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देश को नहीं चाहिए तीसरा लॉकडाउन,  फिर क्या है वैकल्पिक रास्ता?

देश को लॉकडाउन में अधिक समय तक नहीं रखा जा सकता। कोरोना की मौत मरने से बचाने के नाम पर हम भूख से मौत की स्थिति की ओर नहीं बढ़ सकते। मगर, कोरोना के संक्रमण की भी चिंता ज़रूरी है। ऐसे में दोनों चिंताओं में तालमेल बैठाने की ज़रूरत है।
देश को नहीं चाहिए तीसरा लॉकडाउन,  फिर क्या है वैकल्पिक रास्ता?
Image courtesy: DW

क्या देश में लॉकडाउन को जारी रखने की जरूरत हैइस सवाल का जवाब इस एक और प्रश्न के उत्तर में है कि इसका विकल्प क्या हैजब पहली बार देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की थी तब किसी ने इसका विरोध नहीं किया था। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि किसी के पास कोई विकल्प नहीं था। दूसरा लॉकडाउन शुरू होने तक नहीं पूछे जाने की विपक्ष की शिकायत भी दूर हो चुकी थी। 14 अप्रैल से आगे दलीय और राज्यस्तरीय सर्वसम्मति के बाद 3 मई तक के लिए इसका एलान कर दिया गया। अब तीसरा लॉकडाउन सर पर है।

पहले लॉकडाउन के वक्त पीएम मोदी ने जान है तो जहान है का नारा दिया था। इस नारे को अगर सबसे पहले किसी ने चुनौती दी थी तो वे थे दिल्ली में रह रहे प्रवासी मजदूर जो पैदल ही अपने घरों को निकल पड़े। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने नारे में बदलाव करना पड़ा- जान भी, जहान भी। मगर, बांद्रा के मजदूरों ने एक बार फिर जान है तो जहान है के नारे की याद दिला दी। सूरत और कोटा से लेकर देश के दूसरे हिस्सो में भी इसी भावना के साथ लोग सरकार के खिलाफ अपने असंतोष का इज़हार कर रहे हैं। इसमें अपने घर से दूर रह रहे मज़दूर भी हैं, छात्र भी। जिनका कहना है- भूखे मरने से अच्छा है लड़कर मरना। बाहर मरने से अच्छा है घर पर मरना। जान है तभी तो जहान है।

अगर बिहार की संवेदनहीन नीतीश सरकार को छोड़ दें तो कई प्रांतीय सरकारों ने दूसरे प्रदेशों में फंसे अपने-अपने लोगों की चिंता की है। उनके लिए बसें भेजी हैं, उन्हें अपने गृहप्रांत तक पहुंचाया है और क्वारंटीन होने का अहतियात भी बरता है। फिर भी यह सवाल अब तक हल नहीं हुआ है। प्रांतीय और केंद्र सरकारें दावे कर रही हैं कि गरीबों के अकाउन्ट में रकम भेजी गयी है या फिर उन्हें अनाज उपलब्ध कराया गया है। मगर, सच यह है कि मार्च महीने में कोटे का राशन भी करीब 4 करोड़ राशनकार्डधारियों को नहीं मिल पाया है।

भूखे पेट गरीबों को किसी शाम खाना मिल जाता है तो वे अगले दिन का इंतजार बगैर चाय-बिस्किट के करने को मजबूर रहते हैं। एक शाम अधूरा पेट भोजन कर वे कब तक दिन गुजारते रहेंगे, कब तक उनका धीरज नहीं टूटेगा- यह बड़ा सवाल है। इसलिए अगला लॉकडाउन तय करने से पहले गरीबों की चिंता करनी होगी। मगर, सवाल यह भी है कि कोरोना के संक्रमण की भी चिंता जरूरी है। और, ऐसे में दोनों चिंताओं में तालमेल कैसे बिठाया जाए।

लौटते हैं विकल्प के प्रश्न पर। देश में 28 अप्रैल तक कुल कोरोना मरीजों की संख्या 30631 थी। शीर्ष के 5 राज्यों के आंकड़ों को जोड़ें तो वह 20429 होती है। मतलब ये है कि 66.69 प्रतिशत मरीज सिर्फ इन पांच राज्यों में हैं। ये पांच राज्य हैं महाराष्ट्र (8590), गुजरात (3774), दिल्ली (3314), मध्यप्रदेश (2387) और राजस्थान (2364)। इसका मतलब ये है कि हर पांच में से तीन कोरोना मरीज इन पांच राज्यों में ही हैं। फिर लॉकडाउन का फोकस क्यों नहीं इन पांच राज्यों पर ही होक्यों पूरे देश को लॉकडाउन में घसीटा जाएआप चाहें तो राज्यों की सीमाएं सील रखें। मगर अपने-अपने प्रदेशों में सीमित प्रतिबंधों के साथ आर्थिक गतिविधियां और जिन्दगी की गाड़ी को क्यों नहीं पटरी पर आने दिया जाए?

अगर शीर्ष 10 राज्यों के आंकड़ों को जोड़ें तो कोरोना मरीजों की तादाद हो जाती है 26,246. यानी 85.68 प्रतिशत मरीज शीर्ष के 10 राज्यों में ही हैं। इन 10 राज्यों में अंतिम पांच हैं तमिलनाडु (2058), उत्तर प्रदेश (2053), आन्ध्र प्रदेश (1259), तेलंगाना (1009) और पश्चिम बंगाल (697)। अगर देश के 10 राज्यों में 85.68 प्रतिशत कोरोना का संक्रमण है तो इसका मतलब है कि सबसे ज्यादा चिंता या फोकस इन्हीं 10 राज्यों में करना चाहिए। बाकी राज्यों को संक्रमण से बचाने का प्रयत्न होना चाहिए जिसके लिए उन राज्यों को आइसोलेशन में डाला जाए न कि लॉकडाउन में?

बात साफ़ है कि वैसे राज्यों को लॉकडाउन से मुक्ति मिलनी ही चाहिए जहां कोरोना का संक्रमण नाममात्र का है। उन राज्यों में कोरोना नहीं आने देने की रणनीति पर काम करना चाहिए। वहीं, जिन राज्यों में अधिक संक्रमण है वहां कोरोना से निपटने की आक्रामक नीति जरूरी है। इसमें ज़ोन के हिसाब से बांटना, हॉटस्पॉट चुनना, क्वारंटीन करना, मेडिकल के स्तर को ठीक करना तमाम बातें शामिल हैं। लॉकडाउन भी इन राज्यों में जारी रह सकता है। इसका आकलन केंद्र और राज्य की सरकारें मिलकर करें।

राज्य के अलावा हम कोरोना के संक्रमण को शहरों के हिसाब से भी देख सकते हैं। इससे हम और अधिक फोकस होकर लॉकडाउन का विकल्प खोज निकालेंगे। देश के पांच बड़े शहरों मुंबई (5776), दिल्ली (3314), अहमदाबाद (2542), इंदौर (1372) और पुणे (1099) में कुल 14,103 कोरोना के मरीज हैं। देश में कुल मरीजों से तुलना करें तो केवल इन 5 शहरों में 46.04% कोरोना के मरीज हैं। अगर इन पांच शहरों को सख्त लॉकडाउन में रखा जाए, तो बाकी शहरों को भी हम इससे बचा सकते हैं और सर्वव्यापी लॉकडाउन से बचने का रास्ता निकाल सकते हैं।

ऐसे शहरों की गिनती थोड़ी बढ़ाते हुए अगर क्रमवार 5 और शहरों को जोड़ें तो जयपुर (859), थाणे (752), चेन्नई (678), सूरत (570) और हैदराबाद (548) मिलकर टॉप टेन के शहरों में कोरोना मरीजों की संख्या हो जाती है 17510. देश में कुल 30631 मरीजों से तुलना करें तो इन दस शहरों के मरीजों की हिस्सेदारी हो जाती है 57.16 प्रतिशत।

टॉप 10 शहर में कोरोना मरीज

{लेख लिखे जाने (28 अप्रैल) तक}

मुंबई     5776

दिल्ली    3314

अहमदाबाद 2542

इंदौर     1372

पुणे-          1099

जयपुर     859

थाणे     752

चेन्नई    678

सूरत     570

हैदराबाद    548

थोड़ी और मेहनत कर लेते हैं। अगर 10 और शहरों की गिनती करें तो भोपाल (458), आगरा (401), जोधपुर (400), करनूल (332), वडोदरा (255), गुंटूर (254), कृष्णा (223), कानपुर (205), लखनऊ (201) और (कोटा 189) में कुल कोरोना मरीजों की संख्या है 2918. इस तरह शीर्ष 20 शहरों में कोरोना मरीजों की संख्या हो जाती है 20428. प्रतिशत रूप मे देखें तो देश के कोरोना मरीजों में टॉप 20 शहरों की हिस्सेदारी 66.69 प्रतिशत है।

अगर हम 100 से ज्यादा कोरोना मरीजों वाले 19 अतिरिक्त शहरों को भी जोड़ लें तो वे हैं कोलकाता (184), सहारनपुर (181), कासरगोड (176), पालघर (146), नासिक (146), कोयम्बटूर(141), अजमेर (135), बेंगलुरू (135), गौतमबुद्धनगर (134), टोंक (131), नागपुर (127), बांदीपोर (127), उज्जैन (123), नागौर (117), कन्नूर (115), भरतपुर (110), तिरुप्पुर (112), मुरादाबाद (109) और फिरोजाबाद (100). इन 19 शहरों में कुल 2549 कोरोना के मरीज हैं। इस तरह 100 या सौ से ज्यादा कोरोना मरीजों वाले टॉप 39 शहरों में संक्रमण के आंकड़ों को अगर हम जोड़ें तो कुल तादाद हो जाती है 22,977. यह कुल संक्रमण का 75 फीसदी है।

कहने का मतलब यह है कि देश के 39 शहरों को हम हॉटस्पॉट मानते हुए 75 फीसदी कोरोना मरीजों की घेराबंदी कर सकते हैं और इसे बाकी लोगों में फैलने से रोक सकते हैं। हॉटस्पॉट की थ्योरी हम 100 से कम मरीजों के आंकड़े वाले शहरों में भी ले जाएं। टेस्टिंग और अधिक टेस्टिंग के फॉर्मूले को धुआंधार तरीके से लागू करते हुए जहां कहीं भी कोरोना मरीज मिले, उस इलाके को ही सील करते हुए हॉटस्पॉट थ्योरी पर अमल से हम एक रास्ता निकाल सकते हैं। यह रास्ता ही लॉकडाउन का विकल्प होगा।

देश को लॉकडाउन में अधिक समय तक नहीं रखा जा सकता। कोरोना की मौत मरने से बचाने के नाम पर हम भूख से मौत की स्थिति की ओर नहीं बढ़ सकते। बेरोजगारी 26 फीसदी के स्तर पर है। आर्थिक गतिविधियों को बहाल करना बहुत जरूरी है। किसानों की हालत सुधारने के लिए खेतों में खड़ी फसल की रक्षा भी उतनी ही अहमियत रखती है। इसके लिए भी लॉकडाउन खोलना होगा। मगर, बगैर तैयारी के अनियोजित लॉकडाउन खोलना भी लॉकडाउन लागू करने की तरह ग़लत फैसला होगा। इसलिए विकल्प पर काम करते हुए इस पर आगे बढ़ना ही रास्ता है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

 

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