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ईरान के मिसाइल और ड्रोन हमलों का रहस्य

तेहरान ने वाशिंगटन को एक बड़ा संदेश दिया है कि ईरान के आसपास के इलाकों में आतंकवादी समूहों का गठबंधन बनाने की उसकी रणनीति का मजबूती से मुकाबला किया जाएगा।
 missile and drone strikes
प्रतीकात्मक तस्‍वीर साभार: रॉपिक्सल

24 घंटे के दौरान तीन देशों - सीरिया, इराक और पाकिस्तान - पर आश्चर्यजनक मिसाइल और ड्रोन हमले और तेहरान द्वारा हमलों की जिम्मेदारी की घोषणा के असाधारण कदम ने वाशिंगटन को एक बहुत बड़ा संदेश दिया है कि आतंकी गठबंधन बनाने की उसकी रणनीति का ईरान के आसपास के इलाके में दृढ़ता से मुकाबला किया जाएगा।

ईरान के खिलाफ अमेरिकी रणनीति नए रूप ले रही है, यह बात 7 अक्टूबर को इजरायल पर हुए हमले और इसके परिणामस्वरूप इलाकाई सुप्रीमो के रूप में उसकी प्रतिष्ठा में गिरावट के बाद सामने आने लगी है। चीन की मध्यस्थता से ईरान-सऊदी मेल-मिलाप और ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र को ब्रिक्स में शामिल करने से अमेरिकी रणनीतिकार घबरा गए हैं। (मेरा विश्लेषण देखें जिसका शीर्षक है अमेरिका ने ईरान के खिलाफ छद्म युद्ध शुरू किया, इंडियन पंचलाइन, 20 नवंबर, 2023।)


इस बात के 2023 के उत्तरार्ध में पहले से ही संकेत मिल रहे थे कि इजरायली के साथ मिलकर अमेरिका ईरान को कमजोर करने और तेल अवीव के पक्ष में क्षेत्रीय संतुलन को बनाने के लिए आतंकवाद को एकमात्र व्यवहार्य साधन के रूप में इस्तेमाल करने की योजना बना रहा था, जो वाशिंगटन की एशिया-प्रशांत को प्राथमिकता देने के लिए गंभीर रूप से महत्वपूर्ण है और अभी भी तेल समृद्ध मध्य पूर्व को नियंत्रित करने की जरूरत है। दरअसल, ईरान के साथ पारंपरिक युद्ध अब अमेरिका के लिए संभव नहीं है, क्योंकि इससे इजरायल के संभावित विनाश का खतरा है।

भविष्य के इतिहासकारों द्वारा 7 अक्टूबर को फिलिस्तीनी प्रतिरोध समूहों द्वारा इज़राइल पर किए गए हमलों के संबंध में अध्ययन, विश्लेषण और गंभीर निष्कर्षों पर पहुंचना निश्चित हैं। क्लासिक सैन्य सिद्धांत के मामले में, वे अमरिकी-इजरायल के युद्ध से पहले प्रतिरोध समूहों द्वारा किया गया हमला था जो आतंकवादी समूह - जैसे आईएसआईएस और मुजाहिदीन-ए-खल्क - प्रतिरोध की धुरी से मेल खाने वाले प्रतिद्वंद्वी मंच में बदल गए थे।

तेहरान यह जनता है कि भेड़ियों के करीब आने से पहले उसकी रणनीतिक मजबूती कितनी जरूरी है। तेहरान मास्को पर दबाव बनाए हुए है कि वह द्विपक्षीय रणनीतिक समझौते में तेजी लाए, लेकिन इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, रूस इसमें समय लगा रहा है। राष्ट्रपति पुतिन के साथ मुलाकात के लिए 7 दिसंबर को राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी की मॉस्को की "कार्यकारी यात्रा" के दौरान एक प्रमुख एजेंडा को समझौते के रूप में अंतिम रूप देना था।

सोमवार को, आखिरकार, रूसी रक्षा मंत्रालय ने एक दुर्लभ बयान में खुलासा किया कि रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने अपने ईरानी समकक्ष मोहम्मद-रेजा अष्टियानी को फोन करके बताया कि मॉस्को समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हो गया है और बयान में कहा कि:

"दोनों पक्षों ने रूसी-ईरानी संबंधों के बुनियादी सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया, जिसमें एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए बिना शर्त सम्मान शामिल है, जिसकी पुष्टि रूस और ईरान के बीच प्रमुख अंतर-सरकारी संधि में की जाएगी क्योंकि इस दस्तावेज़ को पहले ही अंतिम रूप दिया जा चुका है।"

ईरानी समाचार एजेंसी आईआरएनए के अनुसार, शोइगु ने बताया कि समझौते में ईरान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति रूस की प्रतिबद्धता स्पष्ट रूप से बताई जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि "दोनों मंत्रियों ने क्षेत्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों के महत्व को भी बताया और इस बात पर जोर दिया कि मॉस्को और तेहरान बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था स्थापित करने और संयुक्त राज्य अमेरिका की एकतरफा नीति को नकारने में अपने संयुक्त प्रयास जारी रखेंगे।"

बुधवार को रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने मॉस्को में संवाददाताओं से कहा कि नई संधि रूस और ईरान के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करेगी और उनके संबंधों के सभी आयामों को कवर करेगी। ज़खारोवा ने कहा, "यह दस्तावेज़ न केवल समय पर है, बल्कि इसकी पहले से जरूरत भी थी।"

उन्होंने कहा कि, "मौजूदा संधि पर हस्ताक्षर के बाद, अंतरराष्ट्रीय संदर्भ बदल गया है और दोनों देशों के बीच संबंधों में अभूतपूर्व उछाल आ रहा है।" ज़खारोवा ने कहा कि इस दौरान नई संधि पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है, जिसे उन्होंने दोनों राष्ट्रपतियों के बीच आगामी संपर्कों में से एक बताया है।

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने तास समाचार एजेंसी के हवाले से कहा कि पुतिन और रायसी के बीच बैठक की सटीक तारीख निर्धारित की जानी है। स्पष्टतः, पश्चिम एशिया की भू-राजनीति के लिए बहुत महत्वपूर्ण, जो कुछ हमारी आँखों के सामने घटित हो रहा है।

यह कहने काफी होगा, कि बुधवार को आतंकवादी ठिकानों के खिलाफ ईरान के मिसाइल और ड्रोन हमले नए क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिवेश में आत्मरक्षा में कार्य करने की उसकी दृढ़ता का एक ज्वलंत प्रदर्शन हैं। ईरान के तथाकथित "प्रॉक्सी" युद्ध - चाहे वह हिजबुल्लाह हो या हौथिस – वे अब इतने समझदार हैं, जो प्रतिरोध की धुरी के भीतर अपनी रणनीतिक स्थिति तय करेंगे। उन्हें तेहरान से जीवन-समर्थन प्रणाली की आवश्यकता नहीं है। एंग्लो-सैक्सन रणनीतिकारों को इस नई वास्तविकता का आदी होने में कुछ समय लग सकता है, लेकिन अंततः वे ऐसा करेंगे।

स्पष्ट रूप से, ईरान के मिसाइल और ड्रोन हमलों को केवल आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के रूप में मानना इसका कम आंकलन करना होगा। बलूचिस्तान पर हमले के संबंध में भी, दिलचस्प बात यह है कि यह सीओएएस जनरल असीम मुनीर की दिसंबर के मध्य में वाशिंगटन की सप्ताह भर की यात्रा के एक महीने के भीतर हुई थी।

मुनीर ने यात्रा के दौरान वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों से मुलाकात की, जिनमें विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन, अमेरिकी सेना के ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल चार्ल्स क्यू ब्राउन और अमेरिकी उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जोनाथन फाइनर - और निश्चित रूप से, निस्संदेह राज्य की विक्टोरिया नूलैंड, अवर सचिव शामिल थीं जो बाइडेन प्रशासन की नवरूढ़िवादी नीतियों के पीछे प्रेरक शक्ति हैं।


मुनीर ने अमरिका के दौरे के बाद 15 दिसंबर को इस्लामाबाद में एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि पाकिस्तान और अमेरिका "परस्पर लाभप्रद" संबंधों के लिए "बातचीत बढ़ाने का इरादा रखते हैं"। इसमें कहा गया है कि दोनों पक्षों ने इलाके में चल रहे संघर्षों पर चर्चा की और "इस्लामाबाद और वाशिंगटन के बीच बातचीत बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की।"


बयान में कहा गया कि, “बैठकों के दौरान द्विपक्षीय हितों, वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों और चल रहे संघर्षों के मामलों पर चर्चा की गई।” दोनों पक्ष साझा हितों की खोज में द्विपक्षीय सहयोग के संभावित रास्ते तलाशने के लिए जुड़ाव जारी रखने पर सहमत हुए हैं।


बयान में कहा गया है कि दोनों देशों के शीर्ष रक्षा अधिकारियों के बीच बैठक के दौरान, "आतंकवाद विरोधी सहयोग और रक्षा सहयोग को सहयोग के मुख्य क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया।" पाकिस्तानी बयान के अनुसार, मुनीर ने अपनी ओर से क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों और दक्षिण एशिया में रणनीतिक स्थिरता को प्रभावित करने वाले विकास पर "एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझने" के महत्व को रेखांकित किया है।

पाकिस्तान का इस क्षेत्र में अमेरिकी हितों की सेवा करने का एक पूरा इतिहास रहा है और रावलपिंडी में जीएचक्यू इस तरह के सहयोग का सारथी रहा है। आज जो सबूत है वह यह है कि पाकिस्तान में आगामी चुनावों ने बाइडेन प्रशासन को मुनीर के लिए लाल कालीन बिछाने से हतोत्साहित नहीं किया। लेकिन अच्छी बात यह है कि ईरान और पाकिस्तान दोनों एक-दूसरे की हदों को जानते हैं।

अमेरिका के इरादे स्पष्ट हैं: पश्चिम और पूर्व में तेहरान को असफल देशों से मात देना, जिनमें हेरफेर करना आसान है। अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन और इराक के शीर्ष अधिकारियों (यहाँ और यहाँ पढे) के बीच दावोस में जल्दबाजी में आयोजित की गई बैठकें ईरानी हमलों के प्रभाव को रेखांकित करती हैं।

* “(कुर्दिस्तान) द्वारा (इज़राइल को) तेल निर्यात फिर से शुरू करने का महत्व और “संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कुर्दिस्तान क्षेत्र की मजबूत साझेदारी” के लिए वाशिंगटन का समर्थन;

* इराक और सीरिया में अमेरिकी कर्मियों के खिलाफ हमलों को रोकने का महत्व;

* "दीर्घकालिक, टिकाऊ रक्षा साझेदारी के हिस्से के रूप में सुरक्षा सहयोग बढ़ाने" के लिए अमेरिकी प्रतिबद्धता;

* इराकी संप्रभुता के लिए अमेरिकी समर्थन देना; और,

* इराकी प्रधान मंत्री सुदानी को व्हाइट हाउस का “जल्द” दौरा करने के लिए बाइडेन प्रशासन का निमंत्रण महत्वपूर्ण है।

संक्षेप में, सुलिवन ने इराक में अपनी उपस्थिति मजबूत करने के अमेरिका के इरादे को व्यक्त किया है - और पाकिस्तान में भी उसके समान उद्देश्य हैं। वाशिंगटन को यह सुनिश्चित करने के लिए मुनीर पर भरोसा है कि पाकिस्तानी चुनाव के नतीजे चाहे जो भी हों इमरान खान जेल में ही रहने चाहिए।

यह रणनीतिक पुनर्गठजोड ऐसे समय में हो रहा है जब अफगानिस्तान निर्णायक रूप से एंग्लो-अमेरिकी कक्षा से बाहर निकल गया है और सऊदी अरब अमेरिकी पहिए का हिस्सा बनने या उग्रवाद और आतंकवाद की ताकतों के साथ जुड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है।

एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। विचार निजी हैं।

सौजन्यइंडियन पंचलाइन

मूल अंग्रेजी लेख को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

Decoding Iran’s Missile, Drone Strikes

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