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चंदौली : सूखे से बेहाल किसानों ने मांगा मुआवज़ा, एमएसपी में गारंटी क़ानून को लेकर भरी हुंकार

सूखे से बेहाल किसानों को मुआवज़ा और एमएसपी में गारंटी क़ानून को लेकर किसानों ने यूपी के चंदौली में महापंचायत की और  आंदोलन तेज़ करने का अल्टमेटम दिया। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आयोजित इस महापंचायत में बड़ी संख्या में किसान शामिल हुए।
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सूखे से बेहाल किसानों को मुआवजा और एमएसपी में गारंटी कानून को लेकर किसानों ने चंदौली में हुंकार भरी और आंदोलन तेज करने का अल्टमेटम दिया। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनरतले आयोजित इस महापंचायत में बड़ी संख्या में जुटे किसानों नेताओं ने कहा, "चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र और समेत समूचे पूर्वांचल में सूखे के चलते किसानों के समाने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है। एमएसपी का मुद्दा जस का तस है। इस मामले में सरकार ने किसानों के साथ छलावा किया है। अभी तक न तो एमएसपी पर गारंटी कानून लाया गया और न ही किसानों पर दर्ज फर्जी मामले वापस लिए गए। किसान आंदोलन को अब फिर से खड़ा करने का वक्त आ गया है।"

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी देने में हीलाहवाली, किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमों की वापसी के साथ पूर्वांचल में सूखे से बेहाल किसानों को मुआवजा की मांग को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के आह्वान पर रविवार की सुबह से ही नेवाजगंज में किसानों का जत्था पहुंचने लगा था। दोपहर में शुरू हुई महा-पंचायत शाम तक चलती रही और किसानों ने सरकार के खिलाफ दोबारा लंबी लड़ाई की मुहिम शुरू करने का अल्टमेटम दिया। कृषि उत्पादों पर स्वामीनाथन कमीशन द्वारा निर्धारित (सी2+50%) न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की मांग उठाते हुए किसान नेता कमलेशपति कुशवाहा ने कहा, "एक तरफ योगी सरकार सूखा पीड़ित किसानों को धोखा दे रही है और दूसरी ओर मोदी सरकार एमएसपी की गारंटी देने में हीला-हवाली कर रही है। महीनों बीत जाने के बाद भी सरकार ने अपने आश्वासनों पर कुछ भी नहीं किया है।"

"मोदी सरकार ने एमएसपी पर कमेटी तो बनाई, पर उसमें किसानों के घोर विरोधियों को ही मेंबर बना दिया। यूपी में अभी तक किसानों के खिलाफ आंदोलन के दौरान दर्ज केस वापस नहीं लिए गए हैं। सबसे खराब स्थिति पूर्वांचल की है, जहां किसानों पर जुल्म और ज्यादतियां बढ़ती जा रही हैं। निर्दोष किसानों को जहां-तहां सताया जा रहा है। अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए किसानों को फिर नए सिरे से लंबी लड़ाई लड़नी होगी। मोदी सरकार ने राष्ट्रव्यापी आंदोलन के चलते तीनों काले कानूनों को वापस तो ले लिया, लेकिन वायदों को अभी तक पूरी नहीं किया। एमएसपी पर गारंटी कानून का बिल अभी तक नहीं लाया जा सका है।"

"कॉरपोरेट नीतियों से बढ़ रही खेती की लागत"

किसानों को मुश्किलों का जिक्र करते हुए किसान विकास मंच के संगठन मंत्री राम अवध सिंह ने डबल इंजन सरकार की नीतियों की जमकर आलोचना की। कहा, "मोदी सरकार ने भले ही काले कानूनों को वापस ले लिया है, लेकिन वो ऐसी रीति-नीति तैयार कर रही है जिससे कॉरपोरेट खेती को बढ़ावा मिले। किसानों की उपजाऊ जमीनें पूंजीपतियों के हाथ में चली जाएं। सरकार चाहती है कि अन्नदाता की जमीन औने-पौने दामों में कॉरपोरेट को सौंप दी जाए और जीडीपी में बढ़ोतरी का सारा बोझ किसानों पर ही डाल दिया जाए। परंपरागत बीजों को किसानों से छीनने और डंकल बीजों पर निर्भर बनाते समय ही यह आशंका पैदा हो गई थी कि सरकार किसानों को गुलाम बनाने की नीति लागू करना चाहती है। कॉरपोरेट फार्मिंग के बहाने उनकी जमीनें ले ली जाएंगी। फिर उन्हें अपने ही खेतों में मजदूर बन जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचेगा। आत्मनिर्भर गांवों के जीवन की हर वस्तु-हवा, पानी, पेड़-पौधे, जंगल, जमीन पर कॉरपोरेट जगत कब्जा करता जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों और देसी कॉरपोरेट का बीजों पर एकाधिकार हो चुका है। खेती-किसानी में जो भी प्रयोग किए जा रहे हैं, वे सब किसानों को कॉरपोरेट निर्भरता की ओर ले जाते हैं। कॉरपोरेट नीतियां ही खेती की लागत बढ़ा रही है, जिसके चलते किसान सुसाइड करने के लिए विवश हो हो गए हैं।"

ब्रिटिश काल के अकाल, लगान, दमन और जमींदारों के बेइंतहा जुल्म-ज्यादती का जिक्र करते हुए मजदूर किसान मंच के राज्य कार्य समिति के सदस्य अजय राय ने कहा, "अब तो खाते-पीते किसान भी सुसाइड को विवश हो रहे हैं। यह दौर तब शुरू हुआ, जब खाद, पानी, बीज, कीटनाशक आदि पर कॉरपोरेट का कब्जा हो गया। दुनिया में सिर्फ भारत ही ऐसा देश है जहां किसानों को अनुदान प्रगतिशील देशों की तुलना में बहुत कम मिलती है। अमेरिका में किसानों को सालाना 20 अरब डॉलर की सब्सिडी मिलती है जो प्रति हेक्टेयर 32 डॉलर है। यह हाल उस देश का है जहां कृषि कार्य करने वाले किसान सिर्फ पांच फीसदी हैं। भारत में प्रति हेक्टेयर 14 डॉलर की सब्सिडी मिलती है और हमारे देश की 60 फीसदी आबादी सिर्फ खेती पर निर्भर है। इसके बावजूद एसोचैम को हमें दी जाने वाली सब्सिडी नहीं सुहा रही। दस-बीस हजार के कर्जदार किसान जेल में जा रहे हैं, उनकी कुर्की हो रही है और अरबों का घोटाला करने के बावजूद कॉरपोरेट घरानों का कुछ नहीं बिगड़ रहा है।"

किसान नेता परमानंद कुशवाहा ने अन्नदाता को संबोधित करते हुए कहा, "पूर्वांचल के किसान सूखे की मार से परेशान हैं तो मध्यांचल में बाढ़ से। सरकार की चिंता सिर्फ हवाई सर्वेक्षणों तक ही सीमित है। इस सरकार से किसानों की भलाई की उम्मीद करना ही व्यर्थ है। सरकार ऐसी नीति तैयार कर रही है ताकि छोटी जोत के किसानों को आसानी से दास प्रथा की ओर धकेला जा सके। भारत में खेती-किसान व्यवसाय नहीं, बल्कि संस्कृति रही है। यह प्रकृति संरक्षण की अंतिम कड़ी है। कॉरपोरेट घरानों के इशारे पर डबल इंजन की सरकार इस अंतिम कड़ी को भी छीनने और उनके मुनाफे में बदलने के लिए बेचैन सी दिख रही है। वह गरीब, किसान और मजदूरों को हासिये पर रख अपनी नीतियों से केवल कॉरपोरेट घरानों के हितों को ध्यान में रखकर कार्य कर रही है। महंगाई,  बेरोजगारी अपने चरम पर है और सरकार ने बेरोजगारी के मुद्दे पर मीडिया और जनता को जवाब देना ही बंद कर दिया है।"

"गुलाम बनाने को तैयार कॉर्पोरेट"

अखिल भारतीय किसान सभा के लालचंद यादव ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों का हवाला देते हुए किसानों की कर्जमाफी और मुआवजे की मांग उठाई। यादव ने कहा, "खेती और किसान के रिश्ते शरीर और सांसों के रिश्ते होते हैं। सत्ता के लोभ में चूर मोदी सरकार यह भूल गई है जो किसान एक फुट जमीन के लिए अपने सगे भाई की हत्या पर आमादा हो जाता है, वह देश की खेती किसानी को कॉर्पोरेट और बहुराष्ट्रीय निगमों का गुलाम कैसे बनने देगा?  सरकार एमएसपी की गारंटी और किसानों पर दर्ज फर्जी मामलों को उठाने की बात कहकर पीछे मुड़ गई है। अनाज के भंडारण की व्यवस्था अब प्राइवेट कंपनियों के हवाले किया जा रहा है। लगता है कि फसलों की खरीद, भंडारण और विपणन पर पूरी तरह कॉर्पोरेट का कब्जा हो जाएगा।"

किसान नेता हिम्मत सिंह और बाढ़ू चंद यादव ने पूर्वांचल में सूखे की मार और कॉर्पोरेट घरानों के दखल की चर्चा करते हुए कहा, "भारत के कृषि व्यवसाय में नेसले, कैडबरी, हिन्दुस्तान लीवर, गोदरेज फूड्स एण्ड बेवरेजेस, डाबर, आईटीसी, ब्रिटेनिया करगिल, रिलाइंस, पतंजलि जैसी कई बहुराष्ट्रीय व कॉर्पोरेट कंपनियां उतर चुकी हैं। हिमांचल में वॉलमार्ट, बिग बास्केट, अदानी, रिलायंस फ्रेश और सफल जैसी बड़ी कंपनियां सेब के रंग, आकार और गुणवत्ता के हिसाब से छांटकर ही बागवानों से सेब खरीद  रही हैं। छांटे गए सेब बेकार हो रहे हैं। यही हाल चंदौली के धान के मामले में भी हो रहा है। किसानों से ब्लैक राइस की खेती तो कराई गई, लेकिन वो अपनी उपज कहां बेचेंगे, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। लगता है कि मोदी सरकार का लक्ष्य भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर हमला कर खेती-किसानी के क्षेत्र में कॉरपोरेट गुलामी का रास्ता खोलना है, लेकिन देश का किसान ऐसा हरगिज नहीं होने देगा। किसानों का संघर्ष मोदी सरकार के अंत की इबारत लिखेगा।"

बांध-बंधियों की भरमार, पर सूखे की मार 

महा-पंचायत में चंदौली के शिकारगंज स्थित चौधरी चरण सिंह इंटर कालेज के प्रबंधक उदय सिंह यादव, भभौरा के इंजी. अवधेश यादव, बलिया खुर्द के प्रवीन कुमार कुशवाहा, कुसई के प्रवीन कुमार यादव, हिम्मत बहादुर, किसान महासभा के अनिल पासवान, भारतीय किसान यूनियन के मणीदेव चतुर्वेदी के अलावा रामचन्द्र यादव,  सरोज यादव समेत कई किसान फ्रंटों के नेताओं ने चंदौली में सूखे की मार झेल रहे किसानों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। किसानों नेताओं ने कहा, "योगी सरकार की दोषपूर्ण सिंचाई नीतियों का दुष्परिणाम है कि बांध और बंधियों की भरमार होने के बावजूद चंदौली के कई इलाके सूखे से दरक रहे हैं। नौगढ़ में जहां पीने का पानी खत्म हो गया है, वहीं तमाम बंधियां होने के बावजूद नौगढ़, चौविसहा और शिकारगंज इलाके में हजारों बीघा जमीन परती पड़ी हुई है। यह हाल उस चंदौली का है जिसे धान का कटोरा होने का रुतबा हासिल है। अगर अतरसुघवा में भोका नदी को काटकर उसका पानी बंधी में गिरा दिया जाए तो किसानों की मुश्किलें दूर हो सकती है, लेकिन सिंचाई विभाग के अफसर खामोश हैं।"

महा-पंचायत में कुसहीं, करवंदिया, बलिया कला, बलिया खुर्द, शिकारगंज, बोदलपुर, मुड़हुआ, पण्डी, जोगिया कला, दाउदपुर, गायघाट, बोदलपुर, अलीपुर भंगड़ा,  गणेशपुर, पिपड़खडिया, रामपुर समेत दर्जनों गांवों के किसानों ने अपना दुखड़ा सुनाया और कहा कि उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। ये वो गांव हैं जो गृहमंत्री राजनाथ सिंह के गांव भभौरा से सटे हैं। भभौरा में भी अबकी कई बीघा खेत परती है। चंदौली के दर्जनों गांव सूखे के चपेट में हैं। नेवाजगंज पंप कैनाल की क्षमता बढ़ाने से भी काफी हद तक हजारों किसानों को कठिनाइयां दूर हो सकती हैं, लेकिन इस ओर सिंचाई विभाग का ध्यान नहीं है। चंदौली समेत समूचे पूर्वांचल में तत्काल सूखा राहत योजना शुरू कर किसानों से कर्ज वसूली तत्काल नहीं रोकी गई तो अन्नदाता भुखमरी की कगार पर पहुंच जाएंगे। योगी सरकार को चाहिए कि वह किसानों से हर तरह की वसूली रोक दे।"

"सूखे के लिए सरकार ज़िम्मेदार"

किसानों ने चंदौली में सूखे के लिए योगी सरकार और सीधे तौर पर सिंचाई विभाग को जिम्मेदार ठहराया। किसान नेता दशरथ यादव, बाढ़ू यादव, शम्भू नाथ यादव, वंशनारायण त्रिपाठी,  प्रवीण कुशवाहा, अवधेश कुमार यादव, रामलाल यादव, बब्वन यादव, अमर बहादुर चौहान, सुनील कुमार, दिनेश यादव, भृगुनाथ विश्वकर्मा, राजेंद्र यादव, रामलाल यादव, अशोक यादव, हिम्मत बहादुर सिंह ने कहा, "ब्लैक राइस की खेती से दुनिया भर में सुर्खियां बटोरने वाले चंदौली जिले के किसानों को मछली ठेकेदारों ने भुखमरी की कगार पर खड़ा कर दिया है। चंदौली में चार बड़े बांधों और 73 बंधियों के सहारे पहले धान और गेहूं की खेती होती रही है। थोड़ा सा राजस्व जुटाने के लिए योगी सरकार ने इन बांध और बंधियों में मछली मारने के लिए ठेके पर दे दिया है, जिसके चलते किसानों की खेती चौपट हो गई। धान की रोपाई की बात तो दूर, बड़ी संख्या में किसान बेहन तक नहीं डाल सके। चंदौली के बांधों से जुड़ी नहरें तब चालू की गईं जब किसान त्राहि-त्राहि करने लगे। तालाबों का पानी सूखने की वजह से जब पशुओं के लिए पीने के पानी का संकट पैदा होने लगा तब नौगढ़ बांध में रिजर्व में रखे गए पानी छोड़ा जा सका। चंद्रप्रभा, मूसाखांड और तलीफशाह बियर को मछली ठेकेदारों ने तो मई-जून महीने में ही खाली कर दिया था।"

किसान नेता श्याम बिहारी पाल ने कहा, "चंदौली जिले के नौगढ़ इलाके के बांधों का पानी बिहार भी जाता है। इस बांध का पानी पहले छानपातर जल-प्रपात से होते हुए मूसाखांड बांध में पहुंचता है। बाद में लतीफशाह बियर से निकली नहरों से चंदौली और पश्चिमी बिहार के जिलों में धान-गेहूं की सिंचाई होती है।  दूसरी ओर, चंद्रप्रभा नदी बांध के पानी से चंदौली और मिर्जापुर के खेत सींचे जाते हैं। धान के कटोरे का रुतबा हासिल करने वाले चंदौली जिले में मछली माफिया और सिंचाई महकमे के अफसरों के गठजोड़ के चलते हर साल बांध-बंधियों का पानी मई-जून महीने में ही बहा दिया जाता है। इस बार धान की रोपाई तो दूर, हजारों किसानों के नर्सरी ही सूख गई। मानसून लौटने की स्थिति में है और चंद्रप्रभा बांध में नहरें चलाने लायक पानी तक नहीं बचा है।"

भोका बंधी, गुलाल बंधी, मुकरम बंधी, बहेलियापुर बंधी, हेमिया बंधी, बिहड़ी बंधी, गणेशपुर की सूखी बंधियों का जिक्र करते हुए चंदौली के प्रगतिशील किसान पीके यादव और रुपेंद्र चौहान ने कहा कि इनके साथ जिले की सभी बंधियां सूखी पड़ी हैं। उन्होने कहा, "मछली मारने की लालच में ठेकेदारों ने इन बंधियों का पानी गर्मी के दिनों में ही बहा दिया था। किसानों ने किसी तरह धान की नर्सरी तो लगा ली, लेकिन रोपाई का वक्त आया तो बंधियां खाली मिली। नतीजा, हजारों बीघा जमीन परती रह गई। चंदौली जिले में बांध और बंधियों में मछली मारने का ठेका दिए जाने से यूपी सरकार को करीब दो करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है। सरकारी नुकसान देखें तो सिर्फ बिजली पर ही सरकार को अरबों रुपये अनुदान न्योछावर करना पड़ता है। सूखे की स्थिति में सरकार का घाटा बढ़ता जा रहा है। यह सरकार की कैसी नीति-रीति है जो मछली मारने के ठेके से मिलने वाली कुछ ही धनराशि के बदले किसानों को बिजली अनुदान के रूप में अपना अरबों रुपये पानी की तरह बहा देती है। चंदौली जिले के किसान लंबे समय से चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र के बांध-बंधियों में मछली मारने के ठेके को रद करने की मांग उठा रहे हैं। नौकरशाही है कि वह अपनी जेबें भरने की कवायद में किसानों की चीख-पुकार नहीं सुन पा रही है।"

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