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'तमसो मा ज्योतिर्गमय', उनके दिमाग़ का अंधेरा हटे

इस बार कुम्भ में पैंतालिस करोड़ लोगों के डुबकी लगाने की उम्मीद जताई जा रही है। मतलब लगभग आधे हिन्दू गंगा स्नान कर अपने पाप धो चुके होंगे। स्वर्ग के हक़दार होंगे। समझा जा सकता है कि आने वाले वर्षों में स्वर्ग के आगे लम्बी लम्बी कातारें लगी होंगीं।
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यह सप्ताह बहुत ही विशेष रहा। आज वसंत पंचमी है तो उनतीस को मौनी अमावस्या थी। ऐसा योग सैकडों साल बाद पड़ रहा है कि वसंत पंचमी दो फ़रवरी को पड़ रही है और मौनी अमावस्या उनतीस जनवरी को। और वह भी एक ही सप्ताह में। ऐसा सप्ताह है यह। मैं तो इसको महा सप्ताह ही कहूंगा जो सदियों में एक बार पड़ता है। नहीं पता था ना। कोई बताता तभी तो पता चलता। चलो अब तो पता चल गया ना। मैंने बता जो दिया है।

यह महा सप्ताह महाकुम्भ में पड़ रहा है। इससे पहले ऐसा योग 144 साल पहले पड़ा था। ऐसे ग्रह नक्षत्र अंग्रेजों के शासन में पड़े थे। यह बात ठीक भी है। इतना पाप पहले अंग्रेजों के समय में ही हुआ होगा जितना आज सरकार जी के समय में है कि उसको धोने के लिए महाकुम्भ की जरूरत पड़ रही है। इतनी बेरोजगारी, इतनी महंगाई, इतनी नफ़रत तो लोग कहते हैं, अंग्रेजों के समय भी नहीं थी जितनी आज है। हाँ, हाँ, समझ आया। यह बांटो और राज करो की युक्ति, डिवाइड एंड रूल वाली पॉलिसी, अंग्रेजों ने लगभग 144 साल पहले ही शुरू की होगी। इसीलिए इस बार के योग को, ग्रह नक्षत्रों की पोजीशन को 144 साल पहले की पोजीशन बताया जा रहा है।

इस बार कुम्भ है, महाकुम्भ। कुम्भ का एक अर्थ घड़ा भी होता है। इसीलिए गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि हे अर्जुन, जब जब देश में पापों का घड़ा भर जायेगा तो कुम्भ होगा और जब पापों का घड़ा बहुत अधिक भर जायेगा तो महाकुम्भ होगा। अबकी बार, धरती पर पाप इतने बढ़ चुके हैं कि इस बार, 144 वर्ष बाद जम्बू द्वीप के भारत खंड की एक महानगरी प्रयागराज में महाकुम्भ का आयोजन हो रहा है।

कुम्भ में, और महाकुम्भ में तो विशेष रूप से, गंगा स्नान का विशेष महत्व है। वह भी एक स्थान पर गंगा स्नान का। इस बार गंगा स्नान का स्थान प्रयागराज है। मान्यता है कि गंगा जी में डुबकी लगाने से पाप धूल जाते हैं और महाकुम्भ के दौरान गंगा जी में डुबकी लगाने से जिन लोगों ने महा पाप किये होते हैं, उनके पाप भी धूल जाते हैं। इसीलिए कुम्भ और महाकुम्भ के दौरान इतनी भीड़ उमड़ती है।

महाकुम्भ में वीआईपी लोगों के गंगा स्नान की अलग से उत्तम व्यवस्था है। उनके लिए बिना भीड़ वाले घाट हैं और उनकी गाड़ी की सवारी ठीक घाट तक पहुँचती है। आम जनता तो दस बीस किलोमीटर मीटर दूर ही अपने वाहन से उतर जाती है और उसे तो मुश्किल से एक दो डुबकी का अवसर ही मिल पाता है पर मंत्री संतरी अपनी वातानुकूलित गाड़ी में सीधा घाट तक आते हैं और बदन रगड़ रगड़ कर नहाते हैं। उनको इसकी जरूरत भी है। अभी मैंने एक फोटो देखी जिसमें एक वरिष्ठ मंत्री जी को कई सारे पंडे मिल कर नहला रहे थे। पता नहीं क्यों? क्या उनके पाप इतने ज्यादा हैं?

मौनी अमावस्या का एक और महत्व है। इस दिन लोग मौन व्रत भी रखते हैं। मतलब बोलते नहीं हैं। कम से कम व्यर्थ का तो कुछ भी नहीं बोलते हैं। मैं सोचता हूँ अगर इस एक दिन का हमारे मंत्री और राजनेता ढंग से पालन कर लें तो कम से कम एक दिन के लिए ही तो शांति हो जाये। एक दिन तो नफरती बोलों के बिना गुजर जाये। पर नहीं, वे एक भी दिन सुख शांति से नहीं गुजरने देंगे।

मौनी अमावस्या के दिन महाकुम्भ में एक दुर्घटना भी हो गई। दुर्घटना की गंभीरता का पता हमें तब चला जब न्यूज़ चैनल यह बताने लगे कि सरकार जी स्थिति पर गंभीरता से नज़र रखे हुए हैं। बड़े सरकार जी छोटे सरकार जी के निरंतर संपर्क में हैं। चार बार फोन पर वार्तालाप कर चुके हैं। और यह भी कि छोटे सरकार जी जनता से आह्वान कर रहे हैं कि जनता अफवाहों पर ध्यान न दे क्योंकि अफवाहें कई बार सच्ची भी होती हैं। जिस तरह से सारा कुम्भोतस्व निर्बाध चल रहा है, उससे तो यही लग रहा है जैसे कि न कोई गिरा है, न कोई मरा है। वैसे यह बता भी दिया जाता अगर सोशल मीडिया वहाँ न होता। गलवान घाटी में सोशल मीडिया नहीं था तो वहाँ बता दिया गया।

इस बार कुम्भ में पैंतालिस करोड़ लोगों के डुबकी लगाने की उम्मीद जताई जा रही है। मतलब लगभग आधे (आधे से थोड़ा ही कम) हिन्दू गंगा स्नान कर अपने पाप धो चुके होंगे। स्वर्ग के हक़दार होंगे। समझा जा सकता है कि आने वाले वर्षों में स्वर्ग के आगे लम्बी लम्बी कातारें लगी होंगीं। लोगबाग भूखे प्यासे उन लम्बी लम्बी कतारों में लगे होंगे। अंदर जितना मर्जी सुख हो पर स्वर्ग के गेट पर लगी लम्बी कतारों से तो लोगों को नोटबंदी के नर्क की याद आ जाएगी।

मौनी अमावस्या तो मंगल-बुद्ध को थी। आज तो वसंत पंचमी है। आज के दिन हम वसंत ऋतु को तो सेलिब्रेट करते ही हैं, ज्ञान की देवी सरस्वती जी का जन्मदिन भी मनाते हैं। तो प्रार्थना करते हैं कि ज्ञान की जय हो और अज्ञान का नाश हो। आज अगर महाकाली या देवी दुर्गा का दिन होता तो हम कामना कर सकते थे कि जिन लोगों की ज्ञान से दुश्मनी है, उनका संहार हो। सरस्वती देवी का दिन है इसलिए यह ही कह सकते हैं, 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अर्थात उनके दिमाग़ का अंधेरा हटे। कुछ तो रौशन दिमाग़ बनें। आमीन।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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