विचारधारा के मुताबिक़, चाहे किसी की धार्मिक मान्यतायें कुछ भी हों,लेकिन अगर वह तमिल बोलता है,वह शुद्ध तमिल ’है। पार्टी नहीं चाहती कि 'शुद्ध तमिलों' के अलावा राज्य पर किसी का भी शासन हो।

पार्टी जाति व्यवस्था को चुनौती दिये बिना उस ‘तमिल एकता’ का आह्वान करती रही है,जो कि दलितों के ख़िलाफ़ ज़्यादतियों को देखते हुए बेहद नामुमकिन है। हाल के दिनों में अपनी निष्ठा बदलते हुए इस पार्टी के कई बड़े प्रवक्ता पार्टी छोड़कर द्रमुक और अन्नाद्रमुक में चले गये हैं। पार्टी छोड़ने वालों ने एनटीके पर नाडार जाति के वर्चस्व का आरोप लगाया है।

अन्नाद्रमुक के लिए चुनाव प्रचार

इस पार्टी ने 2016 के विधानसभा चुनाव और 2019 के आम चुनाव अपने दम पर लड़े थे,लेकिन 2011 और 2014 के चुनावों में अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार किया था।

एनटीके ने तब लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) के ख़िलाफ़ आख़िरी जंग के सिलसिले में राष्ट्रीय दलों-भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के साथ-साथ डीएमके की चुप्पी की वजह से उन्हें हराने का आह्वान किया था।

इस समय,एनटीके ख़ुद को उन सभी मौजूदा पार्टियों के विकल्प के रूप में पेश करती है,जो तमिलों के सच्चे प्रतिनिधि होने का दावा करती हैं। सीमन और पार्टी के अन्य नेताओं की तरफ़ से इस्तेमाल की जा रही गंदी ज़बान के बावजूद पार्टी के समर्थन आधार में लगातार बढ़ोत्तरी होते देखी जा रही है।

यह पार्टी 2016 के विधानसभा चुनाव में मिले 1.06% वोट शेयर को 2019 के आम चुनाव में 3.93% तक बढ़ाने में कामयाब रही थी। पार्टी ने एक साथ हुए उप-चुनावों में ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिल पायी थी।

हालांकि, एनटीके जितने सीटों पर चुनाव लड़ रही है,उनमें से महिलाओं को 50% सीटें आवंटित कर रही है, यह एक ऐसी नयी बात है,जिसे पूरा करने का दावा करती हुई राज्य की कोई भी अन्य राजनीतिक पार्टी नहीं दिख रही है। पार्टी की नीतियां ऊंची आकांक्षाओं वाली ज़रूर है, लेकिन यह महज़ काग़ज़ पर ही बनी हुई हैं। पार्टी का कट्टरपंथी नज़रिया और पार्टी के सदस्यों का नेतृत्व के ख़िलाफ़ सवाल उठाते हुए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल  इस पार्टी की संभावनाओं पर पानी फेर सकते हैं।

एएमएमके: घटती अहमियत ?

एआईएडीएमके से टूटने के बाद 2018 में टीटीवी दिनाकरण द्वारा स्थापित एएमएमके की स्थिति लगातार बिगड़ रही है। वी.के.शशिकला की नाटकीय वापसी के बाद, इस पार्टी को चुनावों में एक असर पैदा करने की उम्मीद थी। लेकिन,सक्रिय राजनीति से अस्थायी रूप से पीछे हटने के शशिकला के अप्रत्याशित फ़ैसले से पार्टी को बड़ा झटका लगा है।

पार्टी को 2019 के आम चुनावों में एमएनएम और एनटीके के मुक़ाबले 5.32% वोट हासिल हुए थे।लेकिन,पार्टी को आम चुनावों और 22 सीटों के लिए होने वाले उप-चुनावों में ख़ाली हाथ ही लौटना पड़ा था।

एएमएमके को कम से कम दो विधानसभा क्षेत्रों में जीतने की उम्मीद थी,क्योंकि दिनाकरण आर.के.नगर निर्वाचन क्षेत्र से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर जीते थे, जो कि जे.जयललिता के निधन के बाद खाली हो गया था।

एआईएडीएमके और बीजेपी के एक साथ लड़ने से राज्य के मौजूदा माहौल को देखते हुए इस पार्टी का भविष्य अब अंधकारमय बना हुआ है। पार्टी को सचमुच एआईएडीएमके खेमे की तरफ़ से दरकिनार कर दिये जाने के बाद से दिनाकरण के पास अकेले लड़ने के अलावे बहुत कम विकल्प बचे हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे

TN Elections: MNM, NTK, AMMK Aiming Big, But Victory is a Long Shot

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