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यूपी :  फ़र्ज़ी एनकाउंटर, न्याय में देरी और आत्महत्या

एक ओर जहां योगी सरकार राज्य को अपराध मुक्त बताने में जुटी रहती है, तो दूसरी ओर फेक एनकाउंटर के मामले भी खूब सामने आते हैं। इन फेक एनकाउटरों की वजह से कई परिवार संभल नहीं पाए हैं।
fake encounter

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के दावों पर तथाकथित तौर से विश्वास कर लीजिए.. तो राज्य अपराध मुक्त हो चुका है। पुलिस अपराधियों को पहचान लेती है, अपराधी घबराकर ख़ुद थाने में सरेंडर कर देते हैं, या राज्य छोड़कर चले जाते हैं.. अगर ऐसा नहीं होता है तो वो एनकाउंटर में मारे जाते हैं।

‘’एनकाउंटर में मारे जाते हैं’’.. ये लाइन पूरी तरह से सही नहीं है। अगर यहां एनकाउंटर के साथ ‘फेक’ शब्द को जोड़ दिया जाए.. तब जाकर आप उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का पैमाना सही ढंग से बता पाएंगे।

यानी यहां सिर्फ एनकाउंटर नहीं फेक इनकाउंटर भी होते हैं... ये हम नहीं कह रहे, बल्कि केंद्र सरकार और मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट कह रही हैं, विपक्ष कह रहा है... और जालौन में घटी एक ताज़ा घटना में पीड़िता का परिवार कह रहा है।

दरअसल साल 2019 के अक्टूबर महीने में पुष्पेंद्र यादव नाम के एक शख्स को उत्तर प्रदेश पुलिस ने अपराधी बताकर मार गिराया था, बाद में इसपर कई सवाल खड़े हुए जिसका जवाब आज तक नहीं मिला। पुष्पेंद्र के एनकाउंटर को फेक बताने वाला उसका परिवार तभी से न्याय की गुहार लगा रहा था, जिसमें खासतौर पर उसकी पत्नी शिवांगी यादव शामिल थी। लेकिन लंबे वक्त तक न्याय नहीं मिलने के कारण शिवांगी ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

ये घटना मंगलवार की रात यानी 28 मार्च को उस वक्त घटी, जब पूरा परिवार सो चुका था। उसी वक्त शिवांगी ने फांसी के फंदे से लटककर आत्महत्या कर ली। परिवार वालों को इस बात की ख़बर तब हुई जब सुबह उन्होंने शिवांगी यादव का दरवाज़ा खोला।

ये पूरी घटना जालौन के आटा थाना क्षेत्र के पिपराया गांव में घटी, जहां शिवांगी अपने पति यानी पुष्पेंद्र की मौत के बाद मायके में रह रही थी।

इस आत्महत्या में खास बात ये है कि पुलिस को शिवांगी के पास को कोई सुसाइड नोट तो नहीं मिला लेकिन उसकी हथेली पर कुछ लिखा हुआ ज़रूर मिल गया। शिवांगी की हथेली पर लिखा था कि ‘’अपने आप खत्म हो रहे हैं किसी पे कोई दोष न लगाएं’’।

शिवांगी की मौत के बाद उसके परिवार वाले आरोप लगा रहे हैं कि पति की मौत में न्याय नहीं मिलने के कारण वो डिप्रेशन में थी।

दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भी इस मसले पर सरकार को घेरा है, उन्होंने ट्वीट कर लिखा है कि- स्वर्गीय पुष्पेंद्र यादव की पत्नी की आत्महत्या, सत्ता में विश्वास की हत्या है। किसी को आत्महत्या के लिए मजबूर करना दरअसल हत्या ही है।

अखिलेश यादव के साथ-साथ समाजवादी पार्टी के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से भी एक अख़बार की कटिंग ट्वीट कर भाजपा को कटघरे में खड़ा किया गया।

समाजवादी पार्टी की ओर से ट्वीट में लिखा गया कि योगी सरकार के अन्याय ने ले ली एक निर्दोष जान! झांसी में मुख्यमंत्री के स्वजातीय पुलिसकर्मी द्वारा सत्ता के अहंकार में किए गए पुष्पेंद्र यादव के फर्जी एनकाउंटर ने पूरे परिवार को कर दिया तबाह। न्याय का इंतजार करते करते थक गई शिवांगी, दे दी जान। आरोपी को बचा रहे सीएम। हो न्याय।

ख़ैर... मामले में राजनीति तो होगी ही, क्योंकि राजनीतिक दल और नेता ऐसे मौकों की तलाश में रहते हैं, लेकिन सवाल ये उठता है, कि जब ख़ुद केंद्र सरकार संसद में आंकड़े पेश कर चुकी है, तब फेक एनकाउंटर्स के ख़िलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होती।

अगर योगी सरकार की माने तो 6 सालों में राज्य के भीतर पुलिस और अपराधियों के बीच 10 हजार से ज़्यादा मुठभेड़ हुईं, इसमें 63 अपराधी मारे गए और 1708 घायल हुए। राज्य सरकार के आंकड़ों में इस दौरान एक पुलिसकर्मी भी शहीद हुआ और 401 पुलिसकर्मी घायल हो गए।

सरकार की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश में सबसे अधिक 3,152 मुठभेड़ मेरठ में हुआ। उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्रवाई के दौरान 5,967 अपराधियों को पकड़ा गया। सरकार की विज्ञप्ति में कहा गया है कि, उत्तर प्रदेश पुलिस की 2017 के बाद से बदमाशों से 10,713 मुठभेड़ हुई। इनमें सबसे अधिक 3,152 मेरठ में हुई। इसके बाद आगरा पुलिस ने 1844 मुठभेड़ों को अंजाम दिया। बरेली में 1497 मुठभेड़ हुई।

इन आंकड़ों के ज़रिए योगी सरकार भले ही अपनी पीठ थपथपा रही हो, लेकिन इन आंकड़ों की बाज़ीगरी की असली गवाही केंद्र सरकार के आंकड़े देते हैं।

केंद सरकार के आंकड़ो के मुताबिक, 2017 से लेकर 2022 तक देश में 655 एनकाउंटर हुए। इनमें अकेले उत्तर प्रदेश में 117 फर्जी एनकाउंटर हुए।

6 जनवरी 2019 को तत्कालीन गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने राज्यसभा में बताया था कि 2018 में देश में 22 फेक एनकाउंटर हुए। इनमें 17 यानी 77 फिसदी से भी ज्यादा उत्तर प्रदेश में हुए थे। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक आरटीआई के जवाब में बताया था कि देश में 2000 से 2018 के बीच 18 साल में 1804 फेक एनकाउंटर हुए। इनमें 811 फेक एनकाउंटर यानी 45 फीसदी अकेले उत्तर प्रदेश में हुए।

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में मार्च 2021 में फर्जी एनकाउंटर का आरोप लगा था। यह साल अगस्त 2022 में उजागर हुआ। इसके बाद चित्रकूट के एसपी रहे अंकित मित्तल समेत 15 पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। यह सभी कथित तौर पर फर्जी मुठभेड़ में शामिल थे। मुठभेड़ में वॉन्टेड आरोपी भालचंद्र यादव की मौत हुई थी। इसके बाद भालचंद्र यादव के परिजनों ने पुलिस पर हत्या का आरोप लगाया था।

ऐसा ही एक मामल अप्रैल 2021 का है, जब उत्तर प्रदेश के रामपुर में शराब बरामदगी के नाम पर व्यापारी को मुठभेड़ में गिरफ्तार कर जेल भेजने का मामला फर्जी निकला था। पुलिस महानिरीक्षक शलभ माथुर की जांच में आईपीएस अफसर तत्कालीन एसपी शगुन गौतम समेत 30 से ज्यादा पुलिस वाले दोषी पाए गए थे। सभी के खिलाफ कार्रवाई के लिए डीआईजी मुरादाबाद ने उच्चाधिकारियों को संस्तुति रिपोर्ट भेजी थी। इनके अलावा भी कई ऐसे फर्जी मुठभेड़ हैं, जिनके बारे में पूरा प्रदेश जानता है।

क्या और क्यों होता है फेक एनकाउंटर ?

किसी भी अपराधी का एनकाउंटर उस समय होता है, जब वह पुलिसवालों पर हमला कर दे और पुलिस के जवाबी कार्रवाई में उसकी मौत हो जाए। जबकि पुलिस पहली कोशिश और ज़िम्मेदारी होती है कि वह अपराधी को बिना नुकसान पहुंचाए पकड़ ले। हालांकि ऐसा होता नहीं है। खासकर उत्तर प्रदेश में।

जिसके पीछे का कारण देखा जाए तो सरकार की अपनी गोपनीयता कहा जा सकता है, या यूं कह लें कि राजनीतिक दवाब। दरअसल जब कोई बड़ा अपराध होता है और उसकी वजह से सरकार घिर जाती है। ऐसे मामले में कानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगते हैं और पुलिस बैकफुट पर आ जाती है,  तो पुलिस पर राजनीतिक दबाव काफी बढ़ जाता है। पुलिस अपने ऊपर बने दबाव को कम करने के लिए तब शॉटकट रास्ता अपनाती है और अपराधी का एनकाउंटर कर देती है। या फिर कई बार अदालत में मामला लंबा न खिंच जाए कि लोगों में सरकार के खिलाफ गुस्सा पनपे और वोटों पर असर हो इसलिए भी एनकाउंटर हो जाते हैं, तो कई अपराधियों से त्रस्त आकर भी उन्हें मार दिया जाता है।

हालांकि फेक या फर्जी एनकाउंटर मानवाधिकार के पूरी तरह से ख़िलाफ है, क्योंकि एक फर्जी एनकाउंटर उसके पीछे पूरे परिवार को तहस-नहस करके रख देता है। जैसे ताज़ा मामला शिवांगी यादव की आत्महत्या का है।

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