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तमिलनाडु: महिलाओं के ध्रुवीकरण को लेकर धार्मिक आस्था का इस्तेमाल करते आरएसएस, बीजेपी और संघ परिवार

आरएसएस अपने जनाधार के विस्तार के लिए नियमित रूप से महिलाओं और बच्चों के लिए मंदिर परिसर में कथित तौर पर धार्मिक कक्षाएं आयोजित करता है। इस काम पर उसने वीएचपी, हिंदू मुन्नानी, अखिल भारतीय हिंदू महासभा, हिंदू मक्कल काची जैसे कुछ संगठनों को लगाया हुआ है।
तमिलनाडु: महिलाओं के ध्रुवीकरण को लेकर धार्मिक आस्था का इस्तेमाल करते आरएसएस, बीजेपी और संघ परिवार
प्रतीकात्मक फ़ोटो: साभार: द प्रिंट

चुनावी अभियान के दौरान 2 अप्रैल को हुई मदुरै की सभा में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘वेत्रीवेल वीरावेल' का जाप किया। इस मंत्र को हिंदी में ‘विजेता बरछी’ या फिर ‘साहसिक बरछी’ कहा जा सकता है, इस बरछी या भाले का कथानक भगवान मुरुगन के साथ जुड़ा हुआ है, जिसका इस्तेमाल मुरुगन ने युद्धों के दौरान किया था।

तमिलनाडु के लोगों के लिए चुनाव प्रचार में धार्मिक मंत्रों के उच्चारण का देखना-सुनना, और वह भी प्रधानमंत्री के मुंह से बहुत ही दुर्लभ बात है। हालांकि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसके राजनीतिक संगठन, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के इरादे कभी छुपे हुए नहीं रहे हैं, लेकिन उनकी हताशा इस राज्य में नयी ऊंचाइयों को छू रही है।

संघ परिवार से जुड़े संगठन इन चुनावों को आस्थावानों और नास्तिकों के बीच की लड़ाई के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रहे हैं, उनके चुनाव अभियानों में ख़ास तौर पर द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) और कम्युनिस्ट पार्टियों को निशाना बनाया जा रहा है।

धार्मिक आस्था का इस्तेमाल करते हुए दक्षिणपंथी राजनीति की ओर महिलाओं को आकर्षित करने की दीर्घकालिक योजना के साथ ये संगठन उनका विश्वास जीतने के लिए कई कार्यक्रम और अभियान चला रहे हैं।

महिलाओं पर नज़र

तमिलनाडु के कुल 6, 29, 43, 512 मतदाताओं में महिला मतदाता की तादाद पुरुषों के मुक़ाबले तक़रीबन 9.5 लाख ज़्यादा है। ये महिला मतदाता हमेशा कई राजनीतिक दलों के रडार पर रहे हैं, और यह बात उनके चुनावी घोषणापत्र में महिलाओं के अनुकूल वादों से बिल्कुल साफ़ है। लेकिन, दक्षिणपंथी संगठनों का पूरी तरह से अलग हिसाब-किताब है।

संघ परिवार से जुड़ी संस्थायें महिलाओं को अपने पाले में करने के लिए कई तरह की योजनाओं पर काम कर रही हैं। ये महिलायें अच्छी ख़ासी तादाद में पूजा स्थल पर आती हैं और दक्षिणपंथी संगठन इनके बारे में पता लगाकर इकट्ठी की गयी जानकारी का इस्तेमाल कर रहे हैं।

लेखक और शोधकर्ता प्रो.के अरुणन न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहते हैं, “तमिलनाडु और अन्य जगहों पर महिलाओं में धार्मिक आस्था ज़्यादा है। आरएसएस और संघ परिवार से जुड़े अन्य संगठन चुनावी लाभ के लिए आस्थाओं से जुड़ी भावनाओं का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं। वे धार्मिक राजनीति और घृणा की राजनीति को और ज़्यादा फैलाने की कोशिश करते हैं।”

वह आगे कहते हैं, "संघ परिवार महिलाओं के लिए जिन कार्यक्रमों को आयोजित करता है, उनमें पूर्णिमा के दिनों और अन्य विशेष कार्यक्रमों के दौरान की जाने वाली “थिरुविलक्कू पूजा '(लखमी पूजा) है। इस तरह के कार्यक्रमों के ज़रिये ये संगठन महिलाओं से संपर्क साधते रहते हैं । चुनाव के दौरान वे महिलाओं से अपील करते हैं कि वे उन लोगों को वोट न दें जो हिंदू भावनाओं को आहत करते हैं। ”

झूठी जानकारियां और दुष्प्रचार

अपने ध्रुवीकरण अभियान के हिस्से के रूप में संघ परिवार से जुड़े संगठनों ने कथित तौर पर कई बातों को तिल से ताड़ बना दिया है और इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए एक यूट्यूब चैनल, करुप्पार कूटम पर अपलोड किये गये कंधशास्ती कवचम् (तमिलनाडु में एक हिंदू भक्ति गीत) की अतिरंजित व्याख्या करते हुए उसे डीएमके और वामपंथी दलों पर हमला करने का एक हथियार बना लिया। तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करके इन पार्टियों के ख़िलाफ़ लोगों और संगठनों की तरफ़ से ज़बरदस्त अभियान चलाया गया।

आस्थावानों में खलबली मचाने के अलावा दक्षिणपंथी यूट्यूबर, मरिधास द्वारा अपलोड किये गये इस वीडियो ने कई पत्रकारों पर द्रविड़ कड़गम (DK) और करुप्पार कूटम चैनल से जुड़े होने का आरोप लगा दिया। इस वीडियो में दाढ़ी रखने वाले सुरेंद्र नटराजन पर आरोप लगाया गया कि वह दूसरे चैनल में काम करने वाले एक मुसलमान हैं।

अरुणन बताते हैं, “इस तरह के आरोप आम लोगों और ख़ासकर महिला श्रद्धालुओं को पसंद आते हैं। द्रमुक और वामपंथी दलों ने हमेशा धार्मिक आस्थाओं पर चोट करने से परहेज़ किया है, लेकिन भाजपा और अन्य संगठन उन्हें हिंदू विरोधी के रूप में चित्रित करने का प्रयास करते रहते हैं।”

इन आरोपों के बाद प्रतिष्ठित समाचार चैनलों के कर्मचारियों को बर्ख़ास्त कर दिया, जबकि करुप्पर कूटम की टीम को गिरफ़्तार कर लिया गया और उनके वीडियो हटा दिये गये।

इस घटना के चलते भाजपा ने वेत्रीवेल यात्रा का आयोजन उस समय किया, जिस समय नवंबर 2020 के दौरान राज्य कोविड-19 महामारी की चपेट में था। हालांकि रिपोर्टों के मुताबिक़ यह कार्यक्रम लोगों को अपनी ओर खींचने में विफल रहा, जबकि बीजेपी ने इस पर लंबे समय तक काम किया था, लेकिन बेशक इससे कुछ हल्कों में बीजेपी को पैठ बनाने में मदद ज़रूर मिली।

मंदिरों को फ़ंडिंग और समितियों में दखल

कई स्थानों पर धार्मिक कार्यक्रमों के ज़रिये नफ़रत फैलाने वाले इन दुष्प्रचारों के सिलसिले में कथित तौर पर महिलाओं पर भरोसा किया जाता है। मंदिरों का संचालन तमिलनाडु सरकार के धर्मार्थ दान और हिंदू धार्मिकों (HR&CE), दोनों ही की तरफ़ से किया जाता है और इन मंदिरों पर विभिन्न जाति समूहों के ट्रस्टों का स्वामित्व है, जो संघ परिवार से जुड़े संगठनों के लिए एक उर्बर मैदान बन गये हैं।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए तिरुपुर में रह रहे लेखक, समसुद्दीन हीरा ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं, “संघ परिवार से जुड़े संगठन फ़ंडिंग किये जाने वाले मंदिरों को चिह्नित करते हैं और फिर उनकी गतिविधियों पर नियंत्रण करने लगते हैं। इसके तुरंत बाद, महिलाओं को लक्ष्य करते हुए उपवास और पूजा की एक लंबी सूची जारी की जाती है। धीरे-धीरे महिलाओं को दक्षिणपंथी दुष्प्रचार का हिस्सा बना लिया जाता है।”

हाल ही के दशक में कोयम्बटूर और तिरुपूर ज़िलों में गुजरात और राजस्थान के व्यवसायियों की संघ परिवार से जुड़े संगठनों की फ़ंडिंग में भूमिका भी बढ़ी है। उत्तर भारत की कई महिलाओं को कोयम्बटूर (दक्षिण) निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार वनाथी श्रीनिवासन के लिए सक्रिय रूप से प्रचार करते देखा गया था।

हीरा आगे आरोप लगाते हुए कहते हैं, "आम तौर पर दक्षिणपंथी मानसिकता वाले ये कारोबारी अपनी सुरक्षा के लिए संघ परिवार से जुड़े समूहों को पैसे उपलब्ध कराते हैं, जिन पैसों का इस्तेमाल धार्मिक गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए किया जा रहा है।"

एचआर एंड सीई के तहत चल रहे इन मंदिरों का इस्तेमाल थिरुविलक्कू पूजा और उन अन्य त्योहारों के मनाने के लिए भी किया जा रहा है, जिन्हें कुछ साल पहले शायद ही मनाया जाता था।

वह बताते हैं, "ये दक्षिणपंथी लोग दिन-ब-दिन की गतिविधियों और पारंपरिक त्योहारों को सिलसिले में फ़ैसला करने के लिहाज़ से मंदिर समितियों का गठन करते हैं। वे मंदिरों पर पूरा नियंत्रण रखते हैं और अनुयायियों, ख़ासकर महिला अनुयायियों के बीच सांप्रदायिक ज़हर फैलाते हैं।"

इन संगठनों ने किस तरह पर्व-त्योहारों पर कब्ज़ा कर लिया है, इसका सबसे अच्छा उदाहरण गणेश चतुर्थी और कृष्ण जयंती जैसे त्योहार हैं।गणेश मूर्ति विसर्जन के सिलसिले में निकलने वाले जुलूस के दौरान होने वाली छिटपुट हिंसा अल्पसंख्यक आबादी वाले क्षेत्रों में आम है, जबकि विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की तरफ़ से आयोजित होने वाली कृष्ण जयंती का मुख्य लक्ष्य बच्चे होते हैं।

‘महिलाओं के अधिकारों पर दोहरापन’

कुछ ज़िलों में महिलाओं को बच्चों के बीच धार्मिक मान्यताओं के प्रचार-प्रसार में भी बड़ी भूमिकायें दी जाती हैं।

अरुणन इन संगठनों के दोहरेपन पर रौशनी डालते हुए कहते हैं, “आरएसएस किसी भी महिला को सदस्यता प्रदान नहीं करता है, लेकिन वे चुनावी फ़ायदे के लिए इन महिलाओं का इस्तेमाल करने की कोशिश ज़रूर कर रहे हैं। ये संगठन महिलाओं की ईश्वर की तरह स्तुति तो करते हैं, लेकिन महिलाओं के हर एक अधिकार को खारिज कर देते हैं। मनुस्मृति के सिद्धांतों पर चलने वाला आरएसएस चाहता है कि महिलायें पुरुषों के अधीनस्थ रहें और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखा जाये।”

आरएसएस अपने आधार को और विस्तार देने के लिए नियमित रूप से महिलाओं और बच्चों के लिए मंदिर परिसर में कथित तौर पर धार्मिक कक्षाओं का आयोजन करता है। इस काम की ज़िम्मेदारियां वीएचपी, हिंदू मुन्नानी, अखिल भारतीय हिंदू महासभा, हिंदू मक्कल काची जैसे कुछ संगठनों को सौंपी गयी हैं।

इन सत्रों के बारे में जानकारी देते हुए बेंगलुरु के माउंट कार्मेल कॉलेज में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, अरुण कुमार न्यूज़क्लिक को बताते हुए कहते हैं, “ये कक्षायें रविवार को आयोजित की जाती हैं जिनमें महिलाओं को इस बात के लिए प्रशिक्षित किया जाता है कि वे किस तरह बच्चों को धर्म और उनकी मान्यताओं के बारे में समझायेंगी। इन मंदिरों में आयोजित कक्षाओं में भाग लेने और परीक्षाओं में उत्तीर्ण करने के लिए महिलाओं और बच्चों को क्रमश: 'विद्या श्री' और 'विद्या ज्योति' उपाधियों से नवाज़ जाता है।"

कन्याकुमारी ज़िले के वेल्लिमलाई स्थित ‘हिंदू धर्म विद्या पीडम’ को इस तरह की गतिविधियों की कथित तौर पर जिम्मेदारी सौंपी गयी है। हिंदू प्रबंधन से चल रहे स्कूल भी ऐसे त्योहारों और कक्षाओं के संचालन में शामिल हैं।

इस तरह के मंदिर समारोहों के साथ-साथ 'समया वागप्पु मनाडु' (धार्मिक सम्मेलन) का आयोजन का चलना भी राज्य भर में बढ़ा है। भाजपा और आरएसएस सहित दक्षिणपंथी समूहों के नेताओं को इन कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जाता है, जिनका इस्तेमाल कथित तौर पर अन्य धार्मिक आस्थाओं के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने के लिए किया जाता है।

अरुणन ने चेताते हुए कहते हैं, “इन दक्षिणपंथी संगठनों ने धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए अन्य धर्मों को नीचा दिखाना शुरू कर दिया है। 2019 के चुनावों में बुरी तरह विफल रहे इन संगठनों ने थोड़ी कामयाबी का स्वाद ज़रूर चखा है। लेकिन, डीएमके और वामपंथियों जैसे राजनीतिक दलों को इन मंडरा रहे ख़तरों से निपटने की ज़रूरत है।”

महज़ धार्मिक आस्थाओं और भावनाओं के आधार पर चुनावी मैदान में उतरने वाली बीजेपी को तमिलनाडु में अब तक बहुत अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली है, लेकिन उनके लगातार आगे बढ़ता क़दम निश्चित रूप से लंबे समय में ख़तरा बनने वाला है। यह अब द्रविड़ और वामपंथी दलों पर निर्भर करता है कि वे राजनीतिक वैज्ञानिक मिज़ाज वाले अपने चुनाव अभियानों के ज़रिये कैसे संघ परिवार के धार्मिक आस्थाओं का इस्तेमाल करने के इस दोहरेपन को उजागर करते हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Tamil Nadu: RSS, BJP and Sangh Parivar Using Religious Beliefs to Polarise Women

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