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प्रबंधन की तानाशाही के चलते यूपी के हज़ारों बिजलीकर्मियों ने किया कार्य बहिष्कार, सरकार से की हस्तक्षेप की मांग

कर्मचारी संघर्ष समिति ने साफ कर दिया है कि उनकी समस्याओं के समाधान के लिए प्रदेश सरकार आगे आये ताकि कर्मचारियों के प्रति एक स्वस्थ माहौल बनाया जा सके।
UP

लंबे समय से मांगें पूरी न होने और ऊर्जा निगमों के शीर्ष प्रबंधन के हठवादी रवैये से खासा नाराज उत्तर प्रदेश के हजारों बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर और अभियंताएं काम ठप्प कर कार्य बहिष्कार पर चले गए हैं। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के साथ ही राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ और संविदा के अन्य संगठनों का 29 नवंबर से विरोध प्रदर्शन और कार्य बहिष्कार जारी है। इस दौरान प्रबंधन पर बिजलीकर्मियों ने अनदेखी का आरोप लगाया। 15 सूत्री मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे कर्मचारियों का कहना था कि प्रबंधन की तरफ से कर्मचारियों की समस्याओं पर गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। लगातार निजीकरण करने की कोशिश की जा रही है।
 
आम जनता को परेशानी न झेलनी पड़े इसके लिए फिलहाल उत्पादन घरों, ट्रांसमिशन उपकेंद्रों, सिस्टम ऑपरेशन और वितरण उपकेंद्रों की पाली में काम करने वाले कर्मियों को कार्य बहिष्कार से मुक्त रखा गया है। लेकिन संघर्ष समिति ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी माँगो पर कोई सुनवाई नहीं होती है तो आगे पाली में कार्यरत कर्मचारी भी कार्य बहिष्कार में शामिल हो जायेंगे।
      
हालाँकि उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने इस कार्य बहिष्कार से खुद को अलग ही रखा है ताकि बिजली आपूर्ति सामान्य रखने का काम चलता रहे लेकिन इतना तय है कि यदि पाली में काम कर रहे कर्मचारियों के कार्य बहिष्कार में जाने की नौबत आती है तो प्रदेश में बिजली आपूर्ति का विकट संकट पैदा हो सकता है।

राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ के महासचिव जितेंद्र सिंह गुर्जर कहते हैं हम कार्य बहिष्कार में नहीं जाना चाहते थे लेकिन जब कर्मचारियों की माँगो को नहीं सुना जा रहा तो आख़िर उनके पास क्या रास्ता बच जाता है। उनके मुताबिक 27 अक्टूबर 2022 को उत्तर प्रदेश शासन को 15 सूत्री माँगो का ज्ञापन इस उम्मीद से दिया गया था कि सरकार इस पर गंभीरता से विचार करेगी और समाधान निकलेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उन्होंने बताया कि उनके मांगपत्र में ऊर्जा निगमों के शीर्ष प्रबंधन द्वारा की जा रही मनमानी और इसके कारण ऊर्जा निगमों को हो रहे नुकसान के साथ कर्मचारियों का लगातार हो रहा शोषण की बात भी शामिल है जो अत्यंत गंभीर मुद्दे हैं लेकिन अफ़सोस की बात है कि इन मुद्दों पर भी प्रदेश शासन का ध्यान नहीं गया।
 
जितेंद्र कहते उनका विरोध इस बात को लेकर भी है कि ऊर्जा निगमों में प्रबंधन अधिकारियों की नियुक्तियाँ बिना चयन प्रक्रियाओं के सीधे ही हो जा रही हैं जो नहीं होना चाहिए।

उन्होंने आरोप लगाया कि नियमों की धज्जियाँ उड़ा कर अवैध तरीके से ऊर्जा निगमों के शीर्ष पदों पर लोग बैठे हैं। वे कहते हैं निदेशक, प्रबंधन निदेशक, चेयरमेन पदों पर बहालियाँ मेमोरेंडम ऑफ आर्टिकल 32 (i) के मुताबिक होने वाली  चयन प्रक्रिया के तहत ही हो, और इस समय जो बिना चयन प्रक्रिया के प्रमुख पदों पर बैठे हैं उन्हें तत्कलाभाव से  हटाया जाए, यह भी उनकी प्रमुख माँगों में शामिल है। वे कहते हैं शीर्ष प्रबंधन की मनमानी का आलम यह है कि पदोन्नति पद के बढ़े हुए जो तीन वेतनमान 2009 तक सभी कर्मचारियों, अभियंताओं और अपर अभियंताओं को मिलते थे, उन्हें भी भी बंद कर दिया गया है। कर्मचारियों की माँग है कि उस पुरानी व्यवस्था को पुनः लागू किया जाए।
 
जितेंद्र बताते हैं कि 2018 से विद्युत कर्मचारी सुरक्षा कानून का एक मसौदा भी तैयार है लेकिन प्रदेश सरकार ने अभी तक उसे कैबिनेट से पास नहीं कराया जो बेहद खेद का विषय है। वे कहते हैं फील्ड में कर्मचारियों के साथ मार पिटाई  की घटनाएँ बढ़ रही हैं, यह कानून उन्हें विशेष सुरक्षा देता लेकिन पिछले चार वर्षों से यह केवल मसौदा बनकर ही रह गया। जितेंद्र साफ-साफ कहते हैं अभी तो शिफ्ट में काम करने वाले कर्मचारियों को कार्य बहिष्कार से मुक्त रखा गया है लेकिन अगर उनकी माँगो पर शीर्ष प्रबंधन, उत्तर प्रदेश सरकार और प्रदेश के ऊर्जा मंत्री संज्ञान नहीं लेते हैं तो मजबूरन पाली कर्मचारियों द्वारा भी काम ठप्प कर दिया जायेगा फिर इसके बाद बिजली को लेकर प्रदेश में जो भी हालात पैदा होंगे उसकी जिम्मेदार ऊर्जा निगमों का शीर्ष प्रबंधन होगा। उन्होंने बताया कि प्रदेश भर में 70 हजार संविदाकर्मी और 35 हजार नियमित कर्मचारी हैं जो आंदोलनरत हैं।
संघर्ष समिति के संयोजक  शैलेंद्र दुबे ने ऊर्जा मंत्री अरविन्द कुमार शर्मा से प्रभावी हस्तक्षेप करने की अपील करते हुए चेतावनी दी कि अगर शांतिपूर्ण कार्य बहिष्कार आन्दोलन के कारण किसी भी बिजलीकर्मी का कोई उत्पीड़न किया गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे और सभी ऊर्जा निगमों के तमाम बिजलीकर्मी उसी वक्त हड़ताल पर चले जाएंगे। वे कहते हैं बिजली निगमों के शीर्ष प्रबंधन के दमनात्मक रवैये से बिजलीकर्मियों में इतना गुस्सा है कि वे इस तनावपूर्ण में काम नहीं कर पा रहे। वे कहते हैं सभी जिलों में उनका आंदोलन सफलता पूर्वक चल रहा है।

जयप्रकाश, जो कि राज्य विद्युत परिषद जूनियर इंजीनियर संगठन के केंद्रीय महासचिव हैं, ने बताया कि प्रदेश के 75 जिलों और 11 परियोजनाओं में हर जगह विद्युत कर्मचारियों का  कार्य बहिष्कार जारी है। वे कहते हैं ऊर्जा निगमों के उच्च प्रबंधनों द्वारा लगातार जो हिटलरशाही चल रही है वह अब नहीं सहेंगे। उनके मुताबिक प्रबंधन द्वारा श्रम नियम कानूनों, सरकार के आदेश, नीतियों के इतर जाकर कर्मचारियों से काम लिया जा रहा है जिसका समय-समय पर संगठनों, कर्मचारी प्रतिनिधियों द्वारा विरोध किया जाता रहा है लेकिन प्रबंधन ने इसे भी अनसुना कर दिया है।
  
जयप्रकाश कहते हैं उत्तर प्रदेश सरकार कहती है कर्मचारियों से सकरात्मक संवाद कर उनके विवाद और समस्याओं का समाधान किया जाए जबकि शीर्ष प्रबंधन इस ओर कोई कदम बढ़ाता ही नहीं, इस रस्साकाशी में पिस रहा है तो बस कर्मचारी। उनके मुताबिक करीब दो साल पहले पूर्वांचल  विद्युत वितरण  निगम  लिमिटेड के निजीकरण के खिलाफ़ भी  प्रदेश भर में वे लोग लामबद्ध होकर विरोध में उतरे थे तब सरकार से आश्वासन मिला था कि न केवल पूर्वांचल बल्कि प्रदेश के किसी भी विद्युत वितरण निगमों का निजीकरण नहीं किया जायेगा तब सरकार के मंत्रिमंडल समिति से हुए समझौते पर चेयरमेन, एम डी, के भी हस्ताक्षर थे। इस समझौते को भी ताक पर रखकर शीर्ष प्रबंधन ने पूर्वांचल सहित पूरे प्रदेश में जितने भी ट्रांसमिशन की इकाइयाँ हैं उनमें शत प्रतिशत आउटसोर्सिंग की ओर बढ़ चुके हैं जो की कर्मचारियों के साथ सरासर धोखा है।
वे कहते हैं आज बिजली क्षेत्र की हालत बिगड़ रही है जिसका महत्वपूर्ण कारण हैं कर्मचारियों की घोर कमी। वे बताते हैं पहले 25 से 30 लाख उपभोक्ताओं में सवा लाख कर्मचारी होते थे लेकिन आज सवा तीन करोड़ उपभोक्ताओं में 45000 कर्मचारियों से भी कम रह गये हैं जो असंतुलित अनुपात है इसलिए उनकी एक माँग कार्यानुसार कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने और साथ ही पुरानी पेंशन बहाली की भी है।

तो वहीं कर्मचारियों के कार्य बहिष्कार आंदोलन की निरंतरता देखकर पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन ने संघर्ष समिति के पदाधिकारियों से कार्य बहिष्कार समाप्त करने की अपील की है। प्रबंधन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि प्रबंधन अपने कर्मचारियों के हितों के प्रति संवेदनशील है और जो भी उनकी न्यायोचित माँग होगी उनके समाधान के लिए प्रबंधन तत्पर है। हालाँकि प्रबंधन ने यह भी साफ कहा कि करोड़ों उपभोक्ताओं के हितों को देखते हुए बिजली व्यवस्था में लापरवाही, अनुशासनहीनता या अव्यवस्था बर्दाश्त नहीं की जा सकती। हालाँकि कर्मचारी संघर्ष समिति ने अब साफ कर दिया है कि उनकी समस्याओं के समाधान के लिए प्रदेश सरकार आगे आये ताकि कर्मचारियों के प्रति एक स्वस्थ माहौल बनाया जा सके। विद्युत कर्मियों के इस आंदोलन का राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने भी समर्थन किया है।
 
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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