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तिरछी नज़र: सरकार जी को न बोलने का अधिकार है

सरकार जी यह भी जानते हैं कि इस बोलने की आज़ादी में न बोलने की आज़ादी भी निहित है। और सरकार जी इन दोनों आज़ादियों, बोलने की आज़ादी और न बोलने की आज़ादी, दोनों का भरपूर फ़ायदा उठाते हैं।
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स्वतंत्रता का अमृत काल चल रहा है। अमृत काल चल क्या रहा है, दौड़ रहा है। इतनी तेजी से दौडा़ है कि समाप्त होने ही वाला है। आज तेरह अगस्त है, पंद्रह अगस्त को यह अमृत काल समाप्त हो जाएगा और उससे अगला काल शुरू होगा। उसका नाम क्या होगा, वह कैसे मनाया जाएगा, उसमें‌ कौन कौन से कार्यक्रम होंगे, इसकी घोषणा सरकार जी पन्द्रह अगस्त को लालकिले की प्राचीर से ही करेंगे।

वैसे सरकार जी का बस चलता तो सरकार जी तो अब तक देश को भी मार्गदर्शक मंडल में डाल चुके होते। पिछले वर्ष ही डाल दिया होता। पिछले वर्ष ही आजाद देश पिचहत्तर साल का हो जो गया था। पर बस चला नहीं। वैसे तो सरकार जी सर्व शक्तिमान हैं। जो चाहे वही करते हैं और जो नहीं चाहते वह नहीं करते हैं। पर क्या करें, कभी कभी उनका भी बस नहीं भी चलता है।

अब देखो, सरकार जी चाहते रहे कि संसद में न जाना पड़े। जहां तक हो सके संसद को 'अवॉयड' ही किया जाए, उसमें जाना ही न पड़े। दीवाने आम (चुनावी जनसभाओं) को ही संबोधित करते रहें और दीवाने खास (संसद) में न बोला जाए। और सफल भी रहे। गुजरात गए, वहां बोले। राजस्थान भी गए और वहां भी बोले। पर संसद नहीं जाना था, नहीं बोलना था तो नहीं बोले।

बोलना भी सरकार जब चाहते हैं, जिस पर चाहते हैं, उसी पर बोलते हैं और जिस पर नहीं बोलना चाहते हैं उस पर नहीं बोलते हैं। राजस्थान पर बोले, छत्तीसगढ़ पर बोले पर मणिपुर पर नहीं बोलना था, तो नहीं बोले। यही है बोलने की सवतंत्रता, जो हमें हमारे संविधान ने हमें दी है। सरकार जी यह भी जानते हैं कि इस बोलने की आजादी में न बोलने की आजादी भी निहित है। और सरकार जी इन दोनों आजादियों, बोलने की आजादी और न बोलने की आजादी, दोनों का भरपूर फायदा उठाते हैं।

यह जो, न बोलने की आजादी है ना, यह तो अधिकतर लोग तभी अपनाते हैं जब पुलिस या फिर कोई जांच एजेंसी पूछताछ करती है। उस समय कहते हैं, "हम नहीं बोलेंगे"। यह हमारा अधिकार है। अब जो कुछ बोलेगा, हमारा वकील ही बोलेगा। या फिर हम बोलेंगे तो अपने वकील के आने पर ही बोलेंगे। तब तक हमें न बोलने की आजादी है। सरकार जी भी यही कहते हैं, मैं नहीं बोलूंगा, मेरे नवरत्न बोलेंगे। मुझे न बोलने की आजादी है और मेरे नवरत्नों को कुछ भी बोलने की आजादी है। फिर वे नवरत्न जो चाहे बोलें, ऊल-जलूल बोलें, चिल्ला चिल्ला कर बोलें, सभी को सरकार जी की सहमति है। सब सरकार जी की तरफ से ही तो बोल रहे हैं। 

लेकिन देश का विपक्ष निक्कमा है। उसे न बोलने के अधिकार में विश्वास ही नहीं है। उसे तो सरकार जी की जितनी भी समझ नहीं है। उसे यह समझ नहीं है कि देश में, देश के संविधान में अगर बोलने की आजादी है तो न बोलने की आजादी भी है। और सरकार जी जानते हैं, कहां बोलने की आजादी का फायदा उठाना है और कहां न बोलने की आजादी का फायदा उठाना है। और कहां खुद चुप रह जाना है और अपने नवरत्नों से बुलवाना है। और ये नवरत्न, सच कहा जाए तो, अपने सरकार जी के लिए झूठ बोलने का ही फर्ज निभाते हैं। उसी के लिए तो ये पद पाते हैं और नवरत्न कहलाए जाते हैं।

तो विपक्ष ने, यह जानते हुए भी कि वे हारेंगे ही, सरकार जी विश्वास मत हासिल कर ही लेंगे, सरकार जी के खिलाफ, सरकार जी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत कर दिया। सिर्फ सरकार जी को सुनने के लिए यह अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया। सरकार जी को संसद में बोलने के लिए मजबूर करने के लिए ही पेश कर दिया। सरकार जी अब तो कुछ बोलें, अपना मुंह खोलें, इसलिए पेश कर दिया। 

पर सरकार जी भी सरकार जी हैं। यूं ही सरकार जी नहीं बने हैं। खूब बोल बोल कर ही सरकार जी बने हैं। बोलने को लेकर तो उनका सिद्धांत पूरे ब्रह्मांड में प्रसिद्ध है, "झूठ बोलो, खूब झूठ बोलो, बार बार झूठ बोलो..."। तो विपक्ष ने जब उनकी 'न बोलने की आजादी' छीन ली तो वे खूब बोले। अपने सिद्धांतानुसार ही बोले। बोले, खूब बोले, और रिकार्ड तोड़ बोले। जो बोलना चाहिये था बस वह नहीं बोले, उसके अलावा बहुत कुछ बोले। 

सरकार जी बोलते खूब हैं। उन्होंने इस बार अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए भी, अपनी आदतानुसार रिकार्ड तोड़ा। बोलने की लम्बाई का रिकार्ड तोड़ा। उनसे पहले विश्वास मत हासिल करने के लिए कोई भी इतना लम्बा नहीं बोला था जितना सरकार जी इस बार बोले। परन्तु सरकार जी क्या बोले? क्या कुछ काम का भी बोले? यह किसी को भी नहीं पता। पर हां, सरकार जी बोले जरूर हैं और बहुत बोले। संसद में संसदीय नहीं, चुनावी बोले। अब जब न बोलने की कसम तुड़वा ही दी गई है, तो बहुत बोले। मणिपुर पर तो कम ही बोले, पर और बातों पर ज्यादा बोले। देख लिया ना, सरकार जी से न बोलने का अधिकार छीनने का नतीजा। सरकार जी से जबरदस्ती बुलवाने का नतीजा।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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