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चार किलो चावल चुराने के इल्ज़ाम में दलित किशोर की बेरहमी से पिटाई, मौत के बाद तनाव, पुलिस के रवैये पर उठे सवाल

"हमारा बच्चा भी मरा है और जुल्म भी हमारे ऊपर हो रहा है। आखिर हम कितना सितम झेलेंगे। थाने पर हमारी सुनवाई नहीं हो रही है..."
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न्याय की गुहार लगाती मृतक विजय गौतम की मां सुनीता।

यूपी के बनारस में कपसेठी थाना पुलिस चर्चा में है। पुलिस पर आरोप है कि वह उन दबंगों को बचाने में जुट गई है जिन्होंने पिछले महीने चार किलो चावल चुराने का इल्जाम लगाकर अनुसूचित जाति के 14 साल के एक नाबालिग लड़के को बुरी तरह पीटा, जिससे उसकी मौत हो गई। दलित समुदाय का यह बच्चा हाथ जोड़कर दुहाई देता रहा कि वह निर्दोष है, लेकिन किसी ने उसकी एक नहीं सुनी। पुलिस आई तो उसने भी सवर्णों का साथ दिया और अपनी मौजूदगी में बच्चे के परिजनों को बुलाकर उनसे चावल के पैसे की वसूली भी कराई। साथ ही माफीनामे पर अंगूठा भी लगवाया। दलितों का यह भी आरोप है कि समझौते के बाद दबंगों ने दोबारा उसी लड़के को पकड़ा और फिर जमकर पीटा, जिससे उसकी हालत बिगड़ गई। अस्पताल में भर्ती कराने के बावजूद वह जिंदा नहीं बच सका।

दबंगों की कथित पिटाई से किशोर की मौत के मामले में हंगामे के बाद कपसेठी थाना पुलिस ने संगीन धाराओं में मामला तो दर्ज कर लिया है, लेकिन आरोपितों के खिलाफ सख्त एक्शन लेने में हीलाहवाली कर रही है। परिवारीजनों का आरोप है कि सभी अभियुक्त ठाकुर जाति हैं, इसलिए पुलिस उन्हें बचा रही है। सुइलरा की दलित बस्ती के लोग सहमे हुए हैं और दहशत में हैं।

चोरी के इल्ज़ाम में पिटाई का शिकार किशोर विजय गौतम।

बनारस से करीब 61 किमी दूर सेवापुरी प्रखंड के कपसेठी थाना क्षेत्र के सुइलरा गांव में पप्पू का 14 वर्षीय पुत्र विजय गौतम 8वीं कक्षा में पढ़ता था। बच्चे की मां सुनीता उस मनहूस दिन को यादकर रोने-बिलखने लग जाती हैं, जब उन्होंने दाल में नमक डालने के लिए विजय को ठकुरान बस्ती में गुड्डू सिंह की परचून की दुकान पर भेजा था।

सुनीता कहती हैं, "ठकुरान बस्ती में परचून की दुकान गुड्डू सिंह के बेटे शिवम सिंह चलाते हैं। वहीं उनकी आटा-चक्की की दुकान भी है, जहां विजय यदा-कदा मजूरी करने चला जाता था। कुछ रोज पहले हुए एक विवाद को लेकर गुड्डू सिंह का कुनबा दलितों के खिलाफ खड़ा हो गया। एक रोज विजय गौतम परचून की दुकान पर नमक खरीदने पहुंचा तो गुड्डू सिंह, शिवम सिंह, पखंडू सिंह और सौरभ सिंह ने उसे पकड़कर लात-घूसों से पीटना शुरू कर दिया। बच्चे के ऊपर आटा चक्की से चार किलो चावल चुराकर उन्हीं की दुकान में बेचने का इल्जाम लगाया गया।"

गुजरे दिनों को याद कर न्याय की गुहार लगाते हुए सुनीता यह भी कहती हैं, "मेरे बेटे के साथ मारपीट और बदसलूकी की वारदात से पहले ठकुरान बस्ती के अभियुक्तों ने अपने बगीचे में गिरे हुए आम चोरी करने का आरोप भी विजय और उसके दोस्तों पर लगाया था। तब हमारी बस्ती के लोगों से ठाकुर समुदाय के लोगों के बीच विवाद हुआ था। पुरानी रंजिश का बदला लेने के लिए हमारे बेटे के पर चोरी का झूठा इल्जाम थोपा गया और बेरहमी के साथ उसे बुरी तरह पीटा गया। अभियुक्तों ने दबंगई दिखाते हुए खुद पीआरपी (112 नंबर) बुलाई। पुलिस आई तो उसने भी चोरी का इल्जाम मेरे ही बच्चे के माथे पर मढ़ दिया। मेरे पति से जबरिया उस चावल का पैसा वसूला गया, जिसे हमारे बेटे ने चुराया ही नहीं था। हम नहीं समझ पाए थे कि आम का विवाद हमारे बेट की जान ले लेगा। इस बात पर भला कौन यकीन करेगा कि आटा चक्की पर चावल कहां से आएगा? "

अपनी व्यथा सुनातीं विजय गौतम की मां सुनीता

निर्दोष बेटे के माथे पर मढ़ दिया कलंक

बेटे की मौत से गमजदा सुनीता यह भी कहती हैं, "हमारे पास खेती-बारी नहीं है। हम मेहनत-मजूरी करके बच्चों की परवरिश कर रहे थे। हमारा 14 वर्षीय बेटा विजय पढ़ाई में भी अच्छा था। हम गरीब जरूर हैं, पर चोर नहीं है। हमने कभी अपने बेटे को चोरी करना नहीं सिखाया। चार बच्चों में वही सबसे बड़ा था। विजय से छोटे उसकी दो बहनें चांदनी (10)  और रिया (7) हैं। सबसे छोटा यश (6) लड़का है। हमारे पति पप्पू मजूरी करते हैं और हम खेतों में काम। एक खपरैल का मकान और कुछ बकरियां ही हमारी समूची पूंजी हैं। हम गरीब हैं, पर चोर-बेईमान नहीं, फिर भी चोरी का इल्जाम मेरे निर्दोष बेटे के माथे पर मढ़ दिया गया।"

सुनीता कहती हैं,   "हमारे बच्चे को इस कदर पीटा गया कि वह कई दिनों तक चलने-फिरने की स्थिति में नहीं था। हालत थोड़ी सुधरी तो दबंगों ने उसे फिर पकड़ लिया और घर में ले जाकर दोबारा पीटा और धमकाया कि अगर मां-बाप को बताया तो जिंदा नहीं बचोगे। वो रोता-गिड़गिड़ाता रहा और गुड्डू सिंह का कुनबा लात-घूसा चलता रहा। गुड्डू, सौरभ, पखंडू और शिवम ने हमसे उस चावल का पैसा भी वसूल लिया, जिसे मेरे बेटे ने चुराया भी नहीं था। पुलिस के सामने पंचायत हुई तो खाकी वर्दी ने दबंगों का पक्ष लिया। मेरा बेटा मारपीटी और अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सका। वह मानसिक रूप से टूट गया, जिससे उसकी हालत बिगड़ती चली गई। हालत  बिगड़ी तो पहले यहीं से दवा ली। पर ज़्यादा तबीयत ख़राब हुई तो इलाज के लिए उसे हम लोहता के पास स्थित श्री साईं नर्सिंग होम लेकर गए, जहां उसकी मौत हो गई।"

गुस्साए लोगों ने जाम लगाया

आटा-चक्की से चार किलो चावल चुराने के मामले में दलित किशोर की पिटाई के मामले ने तब तूल पकड़ा जब उसकी मौत से उग्र लोगों ने कपसेठी थाने के समीप चौराहे पर जाम लगाया। बीते रविवार को विजय की मौत हुई। दलित समुदाय के लोगों ने दोपहर बाद कपसेठी दलित बस्ती के सामने उसका शव रखने के बाद बांस-बल्ली से रास्ता जाम कर दिया। काफी देर तक हंगामा और नारेबाजी होती रही। आनन-फानन में कपसेठी थाना पुलिस मौके पर पहुंची। पुलिस जब विजय गौतम के शव को पोस्टमार्टम के लिए लेकर जाने लगी तो गुस्साए दलितों ने पुलिस से लाश छीन ली और कपसेठी चौराहे पर स्थित राष्ट्रवीर निहाला सिंह की प्रतिमा के समाने शव रखकर दोबारा सड़क जाम कर दिया। दलितों का गुस्सा तब शांत हुआ जब पुलिस ने उनकी तहरीर ली और आनन-फानन में मुकदमा दर्ज किया।

31 जुलाई 2022 को अपराध संख्या 0159 पर अंकित रिपोर्ट में लड़के के पिता पप्पू राम ने कहा है कि उनके बेटे विजय को 10-15 दिन पहले गुड्डू सिंह आदि ने आम उठाने पर पीटा और बाद में चावल चुराने का झूठा इल्जाम लगाकर साजिशन मार-पीटकर अधमरा कर दिया। एक अन्य अभियुक्त सौरभ सिंह ने पीआरबी बुला ली और हमसे ही जबरिया पैसा वसूल किया। मेरे बेटे को अंदरूनी चोट ज्यादा लगी थी, जिसके चलते उसे अस्पताल में दाखिल कराना पड़ा, जहां उसकी मौत हो गई। इसके बाद गुड्डू सिंह वगैरह दोबारा मेरे घर आए और उन्होंने मुझे और मेरे परिवार वालों को जातिसूचक अपशब्द कहते हुए जान से मारने की धमकी दी।

फिलहाल सुइलरा गांव की दलित बस्ती में तनाव है। दलितों का रंज यह है कि ठाकुर जाति के लोग उन पर जुल्म ढा रहे हैं और पुलिस दबंगों का साथ दे रही है। दलित बस्ती के घुरहू राम कहते हैं, "दबंगों के आतंक से हम आजिज आ गए हैं। दो जुलाई 2022 को दलित बस्ती के कुछ बच्चे बकरी चराने निकले तो उन्हें घेर कर पीटा गया। विक्की सिंह नामक युवक ने नामवर के बेटे की पिटाई भी की। बाद में गांव में मौजूद पुलिस के जवानों ने ठकुरान बस्ती में जाकर आरोपितों को खरी-खोटी सुनाई थी।

क्या कहते हैं आरोपी

हालांकि सुइलरा गांव में कथित तौर पर चावल चुराने की घटना के बाद दलित किशोर की मौत के मामले में ठकुरान बस्ती के लोग दलितों के आरोपों को सिरे से नकार रहे हैं। शिवम सिंह और पखंडू सिंह कहते हैं कि दलितों के सभी आरोप बेबुनियाद हैं। सारा का सारा इल्जाम झूठा है। पेशबंदी के तहत झूठी कहानियां गढ़ी जा रही हैं। किसी दलित के साथ कभी मारपीट नहीं की गई।

घटना की जड़ में पुरानी रंजिश!

कपसेठी थाने से सुइलरा गांव की दूरी करीब तीन किमी है। इस गांव में दलितों की आबादी एक हजार से ज्यादा है। सुइलरा में ठाकुरों की आबादी पांच सौ के आसपास है। जिस दलित बस्ती में विजय के पिता 48 वर्षीय पप्पू राम रहते हैं, उसके घर के आसपास ठाकुरों के ही खेत हैं। यहां किसी भी दलित के पास न खेत है, न ही कोई कारोबार। मेहनत-मजूरी करके वो अपने बच्चों की परवरिश करते हैं। इसी बस्ती के सामने करीब सौ मीटर के फासले पर एक छोटा सा बगीचा है, जिसमें आम के तीन पेड़ हैं। आरोप है कि गर्मी के दिनों में बगीचे में गिरने वाले आम को उठाने पर दलित समुदाय के बच्चों के साथ मारपीट की गई थी। तभी से ठकुरान और दलित बस्ती के लोगों के बीच तनातनी चली आ रही है।

दलित बस्ती में तैनात पुलिसकर्मी।

नाबालिग बच्चे की मौत के बाद दलितों में उपजे आक्रोश को देखते हुए सुइलरा दलित बस्ती में चौबीस घंटे पुलिस के दो जवानों की तैनाती की गई है। इसके बावजूद दहशत कम नहीं हुई है। विजय की मां सुनीता का रो-रोकर बुरा हाल है। वह किसी भी बाहरी आदमी को देखते ही दहाड़ मारकर रोने लग जाती है। सुनीता के घर के सामने एक बसवरी है, जिसके पास गांव वालों ने कुछ कुर्सियां रख दी है। मीडियाकर्मियों के पहुंचते ही बच्चे, जवान, बूढ़े और औरतों का जखेड़ा जुट जाता है।

दलित बस्ती की मुनरा देवी कहती हैं, "हमारा बच्चा भी मरा है और जुल्म भी हमारे ऊपर हो रहा है। आखिर हम कितना सितम झेलेंगे। थाने पर हमारी सुनवाई नहीं हो रही है। 31 जुलाई से ही कपसेठी थाना पुलिस ने मुख्य अभियुक्त गुड्डू सिंह को बैठा रखा है, लेकिन जेल नहीं भेज रही है। लगता है समूचे मामले को रफा-दफा करने की तैयारी कर ली गई है।"

युवक सतीश कुमार कहते हैं, "खाकी वर्दी का रवैया हमारे प्रति अच्छा नहीं है। न्याय नहीं मिला तो हम फिर सड़क पर उतरेंगे। 4 जुलाई 2022 को मामले की तहकीकात करने कपसेठी थाने पर नाबालिग बच्चे के पिता पप्पू के साथ संतोष, रवि और मैं खुद गया। पुलिस ने हमें कुर्सी ही नहीं दी। यहां तक कि जमीन पर भी बैठने नहीं दिया। गाली देकर कपसेठी थाने से भगा दिया गया। गांव में काफी बंजर जमीनें हैं, जिन पर ठकुरान बस्ती के लोगों ने जबरिया कब्जा कर रखा है।"

सतीश यह भी बताते हैं, सुइलरा की ठकुरान बस्ती के अनिल सिंह गांव के प्रधान हैं, इसलिए बंजर जमीनें मुक्त नहीं हो पा रही हैं। दलितों के पास एक इंच जमीन नहीं है। अवैध कब्जे के चलते मूमिहीन दलितों को बंजर जमीनें नहीं मिल पा रही हैं।"

मारपीट और गाली-गलौच रोज़ की कहानी

सुलइलरा में दलित किशोर की मौत के मामले की पड़ताल के दौरान एक बात यह भी निकल कर सामने आई कि यहां असली झगड़ा सियासी गोलबंदी का है। पंचायत चुनाव में दलित समुदाय के लोग अपने प्रत्याशी खड़ा करना चाहते थे, लेकिन ठकुरान बस्ती के लोगों ने उन्हें पर्चा ही नहीं भरने दिया। दलित बस्ती के लोग पहले बसपा के समर्थक थे, लेकिन बाद में कुछ लोग भाजपा से जुड़ गए थे। विवाद की जड़ में है ऊंच-नीच और अमीरी-गरीबी की गहरी खाई है। दलित बस्ती के अछैबर कहते हैं, "मेरे भाई दुर्जन का 13 वर्षीय नाती रोशन एक मर्तबा आम बीनने बगीचे में चला गया था। उस समय भी गुड्डू सिंह ने उसके साथ जमकर मारपीट की थी। उसी मामले में गुड्डू सिंह ने हमें रास्ते में पकड़ लिया और जबरिया अपने टैंपो पर बिठा लिया। बाद में कोटेदार राजेश सिंह ने हमें बचाया। सुइलरा गांव में दलितों के साथ मारपीट और गाली-गलौच रोज की कहानी है।"

सुइलरा गांव की दलित बस्ती के पास तक चकरोड पर बनी पक्की सड़क है। बस्ती में आने-जाने के लिए खड़ंजा लगा है। बस्ती में एक नीम के पेड़ के नीचे पुलिस के कुछ जवान पहरा दे रहे हैं। दलित बस्ती में ज्यादातर लोग अनपढ़ हैं। युवक मंगल की ग्रेजुएट पास पत्नी अनीता पुलिस और सामंतों के गठजोड़ से नाराज नजर आती हैं। वह कहती हैं, "हमारी कहीं सुनवाई नहीं है। ठकुरान बस्ती के लोग खुलेआम धमकी दे रहे हैं और ऐलान कर रहे हैं कि उन्होंने थाना पुलिस को खरीद लिया है। आखिर हम कहां जाएं? हमारे पास न तो पैसा, न आवास है, न ही दूसरी सुविधाएं। एक मर्तबा दलित समुदाय के उदई की पत्नी उर्मिला देवी प्रधान बनी तब कुछ लोगों के घरों पर शौचालय बना। ठकुरान बस्ती के लोग दलित समुदाय के लोगों को बाहर शौच करने पर मारने-पीटने पर दौड़ा ले रहे हैं। जिनके पास शौचालय ही नहीं है तो वो आखिर कहां जाएंगे? "

"हम यही चाहते हैं कि ठकुरान बस्ती के लोग हमें भी इनसान समझें, गुलाम नहीं। शायद हमारे पुरखों को गुलामी करने के लिए ही उन्होंने अपनी बस्ती के आसपास बसाया रहा होगा। पीढ़ियों से चली आ रही गुलामी तो टूटेगी ही। हम 65 फीसदी मार्क्स लेकर बीए पास हैं, लेकिन नौकरी नहीं है। काम-धंधा भी नहीं है। आखिर कैसे जिंदा रहें। अब तो दलितों का घर से बाहर निकलना ही गुनाह बन जा रहा है। उज्ज्वला योजना का गैस सिलेंडर है, पर पैसे नहीं हैं। साफ पानी का इंतजाम नहीं है। औरतों बच्चों को सड़क के किनारे खड़ंजे पर नहाना और कपड़ा धोना पड़ता है। आखिर कितनी दुश्वारियां गिनाएं।"

अनीता के पास बैठीं 65 वर्षीया अमरावती देवी भी जुल्म-ज्यादती की दुख भरी कहानी सुनाने लग जाती हैं। वह कहती हैं, "ठकुरान बस्ती के लोग कहते हैं कि हमारे खेत में घुसे तो  पीटेंगे और हाथ-पैर तोड़ देंगे। हमारी बहन-बेटियां आखिर कहां जाएंगी।" पुलिस पर सवालिया निशान लगाते हुए वह कहती हैं, "पुलिस ने जब गुड्डू सिंह को हिरासत में लिता तो उसे जेल क्यों नहीं भेजा? अगर मान लें कि हत्या के मामले की पुलिस जांच कर रही है, तो क्या बगीचे में आम उठाने पर हुए झगड़े के समय जातिसूचक गालियां नहीं दी गईं? फिर दलित उत्पीड़न की कार्रवाई करने में पुलिस हीलाहवाली क्यों कर रही है? "

दलित बस्ती में एक भी आदमी ऐसा नहीं मिला जो तस्दीक कर सके कि किशोर विजय गौतम ने चावल चोरी की होगी। हर कोई यही सवाल पूछ रहा है कि मिल आटे की है तो वहां चावल का क्या काम? अगर मामला रंजिश का नहीं तो कोई आदमी सिर्फ चार किलो चावल के लिए किसी बच्चे को इतनी बेरहमी से मारपीट कैसे कर सकता है?  वह भी उस लड़के के साथ जो कभी-कभार उनके यहां बाल मजदूरी करने भी चला जाया करता था।

गरमाने लगा मामला, पुलिस चुप

नाबालिग की कथित पिटाई से मौत का यह मामला अब सियासी रूप भी लेने लगा है। विरोधी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार पर निशाना साधा है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं मंत्री सुरेंद्र पटेल कहते हैं, "मुख्यमंत्री रोते-बिलखते परिजनों की फ़रियाद सुनें और डबल इंजन की सरकार उन्हें न्याय दे। यूपी में पुलिस और दबंगों के गठजोड़ के चलते बार-बार ऐसी क्रूर वारदातें हो रही हैं, क्योंकि सीएम अजय सिंह बिष्ट का पुलिस पर कोई नियंत्रण नहीं है। अगर किसी बच्चे ने चावल चुरा भी लिया तो क्या उसे पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया जाएगा? कानून हाथ में लेने वालों के मामले में पुलिस बेहद नरम रुख क्यों अपना रही है? भाजपा राज में दलितों के साथ मारपटी, उत्पीड़न और गाली-गलौज क्या अब कानूनी अपराध नहीं रह गया है? पुलिस की भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि अगर अगर पीआरबी मौके पर पहुंची थी तो उसने एकतरफा कार्रवाई क्यों की? मारपीट और जातिसूचक गाली-गलौच करने वाले अभियुक्तों पर एक्शन क्यों नहीं लिया? "

पीड़ित परिवार को ढांढस बंधाने दलित बस्ती पहुंचे भदोही के भीम आर्मी जिलाध्यक्ष विनोद कुमार गौतम काफी कुपित नजर आए। वह कहते हैं, "बीजेपी के शासन में पुलिस निरंकुश है। लगता है कि वह सिर्फ वसूली में जुटी है। कपसेठी थाना पुलिस अगर एक्टिव रहती तो शायद यह घटना नहीं होती। हम चाहते हैं कि सभी आरोपी जेल भेजे जाएं। समूचे मामले में लीपापोती चल रही है। मुख्य अभियुक्त को थाने में बैठाकर खातिरदारी की जा रही है। यहां पुलिस-प्रशासन भी मनुवादी ताकतों से डर रहा है। हम चैन से बैठने वाले नहीं है। दलितों पर जुल्म-ज्यादती का मामला प्रदेश भर में उठाया जाएगा। ये गुंडई और ठुकरई बर्दाश्त सहन नहीं की जाएगी। सम्मान और स्वाभिमान हर किसी का है।"

एफआईआर की कॉपी

क्या कहती है पुलिस?

चार किलो चावल चुराने के इल्जाम में कथित तौर पर पीटकर मौत के घाट उतारे जाने के मामले में कपसेठी थाना के प्रभारी निरीक्षक बनारसी यादव कहते हैं, "दलित किशोर के साथ मारपीट और गाली-गलौच की वारदात 07 जुलाई 2022 को हुई थी। ठाकुर समुदाय के चार के आरोपियों पर आईपीसी की धारा 304, 506 और 532 एसी-एसटी के तहत मुक़दमा पंजीकृत किया गया है। गुड्डू सिंह शराबी भी है। कुछ दिन पहले शराब के नशे में उसने एक दलित लड़के को लाठी लेकर दौड़ा लिया था। निश्चित तौर पर वह मनबढ़ है। सख्ती बरती जा रही है। गांव में शांति है। "

इलाके के डिप्टी एसपी डॉ. अतुल अंजान त्रिपाठी ने जांच के बाद दोषियों पर सख्त कार्रवाई की बात कही है। वह कहते हैं, "पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चोट के निशान नहीं पाए गए हैं। हालांकि विसरा सुरक्षित रख लिया गया है। विवाद एक महीने पुराना है। बगीचे से आम उठाने के सवाल पर दोनों पक्षों के बीच कहासुनी हुई थी। अभी जांच-पड़ताल जारी है। इस प्रकरण में जो भी दोषी होगा, पुलिस सख्त एक्शन लेगी। एहतियातन गांव में फोर्स तैनात की गई है। स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है। सुइलरा गांव में तनाव जैसी बात नहीं है।"

(विजय विनीत बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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