बड़े सरकार तो बड़े सरकार, छोटे सरकार सुभानअल्लाह!

सच में बड़े तेजस्वी लोग हैं हमारे यहां। देश में दिमाग वाले लोगों की कमी नहीं है। कहां से आते हैं इतने जीनियस लोग? और सारे के सारे राजनीति में ही भर जाते हैं।
अभी हाल ही में, छोटे सरकार जी ने, अजी उन्हीं छोटे सरकार जी ने, जो दिल्ली में छोटे सरकार जी हैं। दिल्ली में तो ना, दो दो सरकार जी हैं। एक तो वे सरकार जी हैं जो पूरे देश के सरकार जी हैं और दिल्ली में बैठते हैं। वे बड़े सरकार जी हैं। वे दिल्ली से ही पूरे देश की सरकार चलाते हैं। दूसरे, दिल्ली में छोटे सरकार जी भी हैं। वे भी दिल्ली में ही रहते हैं और दिल्ली राज्य की छोटी सी, आधी अधूरी सरकार चलाते हैं।
हां तो, ये जो छोटे सरकार जी हैं ना, इन्हें एक नई बात सूझी है। देश की उन्नति के लिए, देश की आर्थिक प्रगति के लिए, देश को नम्बर वन बनाने के लिए। उन्होंने कहा है कि देश में चल रहे सभी छोटे-बड़े नोटों पर, वही एक से लेकर दो हजार तक के नोटों पर, एक तरफ तो गांधी जी की तस्वीर है ना, उसे तो ऐसे ही रहने दिया जाए और दूसरी तरफ श्री लक्ष्मी-गणेश जी की तस्वीर भी छापी जाए। ऐसा मौलिक विचार इससे पहले किसी और के दिमाग में नहीं आया था। हां, बस एक भाजपाई स्वामी जी को आया था, लेकिन उनकी बात को उनकी पार्टी में ही कोई सीरियसली नहीं लेता। इनके अलावा इतना जीनियस कोई नहीं। और अगर आया भी होगा तो बेचारा शर्म के मारे बोल नहीं पाया होगा। अपने आप पर ही झेंप गया होगा।
ख़ैर बात छोटे सरकार की। तो अब छोटे सरकार जी यह कार्य स्वयं तो कर नहीं सकते हैं। नोटों का छापने का काम तो बड़े सरकार जी का है। छोटे सरकार जी छापेंगे तो नकली माने जाएंगे। तो उन्होंने इसका सुझाव बड़े सरकार जी को दे दिया है। और बड़े सरकार जी भी हतप्रभ हैं। इतनी अच्छी बात, इतना ओरिजनल आइडिया उनके दिमाग में क्यों नहीं आया। हिन्दू धर्म का उनसे बड़ा ठेकेदार कहां से पैदा हो गया। वे तो मंदिर बनवाते बनवाते, उनका प्रांगण चौड़ा और भव्य करवाते करवाते थक गए, मंदिर मंदिर घूमते थक गए और एक यह है कि एक ही बात बोल कर सारी वाह वाही लूटना चाहता है। हिन्दू धर्म का ठेकेदार बनना चाहता है। यह नहीं चलेगा। हिन्दू धर्म की ठेकेदारी तो सिर्फ बड़े सरकार जी के पास है, उनके दल भाजपा के पास है।
तो वे सब, जो अगर यह बात बड़े सरकार जी कहते, और कहते क्यों, वे तो सीधे कर भी सकते थे, तो उसे मास्टर स्ट्रोक बताते, ऐतिहासिक बताते, हिन्दू धर्म की बहुत बड़ी विजय बताते। और अब जब यह बात छोटे सरकार जी के मुंह से निकली है, तो वे सब उनकी लानत मलामत करने लगे हैं।
यूं तो इस विचार में कोई खराबी नहीं है। एक बार नोटों पर लक्ष्मी-गणेश छप गए तो देश के नेताओं को कुछ नहीं करना पड़ेगा। वित्त मंत्री जी भी आराम से बैठेंगी। वैसे तो वे अब भी कुछ नहीं करती हैं। लेकिन तब तो जो भी कुछ करना होगा, सब लक्ष्मी-गणेश जी ही करेंगे। वे ही रुपए की गिरती कीमतों को सुधारेंगे। वे ही देश की गिरती अर्थव्यवस्था सम्हालेंगे। मंदी आई तो भी उन्हीं की जिम्मेदारी होगी।
और नोटों पर लक्ष्मी गणेश जी की ही क्यों, कॉपी किताबों पर भी सरस्वती जी की फोटो छपनी चाहिए। आखिर छात्र-छात्राओं को भी तो बिना कुछ किए विद्या आनी चाहिए। बिना पढ़े लिखे परीक्षा पास करनी चाहिए। और ये स्कूल, ये कॉलेज, ये सब तो छोटे सरकार जी के कार्यक्षेत्र में ही आते हैं। तो क्यों नहीं, छोटे सरकार जी कम से कम अपनी दिल्ली के छात्र-छात्राओं को सरस्वती देवी की फोटो लगी कॉपी किताबें दे कर विद्या में पारंगत बना देते। जिससे दिल्ली के सभी छात्र-छात्राएं देवी सरस्वती जी की फोटो लगी कॉपी-किताबों से पढ़ कर नीट, जेईई, सीयूईटी, और यूपीएससी की परीक्षाएं उत्तीर्ण कर डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस बन जाएं।
स्कूलों में ही क्यों, क्यों नहीं अस्पतालों में भी छोटे सरकार जी अस्पताल के गेट पर, अस्पतालों के ओपीडी कार्ड पर, धन्वंतरि जी की फोटो लगवा देते। इससे अस्पतालों में आने वाले मरीज, अस्पताल में भर्ती मरीज, सभी बिना डॉक्टरों के देखे, बिना दवाई खाए ठीक हो जाएंगे। अस्पतालों में महंगी मशीनों और डॉक्टरों, नर्सों के खर्चे से भी मुक्ति मिलेगी। हां! आलीशान बिल्डिंगें जरुर बनती रहनी चाहिएं, आखिर उन्हीं से तो कमाई होती है। इलाज तो धन्वंतरि जी की फोटो से ही हो जाएगा।
वर्षों पहले एक ज़ोक, मतलब चुटकुला पढ़ा था। एक विदेशी भारत आता है। वह नास्तिक था। भगवान को नहीं मानता था। भारत भ्रमण करता है। यहां से जाते हुए वह कहता है, 'मैं पहले भगवान को नहीं मानता था। पर अब भारत को देख भगवान पर विश्वास करने लगा हूं। यह भगवान ही तो है जो भारत जैसे देश को चला रहा है'। अब अगर वह विदेशी दुबारा भारत आ जाए तो उसका भगवान पर विश्वास दोगुना हो जाएगा। यह वाला भारत तो सचमुच ही धर्म से चल रहा है। इसे तो सच में ही भगवान चला रहा है। हिन्दू भगवान और हिन्दू देवी देवता।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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