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यूपी में और तेज़ हो सकती है ध्रुवीकरण की राजनीति

फ़िलहाल ज़मीनी स्तर पर जो स्थिति नज़र आ रही है, उसमें भाजपा के पास वर्ष 2017 के विधानसभा व 2019 के लोकसभा वाले आक्रामक तेवर में लौटने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
यूपी में और तेज़ हो सकती है ध्रुवीकरण की राजनीति

यूपी में दो चरणों की 113 सीटों पर हुई वोटिंग में लोगों का जो मूड दिखाई पड़ा है, उससे सत्ताधारी भाजपा का हाथ-पाँव फूलना स्वाभाविक है। यही कारण है कि तीसरे चरण की वोटिंग से पहले मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से लेकर कुछ विधायक व सांसद भड़काऊ बयानबाजी पर उतर आए हैं। स्वयं मुख्यमंत्री ने 10 मार्च के बाद बुलडोजर चलाने और गर्मी उतारने की धमकी फिर से दी है। दूसरी तरफ उनका एक विधायक दाढ़ी नोच कर चुटिया बनने की बात कह रहा है तो गोंडा का एक बाहुबली सांसद तो चुनावी सभा में खुल्लम-खुल्ला लोगों को धमका रहा है- ‘सोच लो, यूपी में ठोको बाबा- बुल्डोजर बाबा की सरकार है...।’ इसी तरह कोई पाकिस्तान भेजने तो कोई लाउडस्पीकर उतारने की बात कह रहा है। इन नेताओं के वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे हैं। जिस मकसद से उन्होंने यह बयान दिया था, वह तो पूरा ही हो रहा है। दूसरी तरफ वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए गोदी मीडिया पर हिजाब मुद्दे को लेकर बहस तेज कर दी गई है। इस मामले को कभी अफगानिस्तान से जोड़ा जा रहा है तो कभी संविधान विरोधी बताने की कोशिश की जा रही है। गोदी के एंकर तो कई बार धमकी भरी भाषा का भी इस्तेमाल करने से नहीं चूक रहे हैं। टीवी पर हर दो घंटे पर हिजाब को लेकर जो कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं, उससे साफ पता चलता है कि यह सब कुछ एक सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है। ऐसा लगता है कि जल्द ही समान नागरिक संहिता, लव जिहाद, धर्मांतरण, मंदिर, धारा 370 व रोहिंग्या समेत कुछ और मुद्दे भी सामने आ सकते हैं।

संभव है कि पांचवें से अंतिम चरण तक हिंदुत्व का मुद्दा अपने चरम पर पहुंच जाए, क्योंकि इसी में पूर्वांचल में वोटिंग होनी है, जहां प्रदेश की करीब एक तिहाई यानी 164 सीटें हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने यहां की 115 सीटों पर कब्जा किया था। तब सपा महज 17, बसपा 14 और कांग्रेस 2 सीटों पर सिमट गई थी, जबकि अन्य को 16 सीटें मिली थीं। इनमें भाजपा की सहयोगी अनुप्रिया पटेल के अपना दल को 9 और ओम प्रकाश राजभर की एसबीएसपी को 4 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार राजभर सपा गठबंधन का हिस्सा हैं। सूत्रों का मानना है कि भाजपा पूर्वांचल में अपनी पिछली बार वाली स्थिति फिर से हासिल करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ेगी। अगले हफ्ते जो कुछ होने वाला है, उसका ट्रेलर अभी से दिखने लगा है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी दो चरणों की वोटिंग के बाद ही फतेहपुर की रैली में श्मशान-कब्रिस्तान और रमजान की बिजली व दीपावली बिजली जैसे मुद्दे उछाले गए थे। इस बार भी तीसरे चरण का प्रचार खत्म होने से ठीक पहले योगी ने उन्नाव की रैली में ईद की बिजली और दीपावली की बिजली वाला बयान दिया है। इसके पहले वे 80 बनाम 20 फीसदी, ग़ज़वा ए हिन्द और तालिबान आदि की बात जोर-शोर कर चुके हैं। बीच-बीच में टीवी पर उनका इंटरव्यू होता है, जिसमें वे इस तरह की बातों का जिक्र जरूर करते हैं। वे 20 फीसदी वालों के लिए दंगाई, आतंकी और गुंडे आदि शब्दों का इस्तेमाल कर रहे है। साथ ही वे कानून-व्यवस्था व ‘सुरक्षा’ की बात करना नहीं भूलते हैं। सवाल उठता है कि 20 फीसदी किन लोगों के बारे में कहा जा रहा है और किन लोगों से सुरक्षा देने की बात कही जा रही है? इसे लोग अच्छी चरह समझ रहे हैं। कुछ नेताओं और गोदी मीडिय़ा की भाषा और लहजे से साफ संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में ध्रुवीकरण की राजनीति और तेज होने वाली है।

वैसे दिलचस्प बात यह है कि अब तक हुए चुनाव में कैराना पलायन, मथुरा, मुजफ्फरनगर दंगा, 80 बनाम 20 और हिजाब आदि को गरमाने की भरसक कोशिशें की गईं, लेकिन उनका जनता पर कोई असर नहीं दिखा। इसकी बड़ी वजह यह है कि पिछले 5 वर्षों में यूपी की राजनीति में इसी तरह के गैरजरूरी मुद्दे छाए रहे हैं, जिससे लोग ऊब चुके हैं। आम जनता अमन-चैन और रोजगार चाहती है, क्योंकि महंगाई, बेरोजगारी और कोरोना से हुए जानमाल के नुकसान से सभी की हालत खस्ता हो चुकी है। भाजपा डबल इंजन की बात तो जोरशोर से जरूर कर रही है, लेकिन वह आम जनता और विशेष रूप युवाओं में अच्छे भविष्य़ की कोई उम्मीद नहीं जगा पा रही है। पिछले 2 वर्षों से बच्चों की पढ़ाई-लिखाई अस्त-व्यस्त हैं और नौकरियां भी नहीं निकल रही हैं। हाल के दिनों भर्ती के जो इम्तेहान हुए भी तो उनके पर्चे लीक हो गए।

दूसरे सार्वजनिक क्षेत्र की उपक्रमों के अंधाधुंध निजीकरण से लोगों में यह संदेश जा रहा है कि इससे नौकरियों के अवसर और कम हो जाएंगे। विशेष रूप से दलित और पिछड़े वर्ग के युवा चिंतित हैं कि रेलवे व पीएसयू आदि का निजीकरण होने से उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकेगा। जिस राशन योजना का ढिंढोरा भाजपा जोरशोर से पीट रही है, उसके बारे में सभी को पता है कि इसकी मियाद मार्च तक ही है। मुफ्त कोरोना वैक्सीन, शौचालय, एक्सप्रेस वे और एयरपोर्ट आदि का प्रचार भी वोटरों पर कोई खास असर नहीं डाल पा रहा है। अनाज और वैक्सीन आदि के मुफ्त होने का दावा तो भाजपा के प्रवक्ता ही टीवी पर बैठ कर खारिज कर दे रहे हैं। जब उनसे तेल के दाम और महंगाई पर प्रश्न पूछा जाता है तो उनका जवाब होता है कि सरकार टैक्स नहीं लेगी तो अनाज व वैक्सीन जैसी योजनाएं कैसे चलेंगी? यानी वे सीधे तौर पर स्वीकार कर रहे हैं कि सरकार इन योजनाओं के लिए जनता से ही पैसे ले रही है। 

वहीं दूसरी तरफ़ सपा नीत गठबंधन और कांग्रेस जैसी पार्टियां जनता से सिर्फ ऐसे वादे कर रही हैं, जो व्यवहारिक लग रहे हैं। साथ ही विपक्षी नेताओं ने महंगाई, बेरोजगारी व आम जनता से जुड़े अन्य जरूरी मुद्दों को मजबूती से पकड़ रखा है और वे सांप्रदायिक एजेंडे या अन्य शगूफों के जाल में नहीं फंस रहे हैं। सपा नेता अखिलेश यादव ने तो युवाओं को नौकरी देने, पुरानी पेंशन योजना बहाल करने और गरीबों के लिए अनाज योजना को पूरे 5 साल चलाने समेत कई आकर्षक घोषणाएं की हैं। इन्हें लेकर लोगों के बीच चर्चा भी हो रही है। 

फिलहाल जमीनी स्तर पर जो स्थिति नजर आ रही है, उसमें भाजपा के पास वर्ष 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा वाले आक्रामक तेवर में लौटने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी ने बचे हुए चुनावों के लिए नए सिरे से अपनी रणनीति तैयार की है। भाजपा के तरकश में कौन-कौन से तीर हैं! इसका अंदाजा विपक्ष को अच्छी तरह है। अब यह देखना होगा कि वह उसका मुकाबला किस तरह करता है?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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