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त्रिपुरा: बिप्लब देब के इस्तीफे से बीजेपी को फ़ायदा या नुक़सान?

बिप्लब देब के प्रदर्शन से केंद्रीय नेतृत्व नाख़ुश था लेकिन नए सीएम के तौर पर डॉ. माणिक साहा के नाम के ऐलान से बीजेपी के पुराने नेता नाराज़ बताए जाते हैं।
Biplab Kumar Deb

यूं तो बीजेपी के बिप्लब कुमार देब हमेशा अपने विवादित बयानों से सुर्खियां बनाते हैं लेकिन इस बार वो खुद बिना किसी विवाद के सुर्खी बन गए हैं। वजह बीजेपी का बिप्लब कुमार देब को त्रिपुरा राज्य के मुख्यमंत्री की सीट से हटा कर डॉ. माणिक साहा को नया सीएम बनाने का फ़ैसला है, जिसे आने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। त्रिपुरा विधानसभा की 60 सीटों के लिए अगले साल फरवरी-मार्च में चुनाव होने हैं, जिसकी तैयारी बीजेपी ने अभी से ही शुरू कर दी है।

खबरों के मुताबिक बिप्लब देब से ही विधायक दल की बैठक में डॉ. साहा के नाम का प्रस्ताव रखवाया गया था। डॉ. साहा पेशे से दंत चिकित्सक हैं और निजी तौर पर बिप्लब देब के काफी करीबी माने जाते हैं। डॉ. साहा की प्रदेश में काफी साफ सुथरी छवि और उन्हें एक सज्जन व्यक्ति के तौर देखा जाता है। वैसे डॉ. साहा ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में एक भी बड़ा चुनाव नहीं जीता है। इसी साल मार्च में वे त्रिपुरा की एकमात्र सीट से राज्यसभा के लिए चुने गए थे। साल 2018 में जब बिप्लब देब को पार्टी ने त्रिपुरा का मुख्यमंत्री नियुक्त किया उसके बाद डॉ. साहा को प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया था। अब पार्टी चुनाव में अपना अगला दाव उन्हीं के सहारे चलना चाहती है।

बता दें कि चुनाव से ठीक पहले पुराने मुख्यमंत्रियों की छुट्टी करना और नए चेहरों को मैदान में उतारना बीजेपी की पुरानी नीतियों में से एक है। इससे पहले भी बीजेपी ने उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को हटा कर पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी थी। बीजेपी को इस प्रयोग का हाल ही में संपन्न हुए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में फायदा हुआ और पार्टी को दोबारा सत्ता मिली। राजनीति के जानकारों का यह मानना है कि बीजेपी एक बार ऐसा ही प्रयोग पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा में करने जा रही है।

क्या है पूरा मामला?

15 मई, रविवार, 11.30 बजे डॉ. माणिक साहा ने अगरतला के राजभवन में आयोजित एक कार्यक्रम में राज्य के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इससे पहले बिप्लब देब ने विधानसभा चुनाव से महज 10 महीने पहले शनिवार,14 मई को त्रिपुरा के मुख्यमंत्री की कुर्सी से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया। इस्तीफा देने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में बिप्लब देब से जब अचानक इस्तीफा देने पर सवाल हुआ तो उन्होंने बड़ी चतुराई से जवाब टालते हुए कहा कि पार्टी सबसे ऊपर होती है और हम लोग भारतीय जनता पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता हैं।

उन्होंने कहा, "मैंने त्रिपुरा के लिए काम किया है और मैं पार्टी का आभारी हूं। बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित भाई शाह जी ने मुझे प्रदेश का अध्यक्ष नियुक्त किया था। उसके बाद से मैंने उनके मार्गदर्शन में काम करना शुरू किया। यह उम्मीद करता हूं कि मुझे पार्टी अध्यक्ष से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री तक जो भी जिम्मेदारी दी गई थी, मैंने त्रिपुरा के लोगों के पक्ष में पूरी तरह न्याय करने की कोशिश की।"

बिप्लब देब के प्रदर्शन से केंद्रीय नेतृत्व नाखुश

हालांकि राजनीति के गलियारों में ये हवा पहले से थी कि मुख्यमंत्री के तौर पर बिप्लब देब के प्रदर्शन से केंद्रीय नेतृत्व काफी नाखुश है और उन्हें बदला जा सकता है। इसकी प्रमुख वजह घोषणा पत्र को वादों का पूरा न होना है। कहा जा रहा है कि बीजेपी ने जो भी वादे किए थे उनमें से कोई भी वादा अभी तक पूरा नहीं किया गया है। केवल राज्य सरकार के कर्मचारियों को 7वां वेतन आयोग के समान वेतन देने के वादे पर कदम आगे बढ़े हैं लेकिन वह भी आंशिक रूप से ही पूरा हुआ है। प्रदेश में भी बिप्लब देब के नाम पर काफी नाराज़गी है, जिसके चलते आने वाले चुनाव में बीजेपी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती।

साहा को लेकर भी कोई ख़ास ख़ुशी नहीं

वैसे प्रदेश से इतर खुद बीजेपी नेताओं में भी डॉ माणिक साहा के नाम को लेकर खासी सहजता नहीं दिख रही। अंदर के हलकों से खबर है कि कई पुराने बीजेपी नेता खुलेआम साहा के नाम का विरोध कर रहे हैं, लेकिन कोई भी खुले तौर पर पार्टी से बगावत नहीं करना चाहता। इसका कारण ये भी है कि साहा पूर्व कांग्रेसी हैं और बीजेपी समर्थकों में उनका कोई बड़ा जनाधार नहीं है। साल 1976 में प्री-मेडिकल आंदोलन में बतौर एक छात्र नेता अहम भूमिका निभा चुके डॉ. साहा कांग्रेस में लंबे समय तक रहने के बाद 2016 में बीजेपी में शामिल हो गए थे। पार्टी ने उन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव में बूथ प्रबंधन कमेटी की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। उन्होंने ज़मीनी स्तर पर बीजेपी को मजबूत बनाने के लिए काफ़ी काम भी किए बावजूद इसके पुराने बीजेपी नेता उनके बढ़ते कद को हजम नहीं कर पा रहे।

गौरतलब है कि त्रिपुरा बीजेपी में अभी सब कुछ ठीक नहीं कहा जा सकता। क्योंकि बिप्लब देब की सरकार में उप-मुख्यमंत्री रहे जिश्नु देव वर्मा को राजनीतिक अनुभव के हिसाब से नए मुख्यमंत्री का प्रबल दावेदार माना जा रहा था, ऐसे में उनका पत्ता काटकर डॉ. साहा पर भरोसा पार्टी को जल्द ही भीतरी कलह की ओर ले जा सकता है। उधर, सीपीएम और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पहले ही डॉ. साहा के सामने चुनौती पेश कर रही हैं तो वहीं राज्य में होने वाली 'राजनीतिक हिंसा' भी फिलहाल एक अहम मुद्दा है। ऐसे में बीजेपी का ये नया राजनीतिक दांव कितना सफल होता है ये त्रिपुरी में बीजेपी के भविष्य को तय करेगा।

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