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तिरछी नज़र: चुनाव हों न हों, प्रचार की प्रैक्टिस जारी रहनी चाहिए

वैसे तो सरकार जी को देश में बहुत काम हैं। लेकिन सबसे बड़ा काम तो चुनाव लड़ना ही है। चुनाव अगर न भी हों तो भी चुनाव प्रचार की प्रैक्टिस तो चलती ही रहनी चाहिए।
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फ़ोटो साभार: PTI

जयपुर से एक मित्र का फोन आया। कुशल क्षेम के बाद उसने पूछा, "क्या दिल्ली में कोई चुनाव है"? मैंने कहा, "नहीं कोई चुनाव नहीं है। अभी तो नगर निगम के चुनाव खत्म ही हुए हैं"। "मैं भी यही सोच रहा था, लोकसभा चुनाव तो 2024 में होंगे और विधानसभा चुनाव तो उसके भी बाद हैं। मगर मैंने सोचा, शायद कोई मोहल्ला समितियों के चुनाव हों या फिर रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन वगैरह के चुनाव हों", मित्र बोला।

"मोहल्ला समितियों और रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन आदि के चुनाव तो जब तब चलते ही रहते हैं। वर्ष भर ही चलते रहते हैं, कभी किसी मोहल्ले में तो कभी किसी सोसायटी में। वैसे यह पूछ क्यों रहे हो"? मैंने जिज्ञासा प्रकट की। 

"अरे! कुछ नहीं", उसने कहा। "टीवी पर न्यूज में देखा कि मोदी जी ने दिल्ली में बड़ा भव्य रोड शो किया है। तभी से दिमाग में कुलबुला रहा था। सोचा तुम्हारे से ही पूछा जाए। कौन सा चुनाव है दिल्ली में"?

मित्र का फोन आने के बाद मैंने भी यू ट्यूब पर सरकार जी के दिल्ली के रोड शो खबरें निकाल कर देखीं। गोदी मीडिया के सभी चैनलों पर देखीं। देखा कि वे सभी चैनल जो एक दूसरी तीन हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा को खारिज कर रहे हैं और इस एक किलोमीटर की कार यात्रा को, रोड शो को बढ़ चढ़ कर दिखा रहे हैं। रोड शो बहुत ही भव्य था। सरकार जी हमेशा की तरह यंत्रवत हाथ हिला कर लोगों का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। सरकार जी का हाथ हिलाना इतना यंत्रवत होता कि वह बस कार में सवार होते हैं और लोग हों ना हों, हाथ हिलाने लगते हैं। वैसे मुझे इस रोड शो में बस दो कमियां दिखाई दीं।

एक कमी तो यह दिखाई दी कि सरकार जी ने सिर्फ एक किलोमीटर का रोड शो किया। अभी डेढ़ महीने पहले ही अहमदाबाद में पचास किलोमीटर लम्बा रोड शो किया था। हमारी दिल्ली कोई अहमदाबाद से छोटी है जो एक किलोमीटर का ही रोड शो किया। हमारे सरकार जी, जो सब कुछ रिकॉर्ड तोड़ करते हैं, हर बार नया इतिहास रचते हैं, सब कुछ ऐतिहासिक करते हैं, आखिर इस बार नया रिकॉर्ड बनाने से क्यों चूक गए।

दूसरी कमी यह रही कि मैं ढूंढता रहा, बार बार रोड शो की खबर देखता रहा, रिवाइंड कर कर देखता रहा पर मुझे एंबुलेंस कहीं नहीं दिखाई दी। एंबुलेंस दिखाई देती और सरकार जी उसे रास्ता दे देते तो रोड शो अधिक वास्तविक बनता। अमित शाह जी जरा ध्यान दें। दिल्ली पुलिस से इतनी लापरवाही की उम्मीद नहीं थी कि एक एंबुलेंस का भी इंतजाम न कर सके। लगता है इस मामले में तो राज्य सरकारों के अधीन आने वाली पुलिस ही अधिक सक्षम हैं। इसमें ज़रूर केजरीवाल की कारिस्तानी रही होगी।

वैसे तो सरकार जी को देश में बहुत काम हैं। लेकिन सबसे बड़ा काम तो चुनाव लड़ना ही है। चुनाव अगर न भी हों तो भी चुनाव प्रचार की प्रैक्टिस तो चलती ही रहनी चाहिए। इसलिए सरकार जी और सरकार जी का पूरा मंत्रिमंडल चुनाव लड़ने में, और चुनाव अगर न भी हों तो भी उसकी प्रैक्टिस में लगा रहता है। अब यह एक किलोमीटर का भव्य रोड शो, बताया गया है कि यह 2024 के चुनाव के मद्देनजर निकाला गया है। ठीक है, 2024 के चुनाव के लिए लगभग पंद्रह महीने पड़े हैं परन्तु रोड शो की प्रैक्टिस तो चलती ही रहनी चाहिए ना। चुनाव प्रचार भी चलता रहना चाहिए।

हमारा देश एक चुनाव प्रधान देश है। देश में हर वर्ष कई सारे चुनाव होते हैं। इस वर्ष भी नौ राज्यों में तो विधानसभाओं के चुनाव ही होने हैं। इस चुनाव प्रधान देश में देश के 'प्रधान सेवक' को भी ध्यान रखना पड़ता है कि वह चुनावों का ध्यान प्रधानता से रखे। चुनाव हों, न हों, चुनाव प्रचार की प्रैक्टिस जारी रखे। जहां तक हो सके हर समय चुनाव प्रचार में ही लगा रहे। अपने हर भाषण में, हर उद्धघाटन में ध्यान रखे कि चुनाव प्रचार हो रहा हो। 

ऐसा नहीं है कि सरकार जी सिर्फ चुनाव प्रचार ही करते हैं, उसकी प्रैक्टिस ही करते हैं। सिर्फ पार्टी का ही काम करते हैं। इस सब काम के बाद जो थोड़ा बहुत समय बचता है उसमें देश का काम भी करते हैं। अब इसमें इतनी व्यस्तता के बाद देश के लिए जो भी थोड़ा बहुत समय बचता है उसमें देश के विकास का काम भी करते हैं। यह बात अलग है कि वह भी सिर्फ इसलिए करते हैं कि उसका चुनाव प्रचार में उपयोग कर सके। 

इस बार इस चुनाव प्रचार के दौरान सरकार जी ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से कहा कि जरा चुनावों का ध्यान रखें, क्या जरूरी है कि हर फिल्म पर राय प्रकट की जाए। और हां, यह भी कि मुसलमानों के खिलाफ भी जरा ध्यान से बोलें। जरा नर्मी दिखा कर बोलें। जो नहीं कहा लेकिन कहा, कि एक बार चुनाव बीत जाएं, चुनाव जीत जाएं फिर चाहे जो मर्जी करें। कोई रोकेगा नहीं, कोई टोकेगा नहीं। ध्यान रखें, चुनाव प्रचार जारी है। जोरों पर है और अभी से है।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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