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UP: नगर निकाय चुनाव में एक बड़ा खिलाड़ी बन उभरी RLD, 2017 के मुकाबले कब्जाईं दोगुनी सीट

यूपी निकाय चुनाव: योगी के गढ़ में भाजपा को मात, निर्दलियों पर जताया विश्वास, 15% मत पाकर बन गए प्रथम नागरिक।
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उत्तर प्रदेश के शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में जहां समाजवादी पार्टी (सपा) की सीट हिस्सेदारी में करीब 3 फीसदी की गिरावट आई है, वहीं उसकी सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) को बड़ा फायदा हुआ है और वह एक बड़े खिलाड़ी के रूप में उभरी है। जी हां, हाल के निकाय चुनावों में रालोद की संख्या दोगुनी हो गई है।

राज्य चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि निकाय चुनाव में रालोद की सीटें 2017 में 53 से बढ़कर इस साल 102 हो गई हैं। यह इंगित करता है कि जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली पार्टी ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले खुद को पुनर्जीवित कर लिया है। रालोद और उसके समर्थित प्रत्याशियों ने यूपी निकाय चुनाव 2023 में मिली जीत से साबित कर दिया है कि जयंत चौधरी का पश्चिमी यूपी में वर्चस्व अभी भी बरकरार है।

पार्टी सूत्रों के अनुसार, रालोद ने 32 नगर पालिका परिषद (एनपीपी) अध्यक्ष सीटों पर चुनाव लड़ा और सात सीटें जीतीं- बागपत, बडौत (बागपत), लोनी (गाजियाबाद), खतौली (मुजफ्फरनगर), नहटौर (बिजनौर), धामपुर (बिजनौर) और  अछनेरा (आगरा)। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पिछले निकाय चुनावों में एक भी एनपीपी सीट जीतने में विफल रही थी।

पार्टी ने 46 नगर पंचायत सीटों पर चुनाव लड़ा और सात-अंबेहटा पीर (सहारनपुर), जानसठ (मुजफ्फरनगर), गढ़ीपुख्ता (शामली), बनत (शामली), पाटला (गाजियाबाद), नौगांव सादात (अमरोहा) और नंदगाम (मथुरा) जीतीं। 2017 में, इसने केवल तीन एनपी अध्यक्ष सीटों पर जीत हासिल की थी। रालोद ने नगर निगम में भी अपनी उपस्थिति बढ़ाई है। यानी 2017 में चार पार्षद सीटों से बढ़कर इस साल 10 सीट हो गई हैं।

पश्चिमी यूपी में रालोद का बढ़ा दबदबा

रालोद और रालोद समर्थित प्रत्याशियों की बात करें तो यूपी निकाय चुनाव में 23 सीटें जीती है जो अन्य दलों के मुकाबले काफी हैं। वेस्ट यूपी की इन सीटों पर रालोद व समर्थकों ने जीत का परचम लहराया।

1-बागपत नगर पालिका परिषद रियाजुद्दीन एडवोकेट
2- नगर पालिका परिषद बड़ौत  बबीता तोमर
3- नगर पालिका परिषद लोनी रंजीत धामा
4- नगर पालिका परिषद खतौली से शाहनवाज लालू
5- नगर पंचायत जानसठ डॉ आबिद
6- नगर पंचायत बनत श्रीमती कुसुम देवी
7-नगर पंचायत नौगांवा सादात  सुबिन जैदी
8- नगर पालिका परिषद   नटहोर अनस इकरार 
9- नगर पालिका परिषद धामपुर गुर्जर रवि चौधरी,
10- नगर पालिका परिषद बदायूं फातमा राजा 
11- नगर पंचायत नंद गांव मथुरा मंजू चौधरी
12- नगर पालिका परिषद  इगलास कमलेश शर्मा ,
13- नगर पंचायत गढ़ी पुख़्ता शामली प्रमोद कुमार 
14- नगर पंचायत  अमीर नगर सराय  सुनीता मलिक, 
15- नगर पंचायत मुरसान हाथरस देशराज सिंह, 
16- नगर पंचायत पतला नगर गाजियाबाद रीता चौधरी, 
17- नगर पंचायत  अछनेरा आगरा श्रीमती ओमवती ,
18- नगर पंचायत बाबूगढ़  छावनी हापुड़ श्रीमती सुधा तोमर 
19- कैराना नगर पालिका परिषद से शमशाद अंसारी 
20- जट्टारी अलीगढ़ से प्रदीप बंसल 
21- नगर पंचायत खैर अलीगढ़ संजय शर्मा 
22- बुलंदशहर ओरंगाबाद नगर पंचायत प्रत्याशी सलमा
23- अंबेहटा पीर नगर पंचायत  रेशमा परवीन
23 रटोल नगर पंचायत जिला बागपत जुनैद फरीदी

पश्चिमी यूपी में रालोद ने साबित कर दिया है कि उसका वर्चस्व अभी भी खत्म नहीं हुआ है। 2022 के विधानसभा चुनावों के बाद भी यही पैटर्न सामने आया जब रालोद ने 2017 के चुनावों में सिर्फ एक की तुलना में आठ सीटें जीतीं। भाजपा विधायक विक्रम सैनी को एक आपराधिक मामले में अयोग्य ठहराए जाने के बाद पार्टी ने बाद में खतौली उपचुनाव जीतकर अपनी पार्टी में एक और सीट जोड़ ली। रालोद-सपा गठबंधन ने मुजफ्फरनगर में 2013 के सांप्रदायिक दंगों के बाद पश्चिम यूपी में जाटों के साथ संघर्ष कर रहे मुसलमानों तक पहुंचने में रालोद की मदद की।

निकाय चुनावों में चुनावी लाभ रालोद को राजनीतिक आधार हासिल करने में मदद कर सकता है, जो उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के उल्कापिंड उदय के बीच खो दिया था। रालोद का प्रदर्शन अपना दल (एस) और निषाद पार्टी जैसे भाजपा के सहयोगियों के विपरीत है, जिन्होंने कम प्रोफ़ाइल रखा है।

अपना दल (एस) और निषाद पार्टी का फीका प्रदर्शन

आंकड़े बताते हैं कि अपना दल (एस) ने केवल दो एनपीपी अध्यक्ष सीटों स्वार (रामपुर) और मऊरानीपुर आरक्षित सीट (झांसी) पर चुनाव लड़ा और स्वार जीत ली। इसने प्रतापगढ़ की दो एनपी अध्यक्ष सीटों- कटरा गुलाब सिंह और मांधाता बाजार- पर भी चुनाव लड़ा और बाद में जीत हासिल की। संजय निषाद के नेतृत्व वाली निषाद पार्टी ने कालपी (जालौन) की एक एनपीपी अध्यक्ष सीट पर चुनाव लड़ा और हार गई। पार्टी ने आठ एनपी अध्यक्ष सीटों पर चुनाव लड़ा और सोनभद्र में केवल चोपन जीता।

निकाय चुनाव: योगी के गढ़ में भाजपा को मात, निर्दलियों पर जताया विश्वास, 15% मत पा बन गए प्रथम नागरिक 

बात पूरी यूपी और बीजेपी की करें तो यूपी निकाय चुनाव के नतीजों से एक बात साफ हो चुकी है कि भाजपा के लिए आगे की राह आसान नहीं है। योगी के गढ़ में भी भाजपा को मात मिली है। सत्ता के प्रति अविश्वास बढ़ा तो निकाय चुनाव में निर्दलियों पर मतदाताओं ने अपना विश्वास जताकर एक संदेश देने का काम किया। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव का प्रतिबिम्ब निकाय चुनाव में देखने वाले चुनावी समीक्षक आंकड़ों में यह पाते हैं कि भाजपा को अपने गढ़ों में ही उनके प्रति़द्वंदियों ने पटखनी दी है, तो कहीं जीत के लिए एक एक वोट खातिर जूझना पड़ा है।

भाजपा के लिए यूपी के निकाय चुनाव का परिणाम प्रतिद्वंदियों के मुकाबले सीटों के लिहाज से बेहतर माना जा सकता है, पर असली बात कुछ और ही है। विधानसभा चुनाव में मिली अपार सफलता के बाद दल के तरफ से यह दावे किए जाते रहे हैं कि यूपी देश में नंबर वन की तरफ बढ़ रहा है। बसपा के लगातार संगठनात्मक व राजनीतिक कार्यक्रमों के प्रति शिथिलता को देख यह कहा जाने लगा कि यह अपने अंत की ओर चल पड़ी है।

दूसरी तरफ राज्य की दूसरी बड़ी राजनीतिक ताकत सपा की तरफ से राजनीतिक सक्रियता कम होने से कार्यकर्ताओं में उदासीनता बढ़ी है। इन सबके इतर सत्ताधारी दल भाजपा का संगठनात्मक अभियान लगातार जारी है। पक्ष व विपक्ष की मौजूदा स्थितियों व निकाय चुनाव के परिणाम को देखकर यह कहा जा सकता है कि पब्लिक का मूड सत्ता के प्रति ठीक नहीं है। विरोधी दलों की शिथिलता के चलते मतदाताओं ने निकाय चुनाव में निर्दलियों की तरफ अधिक रुख किया।

निकाय चुनाव के घोषित परिणाम के मुताबिक राज्य के 75 जिलों में 760 निकायों में चुनाव हुए। जिनमें 17 निगमों ने अपने महापौर के अलावा 1420 पार्षदों का चुनाव किया। इसके अलावा नगर पालिका परिषद के 199 अध्यक्ष व 5,327 सभासदों का निर्वाचन हुआ। उपनगरों में नगर पंचायत के 544 अध्यक्ष व इनके 7,177 सदस्यों का मतदाताओं ने चुनाव किया।

इनमें भाजपा के लिए बड़ी उपलब्धि यह रही कि महापौर की सभी सीटों पर कब्जा करने में वो कामायाब रही। दूसरी तरफ प्रतिशत में पार्षदों के जीत का प्रतिशत 57.25, नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष में जीत का प्रतिशत 44.72 तथा नगर पालिका परिषद के सदस्यों में जीत का प्रतिशत 25.53 रहा है। इसके अलावा नगर पंचायत अध्यक्ष की सीटों में से 35.11 प्रतिशत तथा नगर पंचायत सदस्य की कुल सीटों में से 19.55 प्रतिशत ही रहा है। ऐसे में यह तस्वीर बन रही है कि निकायों में भाजपा के लिए सब एकतरफा नहीं है।

15 प्रतिशत मत पाकर बन गए प्रथम नागरिक

मतदाताओं की उदासीनता इस कदर देखने को मिली कि 15 प्रतिशत मत पाकर नगर के प्रथम नागरिक बन गए। प्रयागराज के मेयर की जीत मात्र 15 फीसद मतदाताओं ने ही तय कर दी। इसी तरह झांसी में 27 प्रतिशत, गोरखपुर में 17.22 प्रतिशत, फिरोजाबाद में 17.99 प्रतिशत, मुरादाबाद में 18.02 प्रतिशत, वाराणसी में 18.15 प्रतिशत, आगरा में 18.25 प्रतिशत, मेरठ में 18.76 प्रतिशत, बरेली में 19.74 प्रतिशत, कानपुर में 19.86 प्रतिशत, वृंदावन-मथुरा में 20.18 प्रतिशत, अलीगढ़ में 21.51 प्रतिशत, अयोध्या में 23.32 प्रतिशत, शाहजहांपुर में 24.66 प्रतिशत, सहारनपुर में 25.01 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने महापौर का चुनाव कर दिया। ऐसे में 85 प्रतिशत मतदाताओं की उनके जीत में भले ही भागीदारी नहीं रही, पर वे नगर के प्रथम नागरिक बन गए। ये सब व्यवस्था के प्रति नाराजगी का एक हिस्सा है।

भाजपा के गढ़ में मंत्री व विधायक नहीं जीता सके अपने प्रतिनिधि

गोरखपुर-बस्ती मंडल के 7 जिलों में 81 निकायों के लिए मतदान हुए। जिनमें से भाजपा को 38 सीटों पर ही जीत मिली। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इसके बाद सबसे अधिक 18 निर्दलियों ने बाजी मारी। जबकि सपा को 14 व बसपा को 9 निकायों के अध्यक्षों के पद पर जीत हासिल हुई। देवरिया जिले के 17 नगर निकायों में से 7 पर ही भाजपा सिमट गई।

प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही विधान सभा क्षेत्र पथरदेवा से सदन में प्रतिनिधित्व करते हैं। पथरदेवा नगर पंचायत अध्यक्ष की सीट सपा के झोली में चली गई। लगातार भाटपार रानी से जीतकर विधान सभा पहुंचने वाले सपा के डा.आशुतोष उपाध्याय को पिछले चुनाव में भाजपा से हार मिली थी। लेकिन नगर पंचायत भाटपार रानी के अध्यक्ष की कुर्सी पर भाजपा को हार मिली तथा सपा ने यह सीट जीत ली। पहली बार गठित नगर पंचायत बरियारपुर में अध्यक्ष पद बसपा की झोली में चला गया।

पूर्व मंत्री दुर्गा प्रसाद मिश्र के विधायक पुत्र दीपक मिश्र नगर पालिका बरहज के अध्यक्ष की सीट पर भाजपा के उम्मीदवार को जीत नहीं दिला सके। यह सीट भी बसपा की झोली में चली गई। इसी विधानसभा क्षेत्र में आने वाले नगर पंचायत भुलुवनी के अध्यक्ष पद पर सपा को जीत मिली। इसके अलावा नगर पंचायत मदनपुर में सपा के उम्मीदवार विजयी रहे।

प्रदेश सरकार में मंत्री विजय लक्ष्मी गौतम के विधानसभा सलेमपुर के नगर पंचायत सलेमपुर, लार, मझौलीराज में निर्दलीय विजयी रहे। नगर पंचायत भटनी भी निर्दलीय के हिस्से में गया। नगर पालिका देवरिया के अध्यक्ष की कुर्सी पर भाजपा के उम्मीदवार को जीत की हैट्रिक मिली।

हालांकि खास बात यह रही कि एक माह में मुख्यमंत्री के दो बार देवरिया में जनसभा करने के बावजूद जीत का अंतर बहुत ही कम रहा। निर्दलीय ने यहां जोरदार टक्कर दी। इसको लेकर निकटतम प्रतिद्धंदी ने मतगणना में गड़बडी की शिकायत करते हुए न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का मन बनाया है।

इसके अलावा कुशीनगर में 13 निकायों में से 7 सीट पर भाजपा को हार मिली। महराजगंज जिले में निकाय की 10 सीटों में से मात्र 3 में भाजपा को जीत मिली। बस्ती जिले के 10 में से आधी सीटों पर भाजपा को पराजय हासिल हुई। सि़र्द्धाथनगर में 5 सीटों पर तथा संतकबीर नगर में 6 सीटों पर भाजपा को पराजय मिली। प्रदेश में चंदौली जिले के नगर पालिका परिषद पं. दीनदयाल उपाध्याय के अध्यक्ष की कुर्सी किन्नर के कब्जे में चली गई। पुनर्मतगणना में इसका परिणाम घोषित किया गया।

कुल मिलाकर, प्रदेश में भाजपा का भले ही सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। लेकिन आने वाले संसदीय चुनाव में इसके लिए मैदान एकतरफा नजर नहीं आ रहा है। राजनीतिक विरोधी, संगठन व सत्ता की ताकत के बदौलत भाजपा को जीत मिलने की बात कह रहे हैं। ऐसे वक्त में जब कर्नाटक में भाजपा को शर्मनाक हार मिली हो। इस वर्ष राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलांगना में विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं। हिमाचल प्रदेश के बाद निकाय चुनाव व कर्नाटक के परिणाम यह संकेत देने लगे हैं कि भाजपा अभेद्य दुर्ग नहीं है।

साभार : सबरंग 

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