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कोविड की तीसरी लहर में ढीलाई बरतने वाली बंगाल सरकार ने डॉक्टरों को उनके हाल पर छोड़ा

न्यूज़क्लिक ने जिन कई डॉक्टरों और सिविल सोसाइटी के लोगों से बात की है, उन सबके कहने का लब्बोलुआब यही था कि उन्हें लगता है कि पश्चिम बंगाल में महामारी की रणनीति तैयार करने के सिलसिले में 'वैज्ञानिक तर्कवाद' के बजाय लोकलुभावनवाद को अहममियत दी जा रही है।
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बंगाल में कोविड पॉजिटिव मरीज़ों को ऑक्सीज़न सिलेंडर की आपूर्ति करते रेड वोलंटियर्स

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों और अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मियों का एक बड़ा वर्ग हाल के दिनों में इसलिए परेशान रहा है, क्योंकि उनमें से कई का कहना है कि कोविड-19 की तीसरी लहर के प्रबंधन में ढिलाई दिखायी दे रही है। अपने सीधे अनुभवों से डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों ने इस नज़रिये की ओर रुख़ किया है कि पिछली दो लहरों के मुक़ाबले इस वायरस के विषाणु में गुणात्मक अंतर होने के बावजूद राज्य तीसरी लहर के तक़रीबन चरम पर पहुंच गया है।

न्यूज़क्लिक ने जिन कई डॉक्टरों और सिविल सोसाइटी के लोगों से बात की है, उन सबके कहने का लब्बोलुआब तो यही था कि उन्हें लगता है कि पिछले दस दिनों में संक्रमित लोगों की संख्या में हुई बढ़ोत्तरी के बावजूद स्थिति से निपटने के लिए रणनीति तैयार करने में "सख़्त, ज़रूरी, वैज्ञानिक तर्क" के बजाय लोकलुभावनवाद को ज़्यादा अहमियत दी जा रही है।

इस समय यह आकलन और प्रतिक्रिया कई कारणों से "भावुक नाराज़गी" की ज़द में है। सबसे पहले, पश्चिम बंगाल को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से 5 जनवरी तक इस लिहाज़ से चिंता वाले आठ राज्यों में सूचीबद्ध किया गया था, क्योंकि संक्रमण तेज़ी से बढ़ रहे थे और पोज़िटिव होने की दर में तेज़ उछाल देखा जा रहा था; और इसके पीछे की वजह ज़बरदस्त संक्रमण वाले ओमाइक्रोन वैरिएंट है।

दूसरी बात कि पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों के संयुक्त मोर्चे(Joint Platform of Doctors) की तरफ़ से जिन बरती जाने वाली सावधानियों और सुझाये गये जिन कार्रवाई बिंदुओं को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का ध्यान दिलाया गया था,उन पर शायद ही विचार किया गया। आख़िरी चिट्ठी मुख्यमंत्री को 4 जनवरी को भेजा गया था, और अभी तक उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। इस मंच के घटकों में एसोसिएशन ऑफ़ हेल्थ सर्विस डॉक्टर्स, वेस्ट बंगाल डॉक्टर्स फ़ोरम, हेल्थ सर्विस एसोसिएशन, श्रमजीवी हेल्थ इनिशिएटिव और डॉक्टर्स फ़ॉर डेमोक्रेसी शामिल हैं।

ऐसा लगता है कि रणनीति तैयार करने में नबन्ना(पश्चिम बंगाल का अस्थायी सचिवालय) की प्राथमिकता नौकरशाहों पर निर्भरता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और इस क्षेत्र के जानकार पेशेवरों के पास कहने के लिए कुछ भी नहीं है।

तीसरी बात कि बड़े पैमाने पर भागीदारी वाले उत्सवों और अवसरों पर सख़्त प्रतिबंध लगाने के बजाय राज्य सरकार दुर्गा पूजा, कालीपूजा / दिवाली, छठ, क्रिसमस और नये साल जैसे अवसरों को लेकर उदार रही है। इसमें कोई शक नहीं कि एडवाइज़री जारी तो की गयी थी, लेकिन इसे लागू करने को लेकर माफ़ी मांगी जाती रही है। राज्य की तरफ़ से अख़्तियार किये जा रहे इस तरह के बेहद उदार रुख़ की ताज़ा मिसाल गंगासागर मेला है, जो शुक्रवार की सुबह गंगा में पवित्र स्नान के साथ ख़त्म होगा।

कोलकाता शहर, और हावड़ा, उत्तरी 24 परगना, दक्षिणी 24 परगना, पश्चिमी बर्धमान और बीरभूम ज़िलों में दिसंबर के आख़िर और जनवरी की शुरुआत के बीच मामले तेज़ी से बढ़ रहे थे। अब इस सूची में मालदा, हुगली, पूर्वी बर्धमान, बांकुरा, पुरुलिया और दार्जिलिंग ज़िले भी शामिल हो गये हैं।

हालांकि, आंकड़ों में भिन्नता दिखायी देती है, हाल ही में कोलकाता में ताज़ा संक्रमण दर 41% या राज्य-व्यापी कुल 7,500 के तक़रीबन आधे मामले थे। किसी समय राज्य में संक्रमण के पोज़िटिव होने की दर देश में सबसे ज़्यादा,यानी 55% थी। 29 दिसंबर को ख़त्म होने वाले सप्ताह के दौरान नये संक्रमण की संख्या लगभग 3,800 से बढ़कर अगले सप्ताह तक़रीबन 32,000 हो गयी।

4 जनवरी को लिखी गयी चिट्ठी में ज्वाइंट प्लेटफ़ॉर्म ऑफ़ डॉक्टर के संयोजकों-डॉ हीरालाल कोनार और डॉ पुण्यब्रत गुन ने मांग की थी कि संक्रमित लोगों का पता लगाने के लिए अब बहुत बड़े पैमाने पर कोविड-19 परीक्षण किये जाने चाहिए। उन्होंने सरकार से पिछले साल इस बीमारी के इलाज को लेकर चिन्हित किये गये निजी अस्पतालों को फिर से "अधिग्रहण" करने और पिछले साल सरकारी अस्पतालों में खोले गये और बाद में बंद कर दिये गये कोविड वार्डों को फिर से शुरू करने का आग्रह किया।

गंगासागर मेले में शामिल होने के लिए  लोग बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कुछ अन्य राज्यों से आते हैं। डॉ कोनार और डॉ गुन ने ख़ास तौर पर इस मेले के सिलसिले में मुख्यमंत्री को बताया कि इस आयोजन के चलते देश में संक्रमण फैलने की स्थिति में राज्य सरकार को दोषी और ज़िम्मेदार ठहराया जायेगा।

पश्चिम बर्धमान जिले के दुर्गापुर से थोड़ी दूरी पर स्थित झांजरा कोयला खदान क्षेत्र का कार्यभार संभाल रहे डॉ सुभमॉय दास ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इस जिले में संक्रमण दर में हाल ही में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गयी थी, और इसका पता परीक्षण को लेकर लोगों की अनिच्छा से लगाया जा सकता है। वह कहते हैं,"परीक्षण को लेकर और भी ज़्यादा सख़्त होने की ज़रूरत है, लेकिन, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि लोगों में डर बना हुआ है।" डॉ सुभरॉय दास आगे कहते हैं,"हमारे लिए  राहत की बात यह है कि मृत्यु दर कम है, और जिन कुछ लोगों का परीक्षण पोज़िटव आया था और जिनकी मृत्यु हो गयी थी,वे सबके सब गुर्दे से जुड़ी बीमारियों, मधुमेह और यहां तक कि कैंसर से पीड़ित थे। टीकाकरण अभियान को जारी रखने की ज़रूरत है। पिछले पांच-छह महीनों में की गयी क़वायदों से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ी है।" उन्होंने कहा कि ऐसी जगहों पर जहां भारी भीड़ उमड़ी हो, वहां जाने से सख़्ती से बचना चाहिए।

उत्तरी 24 परगना ज़िले के कमरहाटी स्थित कॉलेज ऑफ़ मेडिसिन और सागर दत्ता अस्पताल में सर्जरी डिपार्टमेंट के प्रोफ़ेसर और प्रमुख-डॉ मानस गुमटा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि हाल के दिनों में संक्रमण की जिस तरह से तेज़ गति रही है,उससे "मुझे लगता है कि हम जो कुछ भी देख रहे हैं, वह संक्रमण का सामुदायिक लक्षण है।" उनका कहना है कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस संदेह के पीछे का कारण है और वह यह है कि वास्तविक संक्रमण और पोज़िटिव होने की दर जितनी बतायी जा रही है,उसके मुक़ाबले यह संख्या बहुत ज़्यादा हो सकती है।

इसके अलावा, वरिष्ठ डॉक्टर बताते हैं कि बुनियादी ढांचे के बिना ही जल्दबाज़ी में कंटेनमेंट ज़ोन बनाये जा रहे हैं। डॉ गुमटा ने कहा,"जनवरी के आख़िर तक की अवधि अहम है; अगर हम निगरानी बढ़ा सकते हैं और उपचार सुविधाओं को बढ़ा सकते हैं, तो हमारे पास फ़रवरी के मध्य तक राहत की सांस लेने का आधार हो सकता हैं।"  

कलकत्ता यूनिवर्सिटी के बालीगंज कैंपस में ज़ूलॉजी पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर पार्थिब बसु  ने न्यूज़क्लिक को यह बताने में कोई क़सर नहीं छोड़ते हैं कि चिंता पैदा करने वाली इस स्थिति के लिए अधिकारी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि जिन परिस्थितियों में सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील मुद्दे से निपटने के उपायों को तैयार करने में "सख़्त, कड़ा, वैज्ञानिक तर्क" अपनाया जाना चाहिए और पेशेवरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मदद ली जानी चाहिए,उन परिस्थितियों में इन अघिकारियों का रवैया लोकलुभावन होने का रहा है। उन्होंने कहा, "उत्सव और चुनाव प्रचार सभाओं की कोई ज़रूरत नहीं थी। लेकिन, इन्हें होने दिया गया।" जब मामलों में सुधार हो रहा था और प्रतिबंधों में ढील दी जा रही थी,तब शैक्षणिक संस्थानों को फिर से खोलने को सबसे कम प्राथमिकता दी गयी,इसके लिए प्रोफ़ेसर बसु अधिकारियों की अदूरदर्शिता को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनके मुताबिक़, इस तरह के दृष्टिकोण से उन अधिकारियों ने शिक्षा के मक़सद को बहुत नुकसान पहुंचाया है।

वाम मोर्चा शासन के दौरान स्वास्थ्य मंत्री रहे और ख़ुद ही एमबीबीएस की डिग्रीधारी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राज्य सचिव, सुरजकांत मिश्रा ने न्यूज़क्लिक को बताया, "राज्य सरकार तब भी तैयार नहीं थी, जब परिस्थितियां आपातकालीन आधार पर कार्रवाई की योजना को लागू करने के लिहाज़  से तत्परता की ज़रूरत थी। । पर्याप्त रूप से बढ़ते परीक्षण के लिहाज़ से पर्याप्त व्यवस्था अब भी नहीं है। इस सिलसिले में सरकार के पास आरटी-पीसीआर से आगे जाने की भी सुविधायें होनी चाहिए और जहां भी ज़रूरत हो और नये वैरिएंट से निपटने की क्षमता का निर्माण करना होगा। एक बार फिर से टीकाकरण की गति तेज़ करनी होगी।"

यह पूछे जाने पर कि क्या इस संकट से निपटने में दिखायी देने वाली ढिलाई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का राजनीति के लिए ज़्यादा से ज़्यादा समय देने का नतीजा तो नहीं है, मिश्रा ने कहा, "मैं स्वास्थ्य मंत्री था, पंचायत विभाग का प्रभारी भी था। मुझे पता है कि स्वास्थ्य विभाग को चलाने का क्या मतलब होता है। मैंने उनसे उनके पहले कार्यकाल के दौरान पूछा था कि उन्होंने स्वास्थ्य विभाग को सीधे अपने नियंत्रण में रखने का विकल्प क्यों चुना। बतौर मुख्यमंत्री उनके पास कई दूसरे मामले भी होते हैं, जो उनके सीधे नियंत्रण में होते हैं। इससे तो काम का प्रभावित होना तय है।”

अन्य राज्यों के उनके दौरों को लेकर मिश्रा कहते हैं कि मुख्यमंत्री चाहती हैं कि तृणमूल कांग्रेस उन राज्यों में भी अपने पैर जमा ले, और इस तरह, राष्ट्रीय राजनीति में एक दृश्यमान भूमिका के लिए उनकी महत्वाकांक्षा में सहायता मिले। सीपीआई(M) नेता का कहना है, "मैंने उनसे इस मुद्दे को लेकर सरेआम पूछा है कि जैसा कि वह बार-बार कहती हैं कि क्या उनका मिशन भारतीय जनता पार्टी विरोधी वोटों को सही में मज़बूत करना है, या फिर असल में भाजपा विरोधी वोटों को विभाजित करना है।"  

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Tackling Covid Third Wave: Govt's Slackness Leaves Bengal's Doctors, Civil Society Aggrieved

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