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चुनाव 2022
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भारत
राजनीति
यूपी चुनावः सत्ता की आखिरी जंग में बीजेपी पर भारी पड़ी समाजवादी पार्टी
बनारस में इस बार पीएम मोदी ने दो बार रोड शो किया और लगातार तीन दिनों तक कैंप किया, फिर भी जिले की आठ में से चार सीटें भाजपा जीत ले तो यह वोटरों की बक्शीश मानी जाएगी। यह स्थिति भाजपा के लिए बुरी तो है ही, यह मोदी के लिए भी खराब संदेश है, जो साल 2024 तक उनका पीछा करता रहेगा।
विजय विनीत
07 Mar 2022
varanasi
प्रतीकात्मक फ़ोटो

उत्तर प्रदेश के सातवें चरण के चुनाव में जहां पीएम नरेंद्र मोदी की प्रतिष्ठा दांव पर है, वहीं आखिरी दौर का मुकाबला सत्ता की जंग में निर्णायक साबित होगा। पूर्वांचल के नौ जनपदों की जिन 54 सीटों पर सोमवार को मतदान हुआ, उसमें यह साफ हो गया कि इस बार भारतीय जनता पार्टी साल 2017 जैसा प्रदर्शन इस बार नहीं दोहरा पाएगी।

सातवें चरण के चुनाव में ज्यादातर सीटों पर मुकाबला सपा और भाजपा के बीच देखा गया। हालांकि कुछ सीटों पर बसपा ने लड़ाई को तिकोना बना दिया था। इस चुनाव में जो गौर वाली बात यह दिखी कि कहीं भी भाजपा कार्यकर्ताओं में जोश और उत्साह नहीं था, जबकि सपाई खासे उत्साहित नजर आए। इसकी वजह सरकार के प्रति नाराजगी और ढेरों शिकायतें बताई जा रही हैं।

बनारस में मोदी का इम्तिहान

सिर्फ बनारस ही नहीं, समूचे बनारस में भी इस बार "मोदी मैजिक" का इम्तिहान हो रहा है। चुनाव से पहले ही ने पूर्वांचल में छह सभाएं की थी। भाजपा को सबसे तगड़ी चुनौती बनारस शहर की दक्षिणी सीट पर मिल रही है। भाजपा का किला मानी जाने वाली इस सीट पर पहली बार सपा-भाजपा के बीच सीधी लड़ाई दिखी, जिससे सत्तारूढ़ दल के नेताओं के माथे पर बल आ गए हैं। इस सीट को जीतने के लिए कोई भी ऐसा अस्त्र नहीं था, जो भाजपा ने न चलाया हो। इसके बावजूद लड़ाई यहां आसान नहीं दिखी।

शहर दक्षिणी सीट इसलिए भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल  बन गई है क्योंकी इसी क्षेत्र में विश्वनाथ कारिडोर है। पीएम नरेंद्र मोदी जब भी बनारस आए, विश्वनाथ मंदिर में मत्था टेकने जरूर गए। चुनाव से पहले विश्वनाथ कारिडोर का मेगा इवेंट हुआ और चुनाव के समय मोदी का ग्रैड रोड शो भी इसी इलाके में हुआ। पिछले तीन दशक से यह सीट भाजपा के कब्जे में रही है। यह पहला मौका है, जब इस सीट पर समाजवादी पार्टी दम-खम के साथ लड़ती हुई नजर आई।

ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के अध्यक्ष सीबी तिवारी ने आंचलिक इलाकों में दौरा करने के बाद "न्यूजक्लिक" से कहा, "बनारस में पहले सभी आठ सीटें भाजपा के पास थीं। अबकी इस पार्टी का प्रदर्शन पहले जैसा नहीं रहा। बनारस की पिंडरा सीट पर लड़ाई तिकोनी थी,लेकिन आखिरी दौड़ में कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय सबको पछाड़ते नजर आए। रोहनिया में अपना दल (सोनेलाल)-भाजपा गठबंधन के अभय पटेल अपने प्रतिद्वंद्वियों पर बारी दिखे, जबकि सेवापुरी में भाजपा के नील रतन पटेल पर सपा के सुरेंद्र पटेल ताकतवर दिखे।"

पूर्वांचल की सियासत में गहरी दखल रखने वाले पत्रकार राकुमार सोनकर कुंवर के मुताबिक, "वाराणसी शहर की उत्तरी, दक्षिणी सीट पर सपा-भाजपा और कैंट में भाजपा-सपा के बीच कांग्रेस के पूर्व सांसद राजेश मिश्र के बीच मुकाबला हुआ। अजगरा में सपा-भाजपा के बीच सीधी लड़ाई हुई। शिवपुर में सपा-सुभासपा गठबंधन के प्रत्याशी अरविंद राजभर का सीधा मुकाबला भाजपा के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर से हुआ। हालांकि यहां बसपा के रवि मौर्य ने मुकाबले को काफी रोचक बना दिया था, जिससे तिकोनी लड़ाई नजर आई। बनारस की आधी अथवा उससे ज्यादा सीटें इस बार भाजपा के हाथ से निकल सकती हैं।"

पहले से बेहतर सपा का प्रदर्शन

पूर्वांचल के गाजीपुर, आजमगढ़ और मऊ की ज्यादातर सीटों पर सपा और भाजपा में मुकाबला देखा गया। तीनों जिलों की ज्यादातर सीटों पर सपा प्रत्याशी आगे नजर आए। जौनपुर के वरिष्ठ पत्रकार कपिलदेव मौर्य के मुताबिक, "जौनपुर सदर, मछलीशहर और  मुंगराबादशाहपुर में भाजपा में आगे रह सकती है, जबकि केराकत, जफराबाद, मड़ियाहूं, बदलापुर, शाहगंज सीटों  पर सपा गठबंधन भाजपा को पटखनी दे सकता है। मल्हनी सीट पर सपा प्रत्याशी का सीधा मुकाबला बाहुबली धनंजय सिंह से हुआ। जौनपुर में पिछली बार जिले की पांच सीटें भाजपा, तीन सपा और एक बसपा के पास थी। इस बार बसपा केराकत को छोड़कर कहीं भी मुकाबले में नहीं है।"

चंदौली के पत्रकार पवन मौर्य ने चकिया, सकलडीहा, सैयदराजा, मुगलसराय इलाकों का दौरा करने के बाद "न्यूजक्लिक" से कहा, "पिछली मर्तबा तीन सीटें भाजपा के पास थीं। पहले के मुकाबले अबकी भाजपा का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा है। यहां भाजपा कम से कम दो सीटें हार सकती है। चकिया और सकलडीहा में सपा का प्रदर्शन बेहतर था। मुगलसराय में भाजपा-सपा में कांटे का मुकाबला देखा गया। सैयदराजा सीट पर बहुबली बृजेश सिंह के भतीजे सुशील सिंह इस बार कड़े मुकाबले में दिखे। इस बार उनकी जीत आसान नहीं है।"

मिर्जापुर के वरिष्ठ पत्रकार वीरेद्र दुबे के मुताबिक "मझवा में निषाद पार्टी (भाजपा गठबंधन) के विनोद बिंद चुनाव जीत सकते हैं। एंटी कंबेंसी के बावजूद चुनार सीट पर भाजपा के अनुराग सिंह आगे दिखे। मड़िहान अपनादल (कमेरावादी) का मुकाबला भाजपा व बसपा के बीच हुआ। यहां लड़ाई तिकोनी थी। छानबे में अपना दल (सोनेलाल) के राहुल प्रकाश कोल और सपा की कीर्ति कोल में काटे का मुकाबला देखा गया है। सदर सीट पर सपा इस बार भाजपा पर  भारी पड़ सकती है। हालांकि पत्रकार संजय दुबे ने जिले का दौरा करने के बाद "न्यूजक्लिक" से कहा, "मिर्जापुर की पांचों सीटों पर भाजपा की स्थिति खराब है। भाजपा गठबंधन तीन सीटें आसानी से जीत सकता है।"

सोनभद्र के वरिष्ठ पत्रकार शशिकांत चौबे के मुताबिक, "दुद्धी, राबटर्सगंज, घोरावल और ओबरा में तिकोनी लड़ाई हुई। दुद्धी में भाजपा और सपा के बीच सीधा मुकाबला हुआ। घोरावल और राबटर्सगंज में सपा-बसपा के बीच कड़ा मुकाबला हुआ। ओबरा में भाजपा आगे दिखी।" भदोही के पत्रकार मिस्वाह खान कहते हैं, "संत रविदासनगर जिले में औराई और भदोही में सपा और भाजपा के बीच मुकाबला है, जबकि ज्ञानपुर सीट पर सपा, भाजपा के बीच बाहुबली विधायक विजय मिश्र ने लड़ाई को तिकोना बना दिया है। "

क्यों आई गुजरात पुलिस?

यूपी चुनाव के आखिर चरण के चुनाव में गुजरात पुलिस  की ड्यूटी लगाए जाने से खासा हंगामा होता रहा। पूर्वांचल के सभी जिलों के पुलिस और प्रशासनिक अफसर गुजरात पुलिस की ड्यूटी से इनकार करते रहे, लेकिन किसान नेता योगेंद्र यादव ने जब एक वीडियो द्वविट किया तो अफसरों को  बोलती बंद हो गई। इस वीडियो में गुजरात पुलिस का जवान कह रहा है, "योगी ही आएगा।" योगेंद्र ने इस वीडियो को चुनाव आयोग को टैग करते हुए लिखा है, "देखिए, गुजरात पुलिस यूपी में चुनाव कराने आई थी।" वीडियो वायरल होने के बाद "योगी ही आएंगे.. " कहने वाले गुजरात पुलिस के जवान को ड्यूटी से हटा दिया गया।

योगेंद्र यादव के ट्विट के बाद रिटायर्ड आईएएस सूर्य प्रताप सिंह ने भी चुनाव में गुजरात पुलिस की तैनाती पर सवाल खड़ा किया है। अपने ट्वीट में  चुनाव आयोग और वाराणसी के डीएम कौशलराज शर्मा को टैग करते हुए लिखा है, " बनारस में गुजरात पुलिस की उपस्थिति (नारायणपुर-मिर्जापुर से बनारस मार्ग) की सूचना वायरल है। सेंट्रल फोर्सेज की पर्याप्त संख्या होने के बावजूद अन्य राज्यों की पुलिस की जरूरत क्यों आ पड़ी? स्टील फ्रेम इतना भी चरमराना नहीं चाहिए।"

वहीं वाराणसी के डीएम ने पूर्व आईएएस और योगेंद्र यादव के ट्वीट का जवाब देते हुए लिखा, "कृपया अफवाह न फैलाएं। गुजरात की कोई भी कंपनी वाराणसी जिले में चुनाव अथवा किसी अन्य ड्यूटी के लिए नहीं आई है। "

दूसरी ओर मिर्जापुर पुलिस ने इस मामले में सफाई देते हुए री-ट्विट किया है कि आपत्तिजनक बयान देने  के मामले में कार्रवाई कर दी गई है। बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर सातवें और अंतिम चरण के चुनाव में गुजरात पुलिस की ड्यूटी क्यों लगाई गई थी। मिर्जापुर पुलिस ने ट्वीट  कर यह तो बता ही  दिया कि मामले में कार्रवाई की गई है, लेकिन यह नहीं बताया कि गुजरात पुलिस की ड्यूटी क्यो लगाई गई थी? बताया जा रहा है कि मिर्जापुर, सोनभद्र और चंदौली कुछ इलाकों में गुजरात पुलिस के जवान तैनात किए गए थे। ये तीनों पूर्वांचल के सर्वाधिक पिछड़े जिले हैं।

काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, "चुनाव जीतने के लिए जुनून ऐसा है कि आदर्श आचार संहिता का धज्जियां उड़ा दी गईं। सत्तारूढ़ दल ने सरकारी तंत्र का अपने हक में खुला प्रयोग किया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि इलेक्शन ड्यूटी केलिए गुजरात की पुलिस तैनात की गई। योगी और मोदी के पक्ष में खुलेआम प्रचार करती रही, जबकि दूसरे किसी राज्य के पुलिस की तैनाती का औचित्य नहीं था। चुनाव सात चरणों में चरणों में यूपी पुलिस और केंद्रीय रिजर्व सुरक्षा बलों के जवान पर्याप्त संख्या में थे, जो चुनाव को संपन्न कराने में सक्षम थे। ऐसे में चुनाव आयोग की नीयत पर बड़ा सवालिया निशान लगा है।"

श्रीवास्तव कहते हैं, "इस चुनाव में चाहे जिसकी हार हो या जीत हो, लेकिन चुनाव आयोग तो अभी ही हार गया। चुनाव आयोग की कहीं हनक नहीं। सत्तारूढ़ दल से संबंध रखने वाले बाहुबलियों के क्षेत्र में शराब और पैसे खूब बांटे गए। इस बात के बीडियो भी वायरल हुआ। माफिया डान बृजेश सिंह के भतीजे सुशील सिंह के सैयदराजा में उनके समर्थकों द्वारा एक पंचायत भवन में की जा रही मुर्गा और शराब की पार्टी का मामला उजागर होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई।"

"इसी तरह से जौनपुर के मल्हनी इलाके में भी बूथकैप्टरिंग की शिकायतें सपा ने चुनाव आयोग से की है। इसके बावजूद चुनाव आयोग चुप्पी साधे रहा, जबकि एक साधारण सा वीडियो वायरल होने पर मऊ सदर सीट पर सुभासपा प्रत्याशी अब्बास अंसारी को चुनाव प्रचार से ही रोक दिया गया था। हमें लगता है कि सपा ने किलेबंदी नहीं की तो सत्तारूढ़ दल मतगणना में भी बेईमानी करा सकता है, क्योंकि चुनाव आयोग के अफसर इस चुनाव में सत्तारूढ़ दल की मनमानी पर एक्शन लेने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। चुनाव के आखिरी दौर में आयोग पर जितने आरोप इस बार चस्पा हुए, उतने कभी नहीं हुए थे।"

आजमगढ़ और मिर्जापुर में सपा-भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच तीखी झड़पें हुई, जिसमें कई गाड़ियां तोड़ डाली गईं। जौनपुर के मल्हनी में बाहुबली और जेडीयू प्रत्याशी धनंजय सिंह पर दलित वोटरों को धमकाने का आरोप सपा ने लगाया। वाराणसी के शहर दक्षिणी सीट के एक बूथ पर भाजपा प्रत्याशी नीलकंठ तिवारी और सुरक्षाकर्मियों के बीच तीखी तकरारें हुईं, जबकि शिवपुर क्षेत्र के सलारपुर में भाजपा प्रत्याशी अनिल राजभर की फोटो लगी मतदाता पर्ची बांटे जाने पर हंगामा हुआ। चंदौली के दुलहीपुर एक बूथ पर साइकिल वाले बटन को फैबिक्विस से चिपकाए जाने पर काफी बवाल होता रहा।

अचानक क्यों बदला माहौल?

पूर्वांचल में कुछ समय पहले तक सबको लगता था कि विपक्ष बहुत कमजोर और निष्क्रिय है। यूपी में भाजपा की सरकार फिर बनेगी, लेकिन एक के बाद एक घटनाक्रम इतनी तेज़ी से बदला कि भाजपा दावे के साथ कहने की स्थिति में नहीं रह गई है कि वह पूर्ण बहुमत की सरकार बना लेगी।

दरअसलस, पश्चिमी यूपी में राजनीतिक माहौल बदलने का श्रेय संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन को जाता है तो पूरब में योगी सरकार में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर को दिया जा सकता है। वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, "साल 2017 में पूर्वांचल में भाजपा को पिछड़ों का थोक वोट मिला था। जातिगत जनगणना से इनकार करने की वजह सामाजिक न्याय वाली राजनीतिक ताक़तें यानी पिछड़ी जातियों का एक बड़ा हिस्सा बंट गया। सरकारी कंपनियों के निजीकरण और इलाहाबाद में छात्रों पर लाठीचार्ज वह वजह से पिछड़ों की गोलबंदी सपा के साथ दिखी। पिछली बार भाजपा ने पिछड़ों को यह समझाकर अपने पाले में किया था कि उनके सारे लाभ यादव जातियां ही हड़प लेती हैं। राजपूतों को खास अहमियत दिए जाने से भाजपा समर्थक 'ऊंची जातियों' में इस बार ब्राह्मण समुदाय को भी इस बार भाजपा से काफी शिकायत रही। खासतौर पर तब से जब सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक इंटरव्यू में साफतौर पर कह दिया कि उन्हें अपने "राजपूत होने पर गर्व है।"

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एके लारी कहते हैं, "पूर्वांचल में भाजपा का प्रदर्शन पहले जैसा नहीं रहने की बड़ी वजह यह रही कि ज्यादातर सीटों पर सपा-भाजपा के बीच सीधी लड़ाई हुई। महंगाई और बेरोज़गारी के अलावा ग्रामीण इलाकों में छुट्टा पशुओं को समस्याओं से परेशान पूर्वांचल के किसानों के मन में भाजपा के प्रति नाराजागी थी। भाजपा से नाराज़ सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन का वादा करके अखिलेश यादव ने भाजपा की बढ़त आसानी से रोक दी। बसपा ने बड़ी संख्या में मुसलमान उम्मीदवार जरूर खड़े किए, लेकिन वोटिंग पैटर्न को देखने से यह कहीं लगा कि अल्पसंख्यक समुदाय का रुझान उनकी ओर है। बसपा सुप्रीमो मायावती के उस बयान का अबकी काफी असर दिखा, जिसमें उन्होंने कहा था कि हम सपा को हराने के लिए भाजपा को समर्थन दे सकते हैं। इसके बाद से मुस्लिम वोटरों की नजर में बसपा संदिग्ध हो गई थी, जिसकी वजह से इस पार्टी का प्रदर्शन पहले जैसा नहीं रहा।"

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार अमितेश पांडेय कहते हैं "बनारस में इस बार पीएम मोदी ने दो बार रोड शो किया और लगातार तीन दिनों तक कैंप किया, फिर भी जिले की आठ में से चार सीटें भाजपा जीत ले तो यह वोटरों की बक्शीश मानी जाएगी। यह स्थिति भाजपा के लिए बुरी तो है ही, यह मोदी के लिए भी खराब संदेश है, जो साल 2024 तक उनका पीछा करता रहेगा।"

वो आगे कहते हैं "पीएम के रोड शो, सभा और कार्यकर्ता सम्मेलनों के बावजूद अगर भाजपा की कई सीटें निकल रही हैं तो यह इस बात का संकेत है कि यूपी में डबल इंजन की सरकार का जनाधार बुरी सरक गया है। यह स्थिति केंद्रीय राजनीति में भी उसके दबदबे को कम करेगी। नतीजा आने के बाद यह पूरी तरह साफ हो जाएगा कि अब नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व के असर से जनता बाहर आ गई है।"

varanasi
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