“क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को पुलिस जस्टिस सिस्टम में तब्दील कर दिया गया है”
पटना: नागरिक सरोकारों और जनतांत्रिक अधिकारों के लिए प्रतिबद्ध संस्था 'सिटीजंस फोरम' की ओर से भारतीय दंड और न्याय संहिताओं में किए गए संशोधनों के खिलाफ नागरिक कन्वेंशन का आयोजन किया गया।
पटना के जनशक्ति परिसर स्थित केदार भवन में हुए इस नागरिक कन्वेंशन को चार सदस्यीय अध्यक्ष मंडली - अनिल कुमार राय, प्रीति सिन्हा, ज्ञान चंद्र भारद्वाज और मदन प्रसाद सिंह ने संचालित किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में सिटीजंस फोरम के संयोजक अनीश अंकुर ने बताया कि " सिटीजंस फोरम के पांच साल हो गए हैं। इन पांच सालों के दौरान देश और दुनिया में जहां भी जनतांत्रिक अधिकारों पर हमले हुए हैं उसे यह फोरम उठाता रहा है। नया कानून थाना को , पुलिस को असीमित अधिकार देता है। यह एक और कॉरपोरेट और पूंजीपतियों को नियंत्रित करने वाले कानूनों को कमजोर बना रहा है तो दूसरी ओर प्रतिरोध का अपराधीकरण करने वाला है। इस लिहाज से अमीर लोगों को राहत और गरीब लोगों को न्याय पाने में मुश्किल खड़ी करने वाला है। "
सिटीजंस फोरम के समन्वय समिति के सदस्य संजय श्याम ने आधार पत्र पढ़ा। आधार पत्र के अनुसार " तीन नए आपराधिक कानून सिर्फ अंग्रेजी नामों को हिंदी में कर रहा है लेकिन औपनिवेशिक विरासत को ठीक उसी प्रकार ढोता है बल्कि गुलामी का नया दस्तावेज है। यह एफ.आई.आर को जटिल प्रक्रिया बनाता है जैसे यह थाना प्रभारी को एफ.आई.आर दर्ज करने में पन्द्रह दिनों तक तक समय मुहैया करा देता है। रिमांड अवधि को साठ दिनों के बदले नब्बे दिनों तक बढ़ा देता है। ऐसे ही कई ऐसे प्रावधान है जो लोकतंत्र विरोधी है।"
पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता और पूर्व पब्लिक प्रौसीक्युटर ( पी.पी) ज्ञानचंद भारद्वाज ने अपने संबोधन में कई न्यायिक उदाहरण देते हुए बताया " क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को पुलिस जस्टिस सिस्टम में तब्दील कर दिया गया। प्रोस्क्यूशन का जो बड़ा काम है उसे इस कानून में कमजोर कर दिया गया है। पुलिस को साक्ष्य संकलन में कोई हस्तक्षेप नहीं होना चहिए लेकिन इस कानून के अनुसार पुलिस यह कर सकती है। एक जुलाई से लागू कानून संयुक्त राष्ट्र संघ की भावना के भी खिलाफ चला जाता है। पुराने कानून में जीरो एफ.आई.आर का कोई प्रावधान नहीं था। यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों को भी धज्जियां उड़ाता है। राजनीतिक सत्ता का जो भी विरोधी होगा उसके खिलाफ क्रिएशन ऑफ एविडेंस का अधिकार दे दिया गया है। जिसको चाहे फंसा दे जिसको कहे छुड़ा दे। पहले पंद्रह दिनों तक ही पुलिस रिमांड पर लिया जा सकता था लेकिन अब चालीस और साठ दिनों तक रिमांड पर ले सकता है। इस प्रकार तो अभियुक्त के भी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। अब जनांदोलन करने वाले लोगों को सोचना होगा। इस कानून के विरोध के स्वर मीडिया के सामने नहीं आ पा रहा है। इसका हर जगह विरोध होना चहिए। गवाही पहले न्यायालय के सामने होती थी लेकिन अब गवाही के काम के लिए थाने को ही नोटोफाई कर दिया गया है। इससे तो न्याय का मौलिक सिद्धांत ही प्रभावित होगा। ऐसी स्थिति में क्या न्याय हो सकता है? पुलिस के माध्यम से न्याय प्रणाली कार्यपालिका के मातहत हो जायेगी। अब आपको पुलिस और न्यायालय दोनों के खिलाफ मोर्चा खोलना पड़ेगा। "
अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन के पटना जिला कमिटी के सदस्य रौशन कुमार के अनुसार " नए आपराधिक कानून को हिंदी में नाम दिया गया है। भारत की विविधता को देखते हुए क्या दक्षिण के राज्यों के लिए हिंदी के नाम स्वीकार होंगे? हथकड़ी लगाने का काम मामूली अपराधों के लिए भी किया गया है। अंग्रेजों के जमाने में अश्वील साहित्य को लेकर जो विक्टोरियन मॉरेलिटी के मानदंड थे यह कानून भी उसे ही सामने लाता है। औपनिवेशिक जमाने के मुख्य बातों को नए कानूनों में बरकरार रखा गया है। इस लिए तीनों नए कानून औपनिवेशिक विरासत को बढ़ाते हुए गुलामी के नए दस्तावेज हैं। "
पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता मदन प्रसाद सिंह ने कहा " मामूली केस में भी सात दिन तक कस्टडी में रख लिया जाता है। इतना ज्यादा पुलिस टॉर्चर किया जाता है कि निर्दोष आदमी भी टूट कर दोष स्वीकार कर लेता है। आजकल कुछ किरानी और एक दो ऑफिसर को बैठाकर कानून बना दिया जा रहा है। उसका क्या परिणाम होगा यह सोचा नहीं जाता है। जो अंग्रेजों का कानून था जिसे हम औपनिवेशिक विरासत कहा जाता है उसे ही लागू कर दिया गया है। अंग्रेजों के कानून में हर पहलू को टच किया गया है। कुछ खास खास जगह पर परिवर्तन कर पुलिस को जो अधिकार दिया गया है वह मनमानी को बढ़ावा दिया गया है।"
सामाजिक कार्यकर्ता सतीश कुमार के अनुसार "नए कानून में रिमांड की अवधि को बढ़ा दिया गया है। कमजोर केस में चालीस दिन और मजबूत केस में साठ दिन तक चला गया है। हथकड़ी पहनाने का अधिकार किसी को भी दे दिया गया है। खतरनाक आदमी को ही नहीं निर्दोष आदमी को भी हथकड़ी लगा देने का अधिकार पुलिस को दे दिया गया है। सामुदायिक सेवा का नया प्रावधान जोड़ दिया गया है।"
सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता अरुण मिश्रा ने नागरिक कन्वेंशन को संबोधित करते हुए कहा " पूंजीपतियों की सत्ता पर अब संकट मंडराने लगा है इस कारण अब लोगों पर दमनकारी कानूनों को लागू करने की कोशिश की जा रही है।अब पुलिस को इतना अधिकार दे दिया गया है कि आपको आतंकवादी बता सकता है, गिरफ्तार कर सकता है। दारोगा किसी भी चीज को गैर कानूनी घोषित कर सकता है।"
सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता गोपाल कृष्ण ने बहस को आगे बढ़ाते हुए कहा "देश में जो अरबतियों की संख्या बढ़ रही है उसके खिलाफ असंतोष को रोकने के लिए ये नए आपराधिक कानून लाए गए हैं। प्राइवेट कंपनियों द्वारा अपने हित में कानून बनाए जा रहे हैं। अब भाषाओं को भी थर्ड डिग्री टॉर्चर दिया जा रहा है। कानून की परिभाषा में बदलाव किया जा रहा है। वह शब्दों के अर्थ तय कर रही है। अभी जिला स्तर पर तीन करोड़ इकतालीस लाख , हाईकोर्ट में सोलह लाख और सुप्रीम कोर्ट में बीस हजार केस पेंडिंग हैं। ऐसे लोगों पर पुराना कानून चलेगा जबकि बाकी लोगों पर नया कानून चलेगा। इस तरह दो तरह के कानून देश में प्रभावी होंगे। अब कंपनियां ही नए कानून और संहिताओं को बनाने का काम कर रही हैं।"
पी.यू.सी.एल , बिहार के महासचिव सरफ़राज ने बताया कि " गृह मंत्री ने कहा है कि नए कानून में मॉब लांचिंग को कानून से अपराध घोषित किया गया है लेकिन उसमें धर्म का पहलू हटा दिया गया है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि भीड़ हिंसा में सबसे अधिक मुसलमानों को शिकार बनाया है। इसके साथ ही यदि किसी लड़के ने अपनी धार्मिक पहचान छुपाकर किसी से शादी कर ली तो उसे बलात्कार की श्रेणी में डाल दिया गया है। लव जिहाद को क्रीमिनलाइज कर दिया गया है। पहले कानून में हर अड़तालीस घंटे पर मेडिकल जांच का प्रावधान था लेकिन अब उसे हटा दिया गया है। ठीक इसी प्रकार सैलिटरी कनफाइनमेंट संबंधी प्रावधान दमनकारी है।"
नागरिक कन्वेंशन को पटना विश्वविद्यालय में लोक प्रशासन के प्राध्यापक प्रो सुधीर कुमार, लेखक, कम्युनिस्ट सेंटर फॉर साइंटिफिक सोशलिज्म के नरेंद्र कुमार, जनकवि आदित्य कमल, जन संस्कृति मंच के अनिल अंशुमन, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता मणिकांत पाठक, शंकर शाह, पटना जिला किसान सभा के संयोजक गोपाल शर्मा, श्रम मुक्ति संगठन के रास बिहारी चौधरी, आदि ने भी संबोधित किया।
इस नागरिक कन्वेंशन में मौजूद प्रमुख लोगों में थे बिहार महिला समाज की निवेदिता झा, रंगकर्मी मोना झा, पत्रकार अभिषेक विद्रोही, कन्हैया, अमरनाथ, प्राच्य प्रभा के संपादक विजय कुमार सिंह , जयप्रकाश ललन, नंदकिशोर सिंह, प्रमोद नंदन, हरेंद्र कुमार, विश्वजीत कुमार, गोपाल शर्मा , राम लखन सिंह, सुधीर कुमार , प्रमोद यादव, जयप्रकाश, रवींद्र कुमार सिन्हा, कन्हैया, सन्यासी रेड, गालिब खान, उदयन आदि मौजूद रहे।
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