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पटाख़ों से ज्यादा ज़हर तो दिमाग़ों में है!

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धुएं में उड़ाने वाला #PatakhaTwitter ट्रेंड ने सीधे तौर पर अदालत को चुनौती दे डाली। लेकिन सरकार, प्रशासन सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने में नाकाम रहा।
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Image courtesy : Business Today

उत्तर प्रदेश में कई जगह ऐसी हैं जहां बकरीद पर कुर्बानी नहीं होती। किसी अदालत ने, सरकार ने उन स्थानों पर कुर्बानी न किए जाने का कोई आदेश जारी नहीं किया है, बल्कि ‘सद्भाव’ के लिये गांव के लोगों ने बकरीद पर क़ुर्बानी न किये जाने का ‘समझौता’ किया हुआ है।

यूपी के संत कबीर नगर जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां बकरीद के मौके पर कुर्बानी नहीं होती। बकरीद के एक दिन पहले पुलिस सारे बकरे उठा ले जाती है। संतकबीर नगर जनपद का यह गांव मेंहदावल तहसील के धर्मसिंहवा थानाक्षेत्र में पड़ता है, गांव का नाम मुसहरा है। पुलिस बकरीद के एक दिन पहले ही गांव में पहुंच जाती है और कुर्बानी के बकरों को कब्जे में लेकर गांव के पास बने एक मदरसे या सरकारी स्कूल में कैद कर देती है। त्योहार खत्म होने के तीन दिन बाद बकरे उनके मालिकों को वापस किए जाते हैं।

इस मामले पर जिले के आलाधिकारियों की नज़र रहती है। गांव में कोई हिंसा ना हो इसके लिए पुलिस बकरों को ले आती है ताकि कुर्बानी पर लगी रोक बरकरार रहे। ईद उल अज़हा पर क़ुर्बानी करना मुसलमानों के इस त्योहार का अहम फरीज़ा है, लेकिन इस गांव में ‘समझौते’ के कारण यहां के मुसललान क़ुर्बानी नहीं कर पाते। 

यूपी में ऐसे और भी बहुत इलाक़े, गांव हैं, जहां कोई लिखित समझौता तो नहीं हुआ है, लेकिन सद्भाव की खातिर मुसलमान अपना वाजिब छोड़ने को भी राज़ी हो जाता है।

दिवाली के अवसर पर संतकबीर नगर के मुसहरा गांव के आपसी ‘समझौते’ का ज़िक्र इसलिये किया जा रहा है ताकि बीती रात पटाख़ों के धुएं में उड़ा दिए गए भारतीय उच्चतम न्यायलय के आदेश पर आप पाठकों का ध्यान जाए।

उच्चतम न्यायालय ने पटाख़े जलाने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है, लेकिन इसके बावजूद त्योहार मनाने की सनक के कारण छोड़े गए पटाख़ों से राजधानी दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक बहुत ही खतरनाक श्रेणी में पहुंच गया है और सुबह आसमान में प्रदूषक तत्वों एवं धुएं की मोटी चादर छाई रही।

दुनिया में वायु प्रदूषण नापने वाली सबसे मकबूल वेबसाइट aqicn.in ने 5 नवंबर 2021 को सुबह 6 बजे का दिल्ली के आनंद विहार इलाके का वायु स्तर सूचकांक (AQI) 999 बताया। स्तर मापने का अंतिम मीटर 999 ही है। अभी AQI मापक विज्ञान ने इतनी तरक्की नहीं की है की 999 के ऊपर के स्तर को मापा जा सके। मतलब साफ है हम दुनिया की सबसे ज़हरीली, खतरनाक और वीभत्स वायु में मुश्किल से सांस ले पा रहे हैं।

इसे पढ़ें : दिवाली के बाद दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा हुई ज़हरीली, गले और आंखों में जलन की शिकायतें

जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की सांद्रता 999 प्रति क्यूबिक मीटर पर मापी गयी जबकि पड़ोसी शहर फरीदाबाद, गाजियाबाद, गुड़गांव और नोएडा में यह 400 प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक रही। शून्य से 50 के बीच में वायु गुणवत्ता सूचकांक अच्छा माना जाता है जबकि 51 और 100 के बीच में संतोषजनक' स्थिति, 101 और 200 को 'मध्यम' स्थिति, 201 और 300 को 'खराब' स्थिति, 301 और 400 के बीच 'बहुत खराब' स्थिति और 401 और 500 को 'गंभीर' स्थिति में माना जाता है। 

उक्त आंकड़े सिर्फ दिल्ली एनसीआर के हैं, इसके अलावा देश के अन्य महानगरों की स्थिति क्या होगी, इसका अंदाज़ा भी इसी से लगाया जा सकता है। यह तब हुआ जिस वक़्त दुनिया भर के नेता एक मंच पर इकट्ठा होकर COP-26 में चर्चा कर रहे हैं कि इस धरती को कैसे बचाया जाए! लेकिन पटाखा जलाने की सनक ने वैश्विक मंच की कोशिशों को धता बताते हुए, सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को भी धुआं कर दिया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने पटाख़ों को प्रतिबंधित किया हुआ था। विडंबना यह कि पटाख़ों पर लगे प्रतिबंध को अमलीजामा पहनाने में प्रधानमंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री, प्रशासन सब नाकाम रहे। अब आंखों में जलन, शहर में धुंध छाई हुई है, लेकिन इसकी परवाह कौन करे, बीती रात ही तो पटाख़ों को ‘आस्था’ मानकर जलाया गया है। इस धुंध को दिवाली पर हुआ आतिशबाज़ी से जोड़ें तो उसे ‘हिंदू विरोधी’ करार दे दिया जाएगा। लेकिन कोई यह सवाल नहीं करेगा कि वातावरण दीप जलाकर शुद्ध करने वाला दिवाली का त्योहार कैसे प्रदूषण में बदल दिया गया। 

बीती रात जब दिल्ली में चारों ओर से पटाख़ों की आवाज़ें आ रहीं थीं, ठीक उसी वक्त ट्विटर पर #PatakhaTwitter ट्रेंड चल रहा था। इस ट्रेंड पर भाजपा नेता कपिल मिश्रा दूसरे हिंदुत्ववादी नेता, ज़हरीली फिज़ा करने पर खुद की पीठ थप-थपाते नज़र आए, उन्होंने ट्वीट किया कि “इतने पटाख़े तो पिछले कई सालों में नहीं चले दिल्ली में, तुगलकी फरमानों, अवैज्ञानिक आदेशों की धज्जियां जनता उड़ा रही हैं, जिन्होंने पटाख़े चलाने छोड़ दिये थे वो भी चला रहे है कि हमारे त्योहारों में दखलंदाजी बंद करो Thank You Delhi।” इस हैशटैग पर हज़ारों ट्वीट किये गए।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धुएं में उड़ाने वाला #PatakhaTwitter ट्रेंड ने सीधे तौर पर अदालत को चुनौती दे डाली। लेकिन सरकार, प्रशासन सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने में नाकाम रहा। एक बार फिर संतकबीर नगर के मुसहरा गांव चलते हैं, गांव में सद्भाव बना रहे इसलिये प्रशासन क़ुर्बानी के जानवरों को बकरीद से पहले ही अपने कब्ज़े में ले लेता है। लेकिन इसी प्रशासन में पटाख़ों को ज़ब्त करने की हिम्मत नहीं है।

पहले बहुसंख्यकवाद की चादर ओढ़ कर पाखंड आता है, फिर उस पर घमंड किया जाता है, फिर थियोक्रेसी यानी ' धर्म राज्य' आता है और आखिरकार सब चौपट हो जाता है। अफ़ग़ानिस्तान की इस गलती से हम कुछ सीखेंगे? इस समय हम पाखंड पर घमंड की प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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