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यूपी : आख़िर कब थमेगा दलित-नाबालिग़ों की हत्या और दुष्कर्म का सिलसिला?

चित्रकूट में एक 13 साल की दलित बच्ची के साथ गैंगरेप की ख़बर के बाद अब उन्नाव से एक दलित-नाबालिग़ के साथ बलात्कार और हत्या का मामला मीडिया में छाया हुआ है।
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Image Credit: Arpita Biswas/Feminism in India

उत्तर प्रदेश में अपराध के खिलाफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ज़ीरों टॉलरेंस नीति के बावजूद बीते कुछ सालों में दलितों पर लगातार अत्याचार बढ़े हैं। एक ओर दलित हत्याओं के मामले बढ़े रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर दलित महिलाओं पर बलात्कार भी रोज़ाना सुर्खियों में है। हाल ही में प्रदेश के चित्रकूट में एक 13 साल की दलित बच्ची के साथ गैंगरेप की ख़बर सामने आई थी, जिसकी इलाज़ के दौरान मौत हो गई थी। अभी ये मामला शांत भी नहीं हुआ था कि अब एक बार फिर उन्नाव से एक दलित नाबालिग़ के साथ बलात्कार और हत्या की ख़बर मीडिया में छाई हुई है।

बता दें कि पीड़ित परिवार का आरोप है कि नाबालिग़ के साथ दुष्कर्म की शिकायत के बावजूद पुलिस ने पहले ये धारा शिकायत में नहीं लगाई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद पुलिस ने इसे जोड़ा है। वहीं अब तक इस मामले में चौबीस घंटे से अधिक समय बीतने के बाद भी कोई गिरफ्तारी नहीं हो सकी है।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक बांगरमऊ कोतवाली क्षेत्र के एक दलित परिवार की 13 साल की बच्ची रविवार, 5 जून की रात में अचानक से गायब हो गई थी। घरवालों ने काफी खोजबीन की लेकिन, कोई सुराग हाथ नहीं लगा। फिर घरवालों ने बांगारमऊ पुलिस को बेटी के लापता होने की सूचना दी। जिसके बाद अगले दिन सोमवार, 6 जून को गांव से करीब तीन सौ किलोमीटर दूर उन्नाव बालामऊ रेल मार्ग पर पटरी के किनारे लड़की का शव मिलने की ख़बर गांव पहुंची। मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।

डॉक्टरों के पैनल और वीडियोग्राफी के साथ लड़की के शव का पोस्टमार्टम हुआ, जिसमें हैरान कर देने वाली हैवानियत सामने आई। मीडिया ख़बरों के मुताबिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रेप की पुष्टि के साथ ही मासूम के प्राइवेट पार्ट में गहरे चोट के निशान भी पाए गए। इसके अलावा सर की दोनों हड्डियां टूटी हुई मिली, सीने पर चोट का निशान भा पाया गया। चेहरे और हाथों में भी गंभीर चोटे आई हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हेड इंजरी को मुख्य तौर पर मौत का कारण बताया गया है।

इस पूरे मामले में फिलहाल उन्नाव पुलिस के हाथ खाली हैं और उनका कहना है कि मामले की जांच चल रही है, मुकदमा दर्ज कर लिया गया है और उचित कार्रवाई की जाएगी है। वैसे यूपी पुलिस की कार्रवाई भी पिछले कुछ सालों से खासा चर्चा का विषय बनी हुई है। हाल ही में बंदायू पुलिस द्वारा चोरी के आरोप में गलती से मुस्लिम युवक को उठाने और उसके साथ चौकी में थर्ड डिग्री टॉर्चर की ख़बरें पुलिस की छीछा-लेदर का कारण बन गई थीं। ऐसे में जब रक्षक ही भक्षक बनने लगे तो न्याय और उचित कार्रवाई की उम्मीद कोसों दूर ही नज़र आती है।

मालूम हो कि चित्रकूट मामले में भी रौंगटे खड़े कर देने वाली हैवानियत सामने आई थी। घर के बाहर चारपाई पर सो रही नाबालिग़ को देर रात युवक चारपाई सहित उठा ले गए थे और फिर उसके साथ गैंगरेप किया गया था। स्थानीय लोगों ने बताया था कि नाबालिग़ सुबह घर से कुछ दूर नग्न अवस्था में बेहोश पड़ी मिली थी। उसके हाथ रस्सी से बंधे हुए थे, मुंह में गमछा ठूंसा गया था और उसके गुप्तांग से खून भी बह रहा था।

इस मामले में मृत पीड़िता के परिवार का आरोप था कि पीड़िता के पिता जब बच्ची को थाने ले जा रहे थे, तो उन्हें रास्ते में रोककर डराया, धमकाया गया। जबरन पीड़िता को जिला अस्पताल ले जाने से रोका गया, जिसके बाद पीड़िता को उपचार के लिए कौशाम्बी के एक प्राइवेट अस्पताल ले जाया गया। जहां इलाज में हुई देरी और अधिक खून बह जाने के कारण नाबालिग़ की दो दिन बाद मौत हो गई। इस संबंध में बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने ट्वीट कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की थी।

यूपी में अपराध का बढ़ता ग्राफ़

गौरतलब है कि देश में दलितों पर हर चौथा अपराध उत्तर प्रदेश में होता है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में साल 2017 में दलितों के खिलाफ अपराध का आंकड़ा 11,444 था, जो 2019 में बढ़कर 11,829 हो गया। यानी देश में दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 25.8% है। वहीं साल 2020 के आंकड़ें देखें तो, देश में दलितों के खिलाफ अपराध के कुल 50,291 मामले दर्ज हुए, जिसमें से अकेले सिर्फ उत्तर प्रदेश में 12,714 मामले दर्ज हुए। यानी दलित उत्पीड़न में प्रदेेश पूरे देश में अव्वल पर है।

बहरहाल, सीएम योगी आदित्यनाथ की 'ठोक दो' की नीति, 'न्यूनतम अपराध' के दावे और उत्तम प्रदेश के दावों से इतर प्रदेश की जमीनी सच्चाई ये है कि उत्तर प्रदेश में हर तरह के अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। वंचित, शोषित लोग न्याय की आस में दर-बदर भटक रहे हैं तो वहीं पुलिस पीड़ित को और प्रताड़ित कर रही है। कुल मिलाकर देखें तो सत्ता में वापसी के बाद भी बीजेपी की योगी सरकार कानून व्यवस्था के मोर्चे पर विफल ही नज़र आती है।

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