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डीयू के दो और प्रोफ़ेसर को भीमा कोरेगांव मामले में समन, छात्र-शिक्षकों ने किया विरोध

प्रोफेसर राकेश रंजन और प्रोफेसर पी के विजयन को भी जांच में शामिल होने के लिए कहा गया। छात्रों और शिक्षकों ने इस कार्रवाई को कानूनों का गलत उपयोग और सरकार द्वारा विरोधी आवाज़ों को दबाने की कोशिश बताया।
डीयू के दो और प्रोफ़ेसर

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के दो और प्रोफ़ेसर को NIA ने समन किया। इससे पहले इसी मामले में डीयू के प्रोफेसर हैनी बाबू की गिरफ़्तारी हो चुकी है। श्री राम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर राकेश रंजन और हिन्दू कॉलेज के इंग्लिश विभाग के प्रोफेसर पी के विजयन को भी जांच में शामिल होने के लिए कहा गया है। छात्रों और शिक्षकों ने इस कार्रवाई को कानूनों का गलत उपयोग और सरकार द्वारा विरोधी आवाज़ों को दबाने की कोशिश बताया।

प्रो. विजयन के समर्थन में और सभी राजनीतिक बंदियों की रिहाई को लेकर हज़ारो छात्रों-शिक्षकों ने संयुक्त बयान जारी किया है। इसी तरह छात्र संगठनों ने और शिक्षकों ने प्रो. राकेश रंजन के समर्थन में ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान शुरू किया और उनके समर्थन में बयान जारी किया है।

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आपको बता दें कि दोनों शिक्षकों को स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पूर्व यानी शुक्रवार 14 अगस्त को समन किया गया था। दोनों पर ही भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े होने का शक जताया जा रहा है। लेकिन छात्र शिक्षक इसका खुलकर विरोध कर रहे हैं और इसे लोकतांत्रिक आवाज़ों को दबाने और जन मुद्दों पर लिखने बोलने वालो को डराने की कार्रवाई बता रहे हैं। शुक्रवार को जब प्रो. विजयन और रंजन से पूछ्ताछ हो रही थी तब उनके समर्थन में डीयू शिक्षक संघ (डूटा) के अध्यक्ष राजीव रे सहित कई शिक्षक और छात्र सीजीओ कॉम्प्लेक्स एनआईए कार्यालय के बाहर सुबह 10 बजे दिन भर खड़े रहे।

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इसी मामले अभी तक इनसे पहले डीयू के हैनी बाबू समेत कुल चार प्रोफ़ेसर को गिरफ़्तार किया जा चुका है। इनमें मशहूर मानवाधिकार वकील और दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में विज़िटिंग फैकल्टी सुधा भारद्वाज, गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर और जाति व्यवस्था पर दो दर्जन से अधिक किताबें लिख चुके आनंद तेलतुम्बडे, मानवाधिकार कार्यकर्ता और नागपुर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर शोमा सेन शामिल हैं। जबकि इस मामले में कुल 12 लोगों की गिरफ़्तारी हुई ,बाकी सात मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं जिनमें  सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, अरुण फरेरा, सुधीर धवले, रोना विल्सन, वर्नोन गोंसाल्वेस, वरवर राव, और गौतम नवलखा हैं, जिनमें से सभी को बार-बार जमानत देने से इनकार किया गया है।

इसी तरह दिल्ली दंगे में भी डीयू के प्रोफेसर अपूर्वानंद से तीन घंटे तक पूछताछ की गई और उन्हें दिल्ली दंगो के साजिशकर्ता के तौर पर पेश किया जा रहा है। ये सभी लोगों लगातार सरकार के नीतियों पर लिखते और बोलते रहे हैं और इसके साथ ही समाज के पिछड़े तबके की आवाज़ उठाते रहे हैं। ये सभी खुले तौर से मोदी सरकार के आलोचक रहे हैं। कई जानकारों का कहना है इसलिए इन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है।

हिंदू कॉलेज के प्रोफेसर पीके विजयन के समर्थन में जारी संयुक्त बयान जिसे 1200 से अधिक लोगों ने साइन किया है। उसमें कहा गया है कि एनआईए द्वारा प्रोफेसर विजयन को जारी किए गए समन से छात्रों, शिक्षकों और शैक्षणिक समुदाय के सदस्यों में चिंता है। हाल ही में, दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के प्रो. हैनी बाबू को भी एनआईए ने इसी तरह से तलब किया था और फिर उन्हें प्रगतिशील शिक्षकों, पत्रकारों, वकीलों, सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ ही भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में यूएपीए आरोपों के तहत गिरफ्तार किया था।

इस बयान में यह भी बतया गया है कि प्रो. विजयन एक विख्यात अकादमिक व्यक्ति हैं जिनकी लोकतांत्रिक अधिकारों, सभी के लिए शिक्षा और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता है उनकी अकादमिक व्यस्तताओं और सामाजिक सक्रियता दोनों में परिलक्षित होती है। वह सार्वजनिक शिक्षा के निजीकरण, संवैधानिक सामाजिक न्याय मानदंडों पर हमले, आरएसएस-भाजपा शासन द्वारा पाठ्यक्रम के भगवाकरण और राजनीतिक विरोध के अपराधीकरण के खिलाफ एक बुलंद आवाज़ रहे हैं। उन्होंने कई शैक्षिक पत्रों को लिखा है और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों और सम्मेलनों में भाग लिया है। उनकी सबसे हालिया पुस्तक, 'जेंडर एंड हिंदू नेशनलिज्म: अंडरस्टैंड मैस्क्युलिन हेगमेनी' को रूटलेज द्वारा प्रकाशित किया गया है ।

इस बयान में संयुक्त रूप से कहा गया है कि विजयन एक अधिक समतावादी, सिर्फ सामाजिक व्यवस्था के लिए संघर्ष में साहित्य के लिए एक जुनून को प्रेरित करते हैं। अकादमिक समुदाय के सदस्यों के रूप में,  हम दमनकारी कानूनों के आरएसएस-भाजपा शासन के बढ़ते उपयोग और जांच और न्यायिक प्रक्रियाओं में हेरफेर की निंदा करते हैं। जो आलोचनात्मक सोच और लोकतांत्रिक विरोध के खिलाफ है।

इस बयान के माध्यम से मांग की गई है कि:

1. प्रोफेसर पीके विजयन को परेशान करने के लिए राज्य एजेंसियों के प्रयोग को तुरंत रोका जाए।

2. भीमा कोरेगांव मामले में सभी राजनीतिक कैदियों को जिन्हें गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया उन्हें तत्त्काल रिहा किया जाए।

3. भीमा कोरेगांव मामले में दलित विरोधी हिंसा के आरोपी जैसे मिलिंद एकबोटे, संभाजी भिडे और अन्य लोगो को गिरफ्तार किया जाए।

4. बड़े आंदोलनों को अपराधी बनाने के लिए यूएपीए, एनएसए, एएफएसपीए और सेडिशन जैसे कानूनों का प्रयोग होता है। ऐसे सभी दमनकारी कानूनों को निरस्त करें।

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