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यूपी चुनाव: भाजपा को अब 'बाबा के बुलडोज़र' का ही सहारा!

“इस मशीन का ज़िक्र जिस तरह से उत्तर प्रदेश के चुनावी अभियानों में हो रहा है उसे देखकर लगता है कि भारतीय जनता पार्टी की तरफ से इसे स्टार प्रचारक के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।”
yogi bulldozer

बाबा का बुलडोजर उत्तर प्रदेश के चुनावी समर और निर्वाचन के जरिये एक राज्य की विधानसभा के लिए जनता के प्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया में से उभरा एक प्रतीक है बल्कि कहें कि पूरे चुनावी अभियान का हासिल है। सात दशकों का यह समाजवादी लोकतांत्रिक गणराज्य अब इस अवस्था को प्राप्त कर चुका है कि सबसे बड़े सूबे का एक सत्तासीन मुख्यमंत्री दोबारा सत्ता में आने के लिए बुलडोजर जैसी मशीन के ध्वंसात्मक उपयोग करने को अपना चुनावी दांव मान रहा है।

इसी सूबे में अभी बहुत ज्यादा वक़्त नहीं बीता है जब केंद्र सरकार में गृह मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति के बेटे ने निर्दोष किसानों पर अपनी ‘थार’ नामक गाड़ी चढ़ा दी थी। हालांकि उन्हें फिलहाल इस मामले में जमानत मिल गयी है और संभव है कि आगे कभी उन्हें जेल भी न जाना पड़े।

पांच साल ‘ठोक दो’ की नीति से सरकार चला लेने के बाद आज सरकार की उपलब्धियों और आगामी समय के लिए प्रदेश के उज्जवल भविष्य के लिए केवल हिंसा और हिंसा के साधनों का बखान हो रहा है और सत्य व अहिंसा के जरिए हासिल इस गणतंत्र का भविष्य लिखा जा रहा है।

बाबा का बुलडोजर का दृश्य 25 फरवरी 2022 को सुल्तानपुर में हुई एक चुनावी रैली में देखने को मिली जहां एक बच्चा, राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की वेश-भूषा में अपने सिर पर एक बुलडोजर लिए हुए दिखाई दिया। ये तस्वीरें सोशल मीडिया में शाया हो रही हैं।

इसके अलावा इसी रैली में एक जगह कई बुलडोजर एक स्थान पर रखे हुए दिखाई दिए जहां बड़े बड़े पोस्टर-बैनर पर बाबा का बुलडोजर लिखा हुआ था। इसी स्थान के आस-पास बाबा की रैली हो रही है।

हिंसा और हिंसा के इरादों को अमल में लाने के लिए ऐसे साधनों का खुल्लम खुल्ला उकसावा और उनका प्रदर्शन शायद देश के चुनाव आयोग को नज़र नहीं आ रहा होगा लेकिन इसका असर कई स्तरों पर मनोवैज्ञानिक ढंग से हो रहा है। यह हिंसा को जायज़ ठहराने की एक कोशिश तो है ही लेकिन हिंसा की स्वीकृति को भी सुनिश्चित कर रहा है।

ऐसे बुलडोजर बहुत काम की मशीन है। ये मशीन महज़ एक ऑपरेटर के साथ कई कई मजदूरों का काम अकेला कर सकती है। यह इतनी स्मार्ट मशीन है कि सात दिनों का काम महज़ कुछ घंटों में पूरा कर सकती है। यह ऊंची-नीची, ऊबड़-खाबड़ जगहों पर अपने पहिये संतुलित रखते हुए कुछ भी कर सकती है। आमतौर पर सृजन से पहले की अनिवार्य ध्वंसात्मक कार्यों को यह अकेले पूरा करने का सामर्थ्य रखती है। इस मशीन को निर्माणाधीन भारत में अब सर्वत्र देखा जा सकता है।

मशीनीकरण के साथ जो अनिवार्य समस्याएं पैबस्त हैं, वो इसके साथ भी हैं। यह कई कई मजदूरों के काम के अवसर छीन लेती है। लेकिन किसी निर्माण में लगने वाली मजदूरी लागत को काफी कम कर देती है इसलिए अब इसका चलन बढ़ रहा है। ठेकेदारों की पहली पसंद बनते हुए ये बुलडोजर भले ही मजदूरों के हाथों से काम छीन रही हो लेकिन काम की गति को बेहद तेज़ भी कर रही है। ऐसी मशीन का इस्तेमाल अब प्रदेश की कानून व्यवस्था बनाने के लिए भी हो रहा है।

इस मशीन का ज़िक्र जिस तरह से उत्तर प्रदेश के चुनावी अभियानों में हो रहा है उसे देखकर लगता है जैसे भारतीय जनता पार्टी की तरफ से इसे स्टार प्रचारक के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। जिन चुनावी सभाओं में यह मशीन भौतिक रूप से हाजिर नहीं है वहां भी इसका ज़िक्र किया जा रहा है। विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री पद का चेहरा बने योगी आदित्यनाथ अपनी एक भी रैली बिना इस मशीन का नाम लिए नहीं कर पा रहे हैं।

इस मशीन की चुनाव में एंट्री से पहले इसके लिए माहौल बनाने का काम मुख्यमंत्री पद के दावेदार आदित्यनाथ ने अपने प्रसिद्ध ‘गर्मी निकाल देने’ वाले बयान से कर दिया था। गर्मी निकालने के लिए हालांकि इस मशीन का इस्तेमाल नहीं होता है लेकिन जिन अर्थों में गर्मी निकालने का मुहावरा यहां लाया गया है उस उद्देश्य के लिए यह एक उपयुक्त मशीन है पर अदालती कार्रवाई के बिना कितना उचित है। हालांकि यह बयान और इसका अभिप्राय केवल इतना ही है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था के नाम पर कानून की तमाम सांवैधानिक व्यवस्था और मर्यादाओं को ताक पर रखकर अराजक और गैर-कानूनी उपाय अपनाए जाएंगे जिनका प्रयोग इन बीते पांच सालों में कई बार देखा गया है।

बिना गवाह, बिना सुनवाई, बिना जांच-पड़ताल जब मन करे जिसे जैसी भी सज़ा दी जा सकती है। अपराधियों के घरों पर बुलडोजर चलवा कर उनकी संपत्ति को नष्ट कर देना हो या पुलिस हिरासत में ले जा रहे आरोपी की गाड़ी पलट जाने, फिर आरोपी के भागने की कोशिश, फिर पुलिस से बंदूक छीनते हुए हमला करने और अंतत: पुलिस द्वारा आत्मरक्षा में उसे मार डालने की घटनाएं हो। इन्हें इतना सामान्य बना दिया गया है कि अब सहज ही कोई अनुमान लगा सकता है कि अमुक आरोपी के साथ आज क्या होने वाला हो।

अहिंसक विरोध-प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ भी बुलडोजर का इस्तेमाल इस सरकार द्वारा ईज़ाद की गयी एक ऐसी कानून व्यवस्था की नज़ीर है जिसके लिए योगी आदित्यनाथ की सरकार को लंबे समय तक याद रखा जाएगा। दिलचस्प ये है कि इस चुनाव में फिलहाल भाजपा के पास यही एक नैरेटिव बचा रह गया दिखता है कि उसके राज में कानून-व्यवस्था अच्छी हुई। अपराधी शांत रहे या निपटा दिये गए या उन्हें बुलडोज़ कर दिया गया। यह नैरेटिव निस्संदेह लोगों के बीच पहुंचा है और अगर भाजपा दोबारा सत्ता पाएगी तो इस नैरेटिव और इसके साथ अनिवार्य रूप से जुड़े बुलडोजर जैसे स्टार प्रचारक की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होगी। संभव है कि आने वाले समय में प्रदेश के गृह मंत्रालय और उसके भवन का नाम ‘बुलडोजर मंत्रालय’ भी हो जाए क्योंकि बुलडोजर एक मशीन है जिसे मंत्री पद की शपथ नहीं दिलवाई जा सकती।

देखना यह भी चाहिए कि क्या इसे कानून का राज कहा भी जा सकता है? अगर लोग अपनी जान-माल की सुरक्षा को लेकर चिंतित हों और सरकार के किसी कदम की आलोचना महज़ इनकी सुरक्षा के लिए न करें तो इसे कानून का राज़ नहीं बल्कि कानून की गैर-मौजूदगी कहा जा सकता है। कानून पर भरोसा लोगों को इसलिए होता है कि उन्हें अपनी बात कहने का मौका मिलेगा, उनकी रक्षा करने का काम देश की मौजूदा न्याय-व्यवस्था का है। सज़ा लायक पाये जाने पर सज़ा भी मानव अधिकारों को ध्यान में रखकर ही मिलेगी। अगर लोगों को यह पता हो कि उन्हें सुनवाई का मौका ही नहीं मिलेगा और सज़ा भी मुख्यमंत्री की मर्ज़ी से मिलेगी तो वह अपराध करना छोड़ देगा लेकिन खतरनाक बात यहां यह है कि अपराध की परिभाषा अब देश के कानून और मुख्यमंत्री के मन के बीच मामला हो गया है। ज़रूरी नहीं है कि जो कृत्य कानून की नज़र में अपराध न हो वह मुख्यमंत्री की नज़र में भी अपराध न हो। प्रदेश का निर्वाचित मुखिया जिसे अपराध करार दे वह कानून की नज़र में अपराध हो ही न।

इसका ताज़ा उदाहरण हाल ही में देश के सर्वोच्च न्यायालय की उन तल्ख टिप्पणियों और निर्देशों के रूप में देखा जा सकता है जो उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों को अपराध करार देते हुए उत्तर प्रदेश की सरकार ने दमनात्मक कार्यवाईयों के खिलाफ की। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि किस कानून के तहत नागरिक प्रतिरोश और प्रदर्शनों को अपराध कहा जा सकता है? और किस कानून के लिहाज से इन प्रदर्शनकारी नागरिकों की संपत्ति कुर्क या नष्ट की जा सकती है? ज़ाहिर है अब तक देश में कानून का राज है ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार ने न्यायालय के समक्ष यह स्वीकार किया कि वो अहिंसक विरोध प्रदर्शनों में शामिल नागरिकों से वसूले गए आर्थिक दंड के रूप में जमा धन को उन्हें वापिस करेगी। अब प्रदेश की जनता को समझना होगा कि कानून का राज वह है जो सर्वोच्च न्यायालय ने स्थापित किया न कि जिसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अंजाम दिया।

बहरहाल, बुलडोजर अब जुबान से उतरकर रैलियों के मंच के नीचे जगह पा गया है। भाजपा के चुनावी अभियान का सारथी बन गया है। अगर यह चुनाव भाजपा जीत जाती है तो संभव है कि अगले चुनावों तक इसका चुनाव-चिन्ह बुलडोजर ही बन जाये। लेकिन हिंसा का ऐसा खुला मुजाहिरा न तो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ही अच्छा है और न ही भक्ति-भाव में आकंठ डूब चुके समाज के लिए ही। क्योंकि बुलडोजर एक मशीन है जो खुद कुछ नहीं सोच सकती बल्कि यह महज़ इसके ऑपरेटर के इशारों पर ही चलती है।

(लेखक सत्यम श्रीवास्तव पिछले 15 सालों से सामाजिक आंदोलनों से जुड़कर काम कर रहे हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

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