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यूपी: सचिवालय परीक्षा में व्यापमं जैसे घोटाले के आरोप, जांच में जुटी सीबीआई

विधानसभा के दोनों सदनों के लिए हुई परीक्षा सवालों के घेरे में आ गई है, बड़े घोटाले के आरोप लग रहे हैं जिसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी है।
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क्या उत्तर प्रदेश में भी मध्यप्रदेश के व्यापमं जैसा घोटाला हुआ है? ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तर प्रदेश के दोनों सदनों में हुई भर्तियों में बड़े घोटाले के आरोप लग रहे हैं और अब इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सीबीआई जांच के आदेश भी दे दिए हैं, और नवंबर के पहले हफ्ते तक रिपोर्ट सौंपने को कहा है।

समझते हैं क्या है पूरा मामला?

7 सितंबर, 2020 को उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधानसभा परिषद के लिए सचिवालय में भर्तियां निकली थीं, जिसमें संपादक, प्रतिवेदक, समीक्षा अधिकारी, अपर निजी सचिव, सहायक समीक्षा अधिकारी, व्यवस्थापक, शोध एंव संदर्भ सहायक, सूचीकार और सुरक्षा सहायक की कुल मिलाकर 87 पदों के लिए आवेदन मांगे गए। यानी इस दिन विज्ञापन जारी हुआ था। फिर 24 जनवरी 2021 को प्री परीक्षा और 27 फरवरी को मुख्य परीक्षा हुई। इसके बाद अगले महीने ही 14 मार्च, 2021 को टाइपिंग का टेस्ट हो गया।

अब परीक्षाओं की पारदर्शिता को किस तरह धता बताया गया इसका अंदाज़ा इस बात लगा लीजिए कि नतीजों को सार्वजनिक तौर पर घोषित ही नहीं किया गया। यानी जिसका जो रिज़ल्ट था उसे एक-एक अभ्यर्थी के मोबाइल पर मैसेज़ के ज़रिए भेज दिया गया। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि हर अभ्यर्थी को उसके मोबाइल पर सिर्फ़ उसी का रिज़ल्ट भेजा गया।

इस तरह आए नतीजों के ख़िलाफ़ एक याचिका भी दायर हुई, जिसके बाद 29 जुलाई 2021 को सुनवाई के दौरान विधानसभा सचिवालय द्वारा एक शपथ पत्र दिया गया और बताया गया कि नतीजों को विधानसभा के भीतर ही चस्पा कर दिया गया था। हैरानी वाली ये है कि जिस जगह आम इंसान जा नहीं सकता, जहां बग़ैर पास पत्रकारों को भी एंट्री न दी जाती हो, वहां कौन पहुंचेगा नतीजा देखने?

सिर्फ़ इतना ही नहीं, चस्पा या नतीजा घोषित करने की तारीख को भी सचिवालय की ओर से नहीं बताया गया।

इस परीक्षा को लेकर कुछ ऐसी तस्वीरें और बातें सामने आई हैं जो इस परीक्षा पर सवालिया निशान लगा रही हैं। सबसे पहले नीचे दी गई तस्वीर पर गौर करें :

इसमें पता चलता है कि हर अभ्यर्थी को 125 शब्द टाइप करने थे, फिर आगे लिखा है कि उसने कितने शब्द टाइप किए, फिर उसके आगे लिखा कि उसने कितने सही शब्द टाइप किए। अब इसी लिस्ट में उदाहरण के लिए अभ्यर्थियों के नाम देखने शुरु कीजिए...विपिन कुमार को 125 शब्द लिखने थे, लेकिन सचिवालय के हिसाब से उन्होंने लिख दिए 151 शब्द और 142 सही भी हैं।

अब एक कॉपी पर नज़र डालिए:

इस कॉपी में आप देख पा रहे होंगे, कमल कैंथोला ने 120 शब्दों में से सिर्फ़ 58 शब्द टाइप किए, जिसमें 34 सही हैं, और 24 ग़लत हैं। शब्द प्रति मिनट और स्पीड भी दिखाई गई है।

लेकिन अगर आप ऊपर रिज़ल्ट वाली लिस्ट में इसी रोल नंबर के साथ कमल कैंथौला के नतीजे देखेंगे तो पता चलेगा कि इन्होंने 120 शब्दों की जगह 155 शब्द लिखे हैं, जिसमें 152 सही भी हैं।

यानी रिज़ल्ट और कॉपी में अंतर? इन्हीं बातों के हवाले से इस परीक्षा की तुलना मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले से की जा रही है।

इसके बाद शुरू हुई अदालती कवायदों से विधानसभा सचिवालय में 'गड़बड़ी' की बात सामने आई लेकिन विधान परिषद सचिवालय में जो 100 भर्तियां की गईं, उनके बारे में स्पष्ट तौर से कोई जानकारी भी नहीं सामने आ सकी।

बहुत-सी मीडिया रिपोर्ट्स तो ये भी बता रही हैं कि तत्कालीन सभापति रमेश यादव का कार्यकाल 30 जनवरी 2021 को ख़त्म हो रहा था। ऐसे में तमाम नियमों और परीक्षा के शेड्यूल में तब्दीली करके पूरी कोशिश की गई कि सभी भर्तियां उनके कार्यकाल के बाकी रहते ही संपन्न हो जाएं।

ख़ैर...इस पूरी परीक्षा प्रणाली के लिए उत्तर प्रदेश सरकार और सचिवालय की गंभीरता को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।

दरअसल परीक्षा कराने की पूरी ज़िम्मेदारी केंद्रीय नोडल एजेंसी बेसिल यानी ब्रॉडकास्ट इंजीनियर कंसल्टेंट इंडिया लिमिटेड की थी, लेकिन इन्होंने सारा काम आउटसोर्ट कर दिया, यानी अब जिन कंपनियों को परीक्षा कराने का ज़िम्मा दिया गया, उसमें से एक को तो परीक्षा कराने का तज़ुर्बा ही नहीं था और एक कंपनी पर पहले से दाग थे।

इस परीक्षा के लिए छात्रशक्ति इन्फो सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड को ज़िम्मेदारी दी गई थी, जो 8 मार्च 2019 को एक लाख के पेडअप कैपिटेल के साथ बनाई गई थी और अगले ही साल इसे विधानसभा जैसी महत्वपूर्ण जगह परीक्षा कराने की ज़िम्मेदारी दे दी गई।

लाइव लॉ के अनुसार इसे लेकर कोर्ट ने फटकार लगाई। कोर्ट ने नियम 22(2) के अनुसार किसी बाहरी एजेंसी को परीक्षा की ज़िम्मेदारी देने पर सवाल उठाया, कोर्ट ने ये भी कहा कि किसी विश्वसनीय आधार पर ऐसी किसी एजेंसी के बारे में पता नहीं था।

वहीं दूसरी कंपनी टीएसआर डेटा प्रोसेसिंग प्राइवेट लिमिटेड के दामन पर कई घोटालों के दाग हैं। इसके तीन निदेशक साल 2018 में ग्राम पंचायत अधिकारियों की भर्ती में घपले के खुलासे पर एसआईटी द्वारा लखनऊ ग्रामीण थाने में दर्ज मुकदमे में जेल भेजे गए थे, जिसकी अपराध संख्या अपराध संख्या 2/2021 है। सूत्रों के मुताबिक इस दौरान पूछताछ में इन सभी ने उत्तर प्रदेश विधानमंडल सचिवालय की भर्तियों में होने वाली गड़बड़ियों के के बारे में बहुत कुछ बताया भी था। लेकिन मामला ऊंचे पद पर बैठे लोगों से जुड़ा था।

एक मीडिया रिपोर्ट कहती है कि "परीक्षा कराने वाली एजेंसियों को सख्त निर्देश थे कि कंपनी से नज़दीकी रिश्ता रखने वाला कोई भी शख्स संबंधित परीक्षा का हिस्सा नहीं होगा। लेकिन टीएसआर डेटा प्रोसेसिंग प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक सत्यपाल सिंह के सगे भाई संजीव कुमार जिनका रोल नंबर (1000050934) है, परीक्षा में शामिल हुए और नौकरी पा गए। इसके अलावा एक और निदेशक की रामबीर सिंह की पत्नी के भाई कमल कैंथोला जिनका रोल नंबर 1000050014 है, एआरओ बन गए।"

फिलहाल विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित और विधानसभा परिषद के सभापति रमेश यादव के कार्यकाल में हुई करीब 200 भर्तियों की पड़ताल करने की ज़िम्मेदारी सीबीआई के पास है।

इसके अलावा कोर्ट ने कई सवाल जनहित में पूछे :

1. क्या उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग, प्रयागराज अथवा उ.प्र. भर्ती प्रक्रिया को पूरा करने के लिए अधीनस्थ सेवा चयन आयोग, लखनऊ से संपर्क किया गया था और उसने बाहरी एजेंसी की नियुक्ति की आवश्यकता वाले ऐसे दायित्व को पूरा करने से इनकार कर दिया था?

2. क्या नियमों के तहत निर्धारित वैधानिक समिति द्वारा नियमों के अनुसार वैधानिक दायित्व और औचित्य, यदि कोई हो, उसको पूरा करने से इनकार किया गया था?3. क्या पांच बाहरी एजेंसियों का उत्तर प्रदेश के साथ कोई विश्वसनीय रिकॉर्ड था? लोक सेवा आयोग या ऐसी कोई संस्था उन्हें बाहरी एजेंसी के रूप में चुने जाने पर विचार के लिए नामांकित करती है और यदि नहीं तो विचार के लिए उन्हें शॉर्टलिस्ट करने का तरीका क्या है?

4. क्या पैनल में शामिल होने के उद्देश्य से नोडल अधिकारी द्वारा चुनी गई एजेंसी के अनुभव प्रमाण पत्र की निर्धारित मानदंडों के अनुसार जांच की गई। यदि नहीं, तो क्या बाहरी एजेंसी, जिसके लिए मानदंड निर्धारित नहीं हैं, उसको सार्वजनिक रोज़गार के मामले में भर्ती के पैनल में शामिल किया, या चुना जा सकता है?

कोर्ट के आदेश पर जारी सीबीआई की जांच में अगर कुछ घोटाला साबित होता है तो आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को ज़बरदस्त नुकसान होने वाला है। दूसरा ये कि जिस तरह से सरकार अपनी छवि को पाक-साफ गढ़ने में लगी रहती है, उस पर भी दाग़ लग सकते हैं। हालांकि इन सबसे दूर उन अभ्यर्थियों के बारे में भी सोचना बहुत ज़रूरी है जिनका परीक्षा प्रणाली और इसकी निष्पक्षता से भरोसा उठता जा रहा है।

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