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कानपुर हिंसा पर अज़ीबोगरीब मामला- दो FIR में सेम आरोपियों के नाम और क्रम भी वही

‘लोगों के एक ही समूह के खिलाफ एक ही आरोपों पर अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज़ करने का उद्देश्य, उन पर गैंगस्टर अधिनियम और एनएसए के तहत मुक़दमा दर्ज़ करना है’ उक्त आरोप आरोपियों के वकीलों ने लगाए हैं।
KANPUR
कानपुर में हुई हिंसा के बाद पुलिस, धार्मिक नेताओं से बात करते हुए (फाइल फोटो-ANI)

जब पुलिस अधिकारी अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर कार्रवाई करते हैं तो जो संयोग सामने आते हैं, वे मनोरंजक हो सकते हैं। लेकिन, साथ ही, ये 'पागलपन की विधि' का मामला भी हो सकता है।

ऐसा ही एक मामला 3 जून को कानपुर में हुई हिंसा का है, जो हिंसा एक निजी टीवी समाचार चैनल पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रवक्ता नुपुर शर्मा द्वारा पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के विरोध में भड़की थी और जिन्हे अब पार्टी से निलंबित कर दिया गया है। हैरानी की बात यह है कि पुलिस ने एक थाने में दर्ज दो प्राथमिकी में एक ही अपराध के लिए कई लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है।

हैरानी की बात यह है कि दोनों मामलों में दो पुलिस अधिकारियों की शिकायत पर नामजद लोगों के नाम एक ही क्रम में दर्ज किए गए हैं।

4 जून को सुबह 03:50 बजे (घटना के कम से कम 13 घंटे बाद) नवाब अहमद, प्रभारी निरीक्षक, बेकन गंज पुलिस स्टेशन, कानपुर पूर्व (कानपुर नगर पुलिस आयुक्तालय) द्वारा दर्ज प्राथमिकी संख्या 0042/2022 में 36 व्यक्तियों के नाम हैं और 450 अज्ञात आरोपी हैं, जिन्होंने कथित तौर पर ईंट-पत्थरबाजी की, पुलिस पर विस्फोटक हमला किया और शांति और सदभाव भंग करने की कोशिश की थी।

जो धाराएं भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत लगाई गई हैं उनमें, धारा 147 (दंगा), 148 (दंगा करना, घातक हथियार से लैस होना), 149 (गैरकानूनी सभा), 153 (दंगा भड़काने के इरादे से उकसाना), 307 (हत्या का प्रयास), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुँचाना), 332 (स्वेच्छा से लोक सेवक को उसके कर्तव्य से रोकने के लिए चोट पहुँचाना), 333 (स्वेच्छा से लोक सेवक को उसके कर्तव्य से रोकने के लिए गंभीर चोट पहुँचाना), 336 (ऐसा कार्य करना जो मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालता हो), 353 (लोक सेवक को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल), 427 (पचास रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाने वाली शरारत), 504 (सार्वजनिक शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान और उकसाना) और 506 (आपराधिक धमकी) शामिल हैं।  

आरोपियों पर आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 की धारा 7 भी लगाई गई है, जो किसी ऐसे स्थान पर या उसके आस-पास किसी भी तरह की हरकत करने या किसी भी तरह का गैर-कानूनी गतिविधि करने से संबंधित है, जहां लोगों को प्रवेश करने या आने से रोकने के इरादे से करता है। 

इस महीने की 4 जून को सुबह 06:30 बजे (घटना के करीब 16 घंटे बाद) उसी थाने में उन्हीं धाराओं के तहत दर्ज प्राथमिकी संख्या 0044/2022 में उन्ही 19 नाम और 350 अज्ञात आरोपियों का जिक्र किया गया है। 

दोनों एफआईआर में 19 आरोपी एक जैसे हैं। यह इस तथ्य के बावजूद है कि दोनों मामले दो अलग-अलग पुलिस अधिकारियों द्वारा लगभग तीन घंटे के अंतराल पर दर्ज की गई शिकायतों पर आधारित हैं। इतना ही नहीं, दोनों मामलों में जिन आरोपियों का जिक्र है, उनके नामों का क्रम भी एक ही है।

अगर यह सिर्फ एक संयोग है, तो यह निश्चित रूप से पूरी तरह से अकथनीय है।

शरारती प्रयास?

हालांकि, कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह आरोपियों को परेशान करने और गैंगस्टर अधिनियम और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) जैसे कठोर कानूनों के तहत उन पर मामला दर्ज करने का एक "शरारती प्रयास" हो सकता है।

किसी भी संयोग की संभावना से इंकार करते हुए, उन्होंने आरोप लगाया है कि एक ही पुलिस थाने में दर्ज दो अलग-अलग प्राथमिकी वह भी "एक ही मामले में" एक ही व्यक्ति का नाम दर्ज़ करने का उद्देश्य उन्हें हिस्ट्रीशीटर घोषित करना हो सकता है- यू.पी. में गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986, को लागू करने की यह शर्त है, जो अदालत और राज्य सरकार को किसी व्यक्ति को 2-10 साल के लिए सलाखों के पीछे भेजने और उसकी चल या अचल संपत्ति को कुर्क करने का आदेश दे सकती है।

कानूनी विशेषज्ञों ने आरोप लगाया है कि आरोपियों को सीरियल अपराधी घोषित करने से सरकार को यह साबित करने में भी मदद मिलेगी कि ये व्यक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक शांति के लिए खतरा हैं और इसलिए उन पर कठोर एनएसए के तहत मामला दर्ज किया गया है।

यह कानून केंद्र और राज्य सरकारों को किसी व्यक्ति को एक साल के लिए हिरासत में रखने का अधिकार देता है। ऐसा माना जाता है कि, सरकारें नजरबंदी की इस अवधि को भी बढ़ा भी सकती हैं। 

एनएसए के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को उसके खिलाफ आरोप बताए बिना 10 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता है।

याद करें कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को "दोषी लोगों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है कि यह एक उदाहरण बन जाए ताकि कोई भी अपराध न कर सके या भविष्य में कानून अपने हाथ में न ले।"

उन्होंने अधिकारियों को निर्देश जारी करते हुए ट्विटर के माध्यम से कहा, “पिछले कुछ दिनों में विभिन्न शहरों में माहौल खराब करने के प्रयास में शामिल असामाजिक तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

हिंदी में ट्वीट्स की एक श्रृंखला में, यूपी के मुख्यमंत्री ने कहा कि: अपराधियों और माफियाओं के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई जारी रहेगी। सभ्य समाज में ऐसे असामाजिक लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। किसी भी निर्दोष को परेशान नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन एक भी दोषी को बख्शा नहीं जाना चाहिए।

मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि, माफिया को संरक्षण देने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा और माहौल खराब करने की एक भी कोशिश स्वीकार नहीं की जाएगी। साजिशकर्ताओं/अभियुक्तों की पहचान की जाएगी और उन्हें जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाएगा। ऐसे लोगों के खिलाफ एनएसए या गैंगस्टर एक्ट के तहत कानूनी कार्रवाई की जाएगी। 

हाल की घटनाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए, अब तक गिरफ्तार किए गए 50 आरोपियों में से पांच का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील मोहम्मद याकूब कुरैशी ने कहा है कि उन्हें 21 लोगों के बारे में पता चला है जिन्हें दो प्राथमिकी के संबंध में हिरासत में लिया गया था। उन्होंने कहा कि पुलिस की कार्रवाई, भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 (2) का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि "किसी भी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और दंडित नहीं किया जाएगा"।

उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "सीआरपीसी (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) की धारा 219 और 220 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अगर आरोप एक साथ जुड़े हुए हैं और एक ही मामले हैं, तो आरोपी पर आरोप लगाया जाएगा और ऐसे हर अपराध के लिए एक ही मुकदमा चलाया जाएगा।" 

कुरैशी ने कहा कि पुलिस 4 जून को उसी बीकन गंज पुलिस स्टेशन में एक निजी व्यक्ति, मुकेश द्वारा आईपीसी की समान धाराओं के तहत दर्ज की गई तीसरी प्राथमिकी (नंबर 0043/2022) की आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम के तहत जानबूझकर अनदेखी कर रही है। वह अपनी शिकायत में कहते हैं कि ''जब कुछ लोगों को लगा कि आज चंदेश्वर हाटा को तबाह कर दिया जाएगा तो 8-10 लोगों ने आत्मरक्षा में दूसरी तरफ से पथराव करना शुरू कर दिया था। हमले के बारे में जानने के बाद हाटा से और लोग आए, और निजी बचाव में, भीड़ को डराने के लिए दिवाली के बचे हुए पटाखे उन पर फेंकने लगे।

चंदेश्वर हाटा, मुख्य रूप से एक हिंदू बहुल इलाका है, जहां परेड चौक के पास दलितों और अन्य पिछड़ा वर्ग के निवास है- जहां 3 जून को झड़पें हुई थीं।

"साक्ष्य अधिनियम की धारा 105 के तहत, सबूत का बोझ शिकायतकर्ता पर है- जो आरोप लग रहा है। यह अदालत ही तय करेगी कि यह आत्मरक्षा थी या नहीं। पुलिस को दोनों पक्षों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करनी थी और निष्पक्ष जांच के बाद आरोपपत्र दाखिल करना था। दुर्भाग्य से, इस मामले में ऐसा नहीं हो रहा है। जांच एजेंसी द्वारा अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर एकतरफा कार्रवाई की जा रही है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वकील नजमुसाकिब खान, जो आम तौर पर यूएपीए और एनएसए के तहत दर्ज मामलों से निपटते हैं, ने कहा कि एक ही तरह के कृत्यों की एक श्रृंखला के लिए लोगों के एक ही समूह के खिलाफ कई प्राथमिकी दर्ज करने का उद्देश्य है कि उन्हें गैंगस्टर एक्ट और एनएसए के तहत बुक किया जा सके। 

दो या दो से अधिक प्राथमिकी में उनके नाम दर्ज़ करने से पुलिस को उन्हें कठोर गैंगस्टर अधिनियम और एनएसए के तहत मुकदमा चलाने के मामले में अभ्यस्त अपराधी घोषित करने में मदद मिलेगी। पुलिस ने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि आरोपी का कोई पुराना आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। 

हालांकि, इस आरोप को उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने खारिज किया है,  जिन्होंने कहा है कि किसी व्यक्ति का आपराधिक इतिहास एनएसए के तहत मुकदमा चलाने की कोई शर्त नहीं है।

"पहली बार अपराधियों को कानून के तहत हिरासत में लिया जा सकता है यदि जिला मजिस्ट्रेट संतुष्ट हैं कि व्यक्ति देश की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के प्रति खतरा साबित हो सकता है। उन्होंने कहा, देश भर में ऐसे कई उदाहरण हैं।

एक ही अपराध के लिए अलग-अलग एफआईआर में उन्ही लोगों के नाम के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा कि इसका जवाब देने के लिए केवल स्थानीय पुलिस ही सबसे अच्छी स्थिति में है।

उन्होंने कहा, "अगर याचिकाकर्ताओं को लगता है कि पुलिस ने कोई शरारत की है, तो वे अदालत में प्राथमिकी दर्ज करने के खिलाफ अपील करने के लिए स्वतंत्र हैं।"

जब खान से गैंगस्टर अधिनियम और एनएसए लगाने के संबंध में एक पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारी से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि एनएसए की भावना यह है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ इसे लागू किया जा रहा है, वह एक बुरा तत्व था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा था।

उन्होंने कहा कि, किसी व्यक्ति का कोई आपराधिक इतिहास या उनकी मात्र उसमें संलिप्तता, यहां तक कि आरोपों को भी कोई अपराध में सही माना जाता है, फिर एक व्यक्ति को रातों-रात एक बुरा तत्व कैसे घोषित किया जा सकता है? किसी घटना पर किसी आरोपी की प्रतिक्रिया के आधार पर यह तय नहीं किया जा सकता है कि वह देश या कानून-व्यवस्था के लिए खतरा है। उसकी कथित कार्रवाई प्रतिक्रियावादी या अनजाने में हो सकती है। यदि आप उन मामलों का विश्लेषण करते हैं जहां लोगों पर एनएसए या अन्य कड़े कानूनों के तहत मामला दर्ज किया गया है, तो आप पाएंगे कि उन्हें अलग-अलग प्राथमिकी में नामित किया गया है।

 'हमारी कार्रवाई धर्म तटस्थ है

एक ही आरोप में एक ही व्यक्ति के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज करने के बारे में पूछे जाने पर उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने कहा कि किसी को पहले से कुछ भी नहीं मानना चाहिए।

उन्होंने मीडिया से कहा  कि, जो किया गया है और किया जा रहा है वह कानून के अनुसार है। हमारे कार्य धर्म तटस्थ हैं।

जब उनसे "एकतरफा" पुलिस कार्रवाई के आरोप के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, "हिंसा में कोई दो धार्मिक पक्ष नहीं थे। प्रदर्शनकारी पुलिस से भिड़ गए थे; इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। जब पुलिस से झड़प हुई तो हम दूसरे पक्ष के खिलाफ कार्रवाई क्यों करेंगे? साथ ही दूसरे पक्ष की ओर से कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है, तो कार्रवाई का सवाल कहां से उठता है?

नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, कानपुर पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि "कुछ लोगों" के अलावा, कुछ ऐसे लोग भी हैं जो प्राथमिकी में दर्ज़ समान व्यक्ति नहीं हैं।

उन्होंने दावा किया  कि, चूंकि भीड़ एक स्थान पर अवैध रूप से इकट्ठी हुई थी, अधिकारियों ने उन लोगों का नाम लिया जो नेतृत्व कर रहे थे, उकसा रहे थे और हिंसा में शामिल थे। हमारी जांच जारी है और हम अपनी चार्जशीट में प्रत्येक व्यक्ति द्वारा निभाई गई भूमिकाओं का वर्णन करेंगे।

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