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BBC की डॉक्यूमेंट्री देखने की ज़िद या फिर फ़्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन का हक़?

देशभर के विश्वविद्यालय में गुजरात दंगों पर बनी BBC की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय में भी आज स्क्रीनिंग की मांग पर प्रशासन ने सख़्ती से किया इनकार कर दिया। अंबेडकर विश्वविद्यालय में भी इसे लेकर हंगामा हुआ है।
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आज की तारीख़ में देश में हर तरफ़ दो ही फ़िल्मों की चर्चा है। एक है शाहरुख़ ख़ान की फ़िल्म 'पठान और दूसरी BBC की डॉक्यूमेंट्री 'The Modi Question', इस डॉक्यूमेंट्री के दो एपिसोड रिलीज़ किए गए हैं। बात 'पठान' की करें तो सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक इस फ़िल्म का विरोध दिखाई दिया लेकिन जब फ़िल्म पर्दे पर पहुंची तो ये साबित हो गया कि नफ़रत कभी भी जीत नहीं सकती और शाहरुख़ 'मोहब्बत के किंग' है। जिस दौर में इस फ़िल्म ने बॉक्स ऑफ़िस पर धमाल मचाया वो साबित करता है कि नफ़रत के दौर में अब भी कहीं उम्मीद बची है।

वहीं 2002 में गुजरात दंगों पर बनी BBC की डॉक्यूमेंट्री : The Modi Question पर भी हंगामा शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। इस डॉक्यूमेंट्री का दूसरा एपिसोड भी जारी कर दिया गया। हालांकि भारत सरकार की तरफ से रोक लगाने की कोशिश के बीच तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इससे जुड़े ट्वीट, पोस्ट और लिंक्स को रिस्ट्रिक्टेड कर दिया गया है।

दूसरी तरफ़ देशभर के विश्वविद्यालयों में BBC की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर अच्छा-ख़ासा बवाल हो रहा है। इसी कड़ी में 26 जनवरी को हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में SFI ने BBC की डॉक्यूमेंट्री के दोनों एपिसोड की एक साथ स्क्रीनिंग की। वहीं इसी यूनिवर्सिटी में ABVP ने भी 'कश्मीर फाइल्स' की स्क्रीनिंग रखी थी। लेकिन उस वक़्त यूनिवर्सिटी में कुछ तनाव की नौबत आ गई जब दोनों ही स्टूडेंट विंग्स ने एक ही वेन्यू पर अपनी-अपनी फ़िल्मों की स्क्रीनिंग रखने का ऐलान कर दिया।

हालांकि इस बाबत जब न्यूज़क्लिक ने SFI के एक सदस्य से बात की तो उनका कहना था कि ''हमने पहले अपना पोस्टर जारी कर दिया था और टकराव पैदा करने की कोशिश के लिए ABVP ने जानबूझ कर उसी वेन्यू पर 'कश्मीर फाइल्स' की स्क्रीनिंग का ऐलान कर दिया। लेकिन हमने अपना वेन्यू बदल लिया क्योंकि जिस तरह से JNU और जामिया में स्क्रीनिंग के दौरान तनाव के हालात बन गए थे इसलिए हमने शांतिपूर्वक स्क्रीनिंग के लिए ये फ़ैसला किया, हालांकि ABVP की तरफ़ से लगातार उकसाने की कोशिश की जाती रही उनकी तरफ़ से नारेबाज़ी की जाती रही लेकिन फिर भी हमने फ़िल्म की स्क्रीनिंग नहीं रोकी और सबसे ख़ास बात थी की हमारी स्क्रीनिंग के दौरान क़रीब 400 से ज़्यादा छात्रों ने हिस्सा लिया जबकि ABVP की स्क्रीनिंग फ्लॉप रही'' । साथ ही उन्होंने कहा कि इस डॉक्यूमेंट्री को देखने पहुंचा हर छात्र लोकतंत्र में फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन के साथ खड़ा है।

वहीं जब न्यूज़क्लिक ने हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के ABVP से जुड़े एक सदस्य से बात की तो उन्होंने इन आरोपों को ग़लत बताया और उनका कहना था कि ''प्रशासन की तरफ से हमारी स्क्रीनिंग को रोकने की कोशिश की गई जिसकी वजह से हमारी स्क्रीनिंग एक घंटे की देरी से शुरू हुई''। हालांकि ABVP ने भी दावा किया की उनकी स्क्रीनिंग सफल रही लेकिन उनका सोशल मीडिया पेज कुछ और ही कहानी बयां कर रहा था।

कैंपस में फ़िल्म को लेकर गर्म हुए माहौल पर हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के एक और छात्र और AISA से जुड़े सदस्य से भी न्यूज़क्लिक ने बात की जिसमें उन्होंने कैंपस में हुई BBC की डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ''अगर किसी पर बैन लगना चाहिए तो वो 'कश्मीर फ़ाइल्स' है वो फ़िल्म एंटी मुस्लिम है। जिस तरह से 'कश्मीर फ़ाइल्स' को प्रमोट किया जा रहा है और BBC की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को रोकने की कोशिश की जा रही है उससे तो यही लग रहा है कि सरकार का सेलेक्टिव एप्रोच है। साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पा रही जबकि नफ़रत फैलाने वाली फ़िल्म का प्रचार कर रही है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि मोदी सरकार देश में मुसलमानों को सुरक्षित महसूस करवाने में असफल साबित हुई है''।

हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में SFI की तरफ से भले ही शांतिपूर्वक BBC की डॉक्यूमेंट्री के दोनों एपिसोड की स्क्रीनिंग कर ली गई हो लेकिन देश की दूसरी यूनिवर्सिटी की कुछ और ही कहानी है।

अब तक देश के दूसरे विश्वविद्यालयों में क्या हुआ?

जामिया में BBC की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग के दौरान ज़बरदस्त हंगामा हुआ, यहां स्क्रीनिंग को रोक दिया गया था और SFI के कुछ छात्रों को हिरासत में ले लिया गया, जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया। हालांकि आज शुक्रवार के दिन कैंपस में सभी क्लाससे को रद्द कर दिया गया है। जामिया की तरफ से जारी एक आदेश में क्लासेस के ना होने की बात कही गई हालांकि बाक़ी के दफ़्तर और डिपार्टमेंट खुले रहेंगे।

JNU में हुआ था बवाल

वहीं दूसरी तरफ़ JNU में तो स्क्रीनिंग के दौरान जमकर बवाल हुआ था, JNUSU की तरफ़ से BBC की स्क्रीनिंग रखी गई थी हालांकि जिसे पहले ही JNU प्रशासन ने सख़्त निर्देशों के साथ रद्द कर दिया था लेकिन JNUSU स्क्रीनिंग पर अड़ा था। लेकिन स्क्रीनिंग के ऐन पहले प्रशासन की तरफ से पूरे कैंपस की लाइट काट दी गई, लेकिन इसके बावजूद छात्रों ने लैपटॉप और मोबाइल पर फ़िल्म देखी, जिस दौरान छात्र फ़िल्म देख रहे थे अचानक पत्थरबाज़ी शुरू हो गई जिसके विरोध में छात्रों ने एक प्रोटेस्ट मार्च निकाला और उस दौरान भी कुछ अज्ञात लोगों ने कुछ छात्रों के साथ मारपीट की।

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दिल्ली विश्वविद्यालय में आज स्क्रीनिंग

JNU और जामिया के बाद आज दिल्ली यूनिवर्सिटी में कुछ स्टूडेंट विंग्स की तरफ से गुजरात दंगों पर बनी BBC की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग रखने की कोशिश की है हालांकि स्क्रीनिंग से पहले ही प्रशासन बहुत सख़्त दिखाई दे रहा है और पहले ही डॉक्यूमेंट्री दिखाने की इजाज़त नहीं दी गई है। साथ ही दिल्ली पुलिस से भी इस मामले में उचित व्यवस्था के लिए कहा गया है।

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वहीं ख़बर आ रही है कि दिल्ली के आंबेडकर यूनिवर्सिटी में भी BBC की डॉक्यूमेंट्री रखी गई थी जहां स्क्रीनिंग से पहले बिजली काट दी गई है जिसके विरोध में छात्रों ने कहा है कि डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए दूसरे तरीक़ों ( लैपटॉप और मोबाइल ) का इस्तेमाल किया जाएगा।

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BBC की डॉक्यूमेंट्री रोकने के लिए जिस तरह से JNU और दूसरे विश्वविद्यालयों में बिजली काटी जा रही है वो सवाल खड़ा करता है कि क्या वाक़ई बिजली काट देने से छात्रों को गुजरात दंगों पर बनी डॉक्यूमेंट्री देखने से रोका जा सकता है? हो सकता है सरकार पाबंदियां लगा कर, छात्रों को हिरासत में लेकर उन्हें डराने की कोशिश करे लेकिन जो फ़िल्म या डॉक्यूमेंट्री पब्लिक डोमेन में आ गई हो क्या सरकार उसे लोगों और ख़ासकर छात्रों को देखने से रोक पाएगी? मौक़े की नजाकत तो यही थी कि अगर इस तरह से सख़्ती ना होती तो शायद छात्र इस तरह से बाग़ी होकर डॉक्यूमेंट्री देखने की ज़िद्द ना करते।

क्या 2024 के चुनाव है वजह?

क्या वाक़ई सरकार BBC की डॉक्यूमेंट्री को एक प्रोपेगेंडा मान कर उसे लोगों से दूर रखना चाहती है? या फिर वजह सिर पर खड़े 2024 के चुनाव है? ऐसे ही कई और सवाल हैं, क्या सरकार इस वक़्त चुनाव में नुकसान के अंदेशे के डर से अपनी इमेज पर किसी भी तरह का कोई दाग़ बर्दाश्त नहीं करना चाहती इसलिए वो इस फ़िल्म को लोगों से दूर रखने की कोशिश कर रही है? या फिर जिस पार्टी में मोदी पार्टी से बड़ा क़द रखते हैं वो पार्टी मोदी की इमेज को किसी भी तरह का नुक़सान नहीं पहुंचाने देने की जुगत में लगी है?

लोकतंत्र में फ़्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन बहुत अहम है

विश्वविद्यालय छात्रों के लिए वो जगह होती है जहां छात्रों को हर तरह के विचारों को व्यक्त करने की जगह के तौर पर जाना जाता है लेकिन अगर उन्हीं जगहों पर छात्रों को जब ये बताया जाएगा कि क्या देखना है, क्या खाना है, क्या पढ़ना है और क्या नहीं सीखना तो छात्र किस तरह से अपनी राय बनाने की काबिलियत का विकास कर पाएंगे? जिस तरह से BBC की डॉक्यूमेंट्री पर रोक लगाने की कोशिश की जा रही है उससे देश के तमाम विश्वविद्यालयों में छात्रों में वो बग़ावती तेवर दिखाई दे रहे हैं जो कह रहे हैं कि हमारे अंदर इतनी सलाहियत है कि ये हम तय सकें कि हमें क्या देखना है और क्या नहीं।

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