यूपीः किसान आंदोलन और गठबंधन के गढ़ में भी भाजपा को महज़ 18 सीटों का हुआ नुक़सान
केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों की वापसी को लेकर करीब साल भर जिस तरह किसानों का आंदोलन देशभर में खासकर दिल्ली बॉर्डर के आस पास चला और 700 से ज्यादा किसानों की शहादत हुई वैसे में माना जा रहा था कि यूपी की सत्ता में बीजेपी की वापसी नहीं होगी लेकिन 10 मार्च को आए चुनावों के परिणाम ने इन अटकलों को विराम दे दिया।
दिल्ली बॉर्डर ख़ासकर गाज़ीपुर बॉर्डर के पास हुए आंदोलन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भारी संख्या में शामिल हुए थे। ऐसे में यह कहा जा रहा था इस क्षेत्र के किसान इस बार के चुनावों में यूपी में बीजेपी को नकार देंगे लेकिन मामला इसके उलट रहा है। प्रदेश में भाजपा नेताओं के विरोध की भी खबरें भी सामने आई थी लेकिन चुनाव नतीजों की तस्वीर कुछ अलग नजर आई।
उधर इस चुनाव में समाजवादी पार्टी और आरएलडी का गठबंधन भी हुआ था लेकिन उम्मीद के मुताबिक इस गठबंधन पश्चिमी यूपी में सीटें नहीं मिल पाईं। इस क्षेत्र में न तो किसान आंदोलन का प्रभाव दिखा और न ही सपा-आरएलडी गठबंधन का असर।
राज्य में सत्ता परिवर्तन की बात करें तो इसके संकेत पश्चिमी यूपी से मिलते हैं और राज्य की दशा और दिशा को निर्धारित करते हैं। पश्चिमी यूपी के पहले दो चरणों की बात करें तो इन दो चरण की 113 सीटों में से 73 सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई है। जबकि पिछले बार उसे 91 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इन दो चरणों में भाजपा को 18 सीटों का नुकसान हुआ।
भाजपा ने वर्ष 2017 में पहले चरण की 58 सीटों में से 53 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि दूसरे चरण में 55 सीटों में से 38 सीटों पर जीत हासिल की था। इस तरह पिछले चुनाव में कुल 113 सीटों में से भाजपा को 91 सीटें मिली थी। इस बार भाजपा गठबंधन को पहले चरण के 58 सीटों में से 46 सीटें मिल पाई और दूसरे चरण की 55 में से 27 सीटें मिली। इस तरह उसे इस बार 73 सीटें मिल पाईं।
इस बार दूसरे चरण में भाजपा को वर्ष 2017 के चुनाव के मुकाबले 11 सीटों का नुकसान हुआ। वहीं पहले चरण में 7 सीटों का नुकसान हो गया। दूसरे चरण में जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) ने 7 सीटें जीती है जबकि समाजवादी पार्टी (एसपी) को 21 सीटें मिली हैं।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव, राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी और महान दल के केशव प्रसाद मौर्य ने मुस्लिम, जाट, दलित और ओबीसी दल के मतादातओं को साधने के लिए मिलकर चुनाव लड़ा था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 17 फीसदी जाट मतदाता, 25 फीसदी मुस्लिम और 21 फीसदी दलित मतदाता है। उन्हें उम्मीद थी कि इस जातिगत समीकरण से भाजपा को हराया जा सकता है लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस तरह सारे समीकरण अपने पक्ष में होने के बावजूद वे यहां पर कुछ खास नहीं कर पाए।
दूसरे चरण में बिजनौर जिले के सीटों पर वोट पड़े थे। जिले में आठ सीटों में से चार नजीबाबाद, नगीना, नूरपुर और चांदपुर गठबंधन ने जीतीं, जबकि शहर, नहटौर, धामपुर और बढ़ापुर भाजपा ने जीत ली। पिछले चुनाव में छह सीटें भाजपा ने जीती थीं।
सहारनपुर में सात सीटों में से पांच सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल कर ली है। चुनाव से ठीक पहले पार्टी बदलकर समाजवादी पार्टी के टिकट पर नकुड़ सीट से चुनाव लड़े डॉक्टर धर्म सिंह सैनी चुनाव हार गए हैं। उन्हें भाजपा के मुकेश चौधरी ने हराया है। इसके अलावा देवबंद, गंगोह, रामपुर मनिहारान पर भाजपा ने अपना कब्जा बनाए रखा है। सहारनपुर शहर सीट भाजपा ने सपा से छीन ली है। बेहट और सहारनपुर देहात पर गठबंधन ने जीत हासिल की है।
उधर मुजफ्फरनगर में छह सीटों में दो भाजपा और चार गठबंधन ने जीती ली है। भाजपा यहां शहर और खतौली पर ही कब्जा बरकरार रख पाई। बुढ़ाना, मीरापुर, पुरकाजी और चरथावल उसने गंवा दी है।
वहीं सरधना विधानसभा सीट से सपा-रालोद गठबंधन के अतुल प्रधान ने भाजपा के संगीत सोम को हरा दिया है। संगीत सोम इससे पहले दो बार यहां से चुनाव जीत चुके हैं जबकि अतुल प्रधान दो बार चुनाव हार गए थे। सरधना सीट पर ऐसा पहली बार हुआ है जब समाजवादी पार्टी का कोई प्रत्याशी जीत दर्ज कर पाया है।
सुरेश राणा योगी सरकार में कैबिनेट गन्ना मंत्री थे लेकिन उनको इस बार हार का सामना करना पड़ा। वह शामली के थाना भवन सीट से भाजपा से चुनाव लड़ रहे थे। राणा को 93945 वोट पड़े। उनको आरएलडी के अशरफ अली खान ने हराया। अशरफ अली खान को 103751 वोट मिले।
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