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यूपी: ज़िला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में बीजेपी पर धोखाधड़ी और धांधली के आरोप क्यों लग रहे हैं?

उत्तर प्रदेश ज़िला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए 26 जून को सपा के कई प्रत्याशी नामांकन ही नहीं करा सके। ये एक दो जगह की बात नहीं करीब दर्जनभर जगह की हक़ीक़त है। सपा ने इसके लिए बीजेपी पर निशाना साधा और कहा कि बीजेपी ने उनके प्रत्याशियों का अपहरण करके और तमाम अन्य तरीकों से उन्हें नामांकन कार्यालय तक पहुंचने ही नहीं दिया।
यूपी: ज़िला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में बीजेपी पर धोखाधड़ी और धांधली के आरोप क्यों लग रहे हैं?
Image courtesy : newsroom post

“गोरखपुर व अन्य जगह जिस तरह भाजपा सरकार ने पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को नामांकन करने से रोका है,वो हारी हुई भाजपा का चुनाव जीतने का नया प्रशासनिक हथकंडा है। भाजपा जितने पंचायत अध्यक्ष बनायेगी,जनता विधानसभा में उन्हें उतनी सीट भी नहीं देगी।”

ये ट्वीट और आरोप समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के हैं। अखिलेश ने बीजेपी की योगी सरकार पर हल्ला बोलते हुए कहा कि भाजपा पंचायत चुनाव में धोखाधड़ी और धांधली कर रही है। वह पूरी तरह से अलोकतांत्रिक आचरण अपनाए हुए हैं। जिला पंचायत सदस्यों को अध्यक्ष पद पर नामांकन तक करने नहीं दिया गया। तमाम सदस्यों को धमका कर अपने खेमे में करने का प्रयास चल रहा है।

बता दें कि राज्‍य निर्वाचन आयोग ने उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए शनिवार, 26 जून को नामांकन पत्र दाखिल करने की तारीख तय की थी। इस दिन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), समाजवादी पार्टी (सपा), अपना दल (एस) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) समेत निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपना पर्चा दाखिल किया। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इस चुनाव में नहीं उतरने का फैसला किया है। मतदान 3 जुलाई को होगा और उसी दिन शाम को नतीजे भी आएंगे।

आख़िर मामला क्या है?

उत्तर प्रदेश जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए 26 जून को सपा के कई प्रत्याशी नामांकन ही नहीं करा सके। ये एक दो जगह की बात नहीं करीब दर्जनभर जगह की हक़ीक़त है। सपा ने इसके लिए बीजेपी पर निशाना साधा और  कहा कि बीजेपी ने उनके प्रत्याशियों का अपहरण करके और तमाम अन्य तरीकों से उन्हें नामांकन कार्यालय तक पहुंचने ही नहीं दिया।

इस संबंध में पार्टी ने 26 और 27 जून को ताबड़तोड़ ट्वीट करते हुए बीजेपी पर कई गंभीर आरोप लगाए। सपा ने अपने ट्विटर हैंडल से बस्ती का एक वीडियो ट्वीट करते हुए आरोप लगाया कि पुलिस की मौजूदगी में वहां उनके नेताओं का अपहरण करने का प्रयास किया गया।

एक अन्य ट्वीट में सपा ने वाराणसी की एक ख़बर की क्लिपिंग शेयर की, जिसमें लिखा है कि सपा के प्रत्याशी का पर्चा खारिज कर दिया गया और भाजपा की प्रत्याशी पूनम मौर्य निर्विरोध निर्वाचित हो गई हैं। यहां नामांकन पत्र में लगे शपथ पत्र में नोटरी का रिन्यूअल नहीं हुआ था। इस आधार पर सपा प्रत्याशी का पर्चा खारिज कर दिया गया।

सपा ने लगाए गंभीर आरोप

इस ख़बर के साथ सपा ने लिखा, “PMO से भेजे गए अफ़सर को दरकिनार करने के बाद हुई “रार” से नाराज़ PM को खुश करने के लिए CM ने शासन-प्रशासन का दुरुपयोग कर लोकतंत्र का गला घोट दिया। वाराणसी में सत्ता के बल पर सपा प्रत्याशी का पर्चा खारिज कराया जाना निंदनीय! संज्ञान ले चुनाव आयोग। BJP के दिन है बचे चार”

राजनीति के जानकारों का मानना है कि यहां पीएमओ से भेजे गए अफसर का मतलब सपा का इशारा एके शर्मा की तरफ है। लगातार इस तरह की ख़बरें आती रही हैं कि एके शर्मा को यूपी भेजे जाने को लेकर प्रदेश बीजेपी और केंद्र के बीच तनातनी है। इसे लेकर बीते दिनों कई हलचल भी देखने को मिली थी।

वाराणसी के बाद सपा ने झांसी को लेकर भी ऐसा ही ट्वीट किया। इसमें लिखा था, “झांसी में भाजपा ने लोकतंत्र को किया हाईजैक! झांसी में सपा प्रत्याशी का नामांकन रोक दिया गया, शर्मनाक! प्रशासन और पुलिस ने सपा प्रत्याशी के पास बहुमत होने के बावजूद भी नामांकन पत्र दाखिल नहीं करने दिया। संज्ञान ले कार्रवाई करे चुनाव आयोग।”

इसी तरह गोरखपुर में भी नामांकन को लेकर ख़ासा बवाल देखने को मिला। यहां बीजेपी की प्रत्याशी साधना सिंह का नामांकन तो हो गया लेकिन गहमा-गहमी तब शुरू हुई, जब सपा प्रत्याशी आलोक गुप्ता नामांकन भरने नहीं आए और न ही उनका कुछ अता-पता चल रहा था। सपा नेताओं का उनसे संपर्क भी नहीं हो पा रहा था। ऐसे में आनन-फानन में सपा ने जितेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाकर नामांकन कराना चाहा। सपा जिलाध्यक्ष नगीना साहनी जब जितेंद्र यादव को लेकर कलेक्ट्रेट पहुंचे तो बीजेपी समर्थकों से कहासुनी शुरू हो गई और इस झड़प के बीच जितेंद्र यादव भी नामांकन नहीं कर सके।

अब सपा ने आरोप लगाया है कि उनके घोषित प्रत्याशी आलोक गुप्ता का अपहरण कर लिया गया, जिसकी वजह से वो नहीं आए और फिर दूसरे प्रत्याशी को भी नामांकन नहीं करने दिया गया। यहां सपा ने प्रशासन और सत्ताधारी भाजपा पर गुंडई का आरोप लगाया है।

कुल 11 जिलों में सपा प्रत्याशी नामांकन दाखिल नहीं कर सके

सिर्फ गोरखपुर ही नहीं, बलरामपुर में भी सपा प्रत्याशी किरन यादव नामांकन नहीं कर सकीं। इसके बाद जिले के सपा नेता और पूर्व मंत्री एसपी यादव ने भी बीजेपी पर वही आरोप लगाया, जो गोरखपुर में लगा है।

ग़ाज़ियाबाद में सपा ने धौलाना से विधायक असलम चौधरी की पत्नी नसीम बेगम को उम्मीदवार बनाया लेकिन नामांकन के दिन उनके प्रस्तावक जितेंद्र को डरा-धमकाकर जिला मुख्यालय तक नहीं पहुंचने दिया गया।  इसके बाद पार्टी ने रजनी खटिक को प्रस्तावक बनाया लेकिन सपा का आरोप है कि उन्हें भी नहीं पहुंचने दिया गया।

वहीं बागपत से तो अलग ही किस्सा सामने आया। यहां नामांकन से ऐन वक्त पहले राष्ट्रीय लोक दल की प्रत्याशी ममता किशोर पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गईं। उनके बीजेपी में आने के बाद बागपत से कोई आरएलडी उम्मीदवार ही नहीं बचा। लेकिन बीजेपी में जाने के चंद घंटे बाद ही ममता किशोर फिर से आरएलडी में आ गईं और फिर नामांकन दाखिल किया।

बता दें कि गोरखपुर, मुरादाबाद, झांसी, आगरा, गौतमबुद्धनगर, मऊ, बलरामपुर, श्रावस्ती, भदोही, गोंडा और ललितपुर सहित कुल 11 जिलों में सपा प्रत्याशी नामांकन दाखिल नहीं कर सके। इसके बाद  कुल 17 जिलों में भाजपा के प्रत्याशियों का निर्विरोध चुना जाना तय हो गया।

चुनाव की निष्पक्षता एवं पवित्रता नष्ट!

अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा ने जिस तरह से जिलों में पंचायत अध्यक्षों के नामांकन अलोकतांत्रिक तरीके से रोके हैं उससे इन चुनाव की निष्पक्षता एवं पवित्रता नष्ट हुई है। यह लोकतंत्र की हत्या की साजिश है। हालांकि सपा के इतने आरोपों के बाद भी न तो बीजेपी की ओर से कोई प्रतिक्रिया आई और नाही चुनाव आयोग न को संज्ञान लिया।

हालांकि इसके बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने खुद ही जहां प्रत्याशी नामांकन नहीं कर सके, वहां के जिलाध्यक्षों को तत्काल प्रभाव से पदमुक्त कर दिया। इस संबंध में 26 तारीख को ही पार्टी कार्यालय की ओर से ज्ञापन जारी कर दिया गया।

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पंचायत चुनावों में समाजवादी पार्टी से पीछे रह गई बीजेपी

गौरतलब है कि हाल ही में प्रदेश में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के परिणाम को एक बड़ा राजनीतिक संदेश माना जा रहा है। राज्य के सभी 75 ज़िलों के परिणामों के आकलन से पता चलता है कि ज़िला पंचायत सदस्यों के चुनाव में समाजवादी पार्टी को सबसे ज़्यादा सीटें मिली तो वहीं सत्ताधारी दल बीजेपी दूसरे नंबर पर ही रह गई।

दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के दौरान कुल 3,050 जिला पंचायत सदस्य चुने गए थे। इनमें से समाजवादी पार्टी के 747, भारतीय जनता पार्टी के 666, बहुजन समाज पार्टी के 322, कांग्रेस के 77, आम आदमी पार्टी के 64 और 1,174 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीते थे।

रिपोर्ट के अनुसार, ज़िला पंचायत अध्यक्ष के लिए 75 में से अब 18 का निर्विरोध निर्वाचन (17 बीजेपी तथा एक समाजवादी पार्टी) तय होने के बाद 58 जिलों में चुनाव के बाद जीत-हार का फैसला होगा, लेकिन बसपा के पहले ही किनारे होने के बाद इतना तो तय है कि मुख्य लड़ाई बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच ही है।

वैसे जैसे-जैसे 2022 का विधानसभा चुनाव करीब आ रहा है यूपी की राजनीति और पार्टियों की नीति और दिलचस्प होती जा रही है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर तो पहले से ही जारी है अब धोखाधड़ी और धांधली के आरोप भी सामने आने लगे हैं। चुनावी नतीजा जो भी हो इतना तो तय है कि कभी समाजवादी पार्टी को भ्रष्टाचार और गुंडई का आरोप लगाकर सत्ता से बाहर करने वाली बीजेपी पर अब खुद सत्ता में चार साल बीताने के बाद उन्हीं आरोपों को झेलती नज़र आ रही है।

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