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UPSC : कैसे EWS आरक्षण SC, ST और OBC से उनका हक छीन रहा है

2019 की सिविल सेवा परीक्षा से सहूलियत प्राप्त समूहों की अफ़सरशाही पर पकड़ फिर मजबूत हुई है।
UPSC
Image Courtesy: The Print

पिछले साल केंद्र सरकार की नीतियों और शैक्षणिक संस्थानों में आर्थिक तौर पर कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण का कानून पारित हुआ था। इसके पंद्रह दिन बाद प्रधानमंत्री मोदी ने मदुरई में एक रैली को संबोधित करते भरोसा दिलाया कि नए कानून से दलितों, जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों का नुकसान नहीं होगा। इस नए 10 फ़ीसदी आरक्षण का विरोध करने वालों को पीएम ने नकारात्मक ताकतें करार दिया, जिनका 2019 के लोकसभा चुनावों में पूरी तरह सफाया हो चुका है। 

कागज़ों पर प्रधानमंत्री का तर्क अतुल्नीय था। आखिर EWS के लिए जो 10 फ़ीसदी आरक्षण दिया गया, वह 49.5 फ़ीसदी के उस आरक्षण से नहीं काटा गया था, जिसमें से 15 फ़ीसदी आरक्षण अनुसूचित जातियों, 7.5 फ़ीसदी अनुसूचित जनजातियों और ओबीसी को 27 फ़ीसदी आरक्षण दिया गया है। यह 10 फ़ीसदी आरक्षण, उस 50 फ़ीसदी आरक्षण से काटा गया है, जो सामान्य वर्ग के लिए खुला है, जिसमें प्रतिभागियों की जाति से परे खुली प्रतिस्पर्धा के ज़रिए सीटों का आवंटन होता है।

लेकिन जो चीज कागज़ पर तार्किक दिखाई पड़ती है, उसकी वास्तविकता कुछ और है।

यह सच्चाई है कि 10 फ़ीसदी आरक्षण का नया तरीका, अगड़े सामाजिक समूहों, खासकर ऊपरी जातियों के लोगों को जबरदस्ती प्रशासनिक ढांचे में लाने का तरीका बन गया है। EWS आरक्षण उन लोगों के लिए है, जो जनवरी, 2019 के पहले 49.5 फ़ीसदी रिज़र्वेशन पूल से बाहर थे और जिनकी आय आठ लाख रुपये से कम थी। 

प्रधानमंत्री का तर्क गलत होता दिखाई पड़ता है, क्योंकि भर्ती के नियमों के मुताबिक़, ओबीसी, एससी या एसटी के प्रतिभागी, जो सामान्य वर्ग के कटऑफ को पार कर लेते थे, उन्हें आरक्षित नहीं, बल्कि सामान्य वर्ग की सीट पर स्थान दिया जाता था।

जैसे, एक ओबीसी का उम्मीदवार अगर किसी परीक्षा में सर्वोच्च स्थान पाता है, तो उसे ओबीसी के लिए आरक्षित सीट नहीं मिलेगी, दरअसल उसे सामान्य सीट पर दाखिला मिलेगा। आरक्षित वर्ग, ओबीसी की जिस सीट को उस प्रतिभागी ने छोड़ा, उस पर तब ओबीसी के ही किसी दूसरे व्यक्ति को दाखिला मिलेगा, जिसके नंबर ओबीसी के कटऑफ से ज़्यादा होंगे।

इस प्रक्रिया में उस वायदे को निभाया जाता है, जिसके तहत एससी, एसटी और ओबीसी को 49.5 फ़ीसदी सरकारी नौकरियों से ज़्यादा में हिस्सेदारी का मौका दिया जाता है। कैसे? मान लीजिए जैसे ओबीसी के लिए 100 सीटें रिज़र्व हैं। फिर मान लीजिए कि ओबीसी का कोई भी प्रतिभागी सामान्य के लिए तय कटऑफ को क्लीयर नहीं कर पाया। उस मामले में ओबीसी के केवल 100 प्रतिभागियों को जगह मिलेगी। अब मान लीजिए कि ओबीसी के दस प्रतिभागियों में से 10 ने सामान्य वर्ग के कटऑफ से ज़्यादा नंबर हासिल किए। तब ओबीसी के 110 प्रतिभागियों को जगह मिलेगी।

यहां एक चेतावनी दी जानी जरूरी है। रिज़र्वेशन कैटेगरी के लोगों को 49.5 फ़ीसदी से ज़्यादा सीटें मिलना इस बात पर निर्भर करता है कि सामान्य वर्ग का कटऑफ कितना जाता है। सामान्य वर्ग में ज़्यादा सीटें होने से प्रतिस्पर्धा कम होती है और इस वर्ग में पहुंचने के लिए जरूरी कटऑफ नीचे जाता है।

इसी कारण से EWS को दिया गया दस फ़ीसदी का आरक्षण एससी, एसटी और ओबीसी के हितों के खिलाफ़ है। सामान्य वर्ग से दस फ़ीसदी सरकारी नौकरियां हटाने से अब परीक्षा का कटऑफ ऊंचा होगा। इससे एससी, एसटी और ओबीसी के लिए सामान्य सीटों पर जगह बनाना और भी ज़्यादा मु्श्किल हो जाएगा। 

ऊपर से दस फ़ीसदी आरक्षण सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर अगड़े समूहों के लिए है, इसलिए नई आरक्षण नीति, जिसमें आर्थिक पैमाने को आधार बनाया गया है, उससे सामाजिक न्याय के बुनियादी मूल्य का हनन होता है और यह सरकारी नौकरियों में अगड़े समूहों के प्रभाव को बनाए रखने का एक तरीका बन जाती है। (ऐसा कहना गलत भी हो सकता है, क्योंकि कुछ लोग कह सकते हैं कि EWS में किसी जाति को आधार नहीं बनाया गया है।

लेकिन तथ्य यह है कि देश की आम समझ हो चुकी है कि 10 EWS कोटा के लिए कटऑफ हमेशा आरक्षित वर्गों से कहीं ऊपर होगा और यह सामान्य वर्ग के करीब़ होगा। इसलिए तर्क दिया जाता है कि EWS का दस फ़ीसदी कोटा, उच्च वर्ग में कम "प्रतिभाशाली" प्रतिभागियों की कीमत पर बनाया गया है। फिर आरक्षित वर्ग के लोगों को चिंतित होने की क्या जरूरत होगी?

यहां आपके लिए एक झटका है: जनवरी, 2019 से हुई कुछ परीक्षाओं में EWS का कटऑफ, आरक्षित वर्ग की कई श्रेणियों के कटऑफ से नीचे रहा है।

जैसे, टेबल एक देखिए, इसमें सिविल सर्विस एग्ज़ामिनेशन, 2019 में अलग-अलग आरक्षित वर्गों और सामान्य वर्गों का कटऑफ दिया गया है। इसके नतीज़े हाल में ही घोषित हुए हैं।

इस परीक्षा के ज़रिए भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय विदेश सेवा जैसी कुलीन सेवाओं के लिए भर्तियां की जाती हैं। इसमें तीन चरण होते हैं- प्रिलिम या प्राथमिक परीक्षा, मेन्स या लिखित परीक्षा और अंतिम चयन, जिसके लिए लिखित परीक्षा में हासिल किए गए अंकों में इंटरव्यू के नंबर जोड़ दिए जाते हैं।

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Source: https://www.upsc.gov.in/sites/default/files/Cut_Off_Marks_CS2019_Eng.pdf 

आखिरी स्टेज में EWS का कटऑफ, ओबीसी के कटऑफ से कम था, हालांकि यह एससी और एसटी के कटऑफ से ज़्यादा था। दूसरे चरण में EWS का कटऑफ ओबीसी, एससी और एसटी, तीनों से कम रहा। EWS कटऑफ में दूसरे और तीसरे चरण के बीच अंतर में बढ़ा उछाल आया, जिससे पता चलता है कि इस वर्ग के प्रतिभागी इंटरपर्सनल स्किल में बेहतर हैं, जिसकी वजह उनकी प्रभावशाली सांस्कृति पृष्ठभूमि है।

अब हम अपने कल्पनातीत उदाहरण पर वापस लौटते हैं। ओबीसी का कटऑफ, EWS से ज़्यादा है। तो इस बात की बहुत संभावना है कि ओबीसी के कुछ ऐसे प्रतिभागी, जो सामान्य कटऑफ से कुछ नीचे रह गए, वे इस EWS न होने की दशा में सामान्य वर्ग में कटऑफ क्लीयर कर जाते। ऐसा न होने की वजह EWS के चलते सीटों में होने वाली 10 फ़ीसदी की कटौती है, जिससे सामान्य वर्ग का कटऑफ बढ़ गया।

इन लोगों के सामान्य वर्ग में सीट लेने से ओबीसी में कुछ सीटें खाली हो जातीं और कुछ उन लोगों को स्थान मिल जाता, जिन्हें इस बार ओबीसी की लिस्ट में भी जगह नहीं मिली। बल्कि दूसरे राउंड में EWS कोटा की वजह से कई प्रतिभागी अंतिम राउंड में भी जगह नहीं बना पाए होंगे। याद रहे दूसरे राउंड में EWS का कटऑफ सबसे कम रहा था।

मोदी का 10 फ़ीसदी का कोटा एक ऐसे दौर में आया है, जब आरक्षित वर्ग के लोग एक या दो दशक पहले की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। उदाहरण के लिए ओबीसी के प्रतिभागी ने 2016 और 2017 की परीक्षा में सर्वोच्च रैंक हासिल की थी। 2015 में यह सौभाग्य एक दलित वर्ग की प्रतिभागी को मिला था।

इन ट्रेंड के चलते कई ओबीसी, एससी और एसटी नेताओं को लगता है कि EWS कोटा, उनके वर्गों के लोगों को सरकारी नौकरियों में पहुंचने से रोकने का षड्यंत्र है। उनका शक इस बात से भी बढ़ जाता है कि EWS का कटऑफ नंबर आरक्षित वर्ग से कई परीक्षाओं में कम रहा है।

इस मुद्दे पर डीएमके के नेता एमके स्टालिन और सासंद एम कनिमोझी भी चिंता जता चुकी हैं। एक दूसरी परीक्षा- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया- जूनियर एसोसिएट (SBI-JA) में तमिलनाडु के भीतर EWS का कटऑफ केवल 28.5 रहा। जबकि एससी के लिए यह कटऑफ 61.25 रहा, वहीं एसटी के लिए यह 53.75 रहा। वहीं ओबीसी और सामान्य वर्ग के लिए यह कटऑफ 61.25 रहा।

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे कई दूसरे राज्यों की भी कई परीक्षाओं में थोड़े-मोड़े बदलावों के साथ यही ट्रेंड रहा है। इसके चलते ट्विटर पर लोगों ने बीजेपी को निशाना बनाया। पार्टी पर अगड़ी जातियों के हितों की रक्षा के लिए हिंदुओं के बड़े हिस्सों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया गया। बहुत सारे विशेषज्ञों का मानना है कि अगड़ी जातियां EWS वर्ग में प्रभावशाली रहेंगी। यह आरोप सही भी नज़र आते हैं, क्योंकि कुलीन सेवाओं में वरिष्ठ पदों पर अब भी अगड़ी जाति के लोग बरकरार हैं।

क्रिस्टोफ जैफरलॉट और कलैयारास ने 2013 में पाया कि केंद्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी क्लास A में 8.37 फ़ीसदी और क्लास B के 10.01 फ़ीसदी पदों तक ही सीमित हैं। यह प्रतिशत उन स्तरों से अबतक थोड़ा-बहुत बढ़ गया है। लेकिन इस बढ़त के साथ-साथ पदों में कमी हुई है। उदाहरण के लिए हम सिविल सर्विस एग्ज़ाम को देखें, तो पाएंगे कि कुल रिक्तियों में 30 फ़ीसदी की कमी आ गई है, 2014 में 1,291 पद थे, जो 2019 में 896 हो गए। ऊपर से मोदी सरकार के उस फैसले से, जिसके तहत ज्वाइंट सेक्रेटरी लेवल पर लेटरल एंट्री की अनुमित दे दी गई, उससे भी आरक्षण में कटौती आई है। 

इसलिए अब इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि क्योंकि कई लोग 10 फ़ीसदी कोटा की प्रक्रिया और इसके लिए बनाई जाने वाली क्रीमी लेयर को विवादास्पद मानते हैं। इसलिए भी कई लोग कोर्ट के उस फैसले पर सरकारी चुप्पी को भी बतौर सबूत पेश करते हैं, जिसमें कोर्ट ने प्रमोशन में रिज़र्वेशन को मौलिक अधिकार नहीं माना था। इसे लोग दबे-कुचले और अधीनस्थ रहे समूहों के उत्थान के खिलाफ़ सम्मिलित कार्रवाई के तौर पर देखते हैं।

एजाज़ अशरफ एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विग्नेश कार्तिक केआर, किंग्स इंडिया इंस्टीट्यूट, किंग्स कॉलेज लंदन में पीएचडी के छात्र हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

UPSC: Why EWS Quota Denies SCs, STs and OBCs Their Due

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