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यूपी: विश्वविद्यालयों में दलित समर्थक समूहों और दक्षिणपंथी खेमे के बीच बढ़ रहा टकराव

पिछले कुछ महीनों में विश्वविद्यालय परिसर में दोनों समूह कई बार भिड़ चुके हैं।
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प्तातीकात्मक तस्वीर (फाइल फोटो)

उच्च शिक्षा केंद्रों में अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए लखनऊ में दलित समर्थक समूहों और हिंदुत्ववादी दक्षिणपंथी खेमे के बीच विश्वविद्यालयों में तनाव बढ़ रहा है। दक्षिणपंथी खेमा लगातार अपना आधिपत्य बढाने का प्रयास कर रहा है। पिछले कुछ महीनों में, दोनों समूह विभिन्न विश्वविद्यालय परिसरों में कई बार भिड़ चुके हैं। ऐसा लगता है कि दक्षिणपंथी अपने प्रतिद्वंद्वी समूहों और व्यक्तियों, विशेषकर अंबेडकरवादी दलितों का गला घोंटना चाहते हैं।

रामनवमी पर दलितों से भिड़ंत

हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध दक्षिणपंथी छात्र संघ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और लखनऊ में बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) में दलित छात्रों के बीच भिडंत हुई। 29 मार्च को रामनवमी जुलूस के दौरान कुछ बाहरी लोगों के बीबीएयू में प्रवेश करने पर स्थिति तनावपूर्ण हो गई थी। अंबेडकर विश्वविद्यालय दलित छात्र संघ (AUDSU) ने परिसर में 'बाहरी' लोगों की भगवाधारी भीड़ और उनके भड़काऊ नारों का विरोध किया। इसके कारण हिंसा हुई, जिसमें कई छात्रों को मामूली चोटें आईं। सूत्रों के मुताबिक, 'बाहरी' ABVP के सदस्यों के साथ बीबीएयू कैंपस में घुसे थे।

वेमुला की सालगिरह में ABVP ने बाधा डाली

यह पहली बार नहीं था जब दलित समर्थक समूहों और दक्षिणपंथियों के बीच किसी विश्वविद्यालय में हाथापाई हुई हो। इससे पहले एबीवीपी के छात्रों ने लखनऊ विश्वविद्यालय (एलयू) में दलित छात्र रोहित वेमुला की 7वीं पुण्यतिथि मनाने के लिए बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट एसोसिएशन (बीएपीएसए) सहित विभिन्न छात्र संघों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों को बाधित किया।

7 जनवरी को आयोजित इस कार्यक्रम का काउंटर करने के लिए, दक्षिणपंथी समूह ने लखनऊ विश्वविद्यालय परिसर में भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा के सामने हिंदू धार्मिक नारे लगाए।

दलित विचारक पर हमला

लखनऊ विश्वविद्यालय में दक्षिणपंथी गुट ने एक प्रोफेसर को भी निशाना बनाया। पिछले साल, 11 मई को, एबीवीपी लखनऊ विश्वविद्यालय कैंपस में हिंदी के प्रोफेसर रविकांत चंदन को कथित तौर पर धमकाने और परेशान करने के लिए आई थी क्योंकि उन्होंने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर के बीच चल रहे विवाद के बारे में टिप्पणी की थी।

उल्लेखनीय है कि चंदन ने पट्टाभि सीतारमैय्या की किताब फेदर्स एंड स्टोंस से एक कहानी उद्धृत की, जिसमें कथित परिस्थितियों का वर्णन किया गया है जिसके तहत विवादित स्थान पर एक मंदिर को नष्ट कर दिया गया और उसके स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण किया गया।

विश्वविद्यालय के एक छात्र की शिकायत के आधार पर प्रोफेसर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। दिलचस्प बात यह है कि पुलिस ने प्रोफेसर पर हमला करने वाले छात्रों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज नहीं की।

हिंदुत्व को मजबूत करना

ऐसा लगता है कि ABVP विश्वविद्यालयों में "हिंदुत्व" के एजेंडे को मजबूत करना चाहती है। हालांकि कई अन्य छात्र समूह और कुछ व्यक्ति लगातार विश्वविद्यालयों में सांप्रदायिक एजेंडा थोपने का विरोध करते रहे हैं। बहुत से लोग सोचते हैं कि जब से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरी बार सरकार बनाई है, एबीवीपी अपने वैचारिक विरोधियों के खिलाफ आक्रामक हो रही है।

अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं

प्रशासन (विश्वविद्यालयों और जिलों) की भूमिका मूक दर्शक से ज्यादा कुछ नहीं है। दलित समूह जिला और विश्वविद्यालय के नेताओं पर उनकी शिकायतों और समस्याओं को नहीं सुनने का आरोप लगाते हैं। पुलिस और अन्य अधिकारी दक्षिणपंथियों के खिलाफ कार्रवाई करने से बचते हैं क्योंकि उनका संबंध सत्ता में बैठे लोगों से होता है।

क्यों कमजोर हो रहे हैं दलित समूह?

कई लोग दलित समर्थक समूहों पर लगातार हो रहे हमलों के पीछे एक राजनीतिक कारण बताते हैं। राजनीतिक विचारकों का मानना है कि पिछले एक दशक में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पतन के साथ दलित आंदोलन की गति थम गई है।

उन्होंने उच्च शैक्षणिक संस्थानों में दलितों की दयनीय स्थिति के लिए बहुजन नेताओं को भी जिम्मेदार ठहराया। एक राजनीतिक विश्लेषक के मुताबिक, बसपा ने कभी कोई छात्रसंघ नहीं बनाया जो कैंपस में उनके अधिकारों के लिए लड़ सके।

निशाने पर हैं अंबेडकरवादी दलित

बात करते हुए दलित विचारक एस.आर. दारापुरी ने कहा, "इसके बावजूद, दलितों का एक बड़ा हिस्सा अब सत्ताधारी पार्टी (बीजेपी) के साथ है, लेकिन शैक्षणिक संस्थानों से उन पर हमलों की खबरें अभी भी आ रही हैं।" पूर्व भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी का मानना है कि ये हमले दलितों पर हैं, जो अंबेडकरवादी हैं। उन्हें लगता है कि प्रबुद्ध अंबेडकरवादी दलित समूह हिंदुत्व ताकतों के लिए आंख की किरकिरी बन रहा है क्योंकि वे "हिंदुत्व" के पिछड़े हुए या प्रतिगामी सिद्धांतों को चुनौती देते हैं और उन पर सवाल उठाते हैं।

कोई राजनीतिक समर्थन नहीं

दारापुरी ने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के छात्रों को समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाली समाजवादी छात्र सभा का समर्थन प्राप्त है। मुस्लिम छात्रों को समाजवादी छात्र सभा और कांग्रेस के नेतृत्व वाले भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) से मदद मिल जाती है। लेकिन दलित छात्र संकट में हैं और अत्याचार तथा भेदभाव का सामना कर रहे हैं क्योंकि कोई भी राजनीतिक ताकत कैंपस में उनका समर्थन नहीं करती है।

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (BBAU) के एक दलित छात्र गौरव ने इस लेखक को बताया कि रामनवमी पर दक्षिणपंथी छात्रों और विश्वविद्यालय के बाहर के लोगों के हमले में उसका दोस्त अंकित घायल हो गया था।

विश्वविद्यालय प्रशासन झुकता है ABVP के आगे

गौरव ने कहा कि कई बाहरी लोगों ने विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश किया और धार्मिक नारे लगाए, लेकिन अधिकारियों ने उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की। उन्होंने कहा, "ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनके सामने झुक रहा है, क्योंकि उनके साथ आरएसएस की ताकत है।"

पिछले कुछ महीनों में सामने आई ऐसी कई घटनाओं से पता चलता है कि लखनऊ विश्वविद्यालय और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय दोनों में दलित छात्रों के लिए माहौल प्रतिकूल हो गया है। भगवा विचारधारा से अलग रहने वाले छात्रों और शिक्षकों को निशाना बनाया जा रहा है।

(लेखक उत्तर प्रदेश के स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

UP: Hostility Between Pro-Dalit Groups, Right-Wing Camps Growing in Universities

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