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थमता नहीं भावनाओं के आहत होने का सिलसिला

हमारी भावनाएं अगर ऐसे ही कमजोर होती रहीं तो कुछ ही दिनों में ये इतनी कमजोर हो जाएंगी कि यदि स्कूल के इम्तिहान में राम नाम का कोई छात्र फेल हो गया तो भी हमारी भावनाएं आहत हो जाएंगी। फिर बजरंग दल के लोग मास्टर जी पर चढ़ जाएंगे कि तूने राम को कैसे फेल किया?
satire
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार गूगल

सुबह सुबह ही फोन की घंटी बजी। मैंने फोन उठाया तो दूसरी ओर से गालियों की बौछार शुरू हो गई। मैं समझ गया, कोई भक्त ही होगा। भक्त लोग ही इतनी शालीन भाषा का इस्तेमाल करते हैं।

मैंने पूछा, "क्यों साहब, सुबह सुबह ही इतनी कर्णप्रिय बातें क्यों बोल रहे हो"। 

उत्तर मिला, " … तूने सरकार जी को चोर क्यों लिखा"। 

"मैंने तो सरकार जी को चोर नहीं लिखा"। मैंने उत्तर दिया।

"मां...!" उसने फिर गाली दी, "तूने नहीं लिखा था, चौकीदार चोर है"।

"वह तो मैंने कोई तीन साल पहले लिखा था"। मैंने सफाई सी पेश की। मुझे पता था आजकल क्या चल रहा है। किसी पर भी तीन साल पहले के, चार साल पहले के, लिखे पर, ट्वीट पर केस ठोक दो और गिरफ्तार कर लो। और फिर जेल में बंद रखने के लिए नई नई धाराएं लगाते रहो। अब देखो, जुबेर भाई को 2018 के ट्वीट पर अब गिरफ्तार किया गया है। सब्र करो, नूपुर बहन को भी तीन चार साल बाद 2025-26 में कभी गिरफ्तार कर लिया जाएगा। ऐसी भी क्या जल्दी है।

मैंने उससे कहा, "हां भाई, मैंने तीन साल पहले लिखा था कि चौकीदार चोर है पर मैंने तो वह अपनी कॉलोनी के चौकीदार के लिए लिखा था। वह जागते रहो, जागते रहो बोलता रहता है और हम निश्चिंत सोते रहते हैं। दूसरी ओर वह अपने लोगों से चोरी करवाता रहता है"।

"चुप भैन......"। उसने फिर गंदी सी गाली दी। "तूने हमें चू... समझ रखा है। हमें नहीं पता कौन सा चौकीदार चोर है? देख! तूने हमारी भावनाओं को आहत किया है। जिसके हम भक्त हैं, तूने उसे चोर कहा है। तुझे अंजाम भुगतना पड़ेगा"। यह कह कर उसने फोन बंद कर दिया।

मुझे पता है कि आजकल भावनाएं कितनी कमजोर हो गई है। जरा सी बात पर आहत हो जाती है। आहत होने के बहाने ढूंढती रहती हैं। लगता है पहले ये भावनाएं या तो होती ही नहीं थी, या फिर होती थीं तो बहुत ही मजबूत होती थीं और बात बात पर आहत नहीं होती थीं। परन्तु भगवान राम के जन्मभूमि आंदोलन ने दो नुकसान तो अवश्य ही किये हैं। एक तो हम हिन्दुओं को ही खतरे में बता दिया है और दूसरे हमारी मजबूत भावनाओं को कमजोर कर दिया है। इस आंदोलन से पहले न तो हिन्दू खतरे में थे और न ही हमारी भावनाएं इतनी कमजोर थी कि वह जरा जरा सी बात पर आहत हों।

हमारी भावनाएं अगर ऐसे ही कमजोर होती रहीं तो कुछ ही दिनों में ये इतनी कमजोर हो जाएंगी कि यदि स्कूल के इम्तिहान में राम नाम का कोई छात्र फेल हो गया तो भी हमारी भावनाएं आहत हो जाएंगी। फिर बजरंग दल के लोग मास्टर जी पर चढ़ जाएंगे कि तूने राम को कैसे फेल किया? तूने हमारी भावनाएं कैसे आहत की। मास्टर के बच्चे की यह औकात कि राम नाम के बच्चे को फेल कर दे, हमारी भावनाएं आहत कर दे। इसके बाद मास्टर जी अपनी जान बचाते, जमानत कराते फिरेंगे।

जब हमारी भावनाएं जरा जरा सी भी बात पर आहत होने लगेंगी तब पुलिस वाले भी किसी विष्णु, कृष्ण, शिव, दुर्गा, सीता नाम के अपराधी को गिरफ्तार करने से बचेंगे। क्या पता पुलिस वाले ही भावनाएं आहत करने के अपराध में नप जाएं। मीडिया वाले भी ऐसे किसी अपराधी का नाम छापने से, बोलने से, दिखाने से पहले सौ बार सोचेंगे। कहीं उनके दफ्तर पर ही पथराव न हो जाए। कहीं उनके खिलाफ भी एफआईआर दर्ज न हो जाए। आखिर मामला भावनाओं के आहत होने का जो है।

अदालतों के सामने तो और भी अधिक कठिनाई आ जाएगी। किसी विष्णु, महेश या लक्ष्मी नाम के अपराधी को वे सजा कैसे सुना पाएंगे। तब क्या हिन्दुओं की भावनाएं आहत नहीं हो जाएंगी? इसलिए या तो न्यायाधीश उसे बरी करेंगे, "हालांकि इस कृष्ण नाम के व्यक्ति ने कत्ल किया तो है पर क्योंकि इसका नाम कृष्ण है और हिन्दुओं की भावनाएं आहत न हों इसलिए हम इसे सजा नहीं सुना सकते हैं"। या फिर सजा सुनाने से पहले कृष्ण का नाम बदलेंगे। यानी अपराध लक्ष्मी करेगी, मुकदमा लक्ष्मी पर चलेगा पर सजा नजमा को सुनाई जाएगी। क्योंकि सजा सुनाने से पहले लक्ष्मी का नाम बदलकर नजमा जो रख दिया जाएगा। ऐसे ही महेश के अपराध में अनिल को सजा सुनाई जाएगी। ऐसा अब भी होता है पर ऐसा तब भी होगा और भावनाओं के नाम पर होगा। भावना आहत न हो इसलिए होगा।

और ये भावनाएं आहत होती हैं, भगवान के नाम पर, देवी-देवताओं के नाम पर, अल्लाह के नाम पर, गॉड के नाम पर। या तो हमारे भगवान, देवी-देवता, सब इतने कमजोर हो गए हैं कि बार बार ही आहत होते रहते हैं या फिर भगवान के नाम पर, धर्म और नफ़रत के नाम पर राजनीति करने वाले, इनके नाम पर धर्मांधता फैलाने वाले इतने चालाक हो गए हैं कि वे ही हमें और हमारी भावनाओं को आहत किए रहते हैं।

हे भगवान, या अल्लाह, ओ गॉड, अब तो तेरा ही आसरा है। या तो तू अपने को इतना ही कमजोर बना कर रख कि जरा जरा सी बात पर आहत होता रह या फिर अपने भक्तों को, अपने बंदों को यह समझा दे कि तू इतना मजबूत है कि इतनी छोटी छोटी बातों से क्या आहत होगा, तू तो बड़े से बड़े तूफानों को भी झेल सकता है। इसलिए मजबूत बनो और उसके नाम पर अपनी भावनाओं को इतनी आसानी से आहत न होने दो।

(इस व्यंग्य स्तंभ ‘तिरछी नज़र’ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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