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तिरछी नज़र: गाय जी से एक साक्षात्कार

गाय बोली, "क्या बेवकूफ लोग हैं, अगर मैं ऑक्सीजन ही लेती हूं और ऑक्सीजन ही छोड़ती हूं तो मुझे सांस लेने की जरूरत ही क्या है...।”
तिरछी नज़र: गाय जी से एक साक्षात्कार
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार: Siyasat Network

गत सप्ताह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश महोदय ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की मांग कर डाली। मांग करने का सबको अधिकार है और उनको भी है। पर यह मांग करते हुए उन्होंने जो कुछ भी कहा उससे तो उन्होंने जीव विज्ञान की ऐसी की तैसी ही कर डाली है।

उन्होंने बताया की गाय सांस लेते हुए ऑक्सीजन ही ग्रहण करती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है। यह खोज कोई नई खोज नहीं है। पहले भी कुछ प्रबुद्ध लोग ऐसी ही खोज कर चुके हैं जिन्हें जीव विज्ञान ने मान्यता नहीं दी। पर ऐसा अब एक सम्माननीय  न्यायाधीश महोदय ने कहा है तो जीव वैज्ञानिकों को इस बारे में गंभीरता से सोचना ही पड़ेगा।

न्यायाधीश महोदय ने सिर्फ यही नहीं कहा। उन्होंने यह भी बताया कि गाय के घी से हवन करने पर बारिश भी होती है। यह खोज तो जनता के ध्यान में पहली बार ही लाई गई है जिसका पूरा का पूरा श्रेय उन न्यायाधीश महोदय को ही जाता है। ऐसी नई खोज तो मौसम विज्ञान में क्रांति ही ला देगी। पूरे देश में कहीं भी सूखा नहीं पड़ेगा और सूखा पड़ा भी तो गाय के घी से हवन कर लिया जाएगा। भरपूर बारिश हो जायेगी। मुझे लगता है कि सरकार उनकी इस नई खोज पर जल्दी ही ध्यान देगी और उन न्यायाधीश महोदय का नाम नोबेल समिति को पुरस्कार के लिए अवश्य भेजेगी। 

मैंने इस संबंध में अपने घर के पास सड़क पर पड़े कूड़े के ढेर में खाना ढूंढती हुई एक गाय माता से साक्षात्कार किया। मैंने पूछा, "हे! गाय माता!......." मेरे इतना बोलते ही वे बड़ी जोर-जोर से गुस्से में रंम्भाने लगीं। शायद उन्हें मेरा गाय माता बोलना बुरा लगा। बोलीं, "मुझे यह गाय माता माता क्या बोलता है"। और मेरी ओर घूर कर सींग दिखाते हुए बोलीं, "अब मैं कोई माता वाता नहीं हूं, अब मैं दूध नहीं देती हूं, तेरे किसी काम की नहीं हूं। आवारा घूमती हूं और कूड़े के ढ़ेर से खाना खाती हूं। जा भाग यहां से"।

मैंने बोला "देवी, गाय देवी,....."। इतना सुनते ही गाय फिर बिफर गई। बोली "क्या तुझे अपने देश की महिलाओं को देवी बनाने से फुर्सत मिल गई जो मुझे देवी बनाने चला है। देख तूने अपने देश की महिलाओं का क्या हाल कर रखा है और उन्हें भी कहता है देवी"। इस बार उनकी आवाज में गुस्से से ज्यादा दुख था। "चल पूछ, क्या पूछना चाहता है"।

मैंने पूछा, इस बार मैंने जानबूझ कर देवी या माता नहीं कहा। मैं गाय की दुखती रग पर हाथ नहीं रखना चाहता था। मैंने कहा, "लोग कहते हैं, आप जब सांस लेती हैं तो ऑक्सीजन ही अंदर लेती हैं और ऑक्सीजन ही बाहर छोड़ती हैं"। गाय बोली, "क्या बेवकूफ लोग हैं, अगर मैं ऑक्सीजन ही लेती हूं और ऑक्सीजन ही छोड़ती हूं तो मुझे सांस लेने की जरूरत ही क्या है। हां! अगर कहते कि कार्बन डाइऑक्साइड अंदर लेती है और ऑक्सीजन बाहर छोड़ती है तो भी कुछ बुद्धिमानी की बात होती। पर भाई! मैं भी तुम लोगों की तरह, अन्य पशुओं की तरह से ही ऑक्सीजन अंदर लेती हूं और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ती हूं"।

मैंने बात आगे बढ़ाई, "और यह हवन वाली बात"। गाय ने पूछा, "यह हवन वाली बात क्या है"। मैंने बताया कि एक न्यायाधीश महोदय ने कहा है कि गाय के घी से हवन करने पर बारिश होती है। गाय मुस्कुराई और बोली, "किसी भी हवन से तो धुआं ही होता है, चाहे फिर मेरे घी से करो या फिर किसी अन्य घी या तेल से। और धुआं होने से तो बारिश दूर ही भागती है न"।

गाय आगे बोली, "यह जो मैं कूड़ा खा के, गंद खा कर के, गू और पेशाब करती हूं तुम तो उसे भी बड़ा काम का मानते हो। मेरे मूत्र को शौक से पीते हो और मेरे मल को शरीर पर लेप लेते हो। बेवकूफ कहीं के!"। 

"और देशों में तो मैं दूध देती हूं, खाई भी जाती हूं और इज्जत भी पाती हूं। और मेरा मांस भी न, बाहर के देशों में तेरे देश से ही सबसे ज्यादा भेजा जाता है। पर तू मुझे पूजता इसलिए है क्योंकि मैं तेरे देश में वोट दिलवाती हूं, कत्ल करवाती हूं। वाह रे मेरे भक्त!"

मैंने अंतिम प्रश्न किया, "और उन्हीं न्यायधीश महोदय ने यह भी कहा है कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करना चाहिए। क्यों कर दें न"। गाय मुस्कुराई, "और बाघ से क्या परेशानी है"। फिर सीरियस होकर बोली, "क्या मुझे राष्ट्रीय पशु घोषित करने से मेरा सड़कों पर यह आवारागर्दी करना बंद हो जाएगा। क्या फिर मुझे कूड़े के ढेर से खाना नहीं ढूंढना पड़ेगा। अरे! कुछ भी नहीं बदलेगा। अगर तुम्हें राष्ट्रीय पशु घोषित करने का इतना ही शौक है तो मनुष्य को राष्ट्रीय पशु घोषित करो। उसकी चिंता करो। उसकी भूख दूर करो, उसके कष्ट दूर करो। अपनी चिंता तो है नहीं और ये मनुष्य, मुझे राष्ट्रीय पशु घोषित करने चला है। और उन न्यायाधीश जी से भी कहना, मनुष्य से न्याय करें। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दें।" 

गाय शायद कुछ और भी बोलती, मन की भड़ास निकालती पर तभी एक व्यक्ति हाथ में बड़ा सा, मोटा सा लट्ठ लेकर आया और गाय पर बरसाने लगा। गाय सींग उठा कर भाग ली।

(तिरछी नज़र एक व्यंग्य स्तंभ है। लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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