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सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ एमपी के आदिवासी सड़कों पर उतर आए और कलेक्टर कार्यालय के घेराव के साथ निर्णायक आंदोलन का आगाज करते हुए, आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाए जाने की मांग की।
Seoni

खास है कि लिंचिग के आरोपी हिंदुत्ववादी संगठनों बजरंग दल और श्रीराम सेना से जुड़े हैं जिससे मामले को लेकर मध्य प्रदेश की राजनीति में भी उबाल आ गया है। आदिवासियों के उत्पीड़न को लेकर कांग्रेस ने भी भाजपा पर हल्ला बोला है। उधर, गुजरात के दाहोद में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भाजपा शासन में आदिवासियों के बढ़ते उत्पीड़न को लेकर निशाना साधा और आदिवासियों के संघर्ष में साथ खड़े होने का भरोसा दिलाया है।

ताजा मामला सिवनी जिले के सिमरिया गांव में हिंदुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा गाय काटने का आरोप लगाकर की गई मॉब लिंचिंग का है जिसमें 2 आदिवासियों को मार डाला गया था। आरोपियों की धरपकड़ जारी है। 14 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। इस बीच सोमवार को आदिवासी समाज ने हजारों की संख्या में सड़कों पर उतरकर अपने गुस्से का इजहार किया। सोमवार को मंडला, छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर, बैतूल समेत आधा दर्जन जिलों के आदिवासियों ने सिवनी पहुंचकर शहर बंद का आह्वान करते हुए कलेक्टर कार्यालय का घेराव किया। इस दौरान हजारों की संख्या में आदिवासी पीला झंडा लेकर सड़कों पर उतरे। आदिवासियों ने कहा कि उनके नाम पर राजनीति हो रही है और उन्हें महज वोट बैंक के लिए उपयोग किया जाता है, लेकिन अब उन्हें तस्कर समझकर मारा भी जाने लगा है।

यही नहीं, सिवनी बंद के दौरान प्रदेश के कई अन्य जिलों में भी विरोध प्रदर्शन किए गए और कार्यवाही की मांग को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ज्ञापन भेजे जिनमें इस दोहरे हत्याकाण्ड में लिप्त सभी अभियुक्तों की गिरफ्तारी कर विशेष न्यायालय गठित कर उसमें अनवरत सुनवाई करके उन्हें अधिकतम संभव दंड देने और इस तरह का उन्मादी वातावरण बनाने के जिम्मेदार सभी तत्वों, संगठनों की शिनाख्त कर उनके विरुद्ध कार्यवाही किये जाने, दोनों मृतकों के परिवारों को एक एक करोड़ रुपये की सहायता राशि प्रदान करने, उनके परिवार के एक एक सदस्य को स्थायी सरकारी नौकरी देने, गुंडों के हमले तथा बीच बचाव में घायल हुए घटना के मुख्य गवाह ब्रजेश और मृतक के परिजनों की सुरक्षा मुहैया कराने के साथ बजरंग दल तथा राम सेना नाम के संगठनों को आतंकी संगठन घोषित किये जाने की मांग की गयी। इसके साथ ही आरोपियों के घरों और संपत्तियों पर बुलडोजर चलाए जाने की भी मांग की गई। कहा कि जिस तरह से मध्य प्रदेश सरकार अन्य आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उनकी संपत्ति पर बुलडोजर चला रही है, उसी प्रकार मॉब लिंचिंग के आरोपियों की संपत्ति पर बुलडोजर चलाया जाए।

संयुक्त किसान मोर्चा तथा अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने प्रदेश में विरोध कार्यवाहियों का आह्वान किया था। इन संगठनों ने कहा कि इस तरह की वारदातों से मध्यप्रदेश में क़ानून के राज की पोल बखूबी खुल गई है। इतनी बर्बरतापूर्ण घटना में भी प्रदेश के गृहमंत्री का बयान अत्यंत निराशाजनक रहा। उन्होंने एक तरह से इस हिंसा को जायज ठहराने की कोशिश की है और एक तरह से विवेचना और न्याय प्रक्रिया से जुड़े कर्मचारियों, अधिकारियों को भी एक संकेत दिया है।

मामला यह है कि सिमरिया गांव में कुछ युवकों के गाय काटने की सूचना मिली थी। मौके पर पहुंचे श्रीराम सेना और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने 3 आदिवासियों को बेदम होने तक पीटा था। इसमें 2 आदिवासियों ने जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया। एक का इलाज जारी है। पुलिस ने मामले में 20 किलो मांस जब्त किया था जिसे जांच के लिए भेजा गया है। 

आदिवासियों के कड़े रुख और मामले के राजनीतिक रूप से गर्माता देख, मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में बजरंग दल के नेता भी डैमेज कंट्रोल मोड में हैं। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने (बजरंग दल ने) गोहत्या के आरोपों में दो आदिवासियों की मौत पर माफी जारी की है, और एक वीडियो जारी किया है जिसमें कथित तौर पर दोनों आरोपियों को पुलिस को सौंप दिया गया है। वे पुलिस के साथ समन्वय में काम करने का दावा करते हैं। वहीं, आदिवासियों की मौत के लिए गिरफ्तार किए गए 13 लोगों में से 6 के परिवारों ने द संडे एक्सप्रेस को बताया कि उनके बजरंग दल से संबंध थे।

बजरंग दल द्वारा जारी किए वीडियो में मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों के साथ-साथ लाठी-डंडों से लैस लोगों को आदिवासियों संपतलाल वट्टी और धनसाई इनवती को घेरते हुए दिखाया गया है। बजरंग दल की सिवनी इकाई के जिला सहयोगी देवेंद्र सेन कहते हैं: “जिन लोगों पर हमारी इकाई के सदस्य होने का आरोप है, उन्होंने दोनों लोगों को पुलिस को सौंप दिया। हम हर गोरक्षा छापे पर पुलिस के साथ तालमेल बिठाते हैं और उन्हें अहम जानकारियां देते हैं। उन दो आदमियों को नहीं मरना चाहिए था। हमें इसका खेद है।"

सिवनी जिले के वरिष्ठ अधिकारी भी स्वीकार करते हैं कि वे इस क्षेत्र में पशु तस्करी की जांच के लिए बजरंग दल के लोगों सहित विभिन्न सतर्कता संगठनों से मिली सूचना पर भरोसा करते हैं। जिले में हर साल पशु तस्करी के करीब 120 मामले सामने आते हैं। पुलिस ने कहा कि कुरई पुलिस स्टेशन, जहां लिंचिंग मामले की जांच की जा रही है, हर साल 30-40 मामले देखता है। पुलिस ने शनिवार को सिवनी जिले में कथित गोहत्या और 19 किलोग्राम से अधिक संदिग्ध बीफ जब्त करने के आरोप में 3 लोगों की गिरफ्तारी की सूचना दी।

पिछले दो वर्षों से सिवनी जिले में तैनात एसपी कुमार प्रतीक का कहना है कि उन्होंने एक सशस्त्र अधिकारी और 4 कांस्टेबल सहित पुलिसकर्मियों वाली एक राजमार्ग गश्ती इकाई को फिर से तैयार किया है, जो अब राजमार्ग डकैती के बजाय पशु तस्करी पर ध्यान केंद्रित करते हैं। प्रतीक का कहना है कि निगरानी संगठनों में शामिल होने से उन्हें यह बहाना नहीं मिल रहा है कि प्रशासन मवेशी तस्करी की जांच नहीं कर रहा है। एसपी कहते हैं, ''मैं इन संगठनों के अधिकांश सदस्यों के संपर्क में हूं.. प्रतिदिन हमें एक-दो मुखबिरों की सूचना मिलती है।'' वह कहते हैं कि अधिकांश इनपुट वाहनों के रंग के बारे में हैं, और एक वर्ष में लगभग 120 मामलों में, 80% में जीवित मवेशियों का बचाव शामिल है। बाकी मवेशी वध के हैं। प्रतीक का कहना है कि पशु तस्करों द्वारा पुलिस पर हमले के मामले सामने आए हैं, जिसमें उनके वाहनों को नुकसान पहुंचाना या पुलिस बैरिकेड्स को तोड़ना शामिल है।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार बजरंग दल के सिवनी जिला प्रमुख तपस्वी उपाध्याय का कहना है कि हिंदू धर्म में "गाय के महत्व" जैसी प्रमुख बातों पर उनके ज्ञान और अभिव्यक्ति का परीक्षण करने के बाद, उनके गोरक्षा सदस्यों को सावधानी से चुना जाता है। “भर्ती अभियान वार्षिक हिंदू त्योहारों के दौरान किया जाता है। हम देखते हैं कि क्या एक कार्यकर्ता की गाय के प्रति आस्था है।” वाहनों पर नजर रखने के लिए सदस्यों को स्थानीय सड़क और परिवहन प्राधिकरण कार्यालयों में तैनात किया जाता है, वे कहते हैं: “परिवहन अधिकारी यह नहीं बता सकते हैं कि मवेशियों को ले जाया जा रहा है या नहीं। हमारे कार्यकर्ता गाय के खुरों की आवाज, या उनकी गंध जैसे संकेतों पर भरोसा करते हैं... वाहन संख्या और उसके गंतव्य राज्य को नोट किया जाता है और पुलिस को प्रदान किया जाता है।” विहिप सिवनी के अध्यक्ष अखिलेश चौहान का कहना है कि उनकी गौ सुरक्षा इकाई के सदस्य जिले के कई निकास बिंदुओं पर तैनात हैं, जो 60 किमी के हिस्से को कवर करते हैं। चौहान कहते हैं कि उनके पास कोई आईडी या प्रमाण पत्र नहीं है। “वे अपने पड़ोसियों के साथ ऑपरेशन पर निकलते हैं। पशु तस्करी का संदेह होने पर वे वाहन पंजीकरण संख्या को नोट कर लेते हैं। इनपुट स्थानीय एसपी और नगर निरीक्षकों को दिया जाता है, जो हमारे संपर्क बिंदु हैं।”

कुरई थाना प्रभारी गणपत सिंह उइके का कहना है कि स्टाफ की कमी का मतलब है कि वे हमेशा कुरई के पास दो चेकिंग पॉइंट पर गश्त नहीं कर सकते। "हमारे पास 15 आदमियों की कमी है.. हम सतर्क संगठनों से मिली जानकारी पर निर्भर हैं और उनके साथ समन्वय करते हैं।" आदिवासी नेता और कांग्रेस विधायक अर्जुन सिंह काकोदिया का कहना है कि सिवनी हत्याकांडों के बारे में उन्होंने सबसे पहले सुना था, लेकिन पूरे चौकसी पुलिस अभियान के पीछे एक गहरे रैकेट का आरोप लगाया। "यह सब एक व्यवसाय है। सिवनी जिले का सबसे बड़ा पशु बाजार बरघाट क्षेत्र में है, जहां प्रति सप्ताह 10 लाख रुपये का कारोबार होता है। इस बाजार का दौरा स्थानीय किसानों द्वारा किया जाता है जो मवेशियों को खरीदते और बेचते हैं...। विहिप और बजरंग दल के नेताओं ने इस साल 1,980 मवेशियों को बचाने का दावा किया है। 2016 से लगभग 10,000। भाजपा जिलाध्यक्ष आलोक दुबे का कहना है कि जिले में नौ गोशालाएं स्थानीय मंदिर ट्रस्टों द्वारा संचालित हैं, जो जनशक्ति की कमी से ग्रस्त हैं। उन्होंने कहा, 'युवा पीढ़ी को गाय से ज्यादा लगाव नहीं है। पुरानी पीढ़ी अपने काम में व्यस्त है। हमें उन्हें बनाए रखने के लिए समर्थन की आवश्यकता है, ”दुबे कहते हैं।

अब देखा जाए तो गौमांस के नाम पर मुसलमानों के बाद हिन्दुत्ववादियों की हिंसा का शिकार अब तक आदिवासी अधिक हुए हैं, चाहे वे झारखंड के हों या मध्यप्रदेश व गुजरात के। जबकि हमलावरों का कनेक्शन भाजपा से ही रहा है। लिहाजा राजनीति गर्मानी ही है। हाल की घटनाओं का जिक्र करें तो पिछले 2 मई को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के सिमरिया गांव में गौमांस की तस्करी की आशंका का बहाना बनाकर बजरंग दल के समर्थकों ने 3 आदिवासियों को लाठियों से इतना पीटा कि, मौके पर दो आदिवासियों की मौत हो गई और एक गंभीर रूप से घायल हो गया जिसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। मरने वालों में सागर और सिमरिया गांव के 54 वर्षीय धानशाह और 60 वर्षीय संपत बट्टी थे। वहीं, 10 अप्रैल 2019 को झारखंड के गुमला जिले के डुमरी ब्लॉक के जुरमु गांव के रहने वाले 50 वर्षीय आदिवासी प्रकाश लकड़ा को पड़ोसी जैरागी गांव के साहू समुदाय के बजरंग दल से जुड़े लोगों की भीड़ ने पीट-पीट कर मार दिया था। जबकि इस मॉब लिंचिंग में तीन अन्य पीटर केरकेट्टा, बेलारियस मिंज और जेनेरियस मिंज पिटाई के कारण गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

बात मध्य प्रदेश के सिवनी में बजरंग दल कार्यकर्ताओं द्वारा आदिवासी युवकों की बेरहमी से की गई हत्या की ही करें तो अब यह घटना प्रदेश में राजनीति का केंद्र बनती जा रही है। घटना के बाद पूरे देश में शिवराज सरकार की चौतरफा आलोचना हो रही है। राज्य के आदिवासी नेता एवं यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत भूरिया ने मुख्यमंत्री को कहा है कि या तो आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करो या कुर्सी छोड़ो। खबर के मुताबिक मामला तूल पकड़ने के बाद सिवनी पुलिस ने इस घटना से जुड़े 14 आरोपियों को हिरासत में लिया है। सभी आरोपी आरएसएस समर्थित बजरंग दल से जुड़े हैं। लोग अब ये सवाल भी खड़े कर रहे हैं कि यहां आरोपियों के घर क्यों नहीं तोड़े गए। सोशल मीडिया यूजर्स का कहना है कि आरोपी बजरंग दल से थे इसलिए सिवनी प्रशासन को एक भी अवैध ईंट नहीं मिली जबकि खरगोन में 24 घंटों के भीतर 49 संपत्ति तोड़ी गई।

एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश आदिवासी वर्ग के उत्पीड़न की घटनाओं में देश में नंबर वन है। इसके पूर्व नेमावर, खरगोन और खंडवा की भी जघन्य घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इन सभी मामलों में आरोपियों के सत्ताधारी दल से कनेक्शन सामने आते रहे हैं। सिवनी में भी दो आदिवासियों की हत्या करने वालों को बीजेपी नेताओं का करीबी बताया जा रहा है। 

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इस घटना को लेकर बीजेपी सरकार को निशाने पर लिया है। प्रियंका गांधी ने ट्वीट किया, ‘सिवनी (मप्र) में बजरंग दल (आरएसएस) के लोगों ने दो आदिवासियों की पीट-पीट कर हत्या कर दी। आरएसएस-भाजपा का संविधान व दलित-आदिवासियों से नफरत का एजेंडा आदिवासियों के प्रति हिंसा को बढ़ावा दे रहा है। हमें एकजुट होकर नफरत से भरे इस एजेंडे को रोकना होगा।’ पीसीसी चीफ कमलनाथ ने आरोप लगाया कि आरोपियों को बचाने की कोशिशें हो रही हैं। उन्होंने मामले की सीबीआई जांच की मांग की है। उन्होंने ट्वीट किया, ‘शिवराज जी, आपकी सरकार आगामी चुनावों को देखते हुए, पिछले कुछ समय से जनजातीय वर्ग को लुभाने के लिये, इनके महापुरुषों के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर, भव्य आयोजन-इवेंट कर, ख़ुद को इस वर्ग का सच्चा हितैषी बनाने में लगी हुई है लेकिन बेहतर हो कि इन आयोजनों की बजाय आप जनजातीय वर्ग को पर्याप्त सम्मान व सुरक्षा प्रदान करें।’

सीएम शिवराज आदिवासियों के साथ कभी नृत्य करते दिखते हैं तो कभी उनके पारंपरिक वेशभूषा पहनकर फोटो खिंचवाते हैं। आदिवासियों के कल्याण के बड़े बड़े दावे किए जाते हैं। मगर असली आदिवासी समाज कहीं बजरंग दल तो कहीं आरएसएस की मारपीट और ज़्यादती का शिकार हो रहा है तो कहीं सरकारी उपेक्षा का शिकार। कई वर्षों से सरकार ने एसटी छात्रों को मिलने वाला वज़ीफ़ा रोक रखा है। तो जबलपुर में आदिवासी छात्रों का एक जर्जर हॉस्टल गिर गया लेकिन प्रशासन ने फंड की कमी का हवाला देते हुए जर्जर भवन का मरम्मत तक नहीं कराई।

आदिवासी नेता विक्रांत भूरिया ने इसे बीजेपी का क्रोनोलॉजी करार दिया है। उन्होंने लिखा, ‘आप भाजपा की क्रोनोलॉजी समझिए: आश्वासन, प्रलोभन और फिर शोषण। शिवराज सिंह जी, गरीब, दलित और आदिवासी को कब तक सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करेंगे आप?’

बताना जरूरी है कि मध्य प्रदेश में अगले साल नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं। राज्य में विधानसभा की 230 सीटों में से कम से कम 80 सीटों पर 1.5 करोड़ से अधिक आदिवासी समुदायों की निर्णायक भूमिका होती है। भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) समुदायों के लिए आरक्षित 47 निर्वाचन क्षेत्रों में से केवल 16 जीतने में कामयाब रही, जो 2013 के 31 एसटी सीटों से कम थी। प्रदेश में 35 सामान्य सीटें हैं, जहां कम से कम 50,000 आदिवासी आबादी है। इसलिए आदिवासियों को लुभाकर अपने पाले में लाना बीजेपी के एजेंडे में सबसे ऊपर है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों पर भरोसा करें तो मध्य प्रदेश ने 2018 में 4,753 ऐसे मामले दर्ज किए थे, जो 2019 में बढ़कर 5,300 हो गए और अगले साल यह आंकड़ा 6,899 तक पहुंच गया। जो लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि थी।

उधर, दाहोद में आयोजित रैली में राहुल गांधी ने भाजपा के खिलाफ जमकर हमला बोला है। उन्होंने भरोसा दिलाते हुए कहा कि किसी आदिवासी की ना ज़मीन छीनी जाएगी और ना ही पानी। गुजरात विधानसभा के चुनाव में बीजेपी-आप के बाद कांग्रेस पार्टी ने भी आदिवासी इलाक़ों में प्रचार अभियान शुरू करते हुए दाहोद में सत्याग्रह रैली कर, अपने परंपरागत वोट बैंक को वापस लाने का प्रयास किया है। खास है कि गुजरात में जनसंख्या के आधार पर देखें तो कुल मतदाताओं का 14 मतदाता आदिवासी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि अगर उनकी पार्टी गुजरात में सरकार बनाने में कामयाब रहती है तो रीवर लिंकिंग प्रोजेक्ट बंद कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि आदिवासियों की ज़मीन और पानी पर आदिवासियों का हक़ है। दरअसल हाल ही में गुजरात में पार-तापी नदी जोड़ने के मसले पर आदिवासियों ने ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन किया था। इसके बाद सरकार ने इस प्रोजेक्ट पर काम की शुरुआत को टाल दिया।

कांग्रेस का आदिवासी सत्याग्रह अगले 6 महीने तक चलेगा। खास है कि विकसित समझे जाने वाले गुजरात में आदिवासी इलाकों में आज भी पानी, शिक्षण, स्वास्थ्य एवं रोजगार को लेकर बड़ा मुद्दा है तो वहीं जंगल और जमीन हर चुनाव में आदिवासी इलाके में मुद्दा बनता रहा है।

यही नहीं मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उमरगाव से अंबाजी तक के आदिवासी बेल्ट पर चलने वाले इस कार्यक्रम की शुरुआत दाहोद से की गई है। गुजरात की स्थापना से 2001 तक इस बेल्ट पर कांग्रेस का परचम लहराता रहा। लेकिन 2001 के बाद बीजेपी ने भी आदिवासी वोट बैंक में अपनी जड़े जमा रखी है।

नरेन्द्र मोदी 20 अप्रैल को दाहोद में आदिवासियों के बीच कार्यक्रम कर चुके हैं। इतना ही नहीं, पीएम नरेंद्र मोदी इस क्षेत्र में 21 हजार करोड़ से भी ज्यादा राशि के विकास कार्यो का लोकार्पण और शिलान्यास कर चुके हैं। वहीं गुजरात में जड़े जमाने का प्रयास कर रही आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने 1 मई के दिन आदिवासी बेल्ट के भरूच के चंदेरिया में बड़ी रैली की थी। वहीं, भारतीय ट्राईबल पार्टी मुखिया छोटुभाई वसावा से मंच साझा करके आप संग गठबंधन की घोषणा की थी। खास है कि भरूच जिले में आदिवासी आरक्षित दो सीटों पर छोटुभाई वसावा और उनके बेटे महेश वसावा का कब्जा है। स्वाभाविक तौर पर आप के साथ गठबंधन करके अपने आदिवासी मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने का पहला कदम उठाया। 182 सीटों वाली विधानसभा में आदिवासियों के लिए 27 सीटें आरक्षित हैं। 2002 के पहले विधानसभा हों या लोकसभा आदिवासी परंपरागत तौर पर कांग्रेस का ही वोट बैंक हुआ करती थी। कांग्रेस हर चुनाव के वक्त प्रचार की शुरुआत भी इसी आदिवासी इलाकों से ही करती थी। 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 17 सीटें इसी इलाके से मिली थीं। लेकिन 17 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के दो विधायकों ने इस्तीफा देकर बीजेपी जॉइन कर ली है। वहीं कांग्रेस के आदिवासी विधायक अनिल जोषियारा का निधन हो गया।

 

साभार : सबरंग 

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