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पुलिस फोर्स में कई सुधारों की ज़रूरत, महिलाओं के प्रतिनिधित्व से लेकर खाली पदों पर भर्ती ज़रूरी

डेटा ऑन पुलिस ऑर्गेनाइजेशन और इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी बेहद कम है, वहीं 5 लाख से अधिक रिक्तियां हैं।
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Image courtesy : India Today

देश की आधी आबादी महिलाएं हैं, लेकिन पुलिस में उनकी भागीदारी सिर्फ़ साढ़े दस फ़ीसदी है। देश के 41 प्रतिशत पुलिस थाने ऐसे हैं, जहां एक भी महिला पुलिसकर्मी तैनात नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर महिला पुलिस अधिकारियों का प्रतिशत और भी कम 8.2 है और 11 राज्यों समेत केंद्र-शासित क्षेत्रों में ये 5 प्रतिशत या उससे भी कम है। गृह मंत्रालय के पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो की ओर से जारी डेटा ऑन पुलिस ऑर्गेनाइजेशन और इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के पुलिस बल को महिलाओं की 33% नुमाइंदगी का वांछित लक्ष्य हासिल करने में 33 साल लग जाएंगे।

बता दें कि राष्ट्रीय स्तर पर, देश में महिला पुलिसकर्मियों की हिस्सेदारी 3.3 प्रतिशत से बढ़ाकर 10.5 प्रतिशत करने में 2006 से 2020 तक 15 साल लग गए। हालांकि अभी भी देश का एक भी राज्य पुलिस फोर्स में महिलाओं के लिए आरक्षित पदों पर भर्ती का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाया है। रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु की पुलिस फोर्स में महिलाओं की सबसे ज्यादा 19.4% हिस्सेदारी है, तो वहीं 6.3 प्रतिशत के साथ अरुणाचल प्रदेश में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या सबसे कम है। जिसके बाद झारखंड और मध्य प्रदेश हैं जहां दोनों में ये 6.6 प्रतिशत है।

क्या खास है इस रिपोर्ट में?

द इंडिया जस्टिस रिपोर्ट, पुलिस: इम्प्रूवमेंट, शॉर्टफॉल एंड नेशनल ट्रेंड्स-एन एनालिसिस ऑफ डाटा ऑन पुलिस ऑर्गेनाइजेशन 2021 के अनुसार देश में पुलिसिंग पर प्रति व्यक्ति खर्च साल 2020 में 1039 रुपए तक हो गया, जो 2010 में 445 रुपए ही था। यानी 10 साल में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है। मगर अब भी देश के हर तीसरे थाने में कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं है। यही नहीं, देश में 841 लोगों पर महज़ एक पुलिसकर्मी है, पुलिस फोर्स में 21.4% पद खाली पड़े हैं। इतना ही नहीं, 17,233 थानों में से 10,165 में ही वुमन हेल्प डेस्क है। एकमात्र त्रिपुरा के सभी थानों में वुमन हेल्प डेस्क है।

रिपोर्ट के मुताबिक बिहार और हिमाचल प्रदेश जैसे सूबों में पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी में तेजी से गिरावट देखी गई है- 2019 में बिहार में 25.3 प्रतिशत आरक्षण था, जो 2020 में घटकर 17.4 प्रतिशत रह गया, जबकि हिमाचल प्रदेश में भी ये प्रतिशत 2019 में 19.2 से गिरकर 2020 में 13.5 पर आ गया। आईजेआर में कहा गया है कि पुलिस बल में जिस रफ्तार से महिलाएं बढ़ रही हैं, उससे 33% तक पहुंचने में देश को 33 साल लगेंगे।

आईजेआर की मानें तो राष्ट्रीय स्तर पर महिला पुलिस अधिकारियों का प्रतिशत बहुत कम है। जहां तमिलनाडु और मिजोरम में 20.2 प्रतिशत के साथ महिला पुलिस अधिकारियों की संख्या सबसे अधिक है वहीं जम्मू-कश्मीर में ये सबसे कम 2 प्रतिशत है। केरल में ये संख्या 3 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 4.2 प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लक्षद्वीप में जहां कुल 18 पुलिस अधिकारी हैं, वहां कोई महिला अधिकारी नहीं है।

पुलिस बल में 5 लाख से अधिक रिक्तियां

रिपोर्ट में कहा गया कि जनवरी 2021 तक भारतीय पुलिस बल में 5.62 लाख रिक्तियां थीं। 2010 से 2020 के बीच पुलिस की कुल संख्या में 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जो 15.6 लाख से बढ़कर 20.7 लाख पहुंच गई लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि सिपाहियों और अधिकारियों के पदों पर ये रिक्तियां स्थिर बनी हुई हैं।

बिहार में कुल रिक्तियों की संख्या सबसे अधिक 41.8 प्रतिशत और उत्तराखंड में 6.8 प्रतिशत है। जहां तेलंगाना में 38 प्रतिशत से 28 प्रतिशत पर सबसे तेज गिरावट देखी गई, वहीं बिहार और महाराष्ट्र में रिक्तियों की संख्या बढ़कर, क्रमश: 33.9 से 41.8 और 11.7 से 16.3 हो गई।

रिपोर्ट के अनुसार तेलंगाना, कर्नाटक और केरल केवल तीन राज्य हैं, जो सिपाही और अधिकारी स्तर पर अपनी रिक्तियों को कम कर पाए हैं। उसमें आगे कहा गया कि दूसरी ओर, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और असम में सिपाहियों और अधिकारियों के एक चौथाई से अधिक पद खाली पड़े हैं।

रिपोर्ट के अनुसार भारत के तीन में से केवल एक पुलिस थाने में सीसीटीवी कैमरा लगा है। आईजेआर में कहा गया है कि 2021 की ‘पुलिस संगठन के आंकड़े’ रिपोर्ट में, भारत के 17,233 पुलिस थानों में से 5,396 में एक भी सीसीटीवी कैमरा नहीं हैं। केवल तीन राज्य- ओडिशा, तेलंगाना और पुदुचेरी ऐसे हैं जहां हर पुलिस थाने में कम से कम एक सीसीटीवी मौजूद है, जबकि मणिपुर, लद्दाख और लक्षद्वीप में किसी भी थाने में सीसीटीवी नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में, जहां 894 पुलिस थाने हैं, केवल एक में सीसीटीवी है।

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में एक मामले (परमवीर सिंह सैनी बनाम बलजीत सिंह) में पुलिसकर्मियों द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग का संज्ञान लेते हुए, सभी पुलिस थानों में सीसीटीवी लगाए जाने का आदेश दिया था। लेकिन कोर्ट के आदेश के बावजूद स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं दिख रहा है।

अनुसूचित जाति-जनजाति और अति-पिछड़े वर्गों की भर्ती भी अपने लक्ष्य से पीछे

रिपोर्ट में अधिकतर राज्य अनुसूचित जाति-जनजाति (SC-ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के भर्ती कोटा में पिछड़ रहे हैं। आईजेआर के मुताबिक केवल एक कर्नाटक को छोड़कर सभी सूबे और केंद्र-शासित क्षेत्र, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अति-पिछड़े वर्गों से भर्ती के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। सिपाही स्तर पर, गुजरात एक अकेला राज्य है जिसने अपना लक्ष्य प्राप्त किया है। रिपोर्ट में कहा गया कि जहां 2010 में, पुलिस अधिकारी के स्तर पर छह राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों ने एससी कोटा पूरा कर लिया या उससे आगे निकल गए, वहीं 10 साल बाद 2020 में, केवल पांच राज्यों- गुजरात, मणिपुर, कर्नाटक, गोवा और तमिलनाडु ने या तो उसे पूरा किया या उससे आगे निकल गए।

साल 2010 में पांच राज्यों और केंद्र-शासित क्षेत्रों ने अपने एसटी कोटा को पूरा किया और 2021 में आठ राज्य कोटा तक पहुंचने या उससे आगे बढ़ने में कामयाब हो गए। 2010 में जहां तीन राज्य और यूटी ओबीसी कोटा स्तर तक पहुंच गए, वहीं 2021 में आठ राज्यों ने कोटा को पूरा कर लिया, या उससे अधिक हासिल कर लिया।

देश में 2010 से 2020 के बीच पुलिस फोर्स में एसटी 10.6% से 11.7% और एससी 12.6% से 15.2% ही हो पाए हैं, जबकि OBC 20.8% से बढ़कर 28.8% हो गए। बड़े राज्यों में सबसे ज्यादा 30.5% एससी पुलिसकर्मी पंजाब में और सबसे कम 7.5% केरल में हैं। सबसे अधिक 39.9% एसटी पुलिसवाले छत्तीसगढ़ में और सबसे कम (0) पंजाब में हैं। तमिलनाडु में सर्वाधिक 64.6% पुलिसकर्मी OBC हैं। उत्तराखंड 12.1% के साथ सबसे पीछे हैं।

महिलाओं के 33% टारगेट को पूरा करने में लगेंगे 33 साल

गौरतलब है कि चुनौतियों से भरे इस पेशे में महिलाओं की कम संख्या के कई कारण हैं, लेकिन इन्हें बेहतर बनाने की जिम्मेदारी और सुझाव भी सरकार के पास हैं। इस सिलसिले में भारत सरकार ने 2009 में पुलिस बल में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को 33% तक करने का टारगेट सेट किया था, ताकि पुलिस में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाया जा सके और पुलिस थानों को जेंडर-सेंसेटिव जगह बनाया जा सके। जिससे पुलिस की छवि बेहतर हो, महिलाओं की सुरक्षा को पुख़्ता किया जा सके और उनके ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों पर और बेहतर तरीक़े से लगाम लगाई जा सके। केंद्र शासित प्रदेशों के अलावा नौ राज्यों ने इस 33% आरक्षण के मॉडल को अपनाया। इसके बाद 2013 में भारत के गृह मंत्रालय ने हर पुलिस थाने में कम से कम तीन महिला सब इंस्पेक्टर और दस महिला पुलिस कॉन्स्टेबल नियुक्त करने की सिफ़ारिश की, ताकि महिला हेल्प डेस्क हर वक़्त चालू रह सके। लेकिन तमाम तरह की इन पहलों के बावजूद पुलिस में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के टारगेट काग़ज़ों तक ही सीमित रहे। असल जमीन पर आज भी सच्चाई टारगेट से कोसो दूर है

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