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यूपी चुनाव 2022: पूर्वांचल में इस बार नहीं हैं 2017 वाले हालात

पूर्वांचल ख़ासकर गोरखपुर में सभी प्रमुख पार्टियां अपनी जीत का दावा कर रही हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर ज़िले की 9 सीटों में से 8 पर भाजपा ने जीत हासिल की थी, लेकिन जानकारों का मानना है कि अब वैसे हालात नहीं हैं।
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2017 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर ज़िले की 9 सीटों में से 8 पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी। केवल चिल्लूपार सीट पर बहुजन समाज पार्टी के विनय शंकर तिवारी को जीत मिली थी। गोरखपुर ग्राणीण, चौरीचौरा, सहजनवां विधानसभा सीट पर सपा जबकि पिपराइच, खजनी बांसगांव में बसपा और गोरखपुर सदर व कैंपियरगंज में कांग्रेस के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस और सपा गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रहे थे और दोनों को गोरखपुर से एक भी सीट नहीं मिल सकी।

2017 के विधानसभा चुनाव के आँकड़े ही नहीं गोरखनाथ मठ का प्रभाव और मुख्यमंत्री का गृह जनपद होने के कारण भी भाजपा कार्यकर्ता आत्मविश्वास के साथ 2022 के चुनावी नतीजे अपने पक्ष में होने के दावे कर रहे हैं। भाजपा के गोरखपुर ज़िलाध्यक्ष युधिष्ठिर सिंह कहते हैं “हमारे सामने कोई भी पार्टी किसी भी तरह की चुनौती के रूप में नहीं खड़ी है। हम फिर से बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करेंगे। बेरोज़गारी, महंगाई और क़ानून व्यवस्था के ग़लत दावे करके विपक्ष जनता को भरमाने की कोशिश कर रहा है।”

भाजपा के इस दावे को कांग्रेस जिलाध्यक्ष निर्मला पासवान सिरे से ख़ारिज करते हुए कहती हैं “भाजपा सरकार से छात्र-नौजवान, किसान-मजदूर और आम जनता सभी परेशान हैं। यूपी में आये दिन हत्या हो रही है और क़ानून व्यवस्था गंभीर संकट में है। महंगाई और बेरोज़गारी चरम पर है। भाजपा नेता चाहे जो भी दावे करें आम जनता इनकी सच्चाई अब समझ चुकी है।”

2017 के चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के नेता बार-बार कहते थे कि प्रदेश में भाजपा सरकार बन जाने के बाद केन्द्र और राज्य सरकार मिलकर प्रदेश का तेज़ी से विकास करेंगे। प्रदेश का कितना विकास हुआ है यह भी किसी से छिपा हुआ नहीं है। हाल ही में नीति आयोग ने पहली बहुआयामी ग़रीबी सूचकांक ( एमपीआई ) रिपोर्ट जारी किया। जिसके अनुसार उत्तर प्रदेश में 37.79 प्रतिशत आबादी गरीब है। पहले दो स्थानों पर बिहार (51.91) और झारखंड (42.16) हैं।

समाजवादी पार्टी के निवर्तमान जिलाध्यक्ष नगीना साहनी कहते हैं “योगी आदित्यनाथ ने यदि उत्तर प्रदेश में विकास किया होता तो प्रधानमंत्री को जिलास्तर पर उनके लिये वोट नहीं माँगना पड़ता। प्रदेश की जनता यह नहीं भूलेगी कि जब प्रदेशवासी ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ रहे थे तो योगी आदित्यनाथ पश्चिम बंगाल में पार्टी के लिये चुनाव प्रचार कर रहे थे।”

मनीष हत्याकांड को विपक्ष बनायेगा मुद्दा

कानपुर से गोरखपुर घूमने के लिये आये मनीष गुप्ता रेलवे स्टेशन के पास एक होटल में रुके हुए थे। आरोप है कि होटल के कमरे की जाँच के लिये आये पुलिसकर्मियों ने उनके साथ मारपीट की जिसके कारण मनीष की मौत हो गई। इस घटना के बाद योगी सरकार की काफ़ी किरकिरी हुई। पुलिस ने 6 पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ हत्या का मुक़दमा दर्ज किया है और अब सीबीआई मामले की जाँच कर रही है। सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों ही विपक्षी पार्टियाँ लगातार इस घटना को लेकर योगी को घेरती रही हैं।

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए विपक्ष के तीनों नेताओं ने मनीष हत्याकांड का ज़िक्र किया। बसपा ज़िलाध्यक्ष घनश्याम राही मुख्यमंत्री के कार्यशैली पर सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं “मुख्यमंत्री लंबे समय से गोरखपुर में रह रहे हैं और अक्सर आते रहते हैं। फिर भी ज़िले में अपराध बढ़ रहा है, मनीष गुप्ता की हत्या के बाद से आम लोग पुलिस व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहे हैं। मुख्यमंत्री अपना शहर नहीं सँभाल पा रहे हैं प्रदेश कैसे सँभालेंगे?”

सपा जिलाध्यक्ष ने कहा “मुख्यमंत्री कहते हैं कि अपराधी उत्तर प्रदेश छोड़ दें। जबकि उनके गृह जनपद में होटल में सो रहे व्यवसायी को पुलिस ने पीट-पीटकर मार डाला। हम योगी जी से पूछना चाहते हैं यदि यूपी से अपराधी चले गये हैं तो जो आपराधिक घटनायें हो रही हैं वह योगी जी से पूछकर हो रहीं या भाजपा के लोग कर रहे हैं?’’

पूर्वांचल में बढ़त बनाने पर ज़ोर दे रही पार्टियां

राजनीतिक गलियारों में आम धारणा है कि पूर्वांचल में बढ़त बनाने वाली पार्टी यूपी में सरकार बनाती है। 28 ज़िलों वाले पूर्वांचल में 164 विधानसभा सीटें हैं। भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 115 सीटें हासिल कर सरकार बनाई थी। 2007 में बसपा को 80 सीटें मिली थीं और 2012 के चुनाव में सपा ने पूर्वांचल के 102 सीटों पर बढ़त हासिल कर सरकार बनाई थी।

पूरे यूपी की तुलना में पूर्वांचल में जातिगत राजनीति को और भी साफ़ तौर पर देखा जा सकता है। ओमप्रकाश राजभर की अगुवाई वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अनुप्रिया पटेल की अपना दल ( सोनेलाल ) और संजय निषाद की निषाद पार्टी का निर्माण ही जातिगत राजनीति के आधार पर हुआ है और यह खुलकर जाति की राजनीति करती हैं। तीनों ही पार्टियों का मुख्य जनाधार इनकी जाति के मतदाता हैं।

अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व में अपना दल ( सोनेलाल ) और संजय निषाद की निषाद पार्टी भाजपा के साथ हैं। जबकि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और कृष्णा पटेल के नेतृत्व में अपना दल ( कमेरावादी ) सपा के साथ हैं। डॉ. संजय चौहान के नेतृत्व में जनवादी पार्टी ( सोशलिस्ट ) भी सपा के साथ आ गई है।

पूर्वांचल के महत्व को भाजपा अच्छी तरह से समझती है इसीलिए पिछले 5 महीनों में प्रधानमंत्री के यूपी के सभी कार्यक्रम पूर्वांचल के ज़िलों में ही आयोजित किये गये हैं। भाजपा का पूर्वांचल में फ़ोकस इस वजह से भी बढ़ा है क्योंकि लखीमपुर में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा पर किसानों के ऊपर गाड़ी चढ़ाने के गंभीर आरोप हैं और किसान आंदोलन के कारण पश्चिमी यूपी में भाजपा का काफ़ी विरोध हो रहा है।

यूपी सरकार ने केंद्र के साथ मिलकर यूपी के पूर्वांचल में अब तक पीएम मोदी की 6 सभायें करवा चुकी है। पीएम ने 15 जुलाई को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी, 14 सितंबर को अलीगढ़, 5 अक्टूबर लखनऊ, 20 अक्टूबर को कुशीनगर, 25 अक्टूबर को सिद्धार्थनगर और वाराणसी गये और विभिन्न योजनाओं का शिलान्यास किया। 13 दिसंबर प्रधानमंत्री ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का वाराणसी में उद्घाटन किया।

सपा का भी पूर्वांचल पर काफ़ी ज़ोर है। अखिलेश यादव ने 7 नवंबर को अंबेडकरनगर में एक बड़ी रैली की थी। इस दौरान उनके साथ सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर और बसपा से विधायक व पूर्व मंत्री लालजी वर्मा और बसपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर भी शामिल थे। तीनों नेताओं का मुख्य जनाधार पिछड़ी जातियों में माना जाता है।

2017 जैसे नहीं हैं हालात

वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह कहते हैं “हालात 2017 की तुलना काफ़ी बदल गये हैं। यूपी के चुनाव में जाति फ़ैक्टर गहराई से काम करता है। 2017 विधानसभा के चुनाव में ओबीसी जातियों का साथ पाकर ही भाजपा बहुमत से सरकार बना सकी थी। इस समय सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, जनवादी पार्टी ( सोशलिस्ट ) सपा के साथ हैं। साथ ही बसपा के कई ओबीसी नेता और तिवारी परिवार के आने से सपा मज़बूत हुई है। बदले हालात में स्पष्ट दिख रहा है कि ग़ाज़ीपुर, बलिया, बनारस से लेकर चंदौली तक के इलाक़े में भाजपा को भारी नुक़सान हो सकता है।”

वह आगे कहते हैं ”भाजपा जानती है कि 5 वर्षों में सरकार का प्रदर्शन ऐसा नहीं रहा है कि उसके आधार पर चुनाव लड़ा जाये। इसलिये धार्मिक मुद्दों और प्रतीकों का सहारा लिया जा रहा है। हालांकि महंगाई और बेरोज़गारी से परेशान लोगों के बीच यह मुद्दे टिक नहीं रहे हैं।”

गोरखपुर विश्वविद्यालय से रिटायर्ड प्रोफ़ेसर चितरंजन मिश्रा एक मुहावरे से आपने बात की शुरुआत करते हुए कहते हैं कि "काठ की हांडी दोबारा नहीं चढ़ती"। सपा 2022 के चुनाव में पूर्वांचल में भाजपा को कड़ी टक्कर देती हुई दिख रही है। भाजपा की कोशिशों के बावजूद जनता साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के पक्ष में नहीं दिख रही है। शायद लोग समझ रहे हैं कि दूसरे मुद्दों को टालने के लिये हवाई मुद्दों को खड़ा किया जाता है।”

सभी पार्टियाँ कर रही हैं जीत का दावा

2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और सहयोगी दलों को 325 सीटें मिली थीं, जिसमें भाजपा को 312, अपना दल (सोनेलाल) को 9 और सुहेलदेव भारतीय समाज को 4 सीटें हासिल हुई थीं। कांग्रेस और सपा गठबंधन को 54, बसपा को 19 और अन्य को 6 सीटें मिलीं थीं। लेकिन भाजपा ही नहीं सभी पार्टियाँ सरकार बनाने का दावा कर रही हैं।

नगीना साहनी कहते हैं “2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार जब बनी थी तब सपा को गोरखपुर से केवल एक विधानसभा सीट मिली थी। इसके बाद भी अखिलेश यादव ने शिक्षा, स्वास्थ्य मुद्दों पर काम किया और कई विकास कार्य किये। जनता फिर से सपा का विकास देखना चाहती है। इस बार हम गोरखपुर के सभी 9 सीटें भी जीतेंगे और प्रदेश में सरकार भी बनायेंगे।”

निर्मला पासवान कहती हैं “हम प्रत्येक ज़िले में संगठन पर काम कर रहे हैं और अपने कार्यकर्ताओं के मेहनत की बदौलत 2022 में यूपी में सरकार बनायेंगे। सरकार बनाने के लिये हमें किसी गठबंधन की भी आवश्यकता नहीं होगी। प्रियंका गांधी के नेतृत्व को प्रदेश की जनता से स्वीकार कर लिया है और उनके नेतृत्व में हम सरकार बनायेंगे।”

पार्टी के चुनाव के लिये तैयारियों के सवाल पर बसपा के गोरखपुर जिलाध्यक्ष घनश्याम राही कहते हैं “हमारा संगठन पूरी तरह से तैयार है, जैसा बहन जी का निर्देश प्राप्त होगा कार्यकर्ता उसे लागू करने में जुट जायेंगे। हमारे कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को बसपा की नीतियों के बारे में बता रहे हैं। विनय शंकर तिवारी को पार्टी के मतदाताओं ने जिताया था इसलिए उनके जाने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।”

विनय शंकर तिवारी पूर्व कैबिनेट मंत्री पंडित हरिशंकर तिवारी के बेटे हैं। पंडित हरिशंकर तिवारी बाहुबली नेता माने जाते हैं और पूर्वांचल में ब्राह्मण जाति के बीच गहरी पैठ रखते हैं। 12 दिसंबर को उनके दोनों बेटे ( चिल्लूपार से विधायक विनय शंकर तिवारी और संतकबीर नगर के पूर्व सांसद भीष्म शंकर तिवारी ) और भांजे ( पूर्व विधान परिषद सभापति गणेश शंकर पांडेय ) सपा में शामिल हो गये।

सपा में शामिल होने की चर्चाओं के बीच ही बसपा प्रमुख ने 6 दिसंबर को तीनों को पार्टी ने निष्कासित कर दिया था। बसपा ब्राह्मणों को फिर से रिझाने के लिये प्रबुद्ध सम्मेलन कर रही है। ऐसे में तिवारी परिवार का बसपा से अलग होना पार्टी के लिये भारी क्षति माना जा रहा है।

(सत्येन्द्र सार्थक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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