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बिहार विधान परिषद में सीट बंटवारे को लेकर दोनों गठबंधनों में मचा घमासान

बिहार में इस वर्ष स्थानीय निकाय प्राधिकार क्षेत्र से आने वाले बिहार विधान परिषद के 24 सदस्यों यानी सीटों के लिए चुनाव होना है, जिसकी अधिसूचना अभी फ़िलहाल जारी नहीं हुई है। 
 Bihar Legislative Council
Image courtesy : Amarujala

उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के  विधानसभा चुनाव के साथ-साथ बिहार में भी राजनतिक तामपान सर्दियों के साथ-साथ ही बढ़ने लगा है। एक तरफ़ जहां सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन के विभिन्न घटक दलों के बीच अलग-अलग विषयों को लेकर ज़बानी जंग चल रही है, तो दूसरी तरफ़ स्थानीय निकाय प्राधिकार क्षेत्र से निर्वाचित होने वाले विधान  पार्षदों के चुनाव को लेकर भी चौसर बिछाने की क़वायद शुरू हो गयी है। बिहार में इस वर्ष स्थानीय निकाय प्राधिकार क्षेत्र से आने वाले बिहार विधान परिषद के 24 सदस्यों यानी सीटों के लिए चुनाव होना है, जिसकी अधिसूचना अभी फ़िलहाल जारी नहीं हुई है। परन्तु  अलग-अलग पार्टियों ने अपनी ओर से इसकी तैयारी अवश्य शुरू कर दी है। गौरतलब रहे कि विधान परिषद की 24 सीटों के लिए ये चुनाव विगत वर्ष ही कराए जाने थे, लेकिन कोरोना के कारण बिहार पंचायत चुनावों को आगे बढ़ाया और इसी वजह से विधान परिषद के ये चुनाव भी समय पर आयोजित नहीं हो पाए थे। 

क्या होती है विधान परिषद

आगे बढ़ने से पहले यह जान लेते हैं कि राज्य विधान परिषद कुछ भारतीय राज्यों में लोकतंत्र की ऊपरी प्रतिनिधि सभा होती है और संविधान का अनुच्छेद 171 के तहत किसी राज्य में विधानसभा के अलावा एक विधान परिषद के गठन का विकल्प भी प्रदान किया गया है। इसके अनुसार किसी भी राज्य विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या के अधिकतम एक तिहाई सदस्य उस राज्य की विधानपरिषद के सदस्य हो सकते हैं। संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा की तरह ही राज्य विधान परिषद के सदस्यों को प्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं द्वारा नही चुना जाता है बल्कि इनका चुनाव अप्रत्यक्ष होता है और कुछ सदस्य राज्यपाल के द्वारा सीधे मनोनित किए जाते हैं। विधान परिषद सदस्य का कार्यकाल भी राज्यसभा सदस्यों की तरह 6 वर्ष का होता है जहां प्रत्येक दो वर्ष की अवधि पर इसके एक-तिहाई सदस्य कार्यनिवृत्त हो जाते हैं। अभी देश मे छह राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में राज्य विधान परिषद हैं जब के अनुच्छेद 370 हटाए जाने से पहले जम्मू-कश्मीर में भी विधान परिषद हुआ करती थी। अब जम्मू कश्मीर यूनियन टेरिटरी हो गया है। 

बिहार विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या

पहले बिहार में विधानपरिषद सदस्यों की संख्या 96 थी जोकि झारखंड गठन के बाद 75 हो गई है। इस वक़्त बिहार विधान परिषद में पांच तरह से सदस्यों का चुनाव अथवा मनोनयन होता है। 27 सदस्‍य बिहार विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से चुन कर आते हैं, जिन्हें विधानसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाता है। 6 विधानपरिषद सदस्य शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से, 6 सदस्य स्‍नातक निर्वाचन क्षेत्र से चुन कर आते हैं और विशिष्ट क्षेत्रों से 12 सदस्यों को राज्यपाल द्वारा सीधे मनोनीत किया जाता है, जिसकी सिफ़ारिश राज्य सरकार द्वारा भी की जाती है। बाक़ी बचे 24 सदस्यों का चुनाव स्थानीय निकाय प्राधिकार क्षेत्र से होता है।

बिहार पुनर्गठन विधेयक के तहत बिहार विधान परिषद की मौजूदा संख्या का निर्धारण किया गया है, जो अभी पचहत्तर हैं। जैसा कि मैं ऊपर बता चुका हूं कि संविधान के अनुछेद 171 के अनुसार विधान परिषद सदस्यों की संख्या विधानसभा के सदस्यों की अधिकतम एक तिहाई हो सकती है। बिहार में विधानसभा के सदस्यों की संख्या 243 है, तो इस हिसाब से विधान परिषद में 81 सदस्य हो सकते हैं, यानी बिहार विधान परिषद में छह और सीटों की गुंजाइश अभी बाक़ी है। बिहार पुनर्गठन विधेयक में संशोधन के ज़रिए इसे राज्य कैबिनेट के दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित कराए जाने के बाद एमएलसी की सीटें बढ़ाये जाने की मांग केंद्र से की जा सकती है।

एक तथ्य यह भी है कि बिहार बंटवारे के बाद एंग्लो इंडियन समुदाय से मनोनीत होने वाले एक विधान परिषद सदस्य का कोटा झारखंड चला गया और लम्बे समय से इस समुदाय को प्रतिनिधित्व देने की मांग हो रही है। साथ ही साथ अधिवक्‍ताओं, किसानों, खिलाड़ियों, कलाकारों समेत दूसरे वर्ग से प्रतिनिधित्व देने की मांग उठती रहती है। इसलिए क़यास लगाए जा रहे हैं कि सरकार इस दिशा में भी पहल करते हुए परिषद में सदस्य संख्या बढ़ाने की प्रक्रिया को अंतिम रूप देकर प्रस्ताव केंद्र को भेज सकती है।

बिहार में अब एमएलसी के चुनाव क्यों

स्थानीय निकाय प्राधिकार से चुने जाने वाले विधान परिषद सदस्यों को ग्राम पंचायत के मुखिया, वार्ड सदस्य, पंचायत समिति सदस्य, जिला परिषद सदस्य और नगरीय निकाय के सदस्यों द्वारा वोट देकर चुना जाता है। वहीं, शहरी निकाय से नगर पंचायत, नगर परिषद और नगर निगम के निर्वाचित सदस्यों के अलावा कंटोनमेंट बोर्ड के सदस्य भी स्थानीय निर्वाचन क्षेत्र प्राधिकार के माध्यम से निर्वाचित होने वाले सदस्यों का चुनाव करते हैं। इन्हीं के द्वारा चुने जाने वाले 24 विधान परिषद सदस्यों का चुनाव अभी होना है। महत्वपूर्ण ये है कि यह चुनाव विगत वर्ष ही कराए जाने थे क्योंकि इन में से 19 सदस्यों का कार्यकाल 16 जुलाई 2021 को ही समाप्त हो गया था। 3 सदस्य विधान सभा चुनाव लड़ कर विधानसभा में पहुंच गए थे और दो सदस्य का निधन हो गया था। इन्हीं चौबीस सीटों पर विधान परिषद के चुनाव हो रहे हैं। परंतु पिछले साल कोराना के कारण त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव नहीं हो पाया था, जिसका प्रभाव एमएलसी के लिए आयोजित किये जाने वाले इन चुनावों पर भी पड़ा था।

आपको बता दूं कि पिछले वर्ष बिहार में कोरोना के कारण ग्राम पंचायती राज के चुनाव निर्धारित समय पर नहीं कराए जा सके थे और पिछले ग्राम पंचायत जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल भी 15 जून 2021 को ही समाप्त हो गया था। परन्तु उस दौरान कोविड की दूसरी लहर का प्रकोप चरम पर था। इसलिए उस समय बिहार सरकार ने निर्णय लिया था कि चुनाव भले ही न सम्भव न हों पाएं, लेकिन पंचायत जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल नहीं बढ़ाया जाएगा और जब तक दोबारा पंचायत चुनाव नही करा लिए जाते तब तक उनको ख़ारिज भी नहीं किया जाएगा। पंचायती राज अधिनियम 2006 में एक अद्द्यादेश के माध्यम से संशोधन करते हुए सरकार ने एक परामर्शी समिति का गठन किया था। इसमें अधिकारियों और वर्त्तमान पंचायत प्रतिनिधियों को शामिल किया गया था। व्यवस्था की गई थी कि जब तक पंचायत चुनाव नहीं हो जाते हैं, तब तक परामर्शी समिति को ही शक्ति दी जाएंगी और वो जनप्रतिनिधियों के साथ मिलकर ग्राम पंचायत की विकास योजनाओं और कामकाज का क्रियान्वयन करेंगे।

अब जैसा कि  सब जानते हैं कि पिछले साल बिहार में अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर के महीनों में  ग्राम पंचायत के चुनाव सम्पन्न हो गए हैं और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के परिणाम आने के बाद नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधियों के साथ नई ग्राम पंचायती राज व्यवस्था का गठन भी हो चुका है, एवं सभी नए निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को शपथ भी दिला दी गयी है, तो इसलिये अब उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही स्थानीय निकाय प्राधिकरण क्षेत्र से चुने जाने वाले विधानपरिषद सदस्यों के चुनाव के लिए भी जल्द ही बिहार चुनाव आयोग द्वारा अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। 

राजनीतिक गलियारों में ख़बर है कि आगामी मई जून तक नगर निकाय के चुनाव की संभावना है और चुनाव आयोग नगर निकायों के चुनावों से पहले स्थानीय निकाय प्राधिकार कोटे के 24 विधानपरिषद सीटों पर चुनाव सम्पन्न करा लेने की तैयारी कर रहा है। स्थानीय निकाय प्राधिकार कोटे से जिन 24 सीटों पर एमएलसी चुनाव होने हैं, उनमें पटना स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, नालंदा स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, गया सह जहानाबाद सह अरवल स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, औरंगाबाद स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, नवादा स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र,भोजपुर सह बक्सर स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, रोहतास सह कैमूर स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, सारण स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, सीवान स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, गोपालगंज स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, पश्चिम चंपारण स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र शामिल हैं। वहीं, पूर्वी चंपारण स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, मुजफ्फरपुर स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र के साथ ही वैशाली स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र,सीतामढ़ी सह शिवहर स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र,दरभंगा स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, समस्तीपुर स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र और मुंगेर सह जमुई सह लखीसराय सह शेखपुरा स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र में भी चुनाव होने हैं। इसके इलावा बेगूसराय सह खगड़िया स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, सहरसा सह मधेपुरा सह सुपौल स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, भागलपुर सह बांका स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र,मधुबनी स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र, पूर्णिया सह अररिया सह किशनगंज स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र और कटिहार स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र की सीटें भी इन चुनावों में शामिल हैं।

बिहार विधान परिषद के चुनावों में सीट बंटवारे को लेकर बढ़ता हुआ राजनीतिक तापमान

ग़ौरतलब है कि वर्तमान में एमएलसी की 24 सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें से 13 सीट बीजेपी के पास थी, इसलिए बीजेपी अपनी सभी सिटिंग 13 सीट पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही है और जदयू को 11 सीटों का ऑफ़र है। दूसरी ओर, वहीं जेडीयू 50-50 के फार्मूले पर सीटों के बंटवारे के हक़ में है। सीटों के बंटवारे को लेकर भाजपा की तरफ़ से उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने मोर्चा संभाला है, तो जदयू की तरफ़ से शिक्षा मंत्री बिहार सरकार विजय चौधरी अधीकृत किये गए हैं और शनिवार यानी 22 जनवरी को दोनों नेताओं की बातचीत भी हुई है। जेडीयू का कहना है कि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में 50-50 के फार्मूले पर ही सीटों का बंटवारा होता रहा है, इसलिए उसी परंपरा को आगे बढ़ाया जाए। शनिवार को भाजपा की कोर कमेटी की बैठक भी हुई है और बिहार प्रदेश भाजपा ने इससे पहले दिल्ली नेतृत्व राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह को भी 13 सीटों पर विधानपरिषद चुनाव लड़ने के सम्बंध में अवगत करा दिया है। 

दूसरी तरफ, महागठबंधन में आरजेडी इस चुनाव में कांग्रेस को दरकिनार करने के मूड में है, जबकि महागठबंधन होने के नाते कांग्रेस पार्टी की तरफ़ से 7 सीटों का मुतालिबा किया जा रहा है। प्राप्त समाचारों के ज़रिए फ़िलहाल स्तिथि ये है कि आरजेडी सभी 24 सीटों पर चुनाव की तैयारी कर रही है, बल्कि तक़रीबन बीस सीटों पर तो उसने प्रत्याशियों के नाम तक तय कर दिए है। कांग्रेस और राजद के दरमियान भी शनिवार को बैठक होनी थी लेकिन नहीं हो पाई और ऐसा माना जा रहा है कि 27 या 29 तारीख़ को दोनों दलों के बीच बातचीत होगी। सम्भावना है कि उस दिन नेताप्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के साथ-साथ, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव भी विधानपरिषद उम्मीदवारों पर होने वाली चर्चा में मौजूद रहेंगे। कांग्रेस की तरफ़ से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉक्टर मदन मोहन झा,चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष डॉक्टर अखिलेश प्रसाद सिंह और केंद्रीय बिहार प्रभारी भक्तचरण दास उस बैठक में शामिल होंगे।  भाजपा+ जदयू और राजद+ कांग्रेस, दोनों तरफ़ असल भगदड़ छोटे राजनैतिक दल मचाने की फ़िराक में हैं। 

एनडीए में जहां हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के संस्थापक अध्यक्ष एवं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी विधानपरिषद चुनावों के लिए सीट चाहते हैं तो वहीं विकासशील इंसान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश सहनी ने भी एनडीए में 24 सीटों में से 4 सीटों की मांग कर दी है। उधर दिवंगत  रामविलास पासवान के छोटे भाई और राष्ट्रीय लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस ने भी एनडीए कोटे से कम से कम 2 सीटों की मांग की है जिनमे से एक सीट हाजीपुर सह वैशाली स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र की है और दूसरी सीट के बारे में उनका कहना है एनडीए शीर्ष नेतृत्व जो भी एक और सीट देगा उसपर वो लड़ेंगे। पशुपति कुमार पारस इस वक़्त केंद्र में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री भी हैं और हाजीपुर से लोकसभा सांसद हैं। आपको बता दूं कि जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के 4 विधायक हैं और एनडीए में शामिल हैं। मुकेश सहनी बिहार में विधानसभा निर्वाचन कोटे से विधान पार्षद हैं और बिहार सरकार में पशुपालन एवं मत्स्य पालन मंत्री के पद पर हैं। मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी के तीन विधायक हैं जो एनडीए के साथ हैं। दूसरी तरफ़ महागठबंधन में शामिल सीपीआई (माले) भी अपने लिए इन चुनावों में 24 में से 2 सीटों की मांग कर रहा है जिसमें भागलपुर सह बांका स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र और बेगूसराय सह खगड़िया स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र हैं। आपको बता दूं कि भाकपा माले के पास अभी विधानसभा के अंदर बारह सदस्य हैं। बज़ाहिर स्तिथि जितनी सामान्य दिख रही है उतनी सामान्य किसी तरफ़ नही है चाहे भाजपा जदयू हो या राजद कांग्रेस गठबंधन। बल्की एनडीए में ज़्यादा रार मची हुई है। बिहार में शराबबंदी,जातिय जनगणना और सम्राट अशोक एवं औरंगज़ेब प्रकरण पर भाजपा जदयू के प्रदेश इकाइयों में बयान युद्ध चल ही रहे थे कि ताज़ातरीन बहस बिहार के विशेष राज्य के दर्जे को लेकर शुरू हो गयी है और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल एवं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के बीच ज़बानी जंग की ख़बरे आज भी अख़बार की सुर्खियों में हैं। 

दूसरी तरफ़ एनडीए में शामिल मुकेश सहनी तेजस्वी यादव की तारिफ़ के पुल बांध रहे हैं और उन्हें अपना छोटा भाई बता रहे हैं। मुकेश सहनी ने कल साफ़ कर दिया है कि अगर उन्हें चुनावो में चार सीटें नही दी गईं तो वो पूरी की पूरी 24 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारेंगे और यहीं नही आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 में 40 सीटों पर लड़ेंगे। हालांकी बिहार में भाजपा के उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद की तरफ़ से कल ये साफ़ कर दिया गया है के एनडीए में शामिल वीआईपी और हम पार्टी को इन विधानपरिषद चुनाव में एक भी सीट नही दी जाएगी। दूसरी तरफ़ राजद कांग्रेस के दरमियान विगत वर्ष अक्टूबर में हुए विधानसभा की दो सीटों के उपचुनावों मुंगेर ज़िले की तारापुर एवं कुशेश्वर स्थान में अपने अपने प्रत्याशी दिए गए थे जब के कांग्रेस एक एक सीट का बंटवारा मांग रही थी। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं में इस बात को ले कर काफ़ी नाराज़गी है तो दूसरी तरफ़ राजद को लगता है के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 75 सीटों पर चुनाव लड़ाने के कारण तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नहीं बन पाए हैं। ऐसी स्तिथि में ये तो कहा ही जा सकता है कि फिलहाल बिहार में राजनीतिक तापमान भी सामान्य नहीं है, लेकिन यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि स्थानीय निकाय प्राधिकार के विधान परिषद सीटों के लिए राजनीतिक दलों की भूमिका केवल सीटों के बंटवारे तक ही रहती है और असल खेल जुगाड़ मैनेजमेंट की रणनीति पर तय होते हैं जिसके मूल में कास्ट एंड कैश होता है और इसी लिए बिहार में एमएलसी के इन चुनावों के बारे में प्रचलित कहावत है रुपैय्या लड़े एमएलसी..

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, व्यक्त विचार निजी हैं।

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