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तिरछी नज़र: बोलो, और कितने अच्छे दिन चाहिए...

सरकार जी अच्छे दिन एक बार नहीं लाए हैं बल्कि सरकार जी अच्छे दिन बार बार ला रहे हैं। हर कुछ दिनों बाद पिछले दिनों से ज्यादा अच्छे दिन आ जाते हैं।
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सरकार जी के राज में सब-कुछ अच्छा है। अच्छा ही नहीं, बहुत अच्छा है। और अच्छा होगा क्यों नहीं? सब कुछ महंगा जो है। जो अच्छा है वह महंगा ही होगा और जो महंगा है वह अच्छा ही होगा, यही तो आम धारणा है। महंगी चीज अच्छी होती है और सस्ती खराब, यही तो हम सब सोचते हैं। तो सरकार जी द्वारा लाए गए अच्छे दिन महंगे ही तो होंगे।

सरकार जी चुनाव की रैलियों में नारा लगवाते थे, "अच्छे दिन", हम सब जवाब देते थे "आएंगे"। तो सरकार जी अच्छे दिन ले आए हैं। सरकार जी द्वारा अच्छे दिन लाने की बात कोई जुमला नहीं थी। सरकार जी अच्छे दिन एक बार नहीं लाए हैं बल्कि सरकार जी अच्छे दिन बार बार ला रहे हैं। हर कुछ दिनों बाद पिछले दिनों से ज्यादा अच्छे दिन आ जाते हैं। महंगाई और बढ़ जाती है। अब देखो, वही चावल जो सत्रह जुलाई तक सत्तर रुपये प्रति किलो बिक रहा था, अट्ठारह जुलाई को, चावल पर जीएसटी लागू होने के बाद, चौहत्तर रुपये प्रति किलो मिल रहा है। सरकार जी ने उसी चावल को, सेम टू सेम चावल को और अधिक अच्छा कर दिया है। और सिर्फ चावल को ही नहीं, आटा, दूध, दही, पनीर, जो भी पैकेट में बंद है, सब को और अधिक अच्छा कर दिया है। सब कुछ पहले से अधिक अच्छा कर दिया है।

कहावत है, महंगा रोवे एक बार, सस्ता रोवे बार बार। परन्तु सरकार जी के राज में कहावत ही उलट गई है। अब महंगा बार बार रोता है। और सस्ता, वह क्या रोएगा, सस्ता तो अब होता ही नहीं है। महंगा तो बार बार इसलिए रोता है क्योंकि आज पेट्रोल डीजल के लिए रोता है तो दस दिन बाद फिर रोता है। इस बार रसोई गैस के सिलेंडर के लिए रोता है। कभी सरसों के तेल के लिए रोता है तो कभी अरहर की दाल के लिए रोता है। और अब आटा, चावल, दूध, दही और पनीर के लिए रो रहा है। मुझे तो लगता है कि अब कहावत ही बदल देनी चाहिए। अब कहना चाहिए, अच्छा रोवे बार बार।

सरकार जी अच्छा और सिर्फ अच्छा ही करते हैं। सरकार जी ने जो नहीं किया है, वह भी सिर्फ अच्छे के लिए ही नहीं किया है। अब काला धन वापस लाना और उसे लोगों के खाते में डलवाना जुमला नहीं था। चाहे गृहमंत्री अमित शाह जी ने उसे जुमला कहा हो लेकिन फिर भी वह जुमला नहीं था। भले ही गृहमंत्री जी कहें या कोई और, सरकार जी जुमलेबाज या जुमलाजीवी हरगिज नहीं हैं। कोई भी, चाहे वह सरकार जी के दल का हो या विपक्षी दल का, सरकार जी को जुमला बोलने वाला, जुमले बाज या जुमला जीवी बोले यह मुझे तो बिल्कुल भी पसंद नहीं है। मैं उसे दिल से माफ नहीं कर सकता हूं। 

अब सरकार जी काला धन विदेशों से नहीं लाए हैं तो अच्छे के लिए ही नहीं लाए हैं। मान लो ले आते, अपना वायदा पूरा कर दिया होता, सबके खाते में पंद्रह बीस लाख रुपये भी डलवा भी दिये होते तो क्या होता? 

अगर सबके खाते में पंद्रह बीस लाख रुपये डलवा दिये होते तो यही होता ना कि कुछ लोग गाड़ी खरीद पेट्रोल या डीजल फूंक रहे होते। तो कुछ लोग सोने चांदी के जेवरात बनवा लेते। कुछ तो उन पैसों की दारु पी कर ही पड़े रहते। तो सरकार जी ने अच्छा ही किया ना कि विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस नहीं मंगवाया। अब वहां, विदेश में पड़े-पड़े वह धन 2014 के मुकाबले चौगुना हो गया है। जी हां, जब से सरकार जी ने सरकार सम्हाली है तब से विदेशों में जमा धन चौगुना हो गया है। यहां आ जाता तो बरबाद ही हो जाता ना। बताइए, सरकार जी ने अच्छा किया या नहीं। अब अगले चुनाव में सरकार जी चौगुना धन खातों में डलवाने का वायदा कर सकते हैं। और वापस न ला कर उससे अगले चुनावों तक आठ या दस गुणा कर सकते हैं।

ऐसे ही रोजगार की बात है। सरकार जी ने कहा कि दो करोड़ रोजगार हर साल पैदा करेंगे। यह भी कोई जुमला नहीं था। सरकार जी ने सचमुच में ही खूब रोजगार पैदा किए हैं। हर साल पैदा किए हैं। सरकार जी की नई रोजगार नीति के तहत ही पैदा किए हैं। सरकार जी की सरकार ने ऐसे ऐसे रोजगार पैदा किए हैं जैसे रोजगार पहले की सरकारों ने पैदा ही नहीं किए थे। उनमें से एक रोजगार है भक्ति का रोजगार। 

पहले राम भक्ति का रोजगार पैदा किया। फिर गौभक्त और अब हनुमान भक्त पैदा किए हैं। और अपने भक्त जो पैदा किए हैं सो अलग। जो समझदार थे उन्होंने भक्ति का रोजगार कर खूब पैसा और रूतबा बटोरा और अब भी बटोर रहे हैं। कुछ रामभक्तों ने तो भक्ति में ही अयोध्या में करोड़ों की जमीन का कथित घोटाला तक कर डाला।

वैसे सरकार जी ने ये जो भी जॉब पैदा किए हैं उनमें सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे इस संसार की ही नहीं, अगले संसार की चिंता से भी मुक्त कराते हैं। अब आप बताइए कि अगर सरकार जी ने ट्रेडिशनल रोजगार पैदा कर दिए होते तो इन रोज़गारों की ओर कोई जाता? देश बिना भक्तों के ही रह जाता।

सरकार जी ने एक और रोचक रोजगार के बारे में बात की, पकोड़े बनाने का रोजगार। वह रोजगार की बात नहीं थी, वह तो सरकार जी हिंट दे रहे थे। भविष्य का हिंट। सरकार जी कह रहे थे कि भविष्य में पकोड़े तलने से संबंधित सभी चीजें महंगी होने वाली हैं तो जिन्हें पकोड़े तलने हैं, अभी तल लें। बाद में तो लोग पकोड़े भी नहीं तल पाएंगे। सरकार जी का हिंट समझने वाले समझ गए और जो न समझे वो अनाड़ी हैं। वे अभी तक नासमझ बने हुए हैं। अभी तक महंगा बेसन, महंगा तेल और महंगा ईंधन खरीद रहे हैं और बेवकूफ बन रहे हैं।

खैर, जो भी हो, एक बात तो है ही। सरकार जी जो भी करते हैं, अच्छा ही करते हैं। जो नहीं करते हैं, वह भी अच्छा ही करते हैं। अब महंगाई बढ़ाई तो अच्छा ही किया। जब विदेशों से काला धन वापस नहीं लाए तो भी अच्छा ही किया। और रोजगार नहीं दिए, उसमें तो अच्छा ही अच्छा किया। जो किया, वो भी चंगा, जो नहीं किया, वो भी चंगा। सब कुछ चंगा ही चंगा।

(व्यंग्य स्तंभ तिरछी नज़र के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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