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बंगाल: जंगल महल में बीजेपी/टीएमसी के जातिगत राजनीति के ख़िलाफ़ लोग हुए एकजुट

वोट देने के लिए घर वापस आए प्रवासी मज़दूर वाम मोर्चा के उम्मीदवारों के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
Bengal
बांकुड़ा जिले के हिरबंध ब्लॉक के झरियाकोचा गांव में बांकुड़ा निर्वाचन क्षेत्र के लिए सीपीआई (एम) उम्मीदवार के समर्थन में प्रचार करते प्रवासी मज़दूर।

बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक, जो अपने परिवारों से हजारों किलोमीटर दूर काम करने गए हुए थे, कुछ दिनों के लिए वापस लौट आए हैं, और अभी कई लोग रास्ते में हैं। वे वोट डालने के लिए अपने गांव वापस आये हैं। अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करने के अलावा, इनमें से कई प्रवासी श्रमिक, जिनमें से अधिकांश 40 वर्ष से कम उम्र के हैं, चुनाव अभियान में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं। जंगल महल में 25 मई को मतदान होगा।

कई प्रवासी श्रमिकों को अपने पैतृक गांवों में लाल झंडा थामे हुए वाम मोर्चा के उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार गतिविधियों में शामिल होते हुए देखा जा सकता है। उनमें से कुछ ने रोजगार के तलाश में पलायन करने के अपने अनुभवों के बारे में बताया, और कोविड-19 के दौरान उठाई गई कठिनाइयों को याद किया जब उन्हें लगा कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। उस समय लाल झंडे ने जो एकजुटता दिखाई उसकी आज सराहना की जाती है।

उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र और बंगाल सरकारों ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर महामारी के दौरान सहायता देने के बजाय उनका मज़ाक उड़ाया था। वे अभियान में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं, और वे बांकुरा, बिष्णुपुर, झाड़ग्राम, पुरुलिया और मेदिनीपुर संसदीय क्षेत्रों के विभिन्न शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अपने नेरेटिव को साझा करते हैं।

स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार भाजपा और टीएमसी बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों को देख आश्चर्यचकित हैं, जो अब तक बड़े पैमाने पर गैर-राजनीतिक थे, अब वे सीपीआई (एम) के बैनर तले चुनावी अभियान में सक्रिय रूप से शामिल हैं।

वर्षों से कई राजनीतिक रैलियों और सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों में अपने दावों के बावजूद, दोनों दल इन क्षेत्रों में किसी भी महत्वपूर्ण विकास कार्यों को बताने में असमर्थ हैं। इसके अलावा, वे लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए कोई विश्वसनीय वादा करने में असमर्थ हैं, क्योंकि वे पिछले चुनावी वादों को पूरा करने में विफल रहे हैं। जंगल महल के लोग इन अधूरे वादों के लिए जवाबदेही की मांग कर रहे हैं।

वोट अभियान जंगलमहल

भाजपा और टीएमसी दोनों, जनता की मांगों के इर्द-गिर्द बनी एकता को तोड़ने के लिए जंगल महल में विभाजनकारी राजनीति का सहारा ले रहे हैं। कुछ स्थानीय कार्यकर्ताओं ने कहा, दोनों अपने अभियानों के दौरान जाति की राजनीति के मुद्दे को राजनीतिक चर्चा में शामिल कर रहे हैं।

जंगल महल क्षेत्र कई जातीय समुदायों का घर है जो इस विशाल और सांस्कृतिक रूप से विविध वन क्षेत्र में दशकों से सह-अस्तित्व में हैं। हालांकि, विभाजन की एक कहानी को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसमें दोनों सत्तारूढ़ दल आदिवासी और कुर्मी समुदायों के बीच कलह के बीज बोने का प्रयास कर रहे हैं, और कहा जा रहा है कि एक समुदाय का विकास दूसरे की वजह से रुका हुआ है। इसके परिणामस्वरूप शत्रुता का माहौल बन गया है, इन समुदायों के हजारों हाशिए पर रहने वाले व्यक्ति अनजाने में उनके प्रचार का शिकार बन गए हैं। आजीविका के गंभीर मुद्दे राजनीतिक पैंतरेबाजी की भेंट चढ़ रहे हैं।

निस्संदेह, जंगल महल में आगामी चुनाव चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में हो रहा है, जो आज़ादी के बाद के समय में अभूतपूर्व है।

कोविड के दौरान हजारों युवाओं ने पलायन क्यों किया?

“मैं अपनी पत्नी के साथ राउरकेला से 300 किमी साइकिल चलाकर बांकुरा के रानीबांध स्थित अपने पैतृक गांव लोड्डा पहुंचा। हमने दो दिनों तक लगातार साइकिल चलाई, पैसे की कमी के कारण केवल बिस्कुट और पानी पर ज़िंदा रहे। एक साथी फैक्ट्री कर्मचारी से 600 रुपये उधार लेकर, मैंने घर लौटने के लिए एक पुरानी साइकिल खरीदी। अगर हम वापस नहीं आये होते तो मैं और मेरी पत्नी दोनों मर गये होते। अगर यहां रोजगार के अवसर होते तो क्या मुझे इतनी दूर काम ढूंढ़ना पड़ता? 35 वर्षीय आदिवासी युवा, तपन सरदार ने कहा की फिर भी, अभी भी नौकरी की कोई संभावना नहीं है, जिससे मुझे फिर से काम के लिए पलायन करना पड़ेगा।"

बांकुड़ा के रानीबांध ब्लॉक अंतर्गत सिंदुरपुर के जगन्नाथ महतो की कहानी तो और भी परेशान करने वाली है। जगन्नाथ और उनके भतीजे जयंत गुजरात के जामनगर में रिलायंस केमिकल हब में काम करते थे। उन्होंने आरोप लगाया कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान फैक्ट्री बंद होने के बावजूद, जो कुछ कर्मचारी घर नहीं लौट सके, उनसे जबरन काम कराया गया। बाहर के लोग इसके बारे में नहीं जान पाए थे।

उनका कहना है कि सबसे दुखद बात यह है कि फैक्ट्री में बॉयलर फट गया, जिसके परिणामस्वरूप 260 श्रमिकों की मौत हो गई, उन्होंने कहा कि मृतकों में जयंत भी शामिल था। जगन्नाथ को कान में गंभीर चोटें आईं और सुनने की शक्ति भी खत्म हो गई थी। वह अपने भतीजे का शव लेने के लिए घर लौट आया। इस त्रासदी के बावजूद, स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसरों की कमी के कारण उन्हें महीनों बाद बेंगलुरु में काम ढूंढना पड़ा।

झाड़ग्राम जिले के बिनपुर 2 ब्लॉक के हरिहरपुर गांव के एक मजदूर जलेश्वर हांसदा ने कहा कि स्थानीय रोजगार के अवसरों की कमी के कारण वह अपने छोटे बेटे खंडू हांसदा के साथ गुजरात में काम करने गए थे। जलेश्वर बीमार पड़ गए और उनकी मृत्यु हो गई, जबकि खांडू वापस नहीं आ पाया है।

वे कहते हैं कि, "अगर मैं हमेशा के लिए घर लौटने का फैसला करता हूं, तो मेरा परिवार अपना भरण-पोषण कैसे करेगा?" हाल ही में, वे गांव लौटे और झाड़ग्राम निर्वाचन क्षेत्र में वाम मोर्चा के उम्मीदवार के लिए प्रचार करना शुरू किया।

सिमुलपाल में जिबन लोढ़ा, झारग्राम जिले के गोपीबल्लवपुर में नयन शिंग, गोबिंदा हांसदा, पुरुलिया के बंदोवन में तन्मय महतो, दिलीप मुदी, शेख कलीमुद्दीन, संजॉय बाउरी, शांतिमय बाउरी, झरियाकोचा गांव में श्रीदाम मुदी, बांकुरा जिले के हिरबंध और कई अन्य प्रवासी श्रमिकों ने अपने कार्यस्थलों पर कम वेतन, अपर्याप्त आवास और चिकित्सा सुविधाओं की अनुपस्थिति सहित कई चुनौतियों पर रोशनी डाली। उनका दावा है कि ठेकेदार उनका शोषण करके भारी मुनाफा कमाते हैं।

जंगल महल क्षेत्रों में लोगों की मुख्य आजीविका आसपास के जंगलों से संसाधन इकट्ठा करना हुआ करती थी। उन्होंने केंदु के पत्ते, बबुई घास, महुआ के फूल और फल, शाल के पत्ते, नीम के फल और अन्य वन उत्पाद एकत्र किए थे। इन वस्तुओं को राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित सहकारी, बड़े आकार की आदिबासी बहुउद्देशीय सोसायटी (एलएएमएस) द्वारा खरीदने की गारंटी दी गई थी। हालांकि, 2011 में टीएमसी के सत्ता में आने के बाद एलएएमएस को बंद कर दिया गया था।

वोट अभियान जंगल महल

सरकारी विभागों में भर्तियां भी काफी समय से बंद हैं। कई स्कूल छात्रावास और माध्यमिक शिक्षा केंद्र (एमएसके) पिछले सात वर्षों से बंद हैं। इसके अलावा, राज्य सरकार के 'उत्सोश्री पोर्टल' के माध्यम से कई पुरुष और महिला शिक्षकों को जंगल महल के स्कूलों से शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित किया गया है। शिक्षकों की कमी के कारण कक्षाएं अनियमित रूप से चलती हैं, जिससे छात्रों को अपनी पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

अविभाजित पश्चिम मेदिनीपुर के पूर्व सभाधिपति पुलिन बिहारी बास्के, रानीबांध बांकुरा के सीटू नेता मधु सूदन महतो और पुरुलिया के किसान नेता रथू शिंग ने इस संवाददाता से बात करते हुए इन सभी मुद्दों पर प्रकाश डाला।

उनके अनुसार, जंगल महल के चार जिलों से लगभग 60,000 युवा प्रवासी मजदूर के रूप में कमा करने चले गए हैं, और उनके परिवार उनके द्वारा भेजे गए पैसे पर निर्भर हैं। वर्तमान में, जंगल महल की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से इन प्रवासी श्रमिकों द्वारा भेजे गए पैसे पर निर्भर है।

रविवार (12 मई, 2024) को बांकुरा के अंतर्गत हिरबंध ब्लॉक के झरियाकोचा गांव में, निवासियों ने प्रवासी श्रमिकों दिलीप मुदी, शेख कलीमुद्दीन और श्रीदाम बाउरी को बांकुरा के वामपंथी उम्मीदवार नीलांजन दासगुप्ता के प्रचार के लिए लाल झंडे के साथ मार्च करते देखा। उन्होंने यह भी कहा कि स्थानीय स्तर पर नौकरी के अवसरों की कमी के कारण उन्हें बाहर काम खोजने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

"कोविड-19 महामारी के दौरान वाम कार्यकर्ताओं ने हमारे परिवारों का समर्थन किया, और पूर्व सीपीआई (एम) सांसद बासुदेब आचार्य के प्रयासों के कारण, हम घर लौटने में सक्षम हुए। हालांकि, हमारे वर्तमान सांसद, सुभाष सरकार, कभी भी हमारे गांव नहीं आए, न ही उन्होंने हमारा हालचाल पूछा, टीएमसी कार्यकर्ताओं या स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों ने भी कोई मदद नहीं की है।

बांकुड़ा निर्वाचन क्षेत्र के वाम मोर्चे के उम्मीदवार नीलांजन दासगुप्ता बांकुड़ा सहकारी कारखाने में बीड़ी श्रमिकों के साथ चुनाव प्रचार कर रहे हैं।

कहा यह गया था कि मुख्यमंत्री ने राज्य से बाहर रहने वाले सभी प्रवासी श्रमिकों को एक रुपये का अनुदान देने का वादा किया था। कलीमुद्दीन ने पूछा, "यह वादा किया गया अनुदान कहां है?" उन्होंने और अन्य प्रवासी श्रमिकों ने अपने अभियान के दौरान कहा कि 'लाल झंडे' के प्रतिनिधि दिल्ली में उनकी समस्याओं को उठाएंगे। "इसलिए, हम लाल झंडा' उम्मीदवार को जीत दिलाने घर-घर जा रहे हैं।''

सीटू से संबद्ध पश्चिम बंगाल प्रवासी श्रमिक यूनियन के राज्य नेता उज्ज्वल सरकार ने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में प्रवासी श्रमिकों से टेलीफोन के ज़रिए संपर्क किया जा रहा है और उनसे पहले अपने-अपने क्षेत्रों में लौटने का आग्रह किया जा रहा है। संगठन सक्रिय रूप से चुनाव से पहले उनकी वापसी की सुविधा प्रदान कर रहा है।

चुनाव प्रचार में बीजेपी, टीएमसी की राजनीति

पिछले संसदीय चुनाव में, भाजपा ने जंगल महल की सभी पांच संसदीय क्षेत्रों में जीत हासिल की थी। इन क्षेत्रों के लोगों ने कहा कि मतदाताओं के एक बड़े हिस्से ने टीएमसी के कथित अत्याचारों से बचने के लिए भाजपा को वोट दिया था। तब यह प्रचार किया गया था कि चूंकि भाजपा केंद्र में सत्ता में है, इसलिए वह टीएमसी के गुंडों के खिलाफ कार्रवाई करेगी और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को मिटाएगी।

इसके अलावा, वाम मोर्चा सरकार के जाने के बाद, आरएसएस ने जंगल महल में सरस्वती विद्यामंदिर और बनोबासी छत्रबास के नाम से कई स्कूल खोले, जिनमें रानीबांध, झिलिमिली, हलुदकनाली, रौतोरा, बारिकुल और खतरा, रायपुर, बांकुरा जिला; झाड़ग्राम जिले में झाड़ग्राम, बेलपहाड़ी, नोयाग्राम और लोधासोली; और पुरुलिया में बंदोवन, जॉयपुर और मनबाजार शामिल हैं।

“टीएमसी सरकार ने उन स्कूलों की वैधता की कोई जांच नहीं की है। इसके बजाय, इन स्कूलों ने स्थानीय टीएमसी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हैं। वामपंथी नेताओं के मुताबिक, पांच साल पहले, आरएसएस ने चतुराई से "आगे राम, पोर बाम" (पहले राम, फिर वामपंथी) के नारे के साथ प्रचार किया, जिससे कुछ व्यक्तियों में भ्रम पैदा हुआ था।”

लोकसभा चुनाव के बाद कुछ ही दिनों में ही यह भ्रम दूर हो गया। हालांकि, स्थानीय लोगों ने कहा कि प्रधानमंत्री के नारे 'सबका साथ, सबका विकास' और बंगाल की मुख्यमंत्री के दावे कि जंगलमहल बेहतर रहा है कोई वास्तविकता नहीं है।

प्रोफेसर और हिरबंध के निवासी चिन्मय सारेन ने संवाददाता को बताया, "लोग निराश हैं।"

झाड़ग्राम जिले के हरिहरपुर के दिबाकर हांसदा, पुरुलिया जिले के बंदोवन के सामाजिक कार्यकर्ता रातू शिंग और बांकुरा के बारीकुल के सेवानिवृत्त शिक्षक बादल चंद्र महतो जैसे सीमांत किसानों ने कहा है कि लोगों की आजीविका में सुधार के लिए कोई पहल नहीं की गई है। बल्कि, दशकों से मौजूद कुछ मौजूदा अवसर भी ख़त्म हो गए हैं।

झाड़ग्राम जिले के बेलपारारी क्षेत्र के सिमुलपाल गांव के मित्तन सबर जैसे बेरोजगार युवाओं ने कहा कि पर्यटक यहां पहाड़ियों और घने जंगलों के सुंदर परिदृश्य की प्रशंसा करने के लिए आते हैं, लेकिन वे जंगल महल के लोगों की गरीबी को भी देखने आते हैं।

रानीबांध और क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित डॉक्टर डॉ. जगदीश महतो कहते हैं, "जंगलमहल में लोग कुपोषण से पीड़ित हैं। अपर्याप्त आय के कारण, वे पौष्टिक भोजन खरीदने में असमर्थ हैं। चिकित्सा देखभाल में घोर लापरवाही है, डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की कमी आम है।"

बांकुरा जिला परिषद के पूर्व सभाधिपति पार्थ प्रतिम मजूमदार ने कहा कि, "टीएमसी और बीजेपी को जवाब देना होगा कि राज्य में मनरेगा और पीएमएवाई जैसी परियोजनाएं क्यों रुकी हुई हैं। टीएमसी ने इन परियोजनाओं को रोकने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ कोई मामला क्यों दर्ज नहीं किया है?" इसी तरह की भावना सारेंगा ब्लॉक के गोयलबाड़ी में कल्याण दुले और जनार्दन बास्के ने व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वे जानना चाहते हैं कि मनरेगा और पीएमएवाई के तहत काम क्यों बंद है और किसी ने भी संतोषजनक जवाब नहीं दिया।

"लोगों का आरोप है कि सत्तारूढ़ भाजपा और टीएमसी दोनों को जंगल महल के लोगों ने चुनौती दी है। उन्होंने गंदी जाति की राजनीति का सहारा लिया है और इस चुनौती के डर से जमीन तैयार कर रहे हैं। जंगल महल क्षेत्र के इन चार जिलों में विभिन्न आदिवासी रहते हैं और संताल, भूमिज, मुंडा, लोधा, सबर, कोरा, पहाड़िया और महली जैसे गैर-आदिवासी भी समुदाय यहां रहते हैं, और वे कई वर्षों से यहां सद्भाव के साथ रह रहे हैं, हालांकि आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल है, लेकिन कुर्मियों को अभी तक यह दर्जा नहीं मिला है और इसके लिए लड़ाई जारी है। बीजेपी और टीएमसी दोनों आदिवासी समुदायों से वादा कर रहे हैं कि अगर कुर्मियों को एसटी का दर्जा मिलता है, तो वे नौकरियों और अन्य अवसरों के आरक्षण को साझा करेंगे, इसके विपरीत, दोनों सत्तारूढ़ दल अनुसूचित जाति के लिए उनकी लड़ाई में मौन रूप से समर्थन कर रहे हैं जनजाति का दर्जा इसके परिणामस्वरूप जंगलमहल में अविश्वास का माहौल बन गया है, क्योंकि इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में आदिवासी और कुर्मी रहते हैं।

जंगल महल इलाके में कई लोग दावा करते हैं कि जहां भाजपा ने धार्मिक तनाव फैलाकर आदिवासी और कुर्मी समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा दिया और इन दो प्रमुख समुदायों का समर्थन हासिल किया, वहीं सत्तारूढ़ टीएमसी कथित तौर पर उन्हीं समुदायों का समर्थन हासिल करने का प्रयास कर रही है। धार्मिक भावनाओं का शोषण करना। टीएमसी सरकार नियमित रूप से कुर्मियों और संथाल समुदाय के पूजा स्थलों पर योगदान देती है।

कई स्थानीय लोगों के अनुसार, कुछ कुर्मी वर्ग कुर्मियों के प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं और विभिन्न स्थानों पर टीएमसी के समर्थन से सार्वजनिक बैठकें करते हैं। टीएमसी पर आदिवासी विकास बोर्ड के नाम पर सरकारी फंड से प्रचार करने का भी आरोप लग रहा है।

दूसरी ओर, भाजपा यह प्रचार कर रही है कि संथाल से ईसाई धर्म अपनाने वालों को आरक्षण लाभ से बाहर रखा जाएगा।

दूसरी ओर, भाजपा यह प्रचार कर रही है कि संथाल से ईसाई धर्म अपनाने वालों को आरक्षण लाभ से बाहर रखा जाएगा।

”आदिवासी अधिकार मंच पश्चिम बंगाल के राज्य सचिव पुलिन बिहारी बास्के ने कहा कि, आरक्षण के ज़रिए इन क्षेत्रों में कितने लोगों को रोजगार मिला है? क्या बीजेपी और टीएमसी ये संख्या बता सकती हैं? यह गरीबों के बीच विभाजन पैदा करने के लिए किया जा रहा है।

रानीबांध की आईसीडीएस (बाल विकास सेवा) कर्मी उषा महतो ने कहा: "हम, गरीब लोग, काम चाहते हैं, जाति और धर्म की राजनीति नहीं। बच्चे, गर्भवती और प्रसूति माताएं गंभीर कुपोषण से पीड़ित हैं। किसी का ध्यान नहीं है, और किसी को परवाह नहीं है।"

भाजपा के बांकुरा उम्मीदवार सुभाष सरकार ने कहा कि वह केंद्र सरकार की जन-उन्मुख परियोजनाओं के लिए प्रचार कर रहे हैं। टीएमसी उम्मीदवार अरूप चक्रवर्ती ने कहा कि वे जंगल महल में ममता बनर्जी के "विकास" कार्यों को लोगों तक पहुंचा रहे हैं।

सीपीआई (एम) के एरिया समिति सचिव मधु सूदन महतो ने कहा कि लोगों ने जंगल महल की गंभीर स्थिति देखी है और आगामी चुनाव में इसका जवाब देंगे।

क्षेत्र के कई लोगों ने इस संवाददाता को बताया कि सीपीआई (एम) के पास वित्तीय संसाधनों, प्रशासनिक शक्ति और मीडिया समर्थन की कमी के बावजूद, कई व्यक्ति, विशेष रूप से युवा और महिलाएं, वाम मोर्चा के उम्मीदवारों का समर्थन करने के लिए अथक अभियान चला रहे थे।

सभी तस्वीरें मधु सूदन चटर्जी द्वारा ली गई हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Bengal: People Unite Against ‘Import’ of Caste Politics by BJP/TMC in Jangal Mahal

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