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तिरछी नज़र: देश की सुरक्षा और सरकार जी

'और हमारे प्यारे सरकार जी तो आपदा में भी अवसर ढूंढ लेते हैं। इसमें भी अवसर ढूंढ ही लेंगे'।
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गुप्ता जी रास्ते में टकरा ही गए। मिलते ही बोले, 'जरूर ही यह विरोधियों की साजिश है'। मैंने पूछा, 'कौन सी साजिश'। 'अरे, यहीं संसद भवन में अटैक', गुप्ता जी ने उत्तर दिया।

'संसद भवन में अटैक! इस में विरोधी कहां से आ गए। संसद भवन में घुसने वाले, प्लानिंग करने वाले सारे के सारे हिन्दू हैं। हो सकता है जांच से पता चले कि सरकार जी के वोटर भी रहे हैं। फिर संसद भवन में एंट्री का पास भी किसी भाजपा के सांसद ने दिया। इसमें विरोधी कहां से आ गए'। मैंने जिज्ञासा प्रकट की।

'यही तो। उनमें कोई मुसलमान होता तो आतंकवादी बता देते। कोई सिख होता तो खालिस्तानी बता देते। काम आसान हो जाता। इसीलिए यह काम हिन्दुओं से करवाया गया। और संसद में एंट्री का पास भी किसी कांग्रेसी या विरोधी दल के सांसद से न दिलवा कर भाजपा सांसद से दिलवाया गया। किसी विरोधी सांसद ने दिया होता तो क्या अब तक उसकी सदस्यता नहीं रद्द हो जाती? कम से कम उसके खिलाफ जांच करने के लिए जांच समिति तो बैठ ही जाती'। गुप्ता जी ने एक्सप्लेन किया।

'और देखो दिन भी कौन सा चुना? यह काम करने के लिए। तेरह दिसम्बर। पार्लियामेंट पर आतंकी हमले की वर्षगांठ। जैसे याद दिला रहे हों पहला हमला भी भाजपा के शासन में हुआ था और अब यह भी भाजपा के शासन में हुआ है। पहला हमला अटल जी के शासन में हुआ था और अब यह सरकार जी के शासन में हुआ है। यह विपक्षियों की साज़िश नहीं है तो और क्या है? देख लेना, जब सरकार जी दूध का पानी करेंगे तो सब सामने आ जाएगा'।

'दूध का पानी नहीं, दूध का दूध पानी का पानी होता है', मैंने संशोधन किया।

'वह पुरानी कहावत है', गुप्ता जी ने कहा। 'सरकार जी तो दूध का पानी करते हैं और पानी का दूध। सरकार जी और सरकार जी की ऐजेंसियां अगर अपनी पर उतरेंगी तो दूध का पानी करके ही मानेंगी। ठीक है, सारे के सारे हिन्दू हैं तो आतंकवादी या खालिस्तानी तो नहीं कहा जा सकता है पर उन्हें कांग्रेसी तो बताया ही जा सकता है। उनका संबंध नेहरु से तो निकाला जा सकता है। और कुछ नहीं तो उनको कम्युनिस्ट, अर्बन नक्सल, टुकड़े टुकड़े गैंग या फिर लिबरांडू, सिक्यूलर जैसा कुछ भी डिक्लेयर किया जा सकता है'।

'और ये जो बेरोजगारी वगैरहा बताया जा रहा है ना, यह जो कहा जा रहा है कि यह संसद में हमला जैसा जो किया गया यह सरकार जी का बेरोजगारी की ओर ध्यान खींचने के लिए किया गया, सब बेकार की बातें हैं। अगर कोई रोजगार‌ मिल गया होता तो हमारे सरकार जी भला अब सरकार जी होते। कहीं रिटायर्ड लाइफ बिता रहे होते और सरकारी पेंशन पा रहे होते। सरकार जी स्वयं सालों बेरोजगार रहे, पैंतीस चालीस साल भीख मांग कर गुजारा किया तब जाकर एक राज्य के सरकार जी बने। और अब पूरे देश के सरकार जी हैं। तो यह बेरोजगारी की चिंता बेकार की चिंता है। इसीलिए सरकार जी इसका अब जिक्र तक नहीं करते हैं'।

गुप्ता जी बोले ही जा रहे थे, 'सरकार जी हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वायदा कर के आए थे। दी होतीं तो अब तक बीस करोड़ लोगों को नौकरियां मिल जातीं। पर एक करोड़ भी दीं क्या? छीन और लीं। कोई और होता तो जनता के सामने जा ही नहीं पाता। अपना मुंह तक दिखा नहीं पाता। पर सरकार जी जाते हैं। सीना तान कर जाते हैं, छाती ठोक कर जाते हैं। है कोई और सरकार जी जितना महान'?

'और हमारे प्यारे सरकार जी तो आपदा में भी अवसर ढूंढ लेते हैं। इसमें भी अवसर ढूंढ ही लेंगे', मैंने कहा। मैं भी आज गुप्ता जी के इस मूड का लाभ उठा लेना चाहता था।

'और क्या! हमारे सरकार जी ऐंवे ही थोड़ी ना हैं। आपदा में अवसर ढूंढ ही लिया। चौदह सांसदों को तो इस संसदीय सत्र के लिए निलम्बित ही कर दिया है', गुप्ता जी हंसते हुए बोले। 'और एक सांसद तो उस समय सदन में मौजूद तक नहीं था। अगर विपक्ष के लिए चुन कर आओगे तो यही हाल होगा'।

'और संभव है सरकार जी अभी चार महीने बाद होने वाले आम चुनाव में यह कह कर ही वोट मांगें कि संसद की सुरक्षा के लिए उन्हीं को वोट दिया जाए। और हम उन्हें वोट दे भी देंगे। आखिर पांच साल पहले भी तो हमने देश की सुरक्षा के लिए उसी को वोट दिया था जिसके कार्यकाल में पठानकोट हुआ था, पुलवामा हुआ था'।

और मुझे हतप्रभ छोड़ गुप्ता जी अपने घर की ओर बढ़ गए।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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