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तिरछी नज़र: वह आठ नवंबर हम सबको याद रखना चाहिए

कहां आठ नवंबर से पहले की दुख भरी ज़िंदगी और कहां आठ नवंबर के बाद की निश्चिंत ज़िंदगी।
Demonetisation
Image courtesy : Firstpost

उस आठ नवंबर को गुज़रे छह वर्ष बीत चुके हैं। कितनी सुहानी थी वो आठ नवंबर की अंधियारी रात। आठ नवंबर से पहले के सत्तर साल अलग और आठ नवंबर के बाद के छह साल अलग। कोई तुलना ही नहीं की जा सकती है। आम आदमी के जीवन में आठ नवंबर ने जमीन आसमान का फर्क ला दिया। कहां आठ नवंबर से पहले की दुख भरी जिंदगी और कहां आठ नवंबर के बाद की निश्चिंत जिंदगी।

छह वर्ष पहले यानी आठ नवंबर 2016 की रात को आठ बजे सरकार जी ने देश को टेलीविजन पर संबोधित किया। वह मन की बात नहीं थी। मन की बात तो सरकार जी बस रेडियो पर ही करते हैं। जो टीवी पर की गई वह तो काम की बात थी। आठ नवंबर के बाद सरकार जी के इस एक ही मास्टर स्ट्रोक से लोगों का जीवन आराम मय हो गया। जीवन में एक निश्चिंतता आ गई।

आठ नवंबर को सरकार जी ने एक ही झटके में हजार और पांच सौ के नोटों का खात्मा कर दिया। सबको अपने नोट बैंकों में जमा कराने पड़े। लोगों का सफेद तो सफेद, काला भी, सारा धन बैंकों में जमा हो गया। लोग भी निश्चिंत हुए कि घर में चोरी-डकैती की चिंता नहीं। अब जिसे भी चोरी करनी है, बैंकों में ही करे। और सेठ लोगों ने बैंकों में चोरी की भी। चोरी की और ताल ठोक कर की, सरे आम की। सरकार जी की आंख के नीचे की। चोरी क्या, डकैती की।

सरकार जी की आठ नवंबर की इस एक घोषणा से लोगों का जीवन सुखमय हो गया। नकली नोट तो मानो बाज़ार से एक दम ही गायब हो गए। नोट लो, उसे चैक करो, वाटर मार्क देखो, गांधी जी की फोटो देखो, बीच की लाइन देखो, सारी टेंशन खत्म। नकली नोट तो ऐसे खत्म हुए कि आज तक नहीं आए हैं। आपको नकली नोट कहीं दिखता है भला। नकली नोट खुद से डर रहे हैं कि अगर दुबारा से आ गए तो कहीं सरकार जी फिर से नोट बंदी न कर दें।

उस आठ नवंबर के बाद लोगों के जीवन में बहुत ही सहूलियतें हो गईं। आठ नवंबर के बाद, जैसा कि सरकार जी ने कहा था, सारा काला धन समाप्त हो गया है। काला तो छोड़ो, तनिक भी ग्रे धन तक देश में नहीं बचा है। जितना भी धन है, सफेद ही है। और वह भी पिंक कलर के दो हज़ार रुपए के नोट की शक्ल में। यह पिंक रंग के दो हज़ार के नोट वाला सफेद धन इतना सफेद है कि आम लोगों को दिखना तक बंद हो गया है कि कहीं लोगों की आंखें न चुंधिया जाएं, लोग अंधे न हो जाएं। यह दो हज़ार का नोट कहीं दिखाई देता है क्या? यह सारा का सारा तिजोरियों में बंद है।

काला धन ही नहीं, आठ नवंबर के बाद आतंकवाद भी खत्म हो गया है। उस आठ नवंबर के बाद कोई भी आतंकवाद कहीं भी नहीं दिखाई देता है। जितना भी है, अदृश्य है। न तो सरकार को दिखता है और न ही जनता को। आठ नवंबर के बाद तो आतंकवाद पर सिर्फ सरकार का ही हक रह गया है। अब जो भी आतंकवाद करती है, सिर्फ सरकार ही करती है। 

असलियत में तो आठ नवंबर को सरकार जी ने जो घोषणा की वह मनोरंजन की बात थी। बाकी जो कुछ हमें मिला, फोकट में ही मिल गया। टेलीविजन पर तो मनोरंजन ही होता है ना। वहां तो खबरें भी मनोरंजन ही होती हैं। अतः सरकार जी ने जो बात टीवी पर उस आठ नवंबर की रात को कही, वह मनोरंजन की बात थी। वह सरकार जी का बेमिसाल ऐतिहासिक मनोरंजन था। आज भी जब सोचते हैं, पुरानी उस समय की वीडियो देखते हैं, तो यही लगता है कि वह मनोरंजन की ही बात तो थी। बड़े लोगों का, राजाओं महाराजाओं का मनोरंजन ऐसा ही तो होता है जो लोगों को मुश्किल में डालता है।

खैर लोगों को जो मर्जी दिक्कत हुई हो, घर में रखे पैसे बर्बाद हो गए हों पर सरकार जी का तो मनोरंजन ही हुआ। आठ नवंबर के बाद सरकार जी ने चटखारे ले ले कर बोला, हंस कर, ताली बजा कर बोला। नोट बंदी में जिनके पैसे खत्म हो गए, उनका मज़ाक उड़ा कर बोला। जिनके घर में बेटी की शादी है, उनके घर में पैसा न होने वाली मजबूरी पर हंसते हुए बोला। हंसते हुए ही बोला कि अब सारे के सारे पांच सौ और हज़ार रुपए के नोट कागज़ के टुकड़े बन गए हैं। सब कुछ बेशर्मी से बोला।

सरकार जी का मनोरंजन ऐसी मस्त चीजों से ही होता है। बैंकों के आगे लगी लम्बी लम्बी लाइनों से उनका मनोरंजन हुआ। घर में रखा पैसा बर्बाद होने से उनका मनोरंजन हुआ। लोगों की नौकरी जाने से उनका मनोरंजन हुआ। लगता है जीएसटी भी सरकार जी ने अपने मनोरंजन के लिए ही लागू किया था और लॉकडाउन भी मनोरंजन के लिए ही लगाया। तीनों चीजों से ही लम्बी लम्बी लाइनें लगीं, लोगों की नौकरी गई, लोगों को परेशानी हुई। और सरकार जी का मनोरंजन हुआ।

खैर, सरकार जी का तो जो भी मनोरंजन हुआ हो सो तो हुआ ही, आठ नवंबर को लोगों का भी बहुत मनोरंजन हुआ। बहुत सारे लोगों को तो यह सोच सोच कर ही मज़ा आ रहा था कि हम तो बर्बाद हो ही रहे हैं पर सेठ भी बर्बाद हो रहा है। हमारे तो हजारों में जाएंगे पर इन अमीरों के तो करोड़ों में जाएंगे। उस आठ नवंबर को चटखारे लेकर इस मज़े को उठाने में प्रधान सेवक से लेकर गंगू तेली तक, सभी एक जैसे बन गए थे।

आठ नवंबर इतना खास है कि हर खासोआम चीज की वर्षगांठ मनाने वाले सरकार जी भी आठ नवंबर की वर्षगांठ नहीं मनाते हैं। आठ नवंबर को याद नहीं करते हैं। पर आठ नवंबर हमें, आपको, सबको याद रखना चाहिए। एक निरंकुश, निष्ठुर, बेलगाम शासन के अहंकार भरे शासकीय आदेश के लिए याद रखना चाहिए। उन एक सौ पचास के करीब मृत लोगों के लिए याद रखना चाहिए जो लाईनों में तो लगे पर लौट कर घर न आए। लाखों लोगों की गई नौकरी के लिए याद रखना चाहिए। आठ नवंबर शासन की निरंकुशता और बर्बरता के लिए याद रखना चाहिए।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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