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तुग़लक़ाबाद गांव: आख़िर चल ही गया बुलडोज़र, लेकिन कहां जाएंगे बेघर लोग?

क़रीब 1321 में बने तुग़लक़ाबाद क़िले के आस-पास के इलाक़े में हुए अतिक्रमण को हटाने के लिए MCD ने रविवार को कार्रवाई की, इस दौरान बेघर हुए लोगों ने बस एक ही सवाल किया कि अब वे कहां जाएंगे?
Tughlaqabad

...और आख़िरकार आशियाना टूट ही गया, आसमान से गिरता पानी, बेबस लोगों की आंखों से बरसते दर्द में शामिल हो रहा था। समझ नहीं आ रहा है आसमान से ज़्यादा पानी बरस रहा है या लोगों की आंखों से? ज्यों-ज्यों बारिश तेज़ हो रही थी लोगों की आंखों में भी चिंता का समंदर उफन रहा था।

imageवे महिला जिनके घर में शादी थी और शादी का सामान बारिश में भीग गया

भीगती हुई एक महिला ने मलबे से उस बर्तन को निकाला जिसमें सुबह उसने रोटियां बनाईं थी। प्रशासन की कार्रवाई के बाद उसे रोटियों की चिंता इसलिए थी क्योंकि रात को वे अपने बच्चों को यही रोटियां खिलाकर सुलाएगी, लेकिन सुलाएगी कहाँ ये उसे ख़ुद भी नहीं पता, महिला के छह बच्चे हैं और सबसे छोटा बच्चा क़रीब सात-आठ महीने का है।

रविवार, 30 अप्रैल की सुबह से ही दिल्ली के तुग़लक़ाबाद गांव के आस-पास दिल्ली-पुलिस के साथ ही भारी सुरक्षा बल की तैनाती की गई थी, पूरा इलाक़ा छावनी में तब्दील कर दिया गया था। बड़े अधिकारी मौके पर मौजूद थे और कई जगह बैरीकेटिंग कर यहां के बंगाली कैंप पर MCD का बुलडोज़र चला, लोगों के मकान-दुकान सब ध्वस्त कर दिए गए। आज सोमवार सुबह होते ही एक बार फिर से बुलडोज़र की कार्रवाई शुरू हो गई और एक बार फिर से लोगों के मकान और दुकान गिराए जाने का सिलसिला शुरू हो चुका है।

इसी साल जनवरी में इन लोगों को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ( ASI ) की तरफ से नोटिस मिला था, लोगों को जल्द से जल्द घर ख़ाली करने का आदेश दिया गया था, उस वक़्त इन लोगों ने भी साफ़ कर दिया था कि ''चाहे कुछ भी हो जाए हम अपना घर छोड़कर नहीं जाएंगे'' दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने भी इन लोगों के समर्थन में एक प्रोटेस्ट किया था और लोगों को आश्वासन दिया था कि वे उनके साथ हैं, लेकिन रविवार को जब बुलडोजर चला तो वहां किसी भी पार्टी का नेता तो दूर की बात है कोई कार्यकर्ता तक नहीं दिखा।

imageघर टूटने के बाद बेघर हुए लोग

लोगों का आरोप है कि भले ही जनवरी में नोटिस मिला था लेकिन आज ( रविवार ) जिस तरह से कार्रवाई की गई वे बहुत ही ग़लत तरीक़ा था। एक महिला बबीता ने कहा कि '' मैं घर पर नहीं थी कोठी में काम करती हूं वहां काम के दौरान फोन इस्तेमाल करने की मनाही है लेकिन जब मैंने देखा कि फोन पर हमारे पड़ोसी की बहुत सारी मिस कॉल है तो मैंने उन्हें कॉल बैक किया तो उन्होंने( पड़ोसियों) बताया कि तुम्हारा घर टूट गया, मैं एक चम्मच तक नहीं निकाल पाई, सारा कुछ ख़त्म हो गया। मेरे पास अब कुछ नहीं है, सब कुछ ख़त्म हो गया, देखिए मैं कैसे सड़क पर आ गई हूं, एक बेटा मेरे साथ है एक बेटा और बेटी मलबे के पास ही बैठे हैं पानी में भीग रहे हैं, मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं पन्नी( पॉलिथीन शीट) ख़रीद कर अपने बच्चों को भीगने से बचा सकूं, सैलरी नहीं आई है हमारी अभी तक''।

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मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक क़रीब एक सप्ताह पहले ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने ASI को सख़्त हिदायत देते हुए ऐतिहासिक तुगलकाबाद किले के आस-पास से अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया था।

imageMCD की कार्रवाई में मलबे में तब्दील हुए घर

तुगलकाबाद गांव के इस इलाक़े में चारों तरफ मलबे में तब्दील हुए मकान-दुकान के ढेर थे, बेचैन लोग इधर से उधर दौड़ रहे थे, कोई मलबे में से बचे हुए सामान को जमा कर रहा था तो कोई बचे सामान को लेकर किसी रिश्तेदार के घर का रुख कर रहा था, अफरा-तफरी के माहौल में बहुत से लोग नाराज़ दिखे, एक मिनी ट्रक पर अपना बचा-खुचा सामान रख रहे मोनू सिंह से जब हमने जानना चाहा कि वे सामान लेकर अब कहां जाएंगे तो गुस्साए मोनू ने कहा कि '' कहां जाएंगे, आप ही बताइए कहां जाएंगे? फिलहाल किसी रिश्तेदार के घर सामान रख कर फिर कोई अपने लिए इंतज़ाम करेंगे, इस वक़्त तो किराए का घर भी मिलना मुश्किल होगा''

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सरकार से बेहद ख़फ़ा मोनू कहते हैं कि '' कहां है वे सरकार जो वोट लेने आती है? उन्हें तो बस वोट से ही मतलब है, जब वोट चाहिए होता है तो वे कहते हैं कि घर बना लो, फिर तोड़ दो, बस सरकार का यही काम है''

इसे भी देखें: तुग़लक़ाबाद में ASI के नोटिस के बाद कैसा है माहौल?

कहीं घर का दरवाज़ा खड़ा था और घर मलबे में तब्दील हो चुका था, कहीं पानी की टंकी टूटी पड़ी थी, घर का बिखरा सामान यूं ही पानी में भीग रहा था, जगह-जगह खड़े बैटरी रिक्शा में बैठे लोग तेज़ बारिश में अपने घर का सामान जैसे टीवी, फ्रिज को बेबस भीगता देख रहे थे, एक बेहद नाराज़ औरत ने कहा कि '' आ जाए अब झाड़ू वाले या फिर कमल वाले किसी को वोट नहीं दूंगी, जो घर तोड़ने आए हैं वे कह रहे कि ये ज़मीन किले वालों की है तो मैं भी पूछना चाहती हूं कि जिस वक़्त यहां घर बन रहे थे, वोटर कार्ड बन रहे थे, बिजली का बिल आ रहा था उस वक़्त किले वाले ( ASI ) कहां थे? उस वक़्त ही रोक देना चाहिए थे अब हमने मेहनत की कमाई से ये घर बनाया तो आकर तोड़ रहे हैं कहां जाएंगे हम'' ?

इसे भी देखें :बुल्डोज़र की कार्रवाई के ख़िलाफ़ आप विधायकों का प्रदर्शन

लोगों की शिकायत है कि बग़ैर उनके कहीं रहने के इंतज़ाम किए इस तरह की कार्रवाई कर दी गई है, लोगों के मुताबिक किसी को एक रात पहले आकर पुलिस ने घर खाली करने के लिए कहा था तो किसी को आधे घंटे पहले जबकि कुछ लोगों ने बताया कि ज़्यादातर लोग काम पर गए थे और पीछे से उनके घरों पर बुलडोजर चला दिया गया।

बेतहाशा रोती हुई एक महिला ने अपने हाथों की मेहंदी दिखाते हुए कि ''अभी दो दिन पहले ही घर में शादी थी, सारे रिश्तेदार घर पर आए हुए थे पूरा घर सजाया था और आज उस घर को तोड़ दिया जाएगा'', पानी में भीगते सामान को दिखाते हुए वे कहती है कि अभी तो बहन को जो शादी में सामान देना था वो तक घर में पड़ा है जो अब यूं ही भीग रहा है, लेकिन किसी को हम पर तरस नहीं आ रहा है''

वहीं उनके घर की एक बुजुर्ग भी बदहवास हो रही थीं और रोती हुई वे कहती हैं कि '' हमारी सरकार है, कुर्ता पहनकर पूरी दुनिया में घूमते फिरते हैं लेकिन उनके पैरों में जो पड़े हैं उन्हीं पर उनकी नज़र नहीं जाती जबकि हमीं लोगों ने उन्हें उठाकर आसमान पर बैठाया है।''

वहीं अपने घर की लाइटों को हटा रहे एक युवक ने बताया कि ''सामान हटा लिया है लेकिन पुलिस ने चारों तरफ से रास्ते बंद रख हैं ऐसे में कोई गाड़ी भी यहां नहीं आ पा रही है पानी बरस रहा है ऐसे सामान कहां ले जाएं समझ ही नहीं आ रहा, घर पर छोटे-छोटे बच्चे हैं इन्हें लेकर अब हम कहां जाए?”

वहीं एक महिला अपने भीगते सामान को दिखाते हुए कहती हैं कि ''सामान भीग गया इसका गम नहीं है सामान से बड़ी चिंता तो घर की है इतनी मुश्किल से घर बनाया था, एक दिन पहले तक हमें इस बात का एहसास नहीं था कि घर टूट जाएगा।''

सर पर ट्रंक लिए चले जा रहे मोहम्मद बिलाल कहते हैं कि ''आठ लोगों का परिवार है छोटे बच्चे भी हैं घर में पहले हमें कहा गया कि एक तारीख को बुलडोजर चलेगा लेकिन फिर 30 अप्रैल को ही बुलडोजर चला दिया कहां जाएं''?

imageसर पर ट्रंक लेकर जा रहे बेघर हुए मोहम्मद बिलाल

एक ठेले पर घर के सामान के ऊपर तुलसी का पौधे को गिरने से बचाते हुए एक शख्स से हमने पूछा कि पहले नोटिस मिला था तो कोई इंतज़ाम क्यों नहीं किया? तो उनका जवाब था कि '' नोटिस अभी नहीं पहले मिला था लेकिन अगर नोटिस मिला भी तो हम जाएंगे कहां क्या सरकार ने हमारे रखने की कोई व्यवस्था की है''?

imageठेले पर घर का सामान

क़रीब 10-11 साल की एक बच्ची सुहाना गोद में एक फूल का पौधा लिए अपनी बहन के साथ क़रीब ही रहने वाली मौसी के घर जा रही थी हमने पूछा क्या हुआ तो मासूमियत के साथ कहा कि ''घर टूट गया'' सुहाना कहती है कि वे अब किराए के घर में रहेंगे उनका घर टूट चुका है।

imageघर से फूल का पौधा ले जाती हुई

सुहाना जैसी बहुत सी बच्चियां हैं जिनके घरों को तोड़ दिया गया है, कल तक जो अपने घरों में रहा करते थे वे रातों रात सड़क पर आ चुके हैं, कुछ लोगों ने दबी ज़बान में बताया कि जिन लोगों से उन्होंने ज़मीन ख़रीदी थी वे घरों पर ताला लगाकर ग़ायब हैं। लोगों ने बताया कि वे रोज़ कमाने-खाने वाले लोग हैं बड़ी मेहनत से थोड़ा-थोड़ा पैसा जोड़कर घर ख़रीदा था अगर उस वक़्त उन्हें पता होता कि जिस ज़मीन को वे ख़रीद रहे हैं वे सरकार की ( आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ) है तो कतई अपना पैसा यहां न लगाते।

प्रशासन, कोर्ट के आदेश के तहत ये काम कर रहा है। जिन लोगों के घर टूटे हैं वे कोई बड़ा वकील नहीं कर सकते, इसलिए वे कोर्ट तक अपनी बात कैसे पहुंचाएं उन्हें नहीं पता। अगर ASI की ज़मीन पर अतिक्रमण हुआ है तो वे कोई एक-दो साल में नहीं किया गया है बल्कि ये खेल दशकों से चल रहा था, लेकिन उस वक़्त किसी ने संज्ञान नहीं लिया, और अब ग़रीब, मज़दूरी करके जीने वाले लोगों को उनके घर से उजाड़ दिया गया।

लेकिन ऐसे में जो सबसे बड़ा सवाल है वे ये कि अब ये लोग कहां जाएंगे? आख़िर इनके पुनर्वास का क्या प्लान है? बेघर हुए लोग क्या फिर से एक नई जगह पर जाकर बस जाएंगे और एक बार फिर से उन्हें वहां से उजाड़ दिया जाएगा? तो आख़िर ये सिलसिला कब थमेगा?

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