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तिरछी नज़र : म्यूटेट होती जनता और म्यूटेट होता कोरोना का समझदार वायरस

कोरोना के समझदार वायरस को जल्दी ही समझ में आ गया कि यहाँ, भारत में तो अजीब घालमेल है। यहाँ बसना है तो डबल म्यूटेट क्या ट्रिपल म्यूटेट भी करना पड़ सकता है। यहाँ तो सभी म्यूटेशन करते हैं...।
तिरछी नज़र : म्यूटेट होती जनता और म्यूटेट होता कोरोना का समझदार वायरस
Image courtesy : TOI

कोरोना देश में बहुत जोर शोर से फैल रहा है। पहली लहर से दुगुनी तिगुनी रफ्तार से फैल रहा है। कहते हैं वायरस में डबल म्यूटेशन हो गया है। मतलब उसने अपनी प्रवृत्ति और प्रकृति बदल ली है। अब तक दो दो बार बदल ली है। भारत में रहना है, बसना है तो बदलना ही पड़ता है, म्यूटेट करना पड़ता है। वायरस म्यूटेट कर पा रहा है इसीलिए तो वह अधिक तेजी से बढ़ पा रहा है, फैल पा रहा है। 

जहाँ पर कोरोना का वायरस पैदा हुआ था, पला-बढ़ा था, जहाँ से पूरे विश्व में फैला था, वहाँ, बताते हैं, धर्म नहीं है। वहाँ अगर धर्म है भी तो व्यक्ति का है, परिवार का है, सरकार का नहीं है। इसलिये कोरोना का वायरस जब भारत में आया तो धरम-वरम नहीं मानता था। तिरुपति में फंसे हिन्दुओं में फैला तो नांदेड़ के गुरुद्वारे में फंसे सिखों में भी फैला और निजामुद्दीन मरकज में फंसे मुसलमानों से भी। पर जब वायरस ने देखा कि हमने मरकज में फंसे लोगों से कोरोना फैलने को इतना सीरियसली लिया था कि उन दिनों रोजाना के स्वास्थ्य बुलेटिन में भी यह बात अलग से बताई जाने लगी, तो उसे कुछ अचरज ही हुआ। उस समय की गई एक देसी रिसर्च भी यह बताती थी कि कोरोना वायरस सिर्फ मुसलमान तीर्थ यात्रियों से फैलता है, हालांकि अचानक लगे लॉकडाउन में फंसे तो सभी धर्मों के तीर्थ यात्री थे। खैर शुरुआत में ही घटी इस घटना से कोरोना के वायरस को हमारे देश को समझने की और म्यूटेट करने में बहुत सहायता मिली। 

खैर अब भारत में रहते रहते कोरोना का वायरस धार्मिक हो गया है। वह भी अब धर्म-कर्म मानने लगा है। अब उसको रोकने के लिए न धार्मिक आयोजनों को रोकने की जरूरत है और न ही मंदिरों-मस्जिदों को बंद करने की। वह पापी वायरस जब घूमते घूमते हरिद्वार पहुंचा तो गंगा जी में डुबकी लगा अपने पाप धोने लगा। अब अपने पाप धोते धोते यह वायरस दो चार हजार लोगों को लग भी गया तो क्या हुआ। वे लोग भी तो, वहाँ कुम्भ में, गंगा जी में डुबकी लगा अपने पाप धोने ही गये थे। 

लेकिन इससे भी बड़ा बदलाव, बड़ी म्यूटेशन, दूसरी म्यूटेशन यह हुई कि भारत में रह कर कोरोना का वायरस लोकतांत्रिक भी हो गया। वायरस लोकतंत्र में विश्वास करने लगा। जहाँ से आया था, वहाँ हमारी तरह लोकतंत्र तो था नहीं। तब कोरोना का वायरस तानाशाही ही समझता था। इसीलिए उससे निपटने के लिए सरकार जी को भी तानाशाही ही दिखानी पड़ी, लगानी पड़ी। जबरदस्ती जबरदस्त लॉकडाउन लगाया गया। उतनी जबरदस्त तानाशाही देख एक बार तो चीन से आया कोरोना का भयंकर वायरस भी कांप उठा। पर अब जब वह यहाँ का हो गया है तो यहीं का हो कर रह गया है, यहीं के रंग रूप में ढल गया है। यहीं की तरह म्यूटेट हो गया है।

कोरोना के समझदार वायरस को जल्दी ही समझ में आ गया कि यहाँ, भारत में तो अजीब घालमेल है। तानाशाही और लोकतंत्र का घालमेल है, धर्म और राजनीति का घालमेल है, अमीरी और गरीबी का घालमेल है। यहाँ बसना है तो डबल म्यूटेट क्या ट्रिपल म्यूटेट भी करना पड़ सकता है। यहाँ तो सभी म्यूटेशन करते हैं, जनता भी म्यूटेट करती है तो वायरस क्यों न करे।

यहाँ का लोकतंत्र भी वायरस को रास आ गया है। उसने देखा यहाँ के चुनाव कितने लोकतांत्रिक हैं, चुनाव कराने वाला चुनाव आयोग तो लोकतांत्रिक है ही, चुनावों में होने वाली रैलियां, सभाएँ और रोड शो भी बहुत ही अधिक लोकतांत्रिक हैं। यह इतना अधिक लोकतांत्रिक हैं कि वहाँ सभाओं में, रैलियों में, रोड शो में कोई मास्क लगाये, न लगाये, सोशल डिस्टेंसिंग माने, न माने सब चलता है। और तो और विश्व के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री, सबसे चतुर गृहमंत्री और सबसे कठोर माने जाने वाले मुख्यमंत्री, दिन भर लोकतंत्र के उत्सव में बिना मास्क रहते हैं और शाम को मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग पर उपदेश पिलाते हैं।

वायरस तो यहाँ की लोकतांत्रिक प्रक्रिया से अभीभूत ही हो गया है। चुनाव ही नहीं, चुनाव बाद भी लोकतंत्र जीवित रहता है, जीवंत रहता है। चुनाव के दौरान धांधलियों में तो लोकतंत्र दिखाई देता ही है, चुनाव के बाद भी लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए विधायकों की खरीद-फरोख्त में, और लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकारों को गिराने में भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पूरा पालन देख तानाशाह देश से आया कोरोना का यह तानाशाह वायरस भारत में पूरी तरह से लोकतांत्रिक वायरस में तब्दील हो गया। 

और देश का कानून, उसने तो कोरोना के वायरस को और भी अधिक म्यूटेट करने के लिए प्रोत्साहित कर दिया है। जहाँ हजारों-लाखों की रैलियों-सभाओं और मेलों पर कानून कुछ नहीं कहता है, पुलिस शांति से देखती रहती है, कोर्ट कोई संज्ञान नहीं लेता है। वहीं वही कानून, पुलिस और कोर्ट कार में जा रही अकेली सवारी को भी मास्क लगाने पर मजबूर करता है। और मौका लगता है तो उसे पीट पीट कर अधमरा कर देता है।

खैर, वायरस इस देश में जीना सीख गया है, रहना और बसना सीख गया है। यहाँ बढ़ना सीख गया है। और यह सब उसने हम सब भारतीयों से ही सीखा है। जैसे हम भारतीय हर चीज को नियति मान लेते हैं। उसे नहीं बदलते, स्वयं बदल जाते हैं। उसी तरह से जीना सीख जाते हैं। हमारा भी म्यूटेशन हो जाता है। उसी तरह से कोरोना का समझदार वायरस भी भारत में आ कर यहाँ से यही सीख रहा है। यहाँ की आदतों, स्थितियों और परिस्थितियों में खुद को ढाल रहा है। यहाँ रहने, बसने और बढऩे के लिए वायरस खुद को म्यूटेट कर रहा है। 

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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