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स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव में जा सकती है देश में लाखों बच्चों की जान!

यूनिसेफ़ के अनुसार पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने से भारत में अगले छह महीनों में पांच साल से कम उम्र के तीन लाख बच्चों की मौत हो सकती है।
Image Courtesy:  Prabhat Khabar
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“कोविड-19 के दौरान लोगों को बच्चों के जन्म, स्वास्थ्य और पोषण संबंधी सेवाएं उपलब्ध कराना ज़रूरी है। एक ऐसी स्थिति को देखना भयानक होगा जिसमें कोविड-19 से नहीं बल्कि नियमित सेवाएं बाधित होने से हज़ारों बच्चों की मौत हो जाए।”

ये कथन संयुक्त राष्ट्र के संगठन यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रेन्स इमर्जेंसी फ़ंड (यूनिसेफ़) के दक्षिण एशिया रीजनल हेल्थ एडवाइजर पॉल रटर का है। यूनिसेफ़ के अनुसार आने वाले समय में पूरे दक्षिण एशिया में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का आँकड़ा लगभग चार लाख 40 हज़ार तक पहुंच सकता है। इनमें सबसे ज़्यादा मौतें भारत में ही होने की संभावना है।

क्या है इस विश्लेषण में?

यूनिसेफ़ का ये अनुमान जॉन्स हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं के एक विश्लेषण पर आधारित है। यह विश्लेषण हाल ही में लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसके अनुसार पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने से भारत में अगले छह महीनों में पांच साल से कम उम्र के तीन लाख बच्चों की मौत हो सकती है। बाल मृत्यु का ये आँकड़ा उन मौतों से अलग होगा जो कोविड-19 के कारण हो रही हैं।

इस विश्लेषण के मुताबिक कोरोना वायरस के कारण परिवार नियोजन, प्रसव, प्रसव से पहले और प्रसव के बाद की देखभाल, टीकाकरण और उपचारात्मक सेवाओं में रुकावट आ रही है। पोषण में कमी और जन्मजात सेप्सिस व निमोनिया के उपचार में कमी भविष्य में सबसे ज़्यादा बाल मृत्यु का कारण हो सकते हैं।

यूनिसेफ़ के अनुमान के अनुसार भारत के बाद पाकिस्तान में मौतों का आँकड़ा सबसे ज़्यादा रहने वाला है। पाकिस्तान में 95 हज़ार, बांग्लादेश में 28 हज़ार, अफ़ग़ानिस्तान में 13,000 और नेपाल में चार हज़ार बच्चों की जान जा सकती है।

यूनिसेफ़ की दक्षिण एशिया रीजनल डायरेक्टर जीन गैफ़ कहती हैं, “कोरोना महामारी से लड़ना महत्वपूर्ण है, लेकिन इस बीच हम मातृ और शिशु मृत्यु में दशकों में हुए सुधार को नहीं खो सकते। हमें डर है कि दशकों में पहली बार उन बच्चों की संख्या बढ़ने वाली है जिनकी पांच साल से कम उम्र में मृत्यु हो जाती है। हमें किसी भी कीमत पर दक्षिण एशिया में मां, गर्भवती महिलाओं और बच्चों को बचाने की ज़रूरत है।”

किस आधार पर है ये विश्लेषण?

इस विश्लेषण में स्थितियों के आधार पर ये अनुमान लगाया गया है कि दुनिया के 118 निम्न और मध्यम आय वाले देशों में पाँच साल से कम उम्र के 12 लाख बच्चों की मौत हो सकती है।

  • पहली सबसे कम गंभीर स्थिति है जिसमें स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति 15 प्रतिशत कम हो जाती है। इस स्थिति में वैश्विक स्तर पर पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु में 9.8 प्रतिशत वृद्धि हो सकती है या हर दिन 1400 बच्चों की मौत हो सकती है। इसके अलावा मांओं की मृत्यु 8.3 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।
  • दूसरी सबसे ख़राब स्थिति है जिसमें स्वास्थ्य सेवाएं 45 प्रतिशत तक बाधित हो जाती हैं। ऐसे में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु में 44.7 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। मांओं की मृत्यु 38.6 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।

बाल एवं मातृ मृत्यु दर के अलावा लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल के इस विश्लेषण में यूनिसेफ़ ने बच्चों पर पड़ने वाले कुछ अप्रत्यक्ष प्रभावों को लेकर भी चिंता जाहिर की है।

  • 132 देशों में कोविड-19 के कारण 18 वर्ष से कम आयु के 77 प्रतिशत (2.35 अरब में से 1.80 अरब बच्चे) मई की शुरुआत तक घर में रह रहे थे।
  • 177 देशों में देशव्यापी स्कूल बंद होने के कारण लगभग 1.3 अरब (72 प्रतिशत) स्टूडेंट्स स्कूल नहीं जा रहे हैं।
  • 143 देशों के लगभग 37 करोड़ बच्चे सामान्य रूप के दैनिक पोषण के लिए स्कूल से मिलने वाले भोजन पर निर्भर हैं। लेकिन, अब स्कूल बंद होने के कारण उन्हें कोई और स्रोत देखना होगा।
  • 14 अप्रैल तक 37 देशों के 11 कोरड़ 70 लाख से ज़्यादा बच्चे अपने खसरे के टीकाकरण से चूके, क्योंकि वायरस फैलने से रोकने के लिए टीकाकरण अभियान बंद हुए हैं।    
  • दुनिया की लगभग 40 फ़ीसदी आबादी घर पर साबुन और पानी से हाथ नहीं धो पा रही है।

वो 10 देश जो सबसे ज्यादा होंगे प्रभावित

  • स्वास्थ्य सुविधाओं की सबसे खराब स्थिति होने पर बांग्लादेश, ब्राज़ील, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथियोपिया, भारत, इंडोनेशिया, नाइज़ीरिया, पाकिस्तान, यूगांडा और यूनाइटेड रिपब्लिक ऑफ़ तंजानिया में बच्चों की सबसे ज़्यादा संख्या में मौतें हो सकती हैं।
  • वहीं, जिबूती, एस्वातीनी, लेसोथो, लाइबेरिया, माली, मलावी, नाइज़ीरिया, पाकिस्तान, सिएरा लियोन और सोमालिया में उच्चतम बाल मृत्यु दर देखने को मिल सकती है।

 लाखों बच्चे नियमित टीकाकरण से हो रहे वंचित

इस विश्लेषण से पहले जारी यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 के कारण पूरे दक्षिण एशिया में करीब 40 लाख 50 हजार बच्चों का नियमित टीकाकरण नहीं हो पाया है। इनमें से करीब 97 प्रतिशत बच्चे भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में रहते हैं।

यूनिसेफ ने इस रिपोर्ट पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि अगर बच्चों को समय से टीका या वैक्सीन नहीं दिया गया तो दक्षिण एशिया में एक और स्वास्थ्य आपातकाल का सामना करना पड़ सकता है।

यूनिसेफ इंडिया की रंजना सिंह बताती हैं, “कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन, कर्फ़्यू और परिवहन सेवाओं पर रोक है। लोग स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों में जाने से बच रहे हैं। डॉक्टर भी बच्चों को अस्पताल से दूर रखने की सलाह दे रहे हैं। ऐसे में बच्चों की कई बीमारियों को नज़रअंदाज किया जा रहा है। पहले जहां जच्चा-बच्चा का नियमित चेकअप होता था, वो लगभग इन दिनों पूरा ही बंद हो गया है। इसके भविष्य में ख़तरनाक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

कमज़ोर स्वास्थ्य व्यवस्था से संसाधनों पर बढ़ रहा दबाव

जिन देशों में स्वास्थ्य प्रणाली कमज़ोर है वहां कोविड-19 संक्रमण के कारण मानव और वित्तीय संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। मेडिकल सप्लाई चेन में बाधा आ रही है। साथ ही कई स्वास्थ्य सुविधा केंद्र भी बंद हैं जहां लाखों बच्चों का टीकाकरण किया जाता है।

पॉल रटर के मुताबिक, “लॉकडाउन में यात्रा पर प्रतिबंध लगा हुआ है और उड़ाने रद्द होने के कारण कुछ देशों में वैक्सीन का स्टॉक भी तेज़ी से कम हो रहा है। वैक्सीन के निर्माण में दिक्कतें आ रही हैं।”

गौरतलब है कि कोरोना के फैलाव को रोकने के लिए कई देशों में टीकाकरण अभियान भी रोक दिया गया है। बांग्लादेश और नेपाल ने अपने खसरा और रुबेला राष्ट्रीय अभियान को स्थगित कर दिया है। वहीं पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में पोलिया अभियान रोक दिया गया है। ऐसे बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ी इस चुनौती से निपटने के लिए यूनिसेफ़ ने इस हफ़्ते #Reimgine नाम से एक अभियान शुरू किया है। यूनिसेफ़ ने सरकारों, जनता, दानदाताओं और निजी क्षेत्र से इस अभियान से जुड़े की अपील की है।

इस संबंध में चंडीगढ़ पीजीआई में अपनी सेवाएं दे चुकीं बालरोग विशेषज्ञ अंजना अवस्थी बताती हैंकोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से सभी देशों की स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ गया है। मौजूदा समय में अधिकतर साधनों का इस्तेमाल कोविड-19 से संक्रमित मरीज़ों के इलाज के लिए किया जा रहा है। बड़े-बड़े अस्पतालों के ओपीडी और अन्य विभाग बंद कर दिए गए हैं। लोग डॉक्टर के पास जाने से डर रहे हैं और ख़ुद डॉक्टर्स ने अपने क्लीनिक बंद किए हुए हैं। ऐसे में छोटे बच्चों की नियमित देख-रेख और टीकाकरण प्रभावित हो रहे है। अगर समय पर टीकाकरण नहीं हो पाता है तो वो कई गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकता है।

कठिन समय में कैसे रखें ख्याल?

अंजना के अनुसार, देश में पहले से ही स्वास्थ्य व्यवस्थाएं अपर्याप्त हैं ऐसे में कोरोना ने संकट और बढ़ा दिया है लेकिन किसी भी हालत में छोटे बच्चों को समय पर टीका लगाना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए आप अस्पताल में जाने से पहले बच्चे और खुद को अच्छे से शील्ड करें। जरूरी निर्देशों का पालन करते हुए सोशल डिस्टेंसिंग फॉलो करें। कोशिश करें कि सुरक्षित स्थान पर डॉक्टर से पहले से बात कर के टीका समय से अवश्य लगवा लें।

ऐसे समय में गर्भवती महिलाओं को भी अपना विशेष ख्याल रखना होगा। दुनिया में एक जीवन को लाने की तैयारी खास तरीके से करनी होगी। घर पर आसानी से उपलब्ध सही पोषण वाली चीज़ों का सेवन करने के साथ पूरा आराम करना होगा।

इस वक्त सबसे ज़रूरी है मानसिक तनाव से दूर रहना। इसके लिए थोड़ा व्यायाम जो आपके डॉक्टर ने सलाह दी हो, उसे जरूर करें। नेगेटिव बातों को नज़रअंदाज़ करें। ज्यादा से ज्यादा खुश रहने की कोशिश करें। कोई भी समस्या होने पर उसे छुपाएं नहीं, बल्कि तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

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