त्रिपुरा चुनाव: '10323' बर्ख़ास्त शिक्षकों को जगी उम्मीद, वाम मोर्चा ने 2 को मैदान में उतारा
अगरतला: 2 जनवरी, 2021 को दक्षिण त्रिपुरा के राजनगर में नमिता अपने पति की चिता पर औंधे मुंह लेट गईं थी। मानो कि जैसे भारत के इतिहास में एक बार फिर से 'सती' की जघन्य प्रथा के पन्ने खुलने वाले थे। उनके मृत पति, उत्तम त्रिपुरा, अध्यापक की नौकरी से बर्खास्त किए गए उन हजारों सरकारी शिक्षकों में से एक थे, जिन्हें '10323' बैच के रूप में जाना जाता है, और कथित तौर पर आत्महत्या से मर गए क्योंकि वे अपने दो बच्चों, पत्नी, माता-पिता के लिए चावल खरीदने में भी असमर्थ थे, क्योंकि गिरवी रखने के लिए अब उनके पास कुछ भी नहीं बचा था और बड़े पैमाने पर कर्ज़ के बोझ में दब गए थे।
नमिता का उस दिन की तकलीफ आज भी उन लोगों में सिहरन पैदा कर देता है, जिन्होंने उस दृश्य को या तो देखा था या फिर इसे सोशल मीडिया या समाचार में देखा था। हालांकि, लगता है कि भाजपा सरकार पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ा, क्योंकि सरकार ने इसके बाद भी परिवार के लिए कुछ नहीं किया। वो अलग बात है कि, नमिता को चिता से खींच लिया गया, लेकिन यह घटना, अप्रैल 2020 से बेरोजगार हुए '10323' शिक्षकों और उनके परिवारों की दयनीय स्थिति को दर्शाता है, वह महीना जिसने उत्तर पूर्वी राज्य त्रिपुरा के 10,000 से अधिक शिक्षकों को बेरोजगार कर दिया था। यहां 16 फरवरी को विधानसभा चुनाव होना है।
बर्खास्त शिक्षकों को 2010 और 2013 में दो बैचों में भर्ती किया गया था, और इस प्रकार उनकी संख्या 10,323 थी। हालांकि, त्रिपुरा उच्च न्यायालय के एक आदेश ने एक त्रुटिपूर्ण नीति का हवाला देते हुए उनकी भर्ती को 'असंवैधानिक' करार दिया था और सर्वोच्च न्यायालय ने भी 2017 में राज्य के तत्कालीन विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले हाई कोर्ट के निर्णय की पुष्टि की थी।
हालांकि बर्खास्त '10323' शिक्षकों ने सैकड़ों प्रदर्शन, रैलियां की, यहां तक कि मुख्यमंत्रियों और उनके मंत्रिमंडल के साथ कुछ बैठकें की और उन्हें अपनी असहनीय परिस्थितियों से अवगत कराया। उन्होंने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से अपने उस चुनावी वादे को पूरा करने का आग्रह जिसमें कहा गया था कि "उन्हें बर्खास्त नहीं किया जाएगा”, बल्कि जरूरी हुआ तो संविधान में संशोधन करके उनकी नौकरी बचाई जाएगी"। लेकिन, बहाल करने के बजाय, शिक्षकों पर क्रूर पुलिस कार्रवाई की जा रही है, उन पर कड़े मुक़दमे थोपे गए, और उन्हें गिरफ्तारी, हिरासत और अन्य ज़ुल्मों का सामना करना पड़ा।
सीपीआई(एम) ने दो बर्खास्त शिक्षकों को उम्मीदवार बनाया
बर्खास्त अध्यापाकों में से एक सत्यजीत रियांग ने कहा कि, 'जिन लोगों ने हमें इस स्थिति में ला खड़ा किया है, हमें उनसे राजनीतिक रूप से लड़ने की जरूरत है। कोई मांग, कोई अनुरोध काम नहीं करेगा। आपने पिछले पांच वर्षों में यह सब देखा है। जब तक हम उन्हें (बीजेपी को) सत्ता से बाहर नहीं कर देते, हम अपने अधिकारों को हासिल नहीं पाएंगे। सत्यजीत रियांग भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के उम्मीदवार के रूप में राजनगर के बगल में मौजूद, शांतिबाजार निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं।
सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चा ने '10323' समुदाय के दो शिक्षकों को मैदान में उतारा है। सुदीप सरकार दूसरे उम्मीदवार हैं, जो पश्चिम जिले के बरजाला निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं।
सरकार ने मुझे बताया कि, “हम अलग-थलग पड़े लोग नहीं हैं, हम में से हर-एक संकट में फंसा है, चाहे वह आजीविका हो, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो, धर्म हो, लोकतांत्रिक मताधिकार हो या शांति-शांति हो, भाजपा शासन ने पूरे ताने-बाने को तोड़ दिया है। यह एक फासीवादी निज़ाम है।”
शिक्षकों ने तुरंत अपनी नौकरी नहीं खोई, क्योंकि सरकार उनके जाने के बाद पैदा होने वाली भारी कमी को भरने के लिए समय चाहती थी। इसलिए, कुछ समय की अनुमति दी गई थी, लेकिन ये शिक्षक अब 'स्थायी' शिक्षक नहीं थे और 10 साल की सेवा के बाद वे शीर्ष अदालत ने उनकी बर्खास्तगी की पुष्टि के बाद रातों-रात 'संविदात्मक' हो गए थे। यह वही भर्ती नीति थी जिसमें सरकारी पदों पर भर्ती के दौरान 'गरीब' और 'वरिष्ठ' उम्मीदवारों को कुछ हद तक तरजीह दी जाती थी। इन शिक्षकों की भर्ती को कई साल हो चुके हैं। आज, बाद में और पहले भर्ती किए गए सभी लोग अभी भी सेवा में हैं यदि सेवानिवृत्त नहीं हुए हैं, आदि।
बाद में, इनमें से कुछ शिक्षक अन्य नौकरियों में चले गए। लेकिन, इसके बाद भी प्रभावित शिक्षकों की संख्या नौ हजार से कम नहीं है। उनमें से कई जीविकोपार्जन के लिए मामूली काम कर रहे हैं।
10 साल पढ़ाने के बाद उन्होंने जो सम्मान कमाया, वह अब उनके लिए रोड़ा बन गया है। शायद ही कोई 'शिक्षक' को 'होटल बॉय', या 'क्लीनर' की नौकरी देगा। उनमें से कई काम खोजने के लिए अपने मूल स्थानों पर वापस चले गए हैं। कुछ लोग सब्जियां और मछली बेच रहे हैं, राजमिस्त्री की मदद कर रहे हैं, मिट्टी की मूर्तियां बना रहे हैं और निजी सुरक्षा गार्ड या ड्राइवर के रूप में काम कर रहे हैं।
वामपंथी उम्मीदवार सुदीप सरकार खुद दूध बेचते हैं, बकरियां पालते हैं और खेती करते हैं, जबकि रियांग कुछ बेहतर स्थिति में हैं, क्योंकि उन्हें अपने परिवार के रबर बागान से कुछ आमदनी हो जाती है।
पूर्व मुख्यमंत्री और माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य माणिक सरकार ने संवाददाताओं से कहा कि, "अदालत का आदेश बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था। हम आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को राहत देना चाहते थे। वे प्रसिद्ध संस्थानों से शिक्षा नहीं ले सकते थे, और कठिनाइयों के चलते इससे बेहतरीन प्रदर्शन नहीं कर सकते थे। अगर हमने उन्हें थोड़ी राहत नहीं दी होती, तो वे हमेशा के लिए कठिनाइयों का सामना करते रहते। इस मामले को देखने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच एक संघी बेंच थी। हम अदालत के आदेशों का पालन करने को बाध्य थे, इस प्रकार हमने उन्हें अन्यथा रखने की कोशिश की, जिसे उसी अदालत ने फिर से खारिज कर दिया जब हम सत्ता में थे। अगर हम फिर से सत्ता में आते हैं, तो हम बिना कोई चूक किए उनके लिए प्रावधान करेंगे।
2018 के राज्य चुनावों से पहले, ये शिक्षक अपने परिवार के साथ एक आकर्षक वोट बैंक के रूप में नज़र आते हैं। उस समय, भारतीय जनता पार्टी ने 25 साल के वाम शासन को गिराने की कोशिश की थी, और वादा किया था कि उन्हें उसी नौकरी में रखा जाएगा। बीजेपी के नेतृत्व वाले नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के अध्यक्ष और अब असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने 2018 में कहा था कि “उन्हें बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिए। यदि जरूरी हुआ तो हम कानून या संविधान में संशोधन करेंगे। … मेरे शब्दों को याद रखें, अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो इसे बार-बार दोहराए।”
बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र 'विजन डॉक्यूमेंट' में भी इसी वादे की घोषणा की थी, जो 299 बिंदुओं वाली एक पुस्तिका है, जो 2018 के त्रिपुरा चुनावों में बीजेपी की जीत के बाद पूरी नहीं हुई है।
चुनाव खत्म होते ही तमाम आश्वासनों की तरह '10323' का मुद्दा भी 'महत्व' खो बैठा। अंततः एक छोटे से एक्सटेंशन के बाद, सभी को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। भाजपा सरकार और पार्टी ने शुरू से उन्हें जुबानी आश्वासन दिया था और अंत में उस अध्याय को बंद कर दिया गया। यहां तक कि शिक्षा मंत्री रतनलाल नाथ ने शिक्षकों को 'अयोग्य' करार दिया।
हालांकि बर्खास्त किए गए शिक्षकों के एक वर्ग ने खुले तौर पर सत्ताधारी पार्टी का समर्थन किया, लेकिन '10323' शिक्षकों को बड़े पैमाने पर 'लाल कैडर' के रूप में लेबल किया गया था, और उस पर अपमान यह कि कथित तौर पर भगवा ब्रिगेड से जुड़े एक वर्ग ने नौकरी बहाली की मांग का विरोध करना शुरू कर दिया था। छात्रों या पूर्व छात्रों, जिन्होंने विरोध प्रदर्शन आदि में शामिल होकर अपने शिक्षकों के साथ एकजुटता व्यक्त की, उन्हें न केवल ट्रोल किया गया, बल्कि उनमें से कुछ को उनके बयान वापस लेने पर भी मजबूर किया गया। कई शिक्षकों को प्रदर्शनों में भाग लेने या राज्य की उदासीनता की आलोचना करने के लिए शारीरिक हमलों का सामना करना पड़ा, शिक्षकों का दावा है, कि "पुलिस ने कुछ नहीं किया।"
नौकरी से बर्खास्तगी के बाद का जीवन
'10323' शिक्षकों में से कम से कम 150 की बर्खास्तगी के बाद मृत्यु हो गई है, और इनमें से कम से कम आठ ने कथित तौर पर आत्महत्या की है। रूमी देबबर्मा ने कथित तौर पर 9 जनवरी, 2021 को तब आत्महत्या कर ली थी, जब शिक्षक अगरतला में सड़क किनारे 24 घंटे के अनिश्चितकालीन प्रदर्शन कर रहे थे। एक महीने के बाद, एक दिन जब प्रदर्शनकारी सो रहे थे, तो पुलिस ने तड़के उन्हें बलपूर्वक खदेड़ दिया था। देबबर्मा मास्टर डिग्री में गोल्ड मेडलिस्ट थीं। ऐसा कहा जाता है कि वे निकाले जाने का अपमान सहन नहीं कर पाईं।
जिन लोगों की प्राकृतिक कारणों से मृत्यु हुई, उनके परिवार और दोस्तों ने बेरोजगारी को मुख्य कारण माना, क्योंकि उनमें से अधिकांश आर्थिक तंगी के कारण उचित चिकित्सा का खर्च नहीं उठा सकते थे। अपनी '10323' पत्नी के साथ प्रदर्शन में शामिल एक शिक्षक का पति वहां अचानक बीमार पड़ गया और बाद में उसकी मौत हो गई। बड़े प्रदर्शनों के बाद जमा हुई भारी भीड़ को नकारने के प्रयास में, भाजपा ने वामपंथियों को दोष देना शुरू कर दिया। उन्होंने खुले तौर पर कहा कि प्रदर्शन शिक्षकों के नहीं, बल्कि 'लाल कैडरों' के थे, जिसका अर्थ है कि सीपीआई (एम) ने अपने कैडरों को "भीड़ बढ़ाने या बनाने" के लिए भेजा था और उन्हें भाजपा सरकार के 'प्रयासों' से विचलित करने के लिए भेजा था।
ये सब शिक्षक संविदात्मक (बर्खास्तगी के बाद) हो गए और उसके बाद, तत्कालीन वामपंथी सरकार ने उन्हें वैकल्पिक सरकारी नौकरी प्रदान करने का प्रयास किया था लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने प्रक्रिया पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि, कुछ महीनों के बाद, प्रतिबंध हटा लिया गया था, लेकिन तब तक वामपंथी सत्ता में नहीं रहे थे और भाजपा सरकार से बार-बार मांग करने, याद दिलाने और अपील के बावजूद प्रक्रिया जारी नहीं रखी गई।
एक भद्दा मजाक
त्रिपुरा चुनाव की तारीख 18 जनवरी घोषित होने से कुछ दिन पहले, भाजपा सरकार ने शिक्षकों की बहाली के तरीके सुझाने के लिए एक समिति का गठन किया था, और रिपोर्ट जमा करने की अंतिम तिथि 31 मार्च, 2023 निर्धारित की गई थी। इस समय तक तो एक नया मंत्रिमंडल बन जाएगा।
इस बीच, '10323' शिक्षकों ने इस कदम की आलोचना की है। "वास्तव में यह एक भद्दा मजाक है! जैसा कि सब जानते थे कि आदर्श आचार संहिता लागू होने वाली है, और उन्होंने तभी यह समिति गठित की। यह पूरी तरह प्रशासन का मजाक है। हमने कुछ भी नहीं मांगा, सिर्फ जीने का हमारा अधिकार मांगा है। हमें सभी निर्धारित मानदंडों को पूरा करने के बाद ही नौकरी मिली थी। त्रिदीप पॉल जो अपने पूर्व सहयोगी सुदीप सरकार के लिए डोर-टू-डोर अभियान का हिस्सा थे। उन्होंने कहा कि, वे इसे आसानी से कर सकते थे, वे केवल उन नियुक्ति पत्रों को भेज सकते थे जिन्हें वामपंथी सरकार ने वैकल्पिक सरकारी कार्यों के लिए तैयार किया था।
वामपंथी शिक्षक उम्मीदवार रियांग ने कहा कि, "न केवल '10323' समूह, बल्कि थोड़ा दिमाग और दिल वाला कोई भी व्यक्ति इस आतंक, तंगी वाले शासन के लिए मतदान नहीं करेगा।" उन्होंने कहा, हम प्रतीकात्मक रूप से समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, हालांकि किसी खास विधायक के विशेष समूह के लिए नहीं। हम शिक्षकों को अगली पीढ़ी के लिए पारदर्शी राजनीति का उदाहरण पेश करना होगा।
माकपा और कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में वादा किया है कि अगर वे सरकार बनाते हैं, तो इन शिक्षकों को वापस सरकार के पाले में ले लिया जाएगा और मृत शिक्षकों के परिवारों को सहायता प्रदान की जाएगी। इसके अलावा, सीपीआई (एम) ने अपने घोषणापत्र में बेरोजगार युवाओं के लिए 50,000 नौकरियों का वादा किया है, जिसमें हर साल सरकारी नौकरी भी शामिल है, इस प्रकार पांच वर्षों में कुल 2.5 लाख नौकरियां दी जाएंगी।
कांग्रेस नेता सुदीप रॉय बर्मन, जिन्होंने पिछला चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़ा था और जीते थे, लेकिन एक साल पहले कांग्रेस में लौट आए। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, "बहुत हो गया, शिक्षकों को उनका गौरव और सम्मान वापस दिया जाएगा।" माकपा के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी ने कहा, “यह पहली प्राथमिकताओं में से एक होगी। हम उनके दुख को अब और बर्दाश्त नहीं कर सकते, एक पल के लिए भी नहीं।” 60 सीटों के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां गठबंधन में हैं।
सीपीआई (एम) के एक अन्य उम्मीदवार, संजय दास, जो एक शिक्षक भी हैं, उन्होंने कहा कि, "बीजेपी ने हमें नौकरी देने का आश्वासन दिया था, लेकिन वादा नहीं निभाया। लेकिन लोग हम पर भरोसा करेंगे, क्योंकि अपने अनुभव से वे जानते हैं कि वामपंथियों ने जो आश्वासन दिया था, वह उनके कार्यकाल में पूरा हुआ था। यहां तक कि कुछ बीजेपी समर्थक भी इससे सहमत हैं। भाजपा सरकार ने '10323' के संदर्भ में पिछले वामपंथी मंत्रियों की गलती खोजने के लिए एक आयोग का गठन किया था, लेकिन रिपोर्ट अभी तक सामने नहीं आई है। क्योंकि, इसमें कोई भ्रष्ट आचरण नहीं था, कोई द्वेष या पक्षपात नहीं था।
आत्मविश्वास से भरे सुदीप सरकार ने कहा कि, "यह सही है कि '10323' शिक्षक आमदनी के लिए जूझ रहे हैं। अगर हमारी सरकार आती है तो उनकी परेशानी खत्म हो जाएगी। इस बार सत्ता में बदलाव साफ दिख रहा है। मैंने जनता की पीड़ा देखी है और कुशासन भी देखा है, मैं व्यवस्था बदलने के लिए कुछ करना चाहता हूं, इसलिए मैं खुद सीधे चुनावी मैदान में उतरा हूं।"
लेखक त्रिपुरा स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।
मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :
Tripura Elections: Revival of Hope for ‘10323’ as Left Fields 2 Affected Teachers in Polls
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।